धर्म

रामायण मनका 108 – Ramayan Manka 108

रामायण मनका 108 हिंदी में आपके सामने प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। प्रभु श्रीराम के चरित्र का श्रवण हर मनोकामना को पूरा करता है। कहते हैं कि राम चरित शत कोटि श्लोकों में गाया गया है। उसका एक-एक अक्षर बड़े-से-बड़े पाप का नाश करने वाला है।

रामायण मनका 108 (Ramayan Manka 108) में संपूर्ण रामायण समाहित है। कहते हैं कि इस पाठ की हर एक माला रोज़ाना करने से मन की सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं। राम-भक्ति में डूबकर नित्य पढ़ें रामायण मनका 108–

रघुपति राघव राजा राम
पतितपावन सीताराम ॥

जय रघुनन्दन जय घनश्याम ।
पतितपावन सीताराम ॥

भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे ।
दूर करो प्रभु दुःख हमारे ॥

दशरथ के घर जन्मे राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१॥

विश्वामित्र मुनीश्वर आये ।
दशरथ भूप से वचन सुनाये ॥

संग में भेजे लक्ष्मण राम ।
पतितपावन सीताराम ॥२॥

वन में जाय ताड़का मारी ।
चरण छुआए अहिल्या तारी ॥

ऋषियों के दुःख हरते राम ।
पतितपावन सीताराम ॥३॥

जनक पुरी रघुनन्दन आए ।
नगर निवासी दर्शन पाए ॥

सीता के मन भाये राम ।
पतितपावन सीताराम ॥४॥

रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया ।
सब राजों का मान घटाया ॥

सीता ने वर पाये राम ।
पतितपावन सीताराम ॥५॥

परशुराम क्रोधित हो आये ।
दुष्ट भूप मन में हरषाये ॥

जनक राय ने किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ॥६॥

बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी ।
संत नहीं होते अभिमानी ॥

मीठी वाणी बोले राम ।
पतितपावन सीताराम ॥७॥

लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो ।
जो कुछ दण्ड दास को दीजो ॥

