धर्म

यक्षिणी कवच – Yakshini Kavach

यक्षिणी कवच (Yakshini Kavach) एक प्राचीन तंत्रिक प्रयोग होता है जो कि यक्षिणियों की कृपा और समर्पण को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यक्षिणियाँ भारतीय तंत्रिक विचारधारा में एक प्रकार की आकर्षणीय और शक्तिशाली देवियों के रूप में पूजी जाती हैं। यक्षिणी की कृपा प्राप्त करने के बाद, व्यक्ति के आस-पास के लोग उनसे आकर्षित हो सकते हैं और प्रेम जीवन में सुधार हो सकता है। इसके अलावा यक्षिणियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, व्यक्ति के धन और संपत्ति में वृद्धि हो सकती है।

कृपया ध्यान दें कि यक्षिणी कवच या तंत्रिक प्रयोग का इस्तेमाल करने से पहले, आपको इसके अध्ययन और प्रयोग के बारे में अच्छी तरह से समझना चाहिए, और यह किसी अच्छी गुरु के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, धार्मिक और कानूनी दिशाओं का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है।

॥ श्री उन्मत्त-भैरव उवाच॥
श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं ।
यक्षिणी-नायिकानां तु,संक्षेपात् सिद्धि-दायकं॥

हे कल्याणि ! देवताओं को दुर्लभ, संक्षेप (शीघ्र) में सिद्धि देने वाले,
यक्षिणी आदि नायिकाओं के कवच को सुनो –

ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं ।
यक्षिणि स्वयमायाति,

॥ कवच-ज्ञान-मात्रतः॥
हे देवशि ! इस कवच के ज्ञान-मात्र से यक्षिणी स्वयं आ जाती है और निश्चय
ही सिद्धि मिलती है ।सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं । पठनात् धारणान्मर्त्यो,

॥यक्षिणी-वशमानयेत्॥
हे देवि ! यह कवच सभी शास्त्रों में दुर्लभ है, केवल डामर-तन्त्रों में
प्रकाशित किया गया है । इसके पाठ और लिखकर धारण करने से यक्षिणी वश में होती है ।

विनियोग :-
ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्रीगर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः,
श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यासः-
श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
श्री अमुकी यक्षिणी देवतायै नमः हृदि,
साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे
विनियोगाय नमः सर्वांगे।

॥ मूल पाठ॥
शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका ।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका॥

चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला ।
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी॥

स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना ।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी॥

विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम ।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम्॥

भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा ।
अलंकारान्विता पातु, मे नितम्ब-स्थलं दया॥
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना ।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी॥
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं ।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी॥
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके ।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका॥
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी ।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये॥
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका ।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका॥

इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं ।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात्॥
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले ।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम् ।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः ।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा॥
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत् ।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे॥
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि ।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः॥
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा॥

॥ इति वृहद्-भूत-डामरे महा-तन्त्रे श्रीमदुन्मत्त-भैरवी-भैरव-सम्वादे यक्षिणी-नायिका-कवचम्॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर यक्षिणी कवच (Yakshini Kavacham) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह कवच रोमन में–

Read Yakshini Kavach

॥ śrī unmatta-bhairava uvāca॥
śrṛṇu kalyāṇi ! mad-vākyaṃ, kavacaṃ deva-durlabhaṃ ।
yakṣiṇī-nāyikānāṃ tu,saṃkṣepāt siddhi-dāyakaṃ॥

he kalyāṇi ! devatāoṃ ko durlabha, saṃkṣepa (śīghra) meṃ siddhi dene vāle,
yakṣiṇī ādi nāyikāoṃ ke kavaca ko suno –

jñāna-mātreṇa devaśi ! siddhimāpnoti niścitaṃ ।
yakṣiṇi svayamāyāti,

॥ kavaca-jñāna-mātrataḥ॥
he devaśi ! isa kavaca ke jñāna-mātra se yakṣiṇī svayaṃ ā jātī hai aura niścaya
hī siddhi milatī hai ।sarvatra durlabhaṃ devi ! ḍāmareṣu prakāśitaṃ । paṭhanāt dhāraṇānmartyo,

