कविता

वर्षगाँठ आजादी की (15 अगस्त 1970)

“वर्षगाँठ आजादी की” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 अगस्त सन् 1970 को लिखी गयी थी। इसमें आज़ादी का मूल्य समझाने की चेष्टा झलकती है। पढ़ें यह कविता–

वर्षगाँठ आ गई आज फिर आज़ादी की
याद दिलाने फिर स्वतन्त्रता शहजादी की
सर पर कफन बाँध कर घर से हम निकले थे
आँधी-तूफाँ पैरों-बाँहों में मचले थे

एक यही आवाज आ रही थी कंटों से
नहीं दबेंगे हथगोले, गोली डण्डों से
हमने खायी कभी शपथ रावी के तट पर
लिखा नया इतिहास तभी धरती के पट पर

जलियाँवाला फिर अपनी आँखों से देखा
निर्दयता की खींच गया जो अक्षय रेखा
फाँसी के तख्ते पर खड़े-खड़े मुस्काते
देखे ऐसे वीर मृत्यु को गले लगाते

कितने नाम गिनाऊँ ? कुछ भी कमी नहीं है
कौन पुरुष जो शिवा नहीं, नारी लक्ष्मी नहीं है
जिसके तेवर देख ब्रिटिश शासन सत्ता थर्राई
नजर बदल जब बूढ़े भारत ने ली थी अंगड़ाई

गोरी सत्ता के हाथों से आज़ादी की डोली
अपने कन्धों पर ले आये गा-गा करके होली
घी के दिये जलाकर हमने अपनी की दीवाली
लगा जान की बाजी हमने इसकी की रखवाली

चाऊ-माऊ की हमने ऐसी धज्जियाँ उड़ाई
फिर रोयेंगे हम पर अपनी नजरें अगर गढ़ाई ।
छम्म-जोरियाँ के आँगन में पैटन टैंक सिसकते
भारत की सीमा छूने में सैवर जैट झिझकते।

किसका है हौसला कि जो बढ़कर हमको ललकारे
जहाँ छटी में साथ रख दिए जाते तेग दुधारे
ऐसा मेरा देश वीरता जिसके बाँट पडी है।
पौरुष की जिसके ऊपर अत्युज्वल शान चढ़ी है ।

हिंसा पर उतरेगा कोई तो फिर पछतायेगा
कोई वादी हो, कोई हो तो मुँह की खायेगा
प्रेम-अहिंसा की धरती यह हिंसा नहीं सहेगी
अगर जरूरत होगी तो, दो दो तलवार गहेगी।।

वैसे बुद्ध-गाँधी के हम अभिमानी बेटे हैं
तुलसीसूरकबीर हमारे शैक्सपीयर गेटे हैं
जो अबला कहलाती है वह सबला बन जाती है
आँख बदलते देख किसी की, भृकुटि तन जाती है।

परशुराम के लिए बहुत से लक्ष्मण भी बैठे हैं
अहि रावण के लिए पवन सुत पूँछ खड़े ऐंठे हैं
जा सीता स्वतन्त्रता की रक्षा में हम जियें मरेंगे
इसके लिए काल के सम्मुख जाकर नहीं डरेंगे।

यही हमारी अमर प्रतिज्ञा हो आज़ाद रहेंगे
आज़ादी की लिए देह पर अगणित कष्ट सहेंगे।

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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