धनुष तुडइय्या मैं हूं राम ।
पतितपावन सीताराम ॥८॥

लेकर के यह धनुष चढ़ाओ ।
अपनी शक्ती मुझे दिखाओ ॥

छूवत चाप चढ़ाये राम ।
पतितपावन सीताराम ॥९॥

हुई उर्मिला लखन की नारी ।
श्रुति कीर्ति रिपुसूदन प्यारी ॥

हुई माण्डवी भरत के बाम ।
पतितपावन सीताराम ॥१०॥

अवधपुरी रघुनन्दन आये ।
घर-घर नारी मंगल गाये

बारह वर्ष बिताये राम।
पतितपावन सीताराम ॥११॥

गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी ।
राज तिलक तैयारी कीनी ॥

कल को होंगे राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१२॥

कुटिल मंथरा ने बहकायी ।
कैकई ने यह बात सुनाई ॥

दे दो मेरे दो वरदान ।
पतितपावन सीताराम ॥१३॥

मेरी विनती तुम सुन लीजो ।
भरत पुत्र को गदी दीजो ॥

होत प्रात वन भेजो राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१४॥

धरनी गिरे भूप तत्काल ।
लागा दिल में सूल विशाल ॥

तब सुमंत बुलवाए राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१५॥

राम पिता को शीश नवाए ।
मुख से वचन कहा नहीं जाए॥

कैकयी वचन सुनायो राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१६॥

राजा के तुम प्राणों प्यारे ।
इनके दुःख हरोगे सारे ॥

अब तुम वन में जाओ राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१७॥

वन में चौदह वर्ष बिताओ।
रघुकुल रीति नीति अपनाओ ॥

आगे इच्छा तुम्हरी राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१८॥

सुनत वचन राघव हर्षाए ।
माता जी के मन्दिर आये॥

चरण कमल में किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ॥१९॥

माता जी मैं तो वन जाऊं ।
चौदह वर्ष बाद फिर आऊं ॥

चरण कमल देखू सुख धाम ।
पतितपावन सीताराम ॥२०॥

सुनी शूल सम जब यह बानी ।
भू पर गिरी कौशिला रानी ॥

धीरज बंधा रहे श्री राम ।
पतितपावन सीताराम ॥२१॥

सीताजी जब यह सुन पाई।
रंग महल से नीचे आई ॥

कौशल्या को किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम॥२२॥

मेरी चूक क्षमा कर दीजो ।
वन जाने की आज्ञा दीजो ॥

सीता को समझाते राम ।
पतितपावन सीताराम॥२३॥

मेरी सीख सिया सुन लीजो ।
सास ससुर की सेवा कीजिए ॥

मुझको भी होगा विश्राम ।
पतितपावन सीताराम ॥२४॥

मेरा दोष बता प्रभु दीजो ।
संग मुझे सेवा में लीजो ॥

अर्धांगिनी तुम्हारी राम ।
पतितपावन सीताराम ॥२५॥

समाचार सुनि लक्ष्मण आए ।
धनुष बाण संग परम सुहाए ॥

बोले संग चलूंगा श्रीराम ।
पतितपावन सीताराम ॥२६॥

राम लखन मिथिलेशकुमारी ।
वन जाने की करी तैयारी ॥

रथ में बैठ गये सुख धाम ।
पतितपावन सीताराम ॥२७॥

अवधपुरी के सब नर नारी ।
समाचार सुन व्याकुल भारी ॥

मचा अवध में अति कोहराम ।
पतितपावन सीताराम ॥२८॥

शृंगवेरपुर रघुवर आए ।
रथ को अवधपुरी लौटाए।

गंगा तट पर आए राम ।
पतितपावन सीताराम॥२९॥

केवट कहे चरण धुलवाओ ।
पीछे नौका में चढ़ जाओ

पत्थर कर दी नारी राम ।
पतितपावन सीताराम॥३०॥

लाया एक कठौता पानी ।
चरण कमल धोये सुखमानी ॥

नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम ।
पतितपावन सीताराम ॥३१॥

उतराई में मुदरी दीन्हीं।
केवट ने यह विनती कीन्हीं ॥

उतराई नहीं लूंगा राम ।
पतितपावन सीताराम ॥३२॥

तुम आए हम घाट उतारे ।
हम आयेंगे घाट तुम्हारे ॥

तब तुम पार लगाओ राम ।
पतितपावन सीताराम ॥३३॥

भरद्वाज आश्रम पर आए ।
राम लखन ने शीष नवाए ॥

एक रात कीन्हां विश्राम ।
पतितपावन सीताराम॥३४॥

भाई भरत अयोध्या आए ।
कैकई को कटु वचन सुनाए।

क्यों तुमने वन भेजे राम ।
पतितपावन सीताराम ॥३५॥

चित्रकूट रघुनन्दन आए ।
वन को देख सिया सुख पाए॥

मिले भरत से भाई राम ।
पतितपावन सीताराम ॥३६ ॥

अवधपुरी को चलिए भाई ।
ये सब कैकई की कुटिलाई ॥

तनिक दोष नहीं मेरा राम ।
पतितपावन सीताराम॥३७॥

चरण पादुका तुम ले जाओ ।
पूजा कर दर्शन फल पावो॥

भरत को कंठ लगाए राम ।
पतितपावन सीताराम॥३८॥

आगे चले राम रघुराया ।
निशाचरों को वंश मिटाया॥

ऋषियों के हुए पूरन काम ।
पतितपावन सीताराम ॥३९॥

‘अनसुइया’ की कुटिया आये ।
दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाये ॥

था मुनि अत्री का वह धाम ।
पतितपावन सीताराम ॥४ ०॥

मुनिस्थान आए रघुराई ।
सूर्पनखा की नाक कटाई ॥

खरदूषन को मारे राम ।
पतितपावन सीताराम॥४१॥

पंचवटी रघुनन्द आए ।
कनक मृगा के संग में धाए॥

लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम ।
पतितपावन सीताराम ॥४२ ॥

रावण साधु वेष में आया ।
भूख ने मुझको बहुत सताया ॥

भिक्षा दो यह धर्म का काम ।
पतितपावन सीताराम ॥४३॥

भिक्षा लेकर सीता आई ।
हाथ पकड़ रथ में बैठाई ॥

सूनी कुटिया देखी राम ।
पतितपावन सीताराम ॥४४॥

धरनी गिरे राम रघुराई ।
सीता के बिन व्याकुलताई ॥

हे प्रिय सीते, चीखे राम ।
पतितपावन सीताराम ॥४५॥

लक्ष्मण, सीता छोड़ न आते।
जनक दुलारी को नहीं गंवाते ॥

बने बनाये विगड़े काम ।
पतितपावन सीताराम॥४६ ॥

कोमल बदन सुहासिनि सीते ।
तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते ॥

