धर्म

राधा जी के 108 नाम – Radha Rani Ke 108 Naam

राधा जी के 108 नाम पढ़ने वाला पराभक्ति का अधिकारी बनता है। जो राधा जी के 108 नाम नित्य पढ़ता है उसपर भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की अविरल कृपा सदैव बनी रहती है। उस भक्त के घर में सदैव धन-संपत्ति और शान्ति का निवास रहता है व कभी किसी वस्तु की कमी का अनुभव नहीं होता है। जो राधा जी के 108 नाम का गान करता है उसका हृदय निर्मल हो जाता है और वह भक्तिरस के पान का अधिकारी बन जाता है। ब्रज धाम के कण-कण में राधा रानी की सुवास स्थित है। अतः ब्रज भूमि की तीर्थयात्रा से जिस फल की प्राप्ति होती है वही फल राधा जी के 108 नाम स्मरण करके होता है। पढ़ें राधा जी के 108 नाम अर्थ सहित हिंदी में–

राधा जी के 108 नाम पढ़ें

1. राधा (rādhā)
2. गंधर्विका (gaṃdharvikā) अर्थात् गाने और नृत्य में कुशल
3. गोस्थयुव-रजिका-कामिता (gosthayuva-rajikā-kāmitā) अर्थात् व्रज के राजकुमार यानी श्री गोपाल द्वारा वांछित एकमात्र कन्या
4. गंधर्व राधिका (gaṃdharva rādhikā) अर्थात् जिनका पूजन गंधर्व भी करते हैं
5. चंद्रकांतिर (caṃdrakāṃtira) अर्थात् जिनकी आभा चंद्र देव के समान हो

6. माधव-संगिनी (mādhava-saṃginī) अर्थात् जिसे माधव का संग प्राप्त हो
7. दामोदरद्वैत-सखी (dāmodaradvaita-sakhī) अर्थात् दामोदर की अनन्य प्रेयसी
8. कार्तिकोत्कीर्तिदेस्वरी (kārtikotkīrtidesvarī) अर्थात् वह रानी जो कार्तिक के महीने में कीर्ति देती है
9. मुकुंद दयाता-वृंदा धम्मिला मणि-मंजरी (mukuṃda dayātā-vṛṃdā dhammilā maṇi-maṃjarī) अर्थात् मुकुंद की सखियों का शिखा-रत्न
10. भास्करोपासिका (bhāskaropāsikā) अर्थात् जो भगवान सूर्य की उपासना करती हो

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11. वृषभानवी (vṛṣabhānavī) अर्थात् वृषभानु की पुत्री
12. वृषभानुजा (vṛṣabhānujā) अर्थात् जो राजा वृषभानु से उत्पन्न हुई हो
13. अनंग मंजरी सेविता (anaṃga maṃjarī sevitā) अर्थात् अनंग मंजरी से सेवित
14. जेष्ठ श्रीदामा (jeṣṭha śrīdāmā) अर्थात् श्रीदामा की छोटी बहन
15. वरजोत्तमा (varajottamā) अर्थात् महानतम

16. कीर्तिदा-कन्याका (kīrtidā-kanyākā) अर्थात् कीर्तिदा की पुत्री
17. मातृ-स्नेहा-पियूषा-पुत्रिका (mātṛ-snehā-piyūṣā-putrikā) अर्थात् जो माता के स्नेह की अमृत वस्तु है
18. विशाखा-सवायः (viśākhā-savāyaḥ) अर्थात् विशाखा की सम-वयस्
19. प्रेस्थ विशाखा जिवितधिका (prestha viśākhā jivitadhikā) अर्थात् विशाखा को जान से भी अधिक प्रिय
20. प्रणद्वितीय ललिता (praṇadvitīya lalitā) अर्थात् जो कोई अन्य नहीं वरन् ललिता है

