धर्म

लम्बोदर – Lambodar (अष्टविनायक में गणेश जी का पंचम रूप)

लम्बोदर (Lambodar Ganesh) अवतार भगवान गणेश अष्टविनायक (Ashtavinayak) रूपों में पांचवा अवतार है। श्री गणेशजी का ‘लम्बोदर’ नामक अवतार सत्स्वरूप तथा शक्ति ब्रह्म का धारक है। इसका भी मूषक वाहन है।

लम्बोदरावतारो वै क्रोधासुर निबर्हणः।
शक्तिब्रह्माखुगः सद् यत् तस्य धारक उच्यते॥
 

भगवान् विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर भगवान् शिव काम-मोहित हो गये। जब विष्णु भगवान ने मोहिनी रूप का त्याग किया तो कामारिका मन दुःखी हो गया। उसी समय उनका शुक्र धरती पर स्खलित हो गया उससे एक परम प्रतापी काले रंग का असुर पैदा हुआ। उसके नेत्र ताँबेकी तरह चमकदार थे।

वह असुर शुक्राचार्य के पास गया और कहा – ‘प्रभो! मुझे शिष्य स्वीकार कर मेरा पालन करिये तथा मेरा नामकरण करने की कृपा करें। शुक्राचार्य कुछ क्षण ध्यान मग्न हो गये। विचार करने के बाद अपने इस योग्य शिष्य का नाम क्रोधासुर रखा। उन्होंने उसका संस्कार कर अपनी शिक्षासे उसे भलीभाँति योग्य बनाया फिर उन्होंने शम्बर दैत्य की परम रूपवती कन्या प्रीति के साथ उसका विवाह कर दिया। एक दिन क्रोधासुर ने आचार्य के समक्ष हाथ जोड़कर कहा- ‘मैं आपकी आज्ञा से सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों पर विजय प्राप्त करना चाहता हूँ। अतः आप मुझे यश प्रदान करने वाला मन्त्र देने की कृपा करें।’ शुक्राचार्य ने उसे सविधि सूर्य- मन्त्र की दीक्षा दी।

क्रोधासुर शुक्राचार्य की आज्ञा लेकर वन में चला गया। वहाँ उसने एक पैर पर खड़े होकर सूर्य मन्त्र का जप किया उस धैर्यशाली दैत्य ने निराहार रहकर वर्षा, शीत और धूप का कष्ट सहन करते हुए कठोर तप किया असुर के सहस्रों वर्षों की तपस्या के बाद भगवान् सूर्य प्रसन्न होकर प्रकट हुए। क्रोधासुर ने उनका भक्ति पूर्वक पूजन किया । सूर्य भगवान् को प्रसन्न देखकर उसने कहा- ‘प्रभो मेरी मृत्यु न हो। मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों को जीत लूँ सभी योद्धाओं में मैं अद्वितीय सिद्ध होऊँ तथास्तु! कहकर भगवान् सूर्य अन्तर्धान हो गये

घर लौटकर क्रोधासुर ने शुक्राचार्य के चरणों में प्रणाम किया शुक्राचार्य ने उसका आवेशपुरी में दैत्यों के राजा के पदपर अभिषेक कर दिया। कुछ दिनों बाद उसने असुरों से ब्रह्माण्ड-विजय की इच्छा व्यक्त की। असुर बड़े प्रसन्न हुए विजय-यात्रा प्रारम्भ हुई। उसने पृथ्वी पर सहज ही अधिकार कर लिया। फिर वह अमरावती पर चढ़ दौड़ा। उसके डर से देवता भाग गये। स्वर्ग भी उसके अधीन हो गया। इसी प्रकार वैकुण्ठ और कैलास पर भी उस महादैत्य का राज्य स्थापित हो गया। क्रोधासुर ने भगवान् सूर्य के सूर्य लोक को भी जीत लिया। वरदान देने के कारण उन्होंने भी सूर्य लोक का दुःखी हृदय से त्याग कर दिया।

अत्यन्त दुःखी देवताओं और ऋषियों ने गणेश की आराधना की इससे सन्तुष्ट होकर लम्बोदर प्रकट हुए। उन्होंने कहा – ‘देवताओ और ऋषियो! मैं क्रोधासुर का अहंकार चूर्ण कर दूँगा। आपलोग निश्चिन्त हो जायँ।’

लम्बोदर के साथ क्रोधासुर का भीषण संग्राम हुआ। देवगण भी असुरों का संहार करने लगे। क्रोधासुर के बड़े-बड़े योद्धा समर भूमि में आहत होकर गिर पड़े। क्रोधासुर दुःखी होकर लम्बोदर के चरणों में गिर गया तथा उनकी भक्तिभाव से स्तुति करने लगा। सहज कृपालु लम्बोदर ने उसे अभयदान दे दिया। क्रोधासुर भगवान् लम्बोदर का आशीर्वाद और भक्ति प्राप्त कर शान्त जीवन बिताने के लिये पाताल चला गया। देवता अभय और प्रसन्न होकर भगवान् लम्बोदर का गुणगान करने लगे ।

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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