लगे चांदनी-जैसे घाम
पतितपावन सीताराम ॥४७॥

सुन री मैना, रे तोता ।
सुन मैं भी पंखो वाला होता ॥

वन वन लेता ढूँढ तमाम ।
पतितपावन सीताराम॥४८॥

श्यामा हिरनी तू ही बता दे ।
जनक नन्दनी मुझे मिला दे॥

तेरे जैसी आंखें श्याम।
पतितपावन सीताराम ॥४९॥

वन वन ढूंढ रहे रघुराई ।
जनक दुलारी कहीं न पाई॥

गिद्धराज ने किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ॥५०॥

चखचख कर फल शबरी लाई ।
प्रेम सहित खाए रघुराई ॥

ऐसे मीठे नहीं हैं आम ।
पतितपावन सीताराम ॥५१॥

विप्र रूप धरि हनुमत आए।
चरण कमल में शीश नवाए॥

कन्धे पर बैठाये राम।
पतितपावन सीताराम ॥५२॥

सुग्रीव से करी मिताई ।
अपनी सारी कथा सुनाई ॥

बाली पहुंचाया निज धाम ।
पतितपावन सीताराम ॥५३॥

सिंहासन सुग्रीव बिठाया ।
मन में वह अति ही हर्षाया ॥

वर्षा ऋतु आई हे राम ।
पतितपावन सीताराम॥५४॥

हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ ।
वानरपति को यूं समझाओ ॥

सीता बिन व्याकुल हैं राम ।
पतितपावन सीताराम ॥५५॥

देश देश वानर भिजवाए ।
सागर के सब तट पर आए ॥

सहते भूख प्यास और घाम ।
पतितपावन सीताराम ॥५६॥

सम्पाती ने पता बताया ।
सीता को रावण ले आया ॥

सागर कूद गये हनुमानजी
पतितपावन सीताराम ॥५७॥

कोने कोने पता लगाया ।
भगत विभीषन का घर पाया॥

हनूमान ने किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ॥५८॥

अशोक वाटिका हनुमत आए ।
वृक्ष तले सीता को पाए॥

आंसू बरसे आठों याम ।
पतितपावन सीताराम ॥५९॥

रावण संग निशचरी लाके ।
सीता को बोला समझा के ॥

मेरी ओर तो देखो बाम ।
पतितपावन सीताराम ॥६०॥

मन्दोदरी बना दूं दासी ।
सब सेवा में लंका वासी ॥

करो भवन चलकर विश्राम ।
पतितपावन सीताराम ॥६१॥

चाहे मस्तक कटे हमारा ।
मैं देखूं न बदन तुम्हारा ॥

मेरे तन मन धन हैं राम ।
पतितपावन सीताराम ॥६२॥

ऊपर से मुद्रिका गिराई ।
सीता जी ने कंठ लगाई ॥

हनूमान जी ने किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ॥६३॥

मुझको भेजा है रघुराया ।
सागर कूद यहां मैं आया ॥

मैं हूं राम दास हनुमान ।
पतितपावन सीताराम ॥६४॥

भूख लगी फल खाना चाहूँ ।
जो माता की आज्ञा पाऊँ ॥

सब के स्वामी हैं श्रीराम ।
पतितपावन सीताराम॥६५॥

सावधान होकर फल खाना ।
रखवालों को भूल न जाना ॥

निशाचरों का है यह धाम ।
पतितपावन सीताराम ॥६६॥

हनूमान ने वृक्ष उखाड़े ।
देख देख माली ललकारे ॥

मार-मार पहुंचाये धाम ।
पतितपावन सीताराम ॥६७॥

अक्षयकुमार को स्वर्गपहुंचाया।
इन्द्रजीत फाँसी ले आया ॥

ब्रह्मफाँस से बंधे हनुमान ।
पतितपावन सीताराम ॥६८॥

सीता को तुम लौटा दीजो ।
उन से क्षमा याचना कीजो ॥

तीन लोक के स्वामी राम ।
पतितपावन सीताराम ॥६९॥

भगत विभीषण ने समझाया ।
रावण ने उसको धमकाया ॥

सनमुख देख रहे हनुमान ।
पतितपावन सीताराम॥७०॥

रुई, तेल, घृत, वसन मंगाई ।
पूँछ बाँध कर आग लगाई ॥

पूँछ घुमाई है हनुमान ।
पतितपावन सीताराम ॥७१॥

सब लंका में आग लगाई ।
सागर में जा पूँछ बुझाई॥

हृदय कमल में राखे राम ।
पतितपावन सीताराम ॥७२॥

सागर कूद लौट कर आए ।
समाचार रघुवर ने पाए ॥

जो मांगा सो दिया इनाम ।
पतितपावन सीताराम ॥७३॥

वानर रीछ संग में लाए ।
लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए ॥

लगे सुखाने सागर राम ।
पतितपावन सीताराम ॥७४॥

सेतू कपि नल नील बनावें ।
राम राम लिख सिला तिरावें ॥

लंका पहुंचे राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ॥७५॥

अंगद चल लंका में आया ।
सभा बीच में पांव जमाया॥

बाली पुत्र महा बलधाम ।
पतितपावन सीताराम ॥७६॥

रावण पांव हटाने आया ।
अंगद ने फिर पांव उठाया ॥

क्षमा करें तुझको श्री राम ।
पतितपावन सीताराम ॥७७॥

निशाचरों की सेना आई ।
गरज गरज कर हुई लड़ाई ॥

वानर बोले जय सिया राम ।
पतितपावन सीताराम ॥७८॥

इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई ।
धरनी गिरे लखन मुरझाई ॥

चिन्ता करके रोये राम ।
पतितपावन सीताराम ॥७९॥

जब मैं अवधपुरी से आया ।
हाय पिता ने प्राण गंवाया ॥

बन में गई चुराई बाम ।
पतितपावन सीताराम ॥८०॥

भाई तुमने भी छिटकाया ।
जीवन में कुछ सुख नहीं पाया ॥

सेना में भारी कोहराम ।
