धर्म

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 33 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 33

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राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति तथा उनके साथ कुशनाभ की कन्याओं का विवाह

बुद्धिमान् महाराज कुशनाभ का वह वचन सुनकर उन सौ कन्याओंने पिता के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया और इस प्रकार कहा—॥ १ ॥

राजन्! सर्वत्र संचार करनेवाले वायुदेव अशुभ मार्ग का अवलम्बन करके हमपर बलात्कार करना चाहते थे। धर्म पर उनकी दृष्टि नहीं थी॥ २ ॥

हमने उनसे कहा—‘देव! आपका कल्याण हो, हमारे पिता विद्यमान हैं; हम स्वच्छन्द नहीं हैं। आप पिताजीके पास जाकर हमारा वरण कीजिये। यदि वे हमें आपको सौंप देंगे तो हम आपकी हो जायँगी’॥ ३ ॥

परंतु उनका मन तो पाप से बँधा हुआ था। उन्होंने हमारी बात नहीं मानी। हम सब बहिनें ये ही धर्मसंगत बातें कह रही थीं, तो भी उन्होंने हमें गहरी चोट पहुँचायी—बिना अपराधके ही हमें पीड़ा दी॥ ४ ॥

उनकी बात सुनकर परम धर्मात्मा महातेजस्वी राजाने उन अपनी परम उत्तम सौ कन्याओंको इस प्रकार उत्तर दिया—॥ ५ ॥

‘पुत्रियो! क्षमाशील महापुरुष ही जिसे कर सकते हैं, वही क्षमा तुमने भी की है। यह तुम लोगों के द्वारा महान् कार्य सम्पन्न हुआ है। तुम सबने एकमत होकर जो मेरे कुलकी मर्यादा पर ही दृष्टि रखी है—कामभाव को अपने मन में स्थान नहीं दिया है—यह भी तुमने बहुत बड़ा काम किया है॥ ६ ॥

‘स्त्री हो या पुरुष, उसके लिये क्षमा ही आभूषण है। पुत्रियो! तुम सब लोगोंमें समानरूपसे जैसी क्षमा या सहिष्णुता है, वह विशेषत: देवताओं के लिये भी दुष्कर ही है॥ ७ /

‘पुत्रियो! क्षमा दान है, क्षमा सत्य है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा यश है और क्षमा धर्म है, क्षमापर भी यह सम्पूर्ण जगत् टिका हुआ है’॥ ८ /

ककुत्स्थकुलनन्दन श्रीराम! देवतुल्य पराक्रमी राजा कुशनाभने कन्याओं से ऐसा कहकर उन्हें अन्त:पुरमें जाने की आज्ञा दे दी और मन्त्रणाके तत्त्वको जानने वाले उन नरेशने स्वयं मन्त्रियों के साथ बैठकर कन्याओंके विवाहके विषयमें विचार आरम्भ किया। विचारणीय विषय यह था कि ‘किस देशमें किस समय और किस सुयोग्य वरके साथ उनका विवाह किया जाय?’॥ ९-१० ॥

उन्हीं दिनों चूली नाम से प्रसिद्ध एक महातेजस्वी, सदाचारी एवं ऊर्ध्वरेता (नैष्ठिक ब्रह्मचारी) मुनि वेदोक्त तपका अनुष्ठान कर रहे थे (अथवा ब्रह्मचिन्तन रूप तपस्या में संलग्न थे)॥ ११ ॥

श्रीराम! तुम्हारा भला हो, उस समय एक गन्धर्व कुमारी वहाँ रहकर उन तपस्वी मुनि की उपासना (अनुग्रह की इच्छा से सेवा) करती थी। उसका नाम था सोमदा। वह ऊर्मिला की पुत्री थी॥ १२ ॥

वह प्रतिदिन मुनि को प्रणाम करके उनकी सेवामें लगी रहती थी तथा धर्म में स्थित रहकर समय-समय पर सेवा के लिये उपस्थित होती थी; इससे उसके ऊपर वे गौरवशाली मुनि बहुत संतुष्ट हुए॥ १३ ॥

