भीम का जीवन परिचय
भीम महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। महाभारत के अद्वितीय योद्धा महाबली भीम (Bheem) की बल और पौरुष में तुलना करने वाला उस समय कोई नहीं था। इनका जन्म वायुदेव के अंश से हुआ था। इनके जन्म के समय यह आकाशवाणी हुई थी कि यह कुमार बलवानों में सर्वश्रेष्ठ होगा। वस्तुतः भीमसेन शारीरिक बल में अपने युग के सर्वश्रेष्ठ योद्धा थे। उन्हें हनुमान जी का छोटा भाई भी माना जाता है।
बचपन में खेल-खेल में ये धृतराष्ट्र के पुत्रों को बार बार पराजित कर दिया करते थे। दुर्योधन इनसे विशेष जलन रखता था। एक दिन वह जलक्रीड़ा के बहाने पाण्डवों को गङ्गा तटपर ले गया। वहाँ उसने भीमसेन को मार डालने के उद्देश्य से उनके भोजन में कालकूट विष मिलाकर खिला दिया। विष के प्रभाव से अचेत हो जाने पर दुर्योधन ने उन्हें लताओं से बांधकर गंगा जी में डाल दिया। जल में डूबकर बेहोशी की दशा में वे नागलोक पहुँच गये। वहाँ नागों के डँसने से कालकूट का प्रभाव समाप्त हो गया और भीमसेन होश में आ गये। उन्होंने सर्पों को मारना शुरू कर दिया। सबने उनकी शिकायत नागराज वासुकि से की, तब नागराज वासुकि के साथ आर्यक भी भीम को देखने के लिये आये।
आर्यक कुन्ती के पिता शूरसेन के नाना थे। अपने दौहित्र के दौहित्र भीम (Bhim) को पहचानकर उन्हें विशेष प्रसन्नता हुई। भीमसेन को उन्होंने वहाँ के कुण्डों का अमृत रस पिलाकर दस हजार हाथियों का बल प्रदान कर दिया। महाबलवान् एवं अद्भुत पराक्रमी भीमसेन अपनी माता कुन्ती और भाइयों युधिष्ठिर, धनुर्धर अर्जुन, नकुल और सहदेव के बहुत काम आते थे। वारणावत के लाक्षागृह से निकलने पर जब इनकी हिडिम्ब राक्षस से मुठभेड़ हुई तो इन्होंने खेल-ही-खेल में उस पराक्रमी राक्षस का वध कर डाला और उसके भय से अपने परिवार की रक्षा की।
भीमसेन (Bhimsen) की यह विशेषता थी कि ये अन्याय होते देखकर उसका प्रतिकार करनेके लिये तुरन्त तैयार हो जाते थे। अपने प्राण को खतरे में डालकर दूसरों को कष्ट से मुक्ति दिलाना इनका सहज स्वभाव था। दस हजार हाथियों का बल रखने पर भी ये किसीके प्रति अत्याचार नहीं करते थे। अपनी माता तथा बड़े भाई महाराज युधिष्ठिर के ये अत्यन्त ही आज्ञाकारी थे। एकचक्रा नगरी में माता कुन्ती के आदेश से अत्याचारी बकासुर का वध करके इन्होंने समाज को उसके भय से मुक्ति दिलायी। वीरता की तो ये प्रतिमूर्ति थे। भगवान् श्रीकृष्ण के साथ जाकर इन्होंने प्रबल पराक्रमी जरासन्ध का मल्लयुद्ध में वध किया। द्रौपदी के चीरहरण के प्रसंगमें दुःशासन के दुष्कृत्य को देखकर इन्होंने क्रोध में आकर सभी कौरवों को युद्ध में मार डालने तथा दुःशासन को मारकर उसका रक्तपान करने की प्रतिज्ञा कर डाली और उस प्रणका निर्वाह भी किया।
भीम अद्भुत योद्धा होने के साथ नीतिशास्त्र के भी अच्छे जाता थे। उनकी नीतिज्ञता का पता उस समय चलता है जब भगवान् श्रीकृष्ण सन्धिदूत बनकर कौरव-सभा की ओर प्रस्थान कर रहे थे, उस समय भीमसेन ने कहा ‘मधुसूदन! कौरवों के बीच में आप ऐसी बात करें, जिससे शान्ति स्थापित हो जाय। दुर्योधन दुरात्मा और दुराग्रही है। वह मर जायगा, पर झुकना नहीं स्वीकार करेगा। वहाँ आपका कथन धर्म अर्थ से युक्त, कल्याणकारी और प्रिय होना चाहिये।
कुरुराज धृतराष्ट्र ने भीम की वीरता का वर्णन करते हुए कहा है कि “महाबाहु भीमसेन इन्द्र के समान तेजस्वी हैं। मैं अपनी सेना में युद्ध में उनका सामना करने वाला किसी को भी नहीं देखता। वे अस्त्रविद्या में आचार्य द्रोण के समान, वेग में वायु के समान और क्रोध में महेश्वर के तुल्य हैं।” धृतराष्ट्र का यह कथन सर्वथा सत्य है। भीम सेन महाभारत के अद्वितीय योद्धा थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया। अन्त में दुर्योधन को गदायुद्ध में परास्त कर के इन्होंने पाण्डवों के लिये विजयश्री प्राप्त की।
महाबली भीम संबंधी प्रश्नों के उत्तर
भीमसेन के चार पाण्डव अर्थात युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल व सहदेव के अतिरिक्त कर्ण भी भाई थे। इस तरह उनके कुल पाँच भाई थे।
भीम की पहली पत्नी हिडिम्बा, द्वितीय द्रौपदी और तृतीय बलंधरा थी।
भीमसेन के तीन पुत्र थे – घटोत्कच, सुतसोम और सर्वग।