पतितपावन सीताराम ॥८१॥

जो संजीवनी बूटी को लाए ।
तो भाई जीवित हो जाये ॥

बूटी लाये तब हनुमान ।
पतितपावन सीताराम ॥८२॥

जब बूटी का पता न पाया ।
पर्वत ही लेकर के आया ॥

काल नेम पहुँचाया धाम ।
पतितपावन सीताराम ॥८३॥

भक्त भरत ने बाण चलाया ।
चोट लगी हनुमत लंगड़ाया ॥

मुख से बोले जय सिया राम ।
पतितपावन सीताराम ॥८४॥

बोले भरत बहुत पछताकर ।
पर्वत सहित बाण बैठाकर ॥

तुम्हें मिला दूं राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ॥८५॥

बूटी लेकर हनुमत आया ।
लखन लाल उठ शीश नवाया ॥

हनुमत कंठ लगाये राम ।
पतितपावन सीताराम ॥८६॥

कुम्भकरन उठकर तब आया।
एक बाण से उसे गिराया ॥

इन्द्र जीत पहुँचाया धाम ।
पतितपावन सीताराम ॥८७॥

दुर्गापूजन रावण कीनो ।
नौ दिन तक आहार न लीनो ॥

आसन बैठ किया है ध्यान ।
पतितपावन सीताराम ॥८८॥

रावण का व्रत खंडित कीना ।
परम धाम पहुँचा ही दीना ॥

वानर बोले जय सिया राम ।
पतितपावन सीताराम ॥८९॥

सीता ने हरि दर्शन कीना ।
चिन्ता शोक सभी तज दीना ॥

हँस कर बोले राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ॥९०॥

पहले अग्नि परीक्षा पाओ।
पीछे निकट हमारे आओ ॥

तुम हो पतिव्रता हे बाम ।
पतितपावन सीताराम ॥९१॥

करी परीक्षा कंठ लगाई ।
सब वानर सेना हरषाई॥

राज्य विभीषन दीन्हा राम ।
पतितपावन सीताराम ॥९२॥

फिर पुष्पक विमान मंगवाया ।
सीता सहित बैठि रघुराया॥

दण्डकवन में उतरे राम ।
पतितपावन सीताराम ॥९३॥

ऋषिवर सुन दर्शन को आए ।
स्तुति कर मन में हर्षाये॥

तब गंगा तट आये राम ।
पतितपावन सीताराम ॥९४॥

नन्दी ग्राम पवनसुत आए ।
भगत भरत को वचन सुनाए ॥

लंका से आए हैं राम ।
पतितपावन सीताराम ॥९५॥

कहो विप्र तुम कहां से आए ।
ऐसे मीठे वचन सुनाए॥

मुझे मिला दो भैया राम ।
पतितपावन सीताराम ॥९६॥

अवधपुरी रघुनन्दन आये ।
मन्दिर मन्दिर मंगल छाये ॥

माताओं को किया प्रणाम ।
पतिल्पावन सीताराम ॥९७॥

भाई भरत को गले लगाया ।
सिंहासन बैठे रघुराया ॥

जग ने कहा, हैं राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ॥९८॥

सब भूमि विप्रो को दीन्हीं ।
विप्रों ने वापस दे दीन्हीं ॥

हम तो भजन करेंगे राम ।
पतितपावन सीताराम॥९९॥

धोबी ने धोबन धमकाई ।
रामचन्द्र ने यह सुन पाई ॥

वन में सीता भेजी राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१००॥

बाल्मीकि आश्रम में आई ।
लव व कुश हुए दो भाई ॥

धीर वीर ज्ञानी बलवान ।
पतितपावन सीताराम ॥१०१॥

अश्वमेघ यज्ञ कीन्हा राम ।
सीता बिनु सब सूने काम ॥

लव कुश वहाँ लियो पहचान ।
पतितपावन सीताराम ॥१०२॥

सीता राम बिना अकुलाई ।
भूमि से यह विनय सुनाई ॥

मुझको अब दीजो विश्राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१०३॥

सीता भूमी माहि समाई ।
देखकर चिन्ता की रघुराई ॥

बार-बार पछताये राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१०४॥

राम राज्य में सब सुख पावें ।
प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें॥

दुःख कलेश का रहा न नाम ।
पतितपावन सीताराम ॥१०५॥

ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता ।
राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता ॥

फिर बैकुण्ठ पधारे राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१०६॥

अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई ।
नर-नारी सबने गति पाई ॥

शरनागत प्रतिपालक राम ।
पतितपावन सीताराम ॥१०७॥

श्याम सुन्दर’ ने लीला गाई ।
मेरी विनय सुनो रघुराई ॥

भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम ।
पतितपावन सीताराम ॥१०८॥

यह माला पूरी हुई, मनका एक सौ आठ।
मनोकामना पूर्ण हो, नित्य करे जो पाठ॥

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यह भी पढ़ें – नाम रामायण

हमें उम्मीद है कि रामायण मनका 108 को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का हमारा यह प्रयास आपको अच्छा लगा होगा। आप और क्या-क्या पढ़ना चाहते हैं, हमें टिप्पणी करके अवश्य बताएँ। पढ़कर आनंद ले रामायण मनका 108 का। यदि आप रोमन में इसका पाठ करना चाहते हैं, तो यहाँ से कर सकते हैं–

