धर्म

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 7 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 7

महर्षि वाल्मीकि कृत रामकथा पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – संपूर्ण रामायण हिंदी में

राज मन्त्रियों के गुण और नीति का वर्णन

इक्ष्वाकुवंशी वीर महामना महाराज दशरथ के मन्त्रिजनोचित गुणों से सम्पन्न आठ मन्त्री थे, जो मन्त्रके तत्त्वको जानने वाले और बाहरी चेष्टा देखकर ही मनके भाव को समझ लेने वाले थे। वे सदा ही राजाके प्रिय एवं हितमें लगे रहते थे। इसीलिये उनका यश बहुत फैला हुआ था। वे सभी शुद्ध आचार-विचार से युक्त थे और राजकीय कार्यों में निरन्तर संलग्न रहते थे॥ १-२ ॥

उनके नाम इस प्रकार हैं—धृष्टि, जयन्त, विजय, सुराष्ट्र, राष्ट्रवर्धन, अकोप, धर्मपाल और आठवें सुमन्त्र, जो अर्थशास्त्रके ज्ञाता थे॥ ३ ॥

ऋषियों में श्रेष्ठतम वसिष्ठ और वामदेव—ये दो महर्षि राजा के माननीय ऋत्विज् (पुरोहित) थे। इनके सिवा सुयज्ञ, जाबालि, काश्यप, गौतम, दीर्घायु मार्कण्डेय और विप्रवर कात्यायन भी महाराज के मन्त्री थे॥ ४-५ ॥

इन ब्रह्मर्षियों के साथ राजाके पूर्वपरम्परागत ऋत्विज् भी सदा मन्त्री का कार्य करते थे। वे सब-के-सब विद्वान् होनेके कारण विनयशील, सलज्ज, कार्यकुशल, जितेन्द्रिय, श्रीसम्पन्न, महात्मा, शस्त्रविद्या के ज्ञाता, सुदृढ़ पराक्रमी, यशस्वी, समस्त राजकार्यों में सावधान, राजाकी आज्ञा के अनुसार कार्य करनेवाले, तेजस्वी, क्षमाशील, कीर्तिमान् तथा मुसकराकर बात करने वाले थे। वे कभी काम, क्रोध या स्वार्थ के वशीभूत होकर झूठ नहीं बोलते थे॥ ६—८ ॥

अपने या शत्रुपक्षके राजाओं की कोई भी बात उनसे छिपी नहीं रहती थी। दूसरे राजा क्या करते हैं, क्या कर चुके हैं और क्या करना चाहते हैं—ये सभी बातें गुप्तचरों द्वारा उन्हें मालूम रहती थीं॥ ९ ॥

वे सभी व्यवहार कुशल थे। उनके सौहार्द की अनेक अवसरों पर परीक्षा ली जा चुकी थी। वे मौका पड़नेपर अपने पुत्रको भी उचित दण्ड देनेमें भी नहीं हिचकते थे॥ १० ॥

कोष के संचय तथा चतुरंगिणी सेनाके संग्रहमें सदा लगे रहते थे। शत्रुने भी यदि अपराध न किया हो तो वे उसकी हिंसा नहीं करते थे॥ ११ ॥

उन सबमें सदा शौर्य एवं उत्साह भरा रहता था। वे राजनीतिके अनुसार कार्य करते तथा अपने राज्यके भीतर रहनेवाले सत्पुरुषोंकी सदा रक्षा करते थे॥ १२ ॥

ब्राह्मणों और क्षत्रियोंको कष्ट न पहुँचाकर न्यायोचित धनसे राजाका खजाना भरते थे। वे अपराधी पुरुषके बलाबलको देखकर उसके प्रति तीक्ष्ण अथवा मृदु दण्डका प्रयोग करते थे॥ १३ ॥

उन सबके भाव शुद्ध और विचार एक थे। उनकी जानकारीमें अयोध्यापुरी अथवा कोसलराज्यके भीतर कहीं एक भी मनुष्य ऐसा नहीं था, जो मिथ्यावादी, दुष्ट और परस्त्रीलम्पट हो। सम्पूर्ण राष्ट्र और नगरमें पूर्ण शान्ति छायी रहती थी॥ १४-१५ ॥

उन मन्त्रियोंके वस्त्र और वेष स्वच्छ एवं सुन्दर होते थे। वे उत्तम व्रतका पालन करनेवाले तथा राजाके हितैषी थे। नीतिरूपी नेत्रोंसे देखते हुए सदा सजग रहते थे॥ १६ ॥

अपने गुणोंके कारण वे सभी मन्त्री गुरुतुल्य समादरणीय राजाके अनुग्रहपात्र थे। अपने पराक्रमोंके कारण उनकी सर्वत्र ख्याति थी। विदेशोंमें भी सब लोग उन्हें जानते थे। वे सभी बातोंमें बुद्धिद्वारा भलीभाँति विचार करके किसी निश्चयपर पहुँचते थे॥ १७ ॥

समस्त देशों और कालोंमें वे गुणवान् ही सिद्ध होते थे, गुणहीन नहीं। संधि और विग्रहके उपयोग और अवसरका उन्हें अच्छी तरह ज्ञान था। वे स्वभावसे ही सम्पत्तिशाली (दैवी सम्पत्तिसे युक्त) थे॥ १८ ॥

उनमें राजकीय मन्त्रणाको गुप्त रखनेकी पूर्ण शक्ति थी। वे सूक्ष्मविषयका विचार करनेमें कुशल थे। नीतिशास्त्रमें उनकी विशेष जानकारी थी तथा वे सदा ही प्रिय लगनेवाली बात बोलते थे॥ १९ ॥

ऐसे गुणवान् मन्त्रियोंके साथ रहकर निष्पाप राजा दशरथ उस भूमण्डलका शासन करते थे॥ २० ॥

वे गुप्तचरोंके द्वारा अपने और शत्रु-राज्य के वृत्तान्तोंपर दृष्टि रखते थे, प्रजाका धर्मपूर्वक पालन करते थे तथा प्रजापालन करते हुए अधर्मसे दूर ही रहते थे॥ २१ ॥

उनकी तीनों लोकोंमें प्रसिद्धि थी। वे उदार और सत्यप्रतिज्ञ थे। पुरुषसिंह राजा दशरथ अयोध्यामें ही रहकर इस पृथ्वीका शासन करते थे॥ २२ ॥

उन्हें कभी अपनेसे बड़ा अथवा अपने समान भी कोई शत्रु नहीं मिला। उनके मित्रोंकी संख्या बहुत थी। सभी सामन्त उनके चरणों में मस्तक झुकाते थे। उनके प्रतापसे राज्यके सारे कण्टक (शत्रु एवं चोर आदि) नष्ट हो गये थे। जैसे देवराज इन्द्र स्वर्गमें रहकर तीनों लोकोंका पालन करते हैं, उसी प्रकार राजा दशरथ अयोध्या में रहकर सम्पूर्ण जगत्का शासन करते थे॥ २३ ॥

उनके मन्त्री मन्त्रणा को गुप्त रखने तथा राज्यके हित-साधनमें संलग्न रहते थे। वे राजाके प्रति अनुरक्त, कार्यकुशल और शक्तिशाली थे। जैसे सूर्य अपनी तेजोमयी किरणोंके साथ उदित होकर प्रकाशित होते हैं, उसी प्रकार राजा दशरथ उन तेजस्वी मन्त्रियों से घिरे रहकर बड़ी शोभा पाते थे॥ २४ ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें सातवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version