॥yakṣiṇī-vaśamānayet॥
he devi ! yaha kavaca sabhī śāstroṃ meṃ durlabha hai, kevala ḍāmara-tantroṃ meṃ
prakāśita kiyā gayā hai । isake pāṭha aura likhakara dhāraṇa karane se yakṣiṇī vaśa meṃ hotī hai ।

viniyoga :-
oṃ asya śrīyakṣiṇī-kavacasya śrīgarga ṛṣiḥ, gāyatrī chandaḥ,
śrī amukī yakṣiṇī devatā, sākṣāt siddhi-samṛddhayarthe pāṭhe viniyogaḥ ।

ṛṣyādinyāsaḥ-
śrīgarga ṛṣaye namaḥ śirasi,
gāyatrī chandase namaḥ mukhe,
śrī amukī yakṣiṇī devatāyai namaḥ hṛdi,
sākṣāt siddhi-samṛddhayarthe pāṭhe
viniyogāya namaḥ sarvāṃge।

॥ mūla pāṭha॥
śiro me yakṣiṇī pātu, lalāṭaṃ yakṣa-kanyakā ।
mukhaṃ śrī dhanadā pātu, karṇau me kula-nāyikā॥

cakṣuṣī varadā pātu, nāsikāṃ bhakta-vatsalā ।
keśāgraṃ piṃgalā pātu, dhanadā śrīmaheśvarī॥

skandhau kulālapā pātu, galaṃ me kamalānanā ।
kirātinī sadā pātu, bhuja-yugmaṃ jaṭeśvarī॥

vikṛtāsyā sadā pātu, mahā-vajra-priyā mama ।
astra-hastā pātu nityaṃ, pṛṣṭhamudara-deśakam॥

bheruṇḍā mākarī devī, hṛdayaṃ pātu sarvadā ।
alaṃkārānvitā pātu, me nitamba-sthalaṃ dayā॥
dhārmikā guhyadeśaṃ me, pāda-yugmaṃ surāṃganā ।
śūnyāgāre sadā pātu, mantra-mātā-svarupiṇī॥
niṣkalaṃkā sadā pātu, cāmbuvatyakhilaṃ tanuṃ ।
prāntare dhanadā pātu, nija-bīja-prakāśinī॥
lakṣmī-bījātmikā pātu, khaḍga-hastā śmaśānake ।
śūnyāgāre nadī-tīre, mahā-yakṣeśa-kanyakā॥
pātu māṃ varadākhyā me, sarvāṃgaṃ pātu mohinī ।
mahā-saṃkaṭa-madhye tu, saṃgrāme ripu-sañcaye॥
krodha-rupā sadā pātu, mahā-deva niṣevikā ।
sarvatra sarvadā pātu, bhavānī kula-dāyikā॥

ityetat kavacaṃ devi ! mahā-yakṣiṇī-prītivaṃ ।
asyāpi smaraṇādeva, rājatvaṃ labhate’cirāt॥
pañca-varṣa-sahasrāṇi, sthiro bhavati bhū-tale ।
veda-jñānī sarva-śāstra-vettā bhavati niścitam ।
araṇye siddhimāpnoti, mahā-kavaca-pāṭhataḥ ।
yakṣiṇī kula-vidyā ca, samāyāti su-siddhadā॥
aṇimā-laghimā-prāptiḥ sukha-siddhi-phalaṃ labhet ।
paṭhitvā dhārayitvā ca, nirjane’raṇyamantare॥
sthitvā japellakṣa-mantra miṣṭa-siddhiṃ labhenniśi ।
bhāryā bhavati sā devī, mahā-kavaca-pāṭhataḥ॥
grahaṇādeva siddhiḥ syān, nātra kāryā vicāraṇā॥

॥ iti vṛhad-bhūta-ḍāmare mahā-tantre śrīmadunmatta-bhairavī-bhairava-samvāde yakṣiṇī-nāyikā-kavacam॥

आपको अगर यक्षिणी कवच का प्रयोग करने का इच्छुक है, तो आपको एक अच्छे तंत्रिक गुरु से संपर्क करना चाहिए, जो आपको सही मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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