raghupati rāghava rājā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥

jaya raghunandana jaya ghanaśyāma ।
patitapāvana sītārāma ॥

bhīḍa़ paḍa़ī jaba bhakta pukāre ।
dūra karo prabhu duḥkha hamāre ॥

daśaratha ke ghara janme rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥1॥

viśvāmitra munīśvara āye ।
daśaratha bhūpa se vacana sunāye ॥

saṃga meṃ bheje lakṣmaṇa rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥2॥

vana meṃ jāya tāḍa़kā mārī ।
caraṇa chuāe ahilyā tārī ॥

ṛṣiyoṃ ke duḥkha harate rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥3॥

janaka purī raghunandana āe ।
nagara nivāsī darśana pāe ॥

sītā ke mana bhāye rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥4॥

raghunandana ne dhanuṣa caḍha़āyā ।
saba rājoṃ kā māna ghaṭāyā ॥

sītā ne vara pāye rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥5॥

paraśurāma krodhita ho āye ।
duṣṭa bhūpa mana meṃ haraṣāye ॥

janaka rāya ne kiyā praṇāma ।
patitapāvana sītārāma ॥6॥

bole lakhana suno muni gyānī ।
saṃta nahīṃ hote abhimānī ॥

mīṭhī vāṇī bole rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥7॥

lakṣmaṇa vacana dhyāna mata dījo ।
jo kucha daṇḍa dāsa ko dījo ॥

dhanuṣa tuḍaiyyā maiṃ hūṃ rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥8॥

lekara ke yaha dhanuṣa caḍha़āo ।
apanī śaktī mujhe dikhāo ॥

chūvata cāpa caḍha़āye rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥9॥

huī urmilā lakhana kī nārī ।
śruti kīrti ripusūdana pyārī ॥

huī māṇḍavī bharata ke bāma ।
patitapāvana sītārāma ॥10॥

avadhapurī raghunandana āye ।
ghara-ghara nārī maṃgala gāye ॥

bāraha varṣa bitāye rāma।
patitapāvana sītārāma ॥11॥

guru vaśiṣṭha se ājñā līnī ।
rāja tilaka taiyārī kīnī ॥

kala ko hoṃge rājā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥12॥

kuṭila maṃtharā ne bahakāyī ।
kaikaī ne yaha bāta sunāī ॥

de do mere do varadāna ।
patitapāvana sītārāma ॥13॥

merī vinatī tuma suna lījo ।
bharata putra ko gadī dījo ॥

hota prāta vana bhejo rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥14॥

dharanī gire bhūpa tatkāla ।
lāgā dila meṃ sūla viśāla ॥

taba sumaṃta bulavāe rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥15॥

rāma pitā ko śīśa navāe ।
mukha se vacana kahā nahīṃ jāe॥

kaikayī vacana sunāyo rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥16॥

rājā ke tuma prāṇoṃ pyāre ।
inake duḥkha haroge sāre ॥

aba tuma vana meṃ jāo rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥17॥

vana meṃ caudaha varṣa bitāo।
raghukula rīti nīti apanāo ॥

āge icchā tumharī rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥18॥

sunata vacana rāghava harṣāe ।
mātā jī ke mandira āye॥

caraṇa kamala meṃ kiyā praṇāma ।
patitapāvana sītārāma ॥19॥

mātā jī maiṃ to vana jāūṃ ।
caudaha varṣa bāda phira āūṃ ॥

caraṇa kamala dekhū sukha dhāma ।
patitapāvana sītārāma ॥20॥

sunī śūla sama jaba yaha bānī ।
bhū para girī kauśilā rānī ॥

dhīraja baṃdhā rahe śrī rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥21॥

sītājī jaba yaha suna pāī।
raṃga mahala se nīce āī ॥

kauśalyā ko kiyā praṇāma ।
patitapāvana sītārāma॥22॥

merī cūka kṣamā kara dījo ।
vana jāne kī ājñā dījo ॥

sītā ko samajhāte rāma ।
patitapāvana sītārāma॥23॥

merī sīkha siyā suna lījo ।
sāsa sasura kī sevā kījie ॥

mujhako bhī hogā viśrāma ।
patitapāvana sītārāma ॥24॥

merā doṣa batā prabhu dījo ।
saṃga mujhe sevā meṃ lījo ॥

ardhāṃginī tumhārī rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥25॥

samācāra suni lakṣmaṇa āe ।
dhanuṣa bāṇa saṃga parama suhāe ॥

bole saṃga calūṃgā śrīrāma ।
patitapāvana sītārāma ॥26॥

rāma lakhana mithileśakumārī ।
vana jāne kī karī taiyārī ॥

ratha meṃ baiṭha gaye sukha dhāma ।
patitapāvana sītārāma ॥27॥

avadhapurī ke saba nara nārī ।
samācāra suna vyākula bhārī ॥

macā avadha meṃ ati koharāma ।
patitapāvana sītārāma ॥28॥

śṛṃgaverapura raghuvara āe ।
ratha ko avadhapurī lauṭāe।

gaṃgā taṭa para āe rāma ।
patitapāvana sītārāma॥29॥

kevaṭa kahe caraṇa dhulavāo ।
pīche naukā meṃ caḍha़ jāo

patthara kara dī nārī rāma ।
patitapāvana sītārāma॥30॥

lāyā eka kaṭhautā pānī ।
caraṇa kamala dhoye sukhamānī ॥

nāva caḍha़āye lakṣmaṇa rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥31॥