21. वृंदावन विहारिणी (vṛṃdāvana vihāriṇī) अर्थात् वृंदावन धाम में विहार करने वाली
22. ललिता प्राण-लक्षिका-रक्षा (lalitā prāṇa-lakṣikā-rakṣā) अर्थात् जो अनेक बार ललिता के जीवन की रक्षा करती है
23. वृंदावनेश्वरी (vṛṃdāvaneśvarī) अर्थात् वृंदावन धाम की रानी
24. व्रजेंद्र-गृहिणी कृष्ण-प्रया-स्नेह-निकेतनम (vrajeṃdra-gṛhiṇī kṛṣṇa-prayā-sneha-niketanama) अर्थात् जो यशोदा मैया को कृष्ण की ही तरह प्रिय है
25. व्रज गो-गोपा-गोपाली जीव-मात्रिका-जीवनम (vraja go-gopā-gopālī jīva-mātrikā-jīvanama) अर्थात् व्रज की गायों, गोप-ग्वालों के जीवन का एकमात्र जीवन आधार है

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26. स्नेहलभिरा-राजेंद्र (snehalabhirā-rājeṃdra) अर्थात् राजा नंद के स्नेह की पात्र
27. वत्सलस्युत-पूर्वज (vatsalasyuta-pūrvaja) अर्थात् बलराम से माता-पिता के स्नेह की पात्र
28. गोविंदा प्रणयधारा सुरभि सेवानोत्सुका (goviṃdā praṇayadhārā surabhi sevānotsukā) अर्थात् गोविंद के प्रेम की अनवरत धारा की महक का अनुभव करने को उत्सुक
29. धृत नंदीश्वर-क्षेम गमनोतकांति-मनसा (dhṛta naṃdīśvara-kṣema gamanotakāṃti-manasā) अर्थात् जो कृष्ण की सेवा के लिए नंदीश्वर जाने के लिए बहुत उत्सुक है
30. स्व-देहद्वैतत द्रष्ट धनिष्ठा-दर्शन (sva-dehadvaitata draṣṭa dhaniṣṭhā-darśana) अर्थात् जिसे यशोदा की दासी धनिष्ठा ने उनसे अलग नहीं माना और उनके ध्यान में देखा

31. गोपेंद्र-महिषी पका-शाला-वेदी प्रकाशिका (gopeṃdra-mahiṣī pakā-śālā-vedī prakāśikā) अर्थात् जो माता यशोदा की रसोई में दृष्टिगोचर हुई
32. अयूर-वर्धा-करधना (ayūra-vardhā-karadhanā) अर्थात् जिसके पकाए हुए अनाज कृष्ण के जीवन को बढ़ाते हैं
33. रोहिणी घृत-मस्तक (rohiṇī ghṛta-mastaka) अर्थात् जिसके शीष पर रोहिणी घृत लगाती है
34. सुबाला न्यस्त सरूप्य (subālā nyasta sarūpya) अर्थात् जिसने सुबाला को रूप दिया
35. सुबाला प्रीति-तोसीता (subālā prīti-tosītā) अर्थात् जो सुबाला को बहुत पसंद करती है

36. मुखारा-द्रक सुधा-नप्त्री (mukhārā-draka sudhā-naptrī) अर्थात् मुखारा की दृष्टि में अमृत समान
37. जतिला दृष्टि-भसीता (jatilā dṛṣṭi-bhasītā) अर्थात् जो अपनी सास जतिला से घबराती है
38. मधुमंगला नरमोक्ति जनिता-स्मिता-चन्द्रिका (madhumaṃgalā naramokti janitā-smitā-candrikā) अर्थात् मधुमंगला के चुटकुलों को सुनकर चन्द्रमाओं की तरह मुस्कुराने वाली
39. पूर्णमासी बहिह खेलत प्राण-पंजारा सारिका (pūrṇamāsī bahiha khelata prāṇa-paṃjārā sārikā) अर्थात् उस तोते के समान जिसका हृदय पूर्णमासी के पिंजरे में कैद है
40. स्व गणद्वैत जीवतुः सवियाहंकर-वर्धिनी (sva gaṇadvaita jīvatuḥ saviyāhaṃkara-vardhinī) अर्थात् जो सखियों का एकमात्र जीवन है

