स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य

धर्मस्वामी विवेकानंद

गुरु गोविंद सिंह जी शिष्यों को किस प्रकार की दीक्षा देते थे

गुरु गोविंदसिंहजी शिष्यों को किस प्रकार की दीक्षा देते थे -उस समय पंजाब के सर्वसाधारण के मन में उन्होंने एक ही प्रकार की प्रेरणाको जगाया आदि।

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धर्मस्वामी विवेकानंद

नये मठ की भूमि पर श्रीरामकृष्ण की प्रतिष्ठा

नये मठ की भूमि पर श्रीरामकृष्ण की प्रतिष्ठा – आचार्य शंकरकी अनुदारता – बौद्ध धर्म का पतन, कारण-निर्देश – तीर्थमाहात्म्य आदि।

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धर्मस्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद की बाल्य व यौवन अवस्था की कुछ घटनाएँ तथादर्शन

स्वामीजी की बाल्य व यौवन अवस्था की कुछ घटनाएँ तथादर्शन – भीतर से मानो कोईवत्तृताराशि को बढ़ाता है ऐसी अनुभूति आदि।

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धर्मस्वामी विवेकानंद

काश्मीर में अमरनाथजी का दर्शन

काश्मीर में अमरनाथजी का दर्शन – क्षीरभवानी के मन्दिर मेंदेवीजी की वाणी का श्रवण और मन से सकल संकल्प का त्याग – प्रेतयोनिका अस्तित्व आदि।

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धर्मस्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद की संस्कृत रचना

स्वामीजी की संस्कृत रचना – श्रीरामकृष्णदेव के आगमन सेभाव व भाषा में प्राण का संचार – भाषा में किस प्रकार से ओजस्विता लानीहोगी आदि।

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धर्मस्वामी विवेकानंद

निर्विकल्प समाधि पर स्वामी विवेकानंद का व्याख्यान

निर्विकल्प समाधि पर स्वामीजी का व्याख्यान – इस समाधि से कौन लोग फिर संसार में लौटकर आ सकते हैं- शिष्य द्वारा स्वामीजी की पूजा आदि।

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धर्मस्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद द्वारा शिष्य को व्यापार वाणिज्य करने के लिए प्रोत्साहित करना

स्वामीजी द्वारा शिष्य को व्यापार वाणिज्य करने के लिएप्रोत्साहित करना – वास्तविक शिक्षा किसे कहते हैं – वास्तविक शिक्षा किसे कहते हैं आदि।

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स्वामी विवेकानंद

“उद्बोधन” पत्र की स्थापना – इस पत्र के लिए स्वामी त्रिगुणातीतानन्दजी का अमित कष्ट तथा त्याग

स्थान – बेलुड़, किराये का मठ वर्ष – १८९८ ईसवी विषय – “उद्बोधन” पत्र की स्थापना – इस पत्र के

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धर्मस्वामी विवेकानंद

भगिनी निवेदिता आदि के साथ स्वामी विवेकानंद का अलीपुर पशुशालादेखने जाना

भगिनी निवेदिता आदि के साथ स्वामीजी का अलीपुर पशुशालादेखने जाना – पशुशाला देखते समय वार्तालाप तथा हँसी – सम्बन्ध में महामुनि पतंजलि का मत आदि।

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श्रीरामकृष्ण मठ को अद्वितीय धर्मक्षेत्र बना लेने की स्वामी विवेकानंद की इच्छा

श्रीरामकृष्ण मठ को अद्वितीय धर्मक्षेत्र बना लेने की स्वामीजी की इच्छा – मठ में ब्रह्मचारियों को किस प्रकार शिक्षा देने का संकल्प था आदि।

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