utarāī meṃ mudarī dīnhīṃ।
kevaṭa ne yaha vinatī kīnhīṃ ॥

utarāī nahīṃ lūṃgā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥32॥

tuma āe hama ghāṭa utāre ।
hama āyeṃge ghāṭa tumhāre ॥

taba tuma pāra lagāo rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥33॥

bharadvāja āśrama para āe ।
rāma lakhana ne śīṣa navāe ॥

eka rāta kīnhāṃ viśrāma ।
patitapāvana sītārāma॥34॥

bhāī bharata ayodhyā āe ।
kaikaī ko kaṭu vacana sunāe।

kyoṃ tumane vana bheje rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥35॥

citrakūṭa raghunandana āe ।
vana ko dekha siyā sukha pāe॥

mile bharata se bhāī rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥36 ॥

avadhapurī ko calie bhāī ।
ye saba kaikaī kī kuṭilāī ॥

tanika doṣa nahīṃ merā rāma ।
patitapāvana sītārāma॥37॥

caraṇa pādukā tuma le jāo ।
pūjā kara darśana phala pāvo॥

bharata ko kaṃṭha lagāe rāma ।
patitapāvana sītārāma॥38॥

āge cale rāma raghurāyā ।
niśācaroṃ ko vaṃśa miṭāyā॥

ṛṣiyoṃ ke hue pūrana kāma ।
patitapāvana sītārāma ॥39॥

‘anasuiyā’ kī kuṭiyā āye ।
divya vastra siya māṃ ne pāye ॥

thā muni atrī kā vaha dhāma ।
patitapāvana sītārāma ॥4 0॥

munisthāna āe raghurāī ।
sūrpanakhā kī nāka kaṭāī ॥

kharadūṣana ko māre rāma ।
patitapāvana sītārāma॥41॥

paṃcavaṭī raghunanda āe ।
kanaka mṛgā ke saṃga meṃ dhāe॥

lakṣmaṇa tumheṃ bulāte rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥42 ॥

rāvaṇa sādhu veṣa meṃ āyā ।
bhūkha ne mujhako bahuta satāyā ॥

bhikṣā do yaha dharma kā kāma ।
patitapāvana sītārāma ॥43॥

bhikṣā lekara sītā āī ।
hātha pakaḍa़ ratha meṃ baiṭhāī ॥

sūnī kuṭiyā dekhī rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥44॥

dharanī gire rāma raghurāī ।
sītā ke bina vyākulatāī ॥

he priya sīte, cīkhe rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥45॥

lakṣmaṇa, sītā choḍa़ na āte।
janaka dulārī ko nahīṃ gaṃvāte ॥

bane banāye vigaḍa़e kāma ।
patitapāvana sītārāma॥46 ॥

komala badana suhāsini sīte ।
tuma bina vyartha raheṃge jīte ॥
lage cāṃdanī-jaise ghāma
patitapāvana sītārāma ॥47॥

suna rī mainā, re totā ।
suna maiṃ bhī paṃkho vālā hotā ॥

vana vana letā ḍhūm̐ḍha tamāma ।
patitapāvana sītārāma॥48॥

śyāmā hiranī tū hī batā de ।
janaka nandanī mujhe milā de॥

tere jaisī āṃkheṃ śyāma।
patitapāvana sītārāma ॥49॥

vana vana ḍhūṃḍha rahe raghurāī ।
janaka dulārī kahīṃ na pāī॥

giddharāja ne kiyā praṇāma ।
patitapāvana sītārāma ॥5 0॥

cakhacakha kara phala śabarī lāī ।
prema sahita khāe raghurāī ॥

aise mīṭhe nahīṃ haiṃ āma ।
patitapāvana sītārāma ॥5 1॥

vipra rūpa dhari hanumata āe।
caraṇa kamala meṃ śīśa navāe॥

kandhe para baiṭhāye rāma।
patitapāvana sītārāma ॥52॥

sugrīva se karī mitāī ।
apanī sārī kathā sunāī ॥

bālī pahuṃcāyā nija dhāma ।
patitapāvana sītārāma ॥5 3॥

siṃhāsana sugrīva biṭhāyā ।
mana meṃ vaha ati hī harṣāyā ॥

varṣā ṛtu āī he rāma ।
patitapāvana sītārāma॥54॥

he bhāī lakṣmaṇa tuma jāo ।
vānarapati ko yūṃ samajhāo ॥

sītā bina vyākula haiṃ rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥5 5॥