41.स्व गणोपेंद्र पदब्ज (sva gaṇopeṃdra padabja) अर्थात् जो अपने सगे-संबंधियों का अभिमान बढ़ाती है
42. स्पार्सा-लंभाना हरसिनी (spārsā-laṃbhānā harasinī) अर्थात् जो अपनी सखियों के साथ उपेंद्र के पैर छूकर बहुत खुश होती है
43. शिव वृंदावनोदयन पालिका कृत-वृंदाका (śiva vṛṃdāvanodayana pālikā kṛta-vṛṃdākā) अर्थात् जिसने वृंदा को वृंदावन के उद्यानों का प्रभारी बनाया है
44. जनता वृन्दतावी सर्व लता-तरु-मृग-द्विज (janatā vṛndatāvī sarva latā-taru-mṛga-dvija) अर्थात् जो वृंदावन के सभी लताओं, पेड़ों, हिरणों और पक्षियों से जानी जाती है
45. इसाक चंदन समग्रता नव-कास्मिरा-देहा-भः (isāka caṃdana samagratā nava-kāsmirā-dehā-bhaḥ) अर्थात् जिसका शरीर कुछ चंदन के साथ मिले ताजा सिंदूर जैसा जमीन से चमकता है

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46. ज्ज्वा-पुष्पा पृथा-हरि पट्टा सिनारुणंबरा (jjvā-puṣpā pṛthā-hari paṭṭā sināruṇaṃbarā) अर्थात् जिसकी रेशमी पोशाक जावा फूल से अधिक लाल चमकती है
47. कैरनबज-ताल-ज्योतिर अरुणाकृत-भूटाला (kairanabaja-tāla-jyotira aruṇākṛta-bhūṭālā) अर्थात् जिनके कमल के तलवे पृथ्वी की सतह को लाल-लाल चमकाते हैं
48. हरि चित्त कैमतकारी कारु नुपुर निहस्वन (hari citta kaimatakārī kāru nupura nihasvana) अर्थात् जो अपने पायल की मधुर ध्वनि से हरि के मन को चकित कर देती है
49. कृष्ण-श्रंति-हर श्रोनि पीठ-वल्गिता घंटिका (kṛṣṇa-śraṃti-hara śroni pīṭha-valgitā ghaṃṭikā) अर्थात् जिनकी कमर की मधुर ध्वनि कृष्ण की थकान को दूर करती है
50. कृष्ण सर्वस्व पिनोदयत कुकनकन मणि-मालिका (kṛṣṇa sarvasva pinodayata kukanakana maṇi-mālikā) अर्थात् मोती का हार जिसके दृढ़, उभरे हुए स्तन कृष्ण के लिए सब कुछ है

51. नाना-रत्नोलसाद शंख-कुड़ा कारु भुज-द्वय (nānā-ratnolasāda śaṃkha-kuḍa़ā kāru bhuja-dvaya) अर्थात् जिनकी दो सुंदर भुजाएँ विभिन्न रत्नों के साथ शंख चूड़ियों से सुशोभित हैं
52. स्यमंतक-मणि भृजन मणि-बंधति-बंधुरा (syamaṃtaka-maṇi bhṛjana maṇi-baṃdhati-baṃdhurā) अर्थात् जिसकी कलाई पर सुंदर स्यामंतक रत्न चमकता है
53. सुवर्ण दर्पण-ज्योतिर उलंघी मुख-मंडला (suvarṇa darpaṇa-jyotira ulaṃghī mukha-maṃḍalā) अर्थात् जिसके चेहरे की चमक सुनहरे दर्पण को हरा देती है
54. पक्का ददिमा बीजाभ दन्तकष्टाभिक चूक (pakkā dadimā bījābha dantakaṣṭābhika cūka) अर्थात् जिनके दांत पके अनार के दानों की तरह चमकते हैं, तोते की तरह अघाभित (कृष्ण) को आकर्षित करते हैं।
55. अब्जा-रागड़ी सरस्तब्ज-कालिका कर्ण-भूषण (abjā-rāgaḍa़ī sarastabja-kālikā karṇa-bhūṣaṇa) अर्थात् जिनकी माणिक बालियां कमल की कलियों के आकार की हैं

