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वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 9 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 9

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सुमन्त्र का राजा को ऋष्यश्रृंग मुनि को बुलाने की सलाह देते हुए उनके अंगदेश में जाने और शान्ता से विवाह करने का प्रसंग सुनाना

पुत्रके लिये अश्वमेध यज्ञ करनेकी बात सुनकर सुमन्त्रने राजासे एकान्तमें कहा—‘महाराज! एक पुराना इतिहास सुनिये। मैंने पुराण में भी इसका वर्णन सुना है॥ १ ॥

‘ऋत्विजों ने पुत्र-प्राप्ति के लिये इस अश्वमेध रूप उपाय का उपदेश किया है; परंतु मैंने इतिहास के रूपमें कुछ विशेष बात सुनी है। राजन्! पूर्वकाल में भगवान् सनत्कुमार ने ऋषियों के निकट एक कथा सुनायी थी। वह आपकी पुत्र प्राप्ति से सम्बन्ध रखनेवाली है॥ २ १/२ ॥

‘उन्होंने कहा था, मुनिवरो! महर्षि काश्यप के विभाण्डक नाम से प्रसिद्ध एक पुत्र हैं। उनके भी एक पुत्र होगा, जिसकी लोगोंमें ऋष्यश्रृंग नामसे प्रसिद्धि होगी। वे ऋष्यश्रृंग मुनि सदा वनमें ही रहेंगे और वन में ही सदा लालन-पालन पाकर वे बड़े होंगे॥ ३-४ ॥

‘सदा पिता के ही साथ रहनेके कारण विप्रवर ऋष्यश्रृंग दूसरे किसीको नहीं जानेंगे। राजन्! लोक में ब्रह्मचर्य के दो रूप विख्यात हैं और ब्राह्मणों ने सदा उन दोनों स्वरूपों का वर्णन किया है। एक तो है दण्ड, मेखला आदि धारण रूप मुख्य ब्रह्मचर्य और दूसरा है ऋतु काल में पत्नी-समागम रूप गौण ब्रह्मचर्य। उन महात्माके द्वारा उक्त दोनों प्रकारके ब्रह्मचर्यों का पालन होगा॥ ५ १/२ ॥

‘‘इस प्रकार रहते हुए मुनिका समय अगि्न तथा यशस्वी पिताकी सेवामें ही व्यतीत होगा॥ ६ १/२ ॥

‘‘उसी समय अंगदेश में रोमपाद नामक एक बड़े प्रतापी और बलवान् राजा होंगे; उनके द्वारा धर्म का उल्लङ्घन हो जाने के कारण उस देश में घोर अनावृष्टि हो जायगी, जो सब लोगों को अत्यन्त भयभीत कर देगी॥ ७ – ८ ॥

‘‘वर्षा बंद हो जानेसे राजा रोमपादको भी बहुत दु:ख होगा। वे शास्त्र ज्ञान में बढ़े-चढ़े ब्राह्मणों को बुलाकर कहेंगे—‘विप्रवरो! आपलोग वेद-शास्त्र के अनुसार कर्म करने वाले तथा लोगों के आचार-विचार को जानने वाले हैं; अत: कृपा करके मुझे ऐसा कोई नियम बताइये, जिससे मेरे पाप का प्रायश्चित्त हो जाय’॥ ९-१० १/२ ॥

‘‘राजा के ऐसा कहने पर वे वेदों के पारंगत विद्वान्—सभी श्रेष्ठ ब्राह्मण उन्हें इस प्रकार सलाह देंगे—॥ ११ ॥

‘राजन्! विभाण्डक के पुत्र ऋष्यश्रृंग वेदों के पारगामी विद्वान् हैं। भूपाल! आप सभी उपायों से उन्हें यहाँ ले आइये। बुलाकर उनका भलीभाँति सत्कार कीजिये। फिर एकाग्रचित्त हो वैदिक विधिके अनुसार उनके साथ अपनी कन्या शान्ता का विवाह कर दीजिये’॥ १२-१३ ॥

उनकी बात सुनकर राजा इस चिन्तामें पड़ जायँगे कि किस उपाय से उन शक्तिशाली महर्षिको यहाँ लाया जा सकता है॥ १४ ॥

‘‘फिर वे मनस्वी नरेश मन्त्रियोंके साथ निश्चय करके अपने पुरोहित और मन्त्रियों को सत्कारपूर्वक वहाँ भेजेंगे॥ १५ ॥

‘‘राजाकी बात सुनकर वे मन्त्री और पुरोहित मुँह लटकाकर दु:खी हो यों कहने लगेंगे कि ‘हम महर्षि से डरते हैं, इसलिये वहाँ नहीं जायँगे।’ यों कहकर वे राजासे बड़ी अनुनय-विनय करेंगे॥ १६ ॥

‘इसके बाद सोच-विचारकर वे राजाको योग्य उपाय बतायेंगे और कहेंगे कि ‘हम उन ब्राह्मणकुमारको किसी उपायसे यहाँ ले आयेंगे। ऐसा करनेसे कोर्इ दोष नहीं घटित होगा’॥ १७ ॥

‘‘इस प्रकार वेश्याओंकी सहायता से अंगराज मुनिकुमार ऋष्यश्रृंग को अपने यहाँ बुलायेंगे। उनके आते ही इन्द्र देव उस राज्यमें वर्षा करेंगे। फिर राजा उन्हें अपनी पुत्री शान्ता समर्पित कर देंगे॥ १८ ॥

‘‘इस तरह ऋष्यश्रृंग आपके जामाता हुए। वे ही आपके लिये पुत्रों को सुलभ कराने वाले यज्ञ कर्म का सम्पादन करेंगे। यह सनत्कुमारजीकी कही हुई बात मैंने आपसे निवेदन की है’’॥ १९ ॥

यह सुनकर राजा दशरथ को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने सुमन्त्र से कहा—‘मुनिकुमार ऋष्यश्रृंग को वहाँ जिस प्रकार और जिस उपायसे बुलाया गया, वह स्पष्ट रूप से बताओ’॥ २० ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें नवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ९॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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