रघुनन्दन! शुभ समय आनेपर चूलीने उस गन्धर्व कन्या से कहा—‘शुभे! तुम्हारा कल्याण हो, मैं तुमपर बहुत संतुष्ट हूँ। बोलो, तुम्हारा कौन-सा प्रिय कार्य सिद्ध करूँ’॥ १४ ॥

मुनिको संतुष्ट जानकर गन्धर्व-कन्या बहुत प्रसन्न हुर्इ। वह बोलनेकी कला जानती थी; उसने वाणीके मर्मज्ञ मुनिसे मधुर स्वरमें इस प्रकार कहा—॥ १५ ॥

‘महर्षे! आप ब्राह्मी सम्पत्ति (ब्रह्मतेज) से सम्पन्न होकर ब्रह्मस्वरूप हो गये हैं, अतएव आप महान् तपस्वी हैं। मैं आपसे ब्राह्म तप (ब्रह्म-ज्ञान एवं वेदोक्त तप) से युक्त धर्मात्मा पुत्र प्राप्त करना चाहती हूँ॥ १६ ॥

‘मुने! आपका भला हो। मेरे कोई पति नहीं है। मैं न तो किसीकी पत्नी हुर्इ हूँ और न आगे होऊँगी। आपकी सेवामें आयी हूँ; आप अपने ब्राह्म बल (तप:शक्ति) से मुझे पुत्र प्रदान करें’॥ १७ ॥

उस गन्धर्व कन्या की सेवासे संतुष्ट हुए ब्रह्मर्षि चूलीने उसे परम उत्तम ब्राह्म तपसे सम्पन्न पुत्र प्रदान किया। वह उनके मानसिक संकल्पसे प्रकट हुआ मानस पुत्र था। उसका नाम ‘ब्रह्मदत्त’ हुआ॥ १८ ॥

(कुशनाभ के यहाँ जब कन्याओंके विवाहका विचार चल रहा था) उस समय राजा ब्रह्मदत्त उत्तम लक्ष्मीसे सम्पन्न हो ‘काम्पिल्या’ नामक नगरीमें उसी तरह निवास करते थे, जैसे स्वर्गकी अमरावतीपुरीमें देवराज इन्द्र॥ १९ ॥

ककुत्स्थकुलभूषण श्रीराम! तब परम धर्मात्मा राजा कुशनाभने ब्रह्मदत्तके साथ अपनी सौ कन्याओं को ब्याह देनेका निश्चय किया॥ २० ॥

महातेजस्वी भूपाल राजा कुशनाभने ब्रह्मदत्तको बुलाकर अत्यन्त प्रसन्न चित्तसे उन्हें अपनी सौ कन्याएँ सौंप दीं॥ २१ ॥

रघुनन्दन! उस समय देवराज इन्द्रके समान तेजस्वी पृथ्वीपति ब्रह्मदत्तने क्रमश: उन सभी कन्याओंका पाणिग्रहण किया॥ २२ ॥

विवाह काल में उन कन्याओं के हाथों का ब्रह्मदत्त के हाथसे स्पर्श होते ही वे सब-की-सब कन्याएँ कुब्जत्वदोष से रहित, नीरोग तथा उत्तम शोभासे सम्पन्न प्रतीत होने लगीं॥ २३ ॥

वात रोग के रूपमें आये हुए वायुदेव ने उन कन्याओंको छोड़ दिया—यह देख पृथ्वी पति राजा कुशनाभ बड़े प्रसन्न हुए और बारम्बार हर्ष का अनुभव करने लगे॥ २४ ॥

भूपाल राजा ब्रह्मदत्त का विवाह-कार्य सम्पन्न हो जानेपर महाराज कुशनाभने उन्हें पत्नियों तथा पुरोहितों सहित आदर पूर्वक विदा किया॥ २५ ॥

गन्धर्वी सोमदा ने अपने पुत्रको तथा उसके योग्य विवाह-सम्बन्धको देखकर अपनी उन पुत्र वधुओं का यथोचि तरूप से अभिनन्दन किया। उसने एक-एक करके उन सभी राजकन्याओं को हृदय से लगाया और महाराज कुशनाभ की सराहना करके वहाँ से प्रस्थान किया॥ २६ ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें तैंतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३३॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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