56. सौभाग्य काजलंककट नेत्रानंदिता खंजना (saubhāgya kājalaṃkakaṭa netrānaṃditā khaṃjanā) अर्थात् जिनकी पूंछ जैसी आंखों का सुंदर आईलाइनर से अभिषेक किया जाता है, जिससे आंखों को बहुत खुशी मिलती है
57. सुव्रत मुक्ता मुक्ता नासिका तिलपुष्पिका (suvrata muktā muktā nāsikā tilapuṣpikā) अर्थात् जिसकी नाक तिल के फूल के समान सुंदर है, गोल मोती से सुशोभित है।
58. सुकारु नव-कस्तूरी तिलकंचित-भालका (sukāru nava-kastūrī tilakaṃcita-bhālakā)अर्थात् जिसका मस्तक ताजी कस्तूरी से बने सुंदर तिलक से सुशोभित है।
59. दिव्या वेनि विनिर्धुता केकी-पिंच-वर-स्तुतिः (divyā veni vinirdhutā kekī-piṃca-vara-stutiḥ) अर्थात् जिनकी दिव्य केश मोर पंख से पूजी जाती है (सौंदर्य में परास्त होकर)
60. नेत्रंता-सारा विध्वसंक्रता कनुराजिद धृतिः (netraṃtā-sārā vidhvasaṃkratā kanurājida dhṛtiḥ) अर्थात् जिनके दर्शन के बाण कृष्ण के धैर्य को नष्ट कर देते हैं, जिन्होंने कैनुरा पहलवान को हराया|

61. स्फुरत कैसोरा-तरुण्य संधि-बंधुरा-विग्रह (sphurata kaisorā-taruṇya saṃdhi-baṃdhurā-vigraha) अर्थात् कौन खिल रहा है किशोर सौंदर्य व्यक्तित्व
62. माधवल्लसकोनमत्ता (mādhavallasakonamattā) अर्थात् माधव को कौन प्रसन्न करता है
63. पिकोरू मधुरा-स्वरा (pikorū madhurā-svarā) अर्थात् जो अपनी मधुर, कोयल जैसी आवाज से माधव को मदहोश कर देती है
64. प्राणयुत-सत प्रतिष्ठा माधवोत्कीर्ति-लम्पता (prāṇayuta-sata pratiṣṭhā mādhavotkīrti-lampatā) अर्थात् जो लाखों जीवनों से अधिक माधव की महान महिमा से जुड़ी है
65. कृष्णपंग-तरंगोद्यत स्मिता-पियुसा-बुदबुड़ा (kṛṣṇapaṃga-taraṃgodyata smitā-piyusā-budabuḍa़ā) अर्थात् जिनकी अमृत मुस्कान कृष्ण की दृष्टि की तरंगों पर बुलबुले प्रदान करती है

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66. पुंजीभूत जगलज्जा वैदगधि-दिग्धा-विग्रह (puṃjībhūta jagalajjā vaidagadhi-digdhā-vigraha) अर्थात् जो चतुराई का ही रूप है, जो सारे संसार को लज्जित करता है
67. करुणा विद्रवाद देह मूर्तिमान (karuṇā vidravāda deha mūrtimāna) अर्थात् जिनका शरीर दया से पिघलता है
68. माधुरी-घटा (mādhurī-ghaṭā) अर्थात् जो प्रचुर मात्रा में मधुरता का व्यक्तित्व है
69. जगद-गुणवती-वर्ग गियामना गुनोकाया (jagada-guṇavatī-varga giyāmanā gunokāyā) अर्थात् जिनकी महिमा दुनिया की सभी महान महिलाओं द्वारा जोर से गाई जाती है
70. सस्यादि सुभागा-वृंदा वंद्यमनोरु-सौभागा (sasyādi subhāgā-vṛṃdā vaṃdyamanoru-saubhāgā) अर्थात् जिसकी सती जैसी सुंदर महिलाओं द्वारा निरंतर प्रशंसा की जाती है 

