धर्म

हरिद्रा गणेश कवच – Haridra Ganesh Kavach

“हरिद्रा गणेश कवच” एक शास्त्रीय पाठ है जो भगवान गणेश की कृपा को प्राप्त करने और विभिन्न बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस कवच में “हरिद्रा” यानी हल्दी जोड़कर गणेश का ध्यान किया जाता है, जिससे सुरक्षा और प्रसन्नता बढ़ती हैं। यह कवच विभिन्न समस्याओं से बचाने और भक्तों को सफलता और शांति प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करता है। इसका नियमित पाठ करने से आपके जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की क्षमता में वृद्धि होती है और आपके आत्मविश्वास में भी सुधार होता है।

॥ अथ हरिद्रा गणेश कवच ॥

ईश्वर उवाच:

शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये ।
पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्व संकटात् ॥१॥

अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् ।
सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ २॥

ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि ।
सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ॥ ३॥

गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः ।
गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ॥ ४॥

जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा ।
विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ॥ ५॥

गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम ।
विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ॥ ६॥

गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके ।
लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ॥ ७॥

व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा ।
जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ॥ ८॥

हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः ।
य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ॥ ९॥

कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् ।
सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥ १०॥

सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् ।
सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ ११॥

ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः ।
पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति तत्क्षणात् ॥ १२॥

धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् ।
समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च ॥ १३॥

हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य भूतले ।
किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात् ॥ १४॥

॥ इति विश्वसारतन्त्रे हरिद्रागणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर हरिद्रा गणेश कवच को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह कवच रोमन में–

Haridra Ganesh Kavach Lyrics

॥ atha haridrā gaṇeśa kavaca ॥

īśvara uvāca:

śṛṇu vakṣyāmi kavacaṃ sarvasiddhikaraṃ priye ।
paṭhitvā pāṭhayitvā ca mucyate sarva saṃkaṭāt ॥1॥

ajñātvā kavacaṃ devi gaṇeśasya manuṃ japet ।
siddhirnajāyate tasya kalpakoṭiśatairapi ॥ 2॥

oṃ āmodaśca śiraḥ pātu pramodaśca śikhopari ।
sammodo bhrūyuge pātu bhrūmadhye ca gaṇādhipaḥ ॥ 3॥

gaṇākrīḍo netrayugaṃ nāsāyāṃ gaṇanāyakaḥ ।
gaṇakrīḍānvitaḥ pātu vadane sarvasiddhaye ॥ 4॥

jihvāyāṃ sumukhaḥ pātu grīvāyāṃ durmukhaḥ sadā ।
vighneśo hṛdaye pātu vighnanāthaśca vakṣasi ॥ 5॥

gaṇānāṃ nāyakaḥ pātu bāhuyugmaṃ sadā mama ।
vighnakartā ca hyudare vighnahartā ca liṅgake ॥ 6॥

gajavaktraḥ kaṭīdeśe ekadanto nitambake ।
lambodaraḥ sadā pātu guhyadeśe mamāruṇaḥ ॥ 7॥

vyālayajñopavītī māṃ pātu pādayuge sadā ।
jāpakaḥ sarvadā pātu jānujaṅghe gaṇādhipaḥ ॥ 8॥

hāridraḥ sarvadā pātu sarvāṅge gaṇanāyakaḥ ।
ya idaṃ prapaṭhennityaṃ gaṇeśasya maheśvari ॥ 9॥

kavacaṃ sarvasiddhākhyaṃ sarvavighnavināśanam ।
sarvasiddhikaraṃ sākṣātsarvapāpavimocanam ॥ 10॥

sarvasampatpradaṃ sākṣātsarvaduḥkhavimokṣaṇam ।
sarvāpattipraśamanaṃ sarvaśatrukṣayaṅkaram ॥ 11॥

grahapīḍā jvarā rogā ye cānye guhyakādayaḥ ।
paṭhanāddhāraṇādeva nāśamāyanti tatkṣaṇāt ॥ 12॥

dhanadhānyakaraṃ devi kavacaṃ surapūjitam ।
samaṃ nāsti maheśāni trailokye kavacasya ca ॥ 13॥

hāridrasya mahādevi vighnarājasya bhūtale ।
kimanyairasadālāpairyatrāyurvyayatāmiyāt ॥ 14॥

॥ iti viśvasāratantre haridrāgaṇeśakavacaṃ sampūrṇam ॥

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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