deśa deśa vānara bhijavāe ।
sāgara ke saba taṭa para āe ॥

sahate bhūkha pyāsa aura ghāma ।
patitapāvana sītārāma ॥56॥

sampātī ne patā batāyā ।
sītā ko rāvaṇa le āyā ॥

sāgara kūda gaye hanumāna ।
patitapāvana sītārāma ॥57॥

kone kone patā lagāyā ।
bhagata vibhīṣana kā ghara pāyā॥

hanūmāna ne kiyā praṇāma ।
patitapāvana sītārāma ॥58॥

aśoka vāṭikā hanumata āe ।
vṛkṣa tale sītā ko pāe॥

āṃsū barase āṭhoṃ yāma ।
patitapāvana sītārāma ॥59 ॥

rāvaṇa saṃga niśacarī lāke ।
sītā ko bolā samajhā ke ॥

merī ora to dekho bāma ।
patitapāvana sītārāma ॥60॥

mandodarī banā dūṃ dāsī ।
saba sevā meṃ laṃkā vāsī ॥

karo bhavana calakara viśrāma ।
patitapāvana sītārāma ॥61॥

cāhe mastaka kaṭe hamārā ।
maiṃ dekhūṃ na badana tumhārā ॥

mere tana mana dhana haiṃ rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥6 2॥

ūpara se mudrikā girāī ।
sītā jī ne kaṃṭha lagāī ॥

ne kiyā praṇāma ।
patitapāvana sītārāma ॥63 ॥

hanūmānamujhako bhejā hai raghurāyā ।
sāgara kūda yahāṃ maiṃ āyā ॥

maiṃ hūṃ rāma dāsa hanumāna ।
patitapāvana sītārāma ॥64 ॥

bhūkha lagī phala khānā cāhūm̐ ।
jo mātā kī ājñā pāūm̐ ॥

saba ke svāmī haiṃ śrīrāma ।
patitapāvana sītārāma॥65 ॥

sāvadhāna hokara phala khānā ।
rakhavāloṃ ko bhūla na jānā ॥

niśācaroṃ kā hai yaha dhāma ।
patitapāvana sītārāma ॥66॥

hanūmāna ne vṛkṣa ukhāḍa़e ।
rāma rāma dekha dekha mālī lalakāre ॥

māra-māra pahuṃcāye dhāma ।
patitapāvana sītārāma ॥6 7॥

akṣayakumāra ko svargapahuṃcāyā।
indrajīta phām̐sī le āyā ॥

brahmaphām̐sa se baṃdhe hanumāna ।
patitapāvana sītārāma ॥68 ॥

sītā ko tuma lauṭā dījo ।
una se kṣamā yācanā kījo ॥

tīna loka ke svāmī rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥69॥

bhagata vibhīṣaṇa ne samajhāyā ।
rāvaṇa ne usako dhamakāyā ॥

sanamukha dekha rahe hanumāna ।
patitapāvana sītārāma॥70 ॥

ruī, tela, ghṛta, vasana maṃgāī ।
pūm̐cha bām̐dha kara āga lagāī ॥

pūm̐cha ghumāī hai hanumāna ।
patitapāvana sītārāma ॥71॥

saba laṃkā meṃ āga lagāī ।
sāgara meṃ jā pūm̐cha bujhāī॥

hṛdaya kamala meṃ rākhe rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥72॥

sāgara kūda lauṭa kara āe ।
samācāra raghuvara ne pāe ॥

jo māṃgā so diyā ināma ।
patitapāvana sītārāma ॥73 ॥

vānara rīcha saṃga meṃ lāe ।
lakṣmaṇa sahita siṃdhu taṭa āe ॥

lage sukhāne sāgara rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥74॥

setū kapi nala nīla banāveṃ ।
rāma rāma likha silā tirāveṃ ॥

laṃkā pahuṃce rājā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥75॥

aṃgada cala laṃkā meṃ āyā ।
sabhā bīca meṃ pāṃva jamāyā॥

bālī putra mahā baladhāma ।
patitapāvana sītārāma ॥76॥

rāvaṇa pāṃva haṭāne āyā ।
aṃgada ne phira pāṃva uṭhāyā ॥

kṣamā kareṃ tujhako śrī rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥77॥

niśācaroṃ kī senā āī ।
garaja garaja kara huī laḍa़āī ॥

vānara bole jaya siyā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥78 ॥

indrajīta ne śakti calāī ।
dharanī gire lakhana murajhāī ॥

cintā karake roye rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥79॥

jaba maiṃ avadhapurī se āyā ।
hāya pitā ne prāṇa gaṃvāyā ॥

bana meṃ gaī curāī bāma ।
patitapāvana sītārāma ॥80॥

bhāī tumane bhī chiṭakāyā ।
jīvana meṃ kucha sukha nahīṃ pāyā ॥

senā meṃ bhārī koharāma ।
patitapāvana sītārāma ॥81॥

jo saṃjīvanī būṭī ko lāe ।
to bhāī jīvita ho jāye ॥

būṭī lāye taba hanumāna ।
patitapāvana sītārāma ॥82॥

jaba būṭī kā patā na pāyā ।
parvata hī lekara ke āyā ॥

kāla nema pahum̐cāyā dhāma ।
patitapāvana sītārāma ॥83 ॥

bhakta bharata ne bāṇa calāyā ।
coṭa lagī hanumata laṃgaḍa़āyā ॥

mukha se bole jaya siyā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥84॥

bole bharata bahuta pachatākara ।
parvata sahita bāṇa baiṭhākara ॥

tumheṃ milā dūṃ rājā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥85॥

būṭī lekara hanumata āyā ।
lakhana lāla uṭha śīśa navāyā ॥

hanumata kaṃṭha lagāye rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥86 ॥