71. वीणा-वदान संगीता रसालस्य विसारदा (vīṇā-vadāna saṃgītā rasālasya visāradā) अर्थात् जो रस नृत्य में वीणा गाने और बजाने में माहिर हैं।
72. नारद प्रमुखोद्गीता जगद आनंदी सद-यः (nārada pramukhodgītā jagada ānaṃdī sada-yaḥ) अर्थात् जिनकी शुद्ध महिमा नारद के नेतृत्व वाले ऋषियों द्वारा गाए जाते हैं, जो दुनिया को आनंद देते हैं
73. गोवर्धन-गुहा गेह गृहिणी (govardhana-guhā geha gṛhiṇī) अर्थात् वह गोवर्धन में गुफाओं में गृहिणी हैं
74. कुंजा-मंडन (kuṃjā-maṃḍana) अर्थात् वह कुंज को सजाती है
75. चंदमसु-नंदिनी बद्ध भगिनी-भव-विभ्रम (caṃdamasu-naṃdinī baddha bhaginī-bhava-vibhrama) अर्थात् उसका यमुना के साथ एक बहन का रिश्ता है, (यमुना सूर्य की बेटी है और राधा वृषभ में सूर्य वृषभानु की बेटी है)

76. दिव्य कुंडलता नर्म साख्य-दम-विभूति (divya kuṃḍalatā narma sākhya-dama-vibhūti) अर्थात् वह दिव्य कुंडलता की मित्रता की माला से सुशोभित हैं
77. गोवर्धनधरहलादि श्रृंगार-रस-पंडिता (govardhanadharahalādi śrṛṃgāra-rasa-paṃḍitā) अर्थात् वह गोवर्धन के धारक को आनंद देने वाली, कामुक उत्साह में प्रोफेसर हैं
78. गिरिंद्र-धारा वक्ष (giriṃdra-dhārā vakṣa) अर्थात् गोवर्धन धारण करने वाली के सीने पर वह लक्ष्मी है
79. श्रीह शंखकुदरी-जीवनम (śrīha śaṃkhakudarī-jīvanama) अर्थात् वह शंखकुड़ा के शत्रु का जीवन है
80. गोकुलेंद्र-सुता-प्रेम काम-भूपेंद्र-पट्टनम (gokuleṃdra-sutā-prema kāma-bhūpeṃdra-paṭṭanama) अर्थात् गोकुलेंद्र के पुत्र के प्रेम के लिए वह कामदेव की बस्ती है

81. वृसा-विध्वांसा नरमोक्ति स्व-निर्मिता सरोवर (vṛsā-vidhvāṃsā naramokti sva-nirmitā sarovara) अर्थात् जिसने अरिस्ता के हत्यारे का मज़ाक उड़ाए जाने के बाद अपना तालाब बनाया
82. निज कुंड-जला-क्रीड़ा जीता संकरणानुज (nija kuṃḍa-jalā-krīḍa़ā jītā saṃkaraṇānuja) अर्थात् जिसने अपने ही तालाब में संकर्षण के छोटे भाई को खेल में हराया
83. मुरा-मर्दना मतेभ विहार-मृत-दिर्गिका (murā-mardanā matebha vihāra-mṛta-dirgikā) अर्थात् वह नशे में धुत हाथी के लिए आनंद का अमृत तालाब है जिसने मुरा को हराया था
84. गिरिंद्र-धारा-परिंद्र रति-युधोरु सिम्हिका (giriṃdra-dhārā-pariṃdra rati-yudhoru simhikā) अर्थात् वह एक शक्तिशाली शेरनी है जो शेरों के राजा के साथ कामुक खेल लड़ती है, जो सबसे अच्छे पहाड़ों की धारक है
85. नित्य-नूतन गोविंदा वक्रा-सुभ्रांसु-दर्शन (nitya-nūtana goviṃdā vakrā-subhrāṃsu-darśana) अर्थात् जो गोविंदा के हमेशा ताजा चाँद जैसा चेहरा देखता है

