धर्म

मातंगी स्तोत्र – Matangi Stotra

मातंगी स्तोत्र, हिंदू धर्म में दस महाविद्याओं में से एक मां मातंगी को समर्पित एक स्तोत्र है। मां मातंगी को वाणी, कला, संगीत, मोक्ष और तंत्र विद्या की अधीश्वरी माना जाता है।

ईश्वर उवाच ।

आराध्य मातश्चरणाम्बुजे ते
ब्रह्मादयो विस्तृत कीर्तिमायुः ।
अन्ये परं वा विभवं मुनीन्द्राः
परां श्रियं भक्ति परेण चान्ये ॥ १

नमामि देवीं नवचन्द्रमौले-
र्मातङ्गिनी चन्द्रकलावतंसां ।
आम्नायप्राप्ति प्रतिपादितार्थं
प्रबोधयन्तीं प्रियमादरेण ॥ २ ॥

विनम्रदेवस्थिरमौलिरत्नैः
विराजितं ते चरणारविन्दं ।
अकृत्रिमाणं वचसां विशुक्लां
पदां पदं शिक्षितनूपुराभ्याम् ॥ ३ ॥

कृतार्थयन्तीं पदवीं पदाभ्यां
आस्फालयन्तीं कलवल्लकीं तां ।
मातङ्गिनीं सद्धृदयां धिनोमि
लीलाम्शुकां शुद्ध नितम्बबिम्बाम् ॥ ४ ॥

तालीदलेनार्पितकर्णभूषां
माध्वीमदोद्घूर्णितनेत्रपद्मां
घनस्तनीं शंभुवधूं नमामि
तटिल्लताकान्तिमनर्घ्यभूषाम् ॥ ५ ॥

चिरेण लक्ष्म्या नवरोमराज्या
स्मरामि भक्त्या जगतामधीशे ।
वलित्रयाढ्यं तम मध्यमम्ब
नीलोत्पलां शुश्रियमावहन्तम् ॥ ६ ॥

कान्त्या कटाक्षैः कमलाकराणां
कदम्बमालाञ्चितकेशपाशं ।
मातङ्गकन्ये हृदि भावयामि
ध्यायेहमारक्तकपोलबिम्बम् ॥ ७ ॥

बिम्बाधरं न्यस्तललामरम्य-
मालोललीलालकमायताक्षं ।
मन्दस्मितं ते वदनं महेशि
स्तुवेन्वहं शङ्कर धर्मपत्नि ॥ ८ ॥

मातङ्गिनीं वागधिदेवतां तां
स्तुवन्ति ये भक्तियुता मनुष्याः ।
परां श्रियं नित्यमुपाश्रयन्ति
परत्र कैलासतले वसन्ति ॥ ९ ॥

॥इति श्री मातङ्गी स्तोत्र ॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर यह मातंगी स्तोत्र को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें स्तोत्र रोमन में–

Read Matangi Stotra

īśvara uvāca ।

ārādhya mātaścaraṇāmbuje te
brahmādayo vistṛta kīrtimāyuḥ ।
anye paraṃ vā vibhavaṃ munīndrāḥ
parāṃ śriyaṃ bhakti pareṇa cānye ॥ 1

namāmi devīṃ navacandramaule-
rmātaṅginī candrakalāvataṃsāṃ ।
āmnāyaprāpti pratipāditārthaṃ
prabodhayantīṃ priyamādareṇa ॥ 2 ॥

vinamradevasthiramauliratnaiḥ
virājitaṃ te caraṇāravindaṃ ।
akṛtrimāṇaṃ vacasāṃ viśuklāṃ
padāṃ padaṃ śikṣitanūpurābhyām ॥ 3 ॥

kṛtārthayantīṃ padavīṃ padābhyāṃ
āsphālayantīṃ kalavallakīṃ tāṃ ।
mātaṅginīṃ saddhṛdayāṃ dhinomi
līlāmśukāṃ śuddha nitambabimbām ॥ 4 ॥

tālīdalenārpitakarṇabhūṣāṃ
mādhvīmadodghūrṇitanetrapadmāṃ
ghanastanīṃ śaṃbhuvadhūṃ namāmi
taṭillatākāntimanarghyabhūṣām ॥ 5 ॥

cireṇa lakṣmyā navaromarājyā
smarāmi bhaktyā jagatāmadhīśe ।
valitrayāḍhyaṃ tama madhyamamba
nīlotpalāṃ śuśriyamāvahantam ॥ 6 ॥

kāntyā kaṭākṣaiḥ kamalākarāṇāṃ
kadambamālāñcitakeśapāśaṃ ।
mātaṅgakanye hṛdi bhāvayāmi
dhyāyehamāraktakapolabimbam ॥ 7 ॥

bimbādharaṃ nyastalalāmaramya-
mālolalīlālakamāyatākṣaṃ ।
mandasmitaṃ te vadanaṃ maheśi
stuvenvahaṃ śaṅkara dharmapatni ॥ 8 ॥

mātaṅginīṃ vāgadhidevatāṃ tāṃ
stuvanti ye bhaktiyutā manuṣyāḥ ।
parāṃ śriyaṃ nityamupāśrayanti
paratra kailāsatale vasanti ॥ 9 ॥

॥iti śrī mātaṅgī stotra॥

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सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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