kumbhakarana uṭhakara taba āyā।
eka bāṇa se use girāyā ॥

indra jīta pahum̐cāyā dhāma ।
patitapāvana sītārāma॥87॥

durgāpūjana rāvaṇa kīno ।
nau dina taka āhāra na līno ॥

āsana baiṭha kiyā hai dhyāna ।
patitapāvana sītārāma ॥88॥

rāvaṇa kā vrata khaṃḍita kīnā ।
parama dhāma pahum̐cā hī dīnā ॥

vānara bole jaya siyā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥89॥

sītā ne hari darśana kīnā ।
cintā śoka sabhī taja dīnā ॥

ham̐sa kara bole rājā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥90॥

pahale agni parīkṣā pāo।
pīche nikaṭa hamāre āo ॥

tuma ho pativratā he bāma ।
patitapāvana sītārāma ॥91 ॥

karī parīkṣā kaṃṭha lagāī ।
saba vānara senā haraṣāī॥

rājya vibhīṣana dīnhā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥92 ॥

phira puṣpaka vimāna maṃgavāyā ।
sītā sahita baiṭhi raghurāyā॥

daṇḍakavana meṃ utare rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥93॥

ṛṣivara suna darśana ko āe ।
stuti kara mana meṃ harṣāye॥

taba gaṃgā taṭa āye rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥94॥

nandī grāma pavanasuta āe ।
bhagata bharata ko vacana sunāe ॥

laṃkā se āe haiṃ rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥95॥

kaho vipra tuma kahāṃ se āe ।
aise mīṭhe vacana sunāe॥

mujhe milā do bhaiyā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥96॥

avadhapurī raghunandana āye ।
mandira mandira maṃgala chāye ॥

mātāoṃ ko kiyā praṇāma ।
patilpāvana sītārāma ॥97॥

bhāī bharata ko gale lagāyā ।
siṃhāsana baiṭhe raghurāyā ॥

jaga ne kahā, haiṃ rājā rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥98॥

saba bhūmi vipro ko dīnhīṃ ।
viproṃ ne vāpasa de dīnhīṃ ॥

hama to bhajana kareṃge rāma ।
patitapāvana sītārāma॥99॥

dhobī ne dhobana dhamakāī ।
rāmacandra ne yaha suna pāī ॥

vana meṃ sītā bhejī rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥100॥

bālmīki āśrama meṃ āī ।
lava va kuśa hue do bhāī ॥

dhīra vīra jñānī balavāna ।
patitapāvana sītārāma॥101॥

aśvamegha yajña kīnhā rāma ।
sītā binu saba sūne kāma ॥

lava kuśa vahām̐ liyo pahacāna ।
patitapāvana sītārāma ॥102॥

sītā rāma binā akulāī ।
bhūmi se yaha vinaya sunāī ॥

mujhako aba dījo viśrāma ।
patitapāvana sītārāma ॥103॥

sītā bhūmī māhi samāī ।
dekhakara cintā kī raghurāī ॥

bāra-bāra pachatāye rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥104॥

rāma rājya meṃ saba sukha pāveṃ ।
prema magna ho hari guna gāveṃ॥

duḥkha kaleśa kā rahā na nāma ।
patitapāvana sītārāma॥105॥

gyāraha hajāra varṣa parayantā ।
rāja kīnha śrī lakṣmī kaṃtā ॥

phira baikuṇṭha padhāre rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥106॥

avadhapurī baikuṇṭha sidhāī ।
nara-nārī sabane gati pāī ॥

śaranāgata pratipālaka rāma ।
patitapāvana sītārāma ॥107॥

śyāma sundara’ ne līlā gānā ।
merī vinaya suno raghurāī ॥

bhūlūm̐ nahīṃ tumhārā nāma ।
patitapāvana sītārāma ॥108॥

yaha mālā pūrī huī। manakā eka sau āṭha।
manokāmanā pūrṇa ho। nitya kare jo pāṭha॥

2 thoughts on “रामायण मनका 108 – Ramayan Manka 108

  • jeetendra soni

    anter aatma ko shanti pradan karne wale is 108 ramayan manka ko hamara koti koti pranam

    Reply
  • thehindiworld

    आपका पोस्ट अच्छा, श्रेष्ठ और सुंदर है।

    आपका पोस्ट अच्छा है, सबसे बेहतर, अच्छा जो मैंने पढ़ा है और इसका आनंद लिया।

    Reply

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