86. निहसीमा हरि-माधुर्य सौंदर्याद्येक-भोगिनी (nihasīmā hari-mādhurya sauṃdaryādyeka-bhoginī) अर्थात् जो हरि की अनंत मधुरता और सुंदरता का एकमात्र भोक्ता है
87. सप्तन्या धाम मुरली-मात्रा भाग्य कटकसिनी (saptanyā dhāma muralī-mātrā bhāgya kaṭakasinī) अर्थात् जो केवल अपनी सह-पत्नी, मुरली बांसुरी के भाग्य पर पलक झपका सकती है
88. गढ़ बुद्धि-बाला क्रीड़ा जीता वामसी-विकारसिनी (gaḍha़ buddhi-bālā krīḍa़ā jītā vāmasī-vikārasinī) अर्थात् जो एक जुए के मैच में कृष्ण को हराकर उनकी बांसुरी लेता है
89. नर्मोक्ति कैंड्रीकोटफुल्ला कृष्ण कामब्दी-वर्धिनी (narmokti kaiṃḍrīkoṭaphullā kṛṣṇa kāmabdī-vardhinī) अर्थात् जो अपने मज़ाकिया शब्दों की पूर्णिमा की किरणों से कृष्ण की इच्छाओं के सागर को बढ़ाती है
90. व्रज-चन्द्रेन्द्रिय-ग्राम विश्राम-विधु-सालिका (vraja-candrendriya-grāma viśrāma-vidhu-sālikā) अर्थात् व्रज (श्री कृष्ण) के चंद्रमा की सभी इंद्रियों के लिए चंद्रमा जैसा विश्राम स्थल कौन है

91. कृष्ण सर्वेंद्रियोंमदि राधेयक्षर-युगमाका (kṛṣṇa sarveṃdriyoṃmadi rādheyakṣara-yugamākā) अर्थात् जिनके नाम के दो अक्षर राधा कृष्ण की सभी इंद्रियों को पागल कर देते हैं|
92. स्व तनु-सौरभोंमट्टी कृत मोहन माधव (sva tanu-saurabhoṃmaṭṭī kṛta mohana mādhava) अर्थात् जो अपनी मादक शारीरिक सुगंध से माधव को मंत्रमुग्ध कर देती है
93. दोर-मुलोकलाना क्रीदा व्यकुली-कृता केशव (dora-mulokalānā krīdā vyakulī-kṛtā keśav अर्थात् जो केशव को अपनी कांख दिखाकर उत्तेजित करती है
94. निज कुंड-तती कुंजा कल्पवृत केली कलोद्यमा (nija kuṃḍa-tatī kuṃjā kalpavṛta kelī kalodyamā) अर्थात् जो अपने ही तालाब के किनारे कुंजा में अपने कलात्मक नाटकों का विस्तार करती है
95. दिव्या मल्ली-कुलोल्लासी सय्यकल्पिता विग्रह (divyā mallī-kulollāsī sayyakalpitā vigrah) अर्थात् जो आनंद से वहाँ दिव्य चमेली के फूलों की शय्या बनाता है

