कविता

शहीद अब्दुल हमीद

“शहीद अब्दुल हमीद” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीर अब्दुल हमीद के बलिदान पर लिखी गयी है। पढ़ें यह कविता और प्रेरणा लें–

जिनके नामोच्चारण से वाणी पवित्र हो जाती
जिनकी यश गाथा लिखने में मसि-लेखनी सिहाती

देकर जिनको जन्म कोख से माँ भी गौरव पाती
जिनकी स्मृति में यह दुनियाँ सौ-सौ अश्रु बहाती

जिन पर अर्घ्य चढ़ाने आतीं स्वर्ण रश्मियाँ प्यारी
जिनके स्वागत में खिलती हैं फूलों की फुलवारी

करते हैं वन्दना नित्य पक्षी कल कण्ठों से
चमक रहा जिनका चरित्र है इतिहासी पृष्ठों से

अपने उर के भाव सुमन उन चरणों पर धरता हूँ
सबसे पहले अमर शहीदों को प्रणाम करता हूँ

मरकर भी जो अमर हो गए धन्य-धन्य वे बेटे
भारत माता की गोदी में चुप होकर जो लेटे

उनमें से अब्दुल हमीद की कहकर अमर कहानी
धन्य किए लेता लूँ निज को ऐसी थी कुर्बानी

सुई छोड़कर के जिसने संगीन हाथ में पकड़ी
है कोई माँ का लाल जो डाले भारत माँ के हाथ हथकड़ी

युद्ध भूमि में सीमा-रेखा बनकर अड़ा हुआ था
कुरुक्षेत्र में अर्जुन जैसा मानो खड़ा हुआ था

स्वजन-सँगाती लड़ने आये कैसे वार करूँगा?
नहीं करूँगा तो क्या माँ का कर्ज उतार सकूँगा?

याद आ गई और उसे अपनी माँ की वे बातें
जिनको करते-करते बीती थीं उसकी दो रातें

बेटा लाज दूध की रखना पीछे पाँव न धरना
हम सबकी माँ भारत माता उसकी रक्षा करना

कहा पिता ने मुसलमान हम, है ईमान हमारा
उसे बचाकर जीवित रहना बेटा काम तुम्हारा

चलते-चलते यही कहा था मत तुम पीठ दिखाना
पीठ दिखाने से बेहतर लड़ते-लड़ते मर जाना

आँसू भरे हुए आँखों में पत्नी वहीं खड़ी थी
दुर्गा की दीवाल बीच में मानो मूर्ति जड़ी थी

अँगुली पकड़े हुए खड़ा था एक दुधमुँहा बच्चा
आँखों से ही पूछ रहा था हाल बताओ सच्चा

कहाँ जा रहे हैं पापा मैं आज वहीं जाऊँगा
उनको पहुँचाकर अम्मी घर वापस आ जाऊँगा

क्षण भर में आँखों में घूमा छोटे घर का नक्शा
दिया दिखायी कोने में टूटा छोटा सा बक्शा

रखी हुई थी वह किताब जो उसने बहुत पढ़ी थी
अन्य पुस्तकों से प्यारी जो मन में अधिक चढ़ी थी

देखा उसमें भगत सिंह फाँसी पर झूल रहे हैं
जलियाँवाला में गोरे संगीने हूल रहे हैं

शेखर, विस्मिल, खुदीराम ने भी दी थी कुर्बानी
राजगुरू-सुखदेव वीर की भी तो यही कहानी

दृढ़ संकल्प हुआ उसका मरने की मन में ठानी
सोचा इससे बढ़कर कब आएगी काम जवानी

दमक उठा मस्तक आभा से मुख ज्यों कमल खिला था
बिना कृष्ण के ही तो उसको गीता-ज्ञान मिला था

घुटनों के बल बैठ जमीं पर उसने माथा टेका
एक बार मुड़कर उसने फिर अपना भारत देखा

हिमगिरि देखा, गंगा देखी, रावी का तट देखा
काश्मीर अरु मानसरोवर, वट अक्षय बत देखा

मन्दिर और मस्जिदें देखी, ताजमहल देखा था
गुरुद्वारे-गिरजाघर भी, आनन्द महल देखा था

हिलने लगे होंठ फिर उसके, भृकुटि बंक हुई थी
लगा जवानी एक बार जैसे नि:शंक हुई थी

गरज उठा फिर प्रलय मेघ सा माँ जब तक जीवन है
तब तक शत्रु न बढ़ने दूंगा, मेरा भी यह प्रण है

देखा उसने एक टैंक आगे बढ़ता आता है
धुंआधार गोलियाँ चलाता धरती दहलाता है

यहीं टैंक है क्या दुनियाँ जिसको अभेद्य कहती है
शत्रुवाहिनी जिसके बल पर सरिता-सी बहती है

बरस उठी गोलियाँ तड़ा तड़ धाँय-धाँय बम फूटे
गर्म रक्त के वीरों के क्षण में फुब्बारे छूटे

सोचा रिपु मेरे रहते सीमा में घुस आयेगा
तो हमीद इस दुनियाँ में तू कायर कहलायेगा

यही समय है जिस दिन को जननी ने तुझे जना था
सोच रहा था किन्तु भाड़ में मानो एक चना था

लेट गया दोनों हाथों में लेकर दो हथगोले
क्या करते हो? कहकर के उसके दो साथी बोले

उत्तर था देता कुर्बानी बहुत रंग लाएगी
पैटन टैंक तोड़ने की विधि तुम्हें हाथ आयेगी

दोनों हट जाओ देखो वह टैंक पास आता है
फौलादी निज देह लिए रिपु जिस पर इठलाता है

उनके हटते ही आ पहुँचा पैटन टैंक भयंकर
चढ़ा दिया दुश्मन ने ऊपर दृश्य हुआ प्रलयंकर

बम फटे, फट गया टैंक अरु धुआँ उठा अम्बर में
थर-थर-थर धरती थराई,ज्वार उठी सागर में

सनन सनन गोलियाँ बरसती, धाँय धाँय कर गोले
चरर मरर चरखियाँ चीखती, तोपें थी मुँह खोले

लाशों के अम्बार लगाए कोई सिसक रहा था
सर पर रखकर पैर वहाँ से दुश्मन खिसक रहा था

विजयश्री मिल गई मगर हमसे हमीद छूटा था
भारत माता के सर पर दुःख पर्वत सा-टूटा था

धन्य-धन्य बेटा तूने मेरी तो लाज बचाई
लाज बचाने में मेरी, पर अपनी जान गंवाई

है मेरा वरदान युगों तक तेरा नाम चलेगा
तेरा यह बलिदान दीप बन, शाश्वत ज्योति जलेगा

नाहर वही मस्त गज पर चढ़कर जो मस्तक फाड़े
वीर वहीं जो समर भूमि में जाकर शत्रु पछाड़े

अपनी आज़ादी की रक्षा वे ही हैं कर पाते
जों हँस-हँस कर सीने पर गोली संगीनें खाते

नहीं वीरता बाँझ हुई मरकर तूने सिखलाया
आने वाले वीर प्रेरणा तुझसे ही पायेंगे
कोटि-कोटि स्वर मिलकर तेरे विजय गीत गायेंगे।

‘नवल’ नमन करता चरणों में ओ शहीद बलिदानी
गीता – रामायण – कुरान है तेरी अमर कहानी।

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version