96. कृष्ण वामा-भुज न्यास्ता कारु दक्षिणा गंडका (kṛṣṇa vāmā-bhuja nyāstā kāru dakṣiṇā gaṃḍak) अर्थात् जो कृष्ण की बायीं भुजा पर अपना सुंदर दाहिना गाल रखती हैं
97. सव्या बहू-लता बद्ध कृष्ण दक्षिणा सद-भुजा (savyā bahū-latā baddha kṛṣṇa dakṣiṇā sada-bhuj) अर्थात् जो कृष्ण की दाहिनी भुजा को अपनी बायीं दाखलता जैसी भुजा से धारण करती हैं
98. कृष्ण दक्षिणा कारु स्लीस्ता वमोरु-रंभिका (kṛṣṇa dakṣiṇā kāru slīstā vamoru-raṃbhik) अर्थात् जिसका सुंदर, चौड़ा, केले जैसा बायां कूल्हा कृष्ण के दाहिने कूल्हे को छूता है
99. गिरिंद्र-धारा ड्रग-वक्षोर मर्दी-सुस्ताना-पर्वत (giriṃdra-dhārā ḍraga-vakṣora mardī-sustānā-parvat) अर्थात् जिनके सुन्दर, पर्वत जैसे स्तनों की गोवर्धन धारण करने वाले द्वारा मालिश की जा रही है।
100. गोविंदधारा पियुस वसीताधारा-पल्लव (goviṃdadhārā piyusa vasītādhārā-pallav)अर्थात् जिनके पत्ते जैसे होंठ गोविंदा के होठों के अमृत से महकते हैं

101. सुधा-संकाय कारुक्ति सीताली-कृत माधव (sudhā-saṃkāya kārukti sītālī-kṛta mādhav)अर्थात् जिनके सुंदर शब्दों से माधव को ठंडा करके अमृत वितरित किया जाता है ।
102. गोविंदोद्गीरना तंबुला राग राज्यत कपोलिका (goviṃdodgīranā taṃbulā rāga rājyata kapolikā)अर्थात् जिनके गाल गोविंदा के होठों से तवे से रंगे हुए हैं।
103. कृष्ण सम्भोग सफली-कृत मनमथ संभव (kṛṣṇa sambhoga saphalī-kṛta manamatha saṃbhav) अर्थात् जो कृष्ण की कामुक भोगों की कल्पनाओं को महसूस करता है
104. गोविंदा मरजीतोदमा रति-प्रसविन्ना संमुख (goviṃdā marajītodamā rati-prasavinnā saṃmukh) अर्थात् वह विपुल पसीना जिसके चेहरे से गोविंदा पोंछते हैं
105. विशाखा विजिता क्रीड़ा-संति निद्रालु-विग्रह (viśākhā vijitā krīḍa़ā-saṃti nidrālu-vigrah) अर्थात् कृष्ण के साथ खेलने के बाद जब वह सो जाती है, तो विशाखा द्वारा उसे हवा दी जाती है।

106. गोविंदा-चरण-न्यास्ता काय-मनसा जीवन (goviṃdā-caraṇa-nyāstā kāya-manasā jīvana) अर्थात् जिसने अपना जीवन, शरीर और मन गोविंदा के चरण कमलों में रखा है
107. स्वप्रनारबुद निर्माणमंच्य हरि पद-राजः काना (svapranārabuda nirmāṇamaṃcya hari pada-rājaḥ kānā) अर्थात् जो करोड़ों हृदयों से हरि के चरणकमलों की धूलि की पूजा करते हैं 
108. अनुमात्रच्युतदर्सा सय्यमनात्मा लोकाना अर्थात् जो हर पल अपनी आँखों को श्राप देती है कि वे अच्युता को नहीं देखते हैं 

राधा जी के 108 नाम परम पावन हैं। इन्हें उच्चारने मात्र से हृदय आनंदित हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण की परम प्रिया राधा जी के 108 नाम पढ़ें व अपना जीवन धन्य बनाएँ। राधा रानी की जय! बांके बिहारी की जय

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

One thought on “राधा जी के 108 नाम – Radha Rani Ke 108 Naam

  • Surendra Singh Dikhit

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