ग्रंथधर्म

रामायण का पाठ कैसे करें – जानें पारायण की विधि

वाल्मीकि रामायण का पाठ अनेक प्रकार की विधियों से किया जाता है। श्रीरामसेवाग्रन्थ, अनुष्ठानप्रकाश, स्कान्दोक्त रामायण-माहात्म्य, बृहद्धर्मपुराण तथा शाङ्कर, रामानुज, मध्व, रामानन्द आदि विभिन्न सम्प्रदायोंकी अलग-अलग विधियाँ हैं, यद्यपि उनका अन्तर साधारण है।

इसी प्रकार इसके सकाम और निष्काम अनुष्ठानों के भी भेद हैं। सबपर विस्तृत विचार यहाँ सम्भव नहीं। वाल्मीकीयके परम प्रसिद्ध नवाह्न-पारायणकी ही विधि यहाँ लिखी जा रही है।

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वाल्मीकि रामायण का पाठ करने की सबसे प्रचलित विधि

चैत्र, माघ तथा कार्तिक शुक्ल पञ्चमीसे त्रयोदशी तक इसके नवाह्न-पारायणकी विधि है। किसी पुण्यक्षेत्र, पवित्र तीर्थ, मन्दिरमें या अपने घरपर ही भगवान् विष्णु तथा तुलसीके संनिधानमें वाल्मीकि रामायण का पाठ करना चाहिये। एतदर्थ यथासम्भव कथा-स्थानकी भूमिको संशोधन, मार्जन, लेपनादि संस्कारोंसे संस्कृतकर कदली-स्तम्भ तथा ध्वजा-पताका-वितानादिसे मण्डित कर देना चाहिये। मण्डपका मान १६ हाथ लंबा-चौड़ा हो और उसके बीचमें सर्वतोभद्रसे युक्त एक वेदी हो। अन्य वेदियाँ, कुण्ड तथा स्थण्डिल आदि भी हों। मण्डपके दक्षिण-पश्चिम भागमें वक्ता (व्यास) एवं श्रोताका आसन हो। व्यासासनके आगे पुस्तकका आसन होना चाहिये। श्रोताओंका आसन विस्तृत हो। व्यास का आसन श्रोतासे तथा पुस्तकका आसन वक्तासे भी ऊँचा होना चाहिये। फिर प्रायश्चित्त तथा नित्यकृत्य करके भगवान् श्रीरामकी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिये। अथवा पुस्तकपर ही सपरिकर-सपरिच्छद श्रीसीतारामजीका अर्थात् भगवान् श्रीरामचन्द्र, भगवती सीताजी, लक्ष्मणजी, भरतजी, शत्रुघ्नजी, श्रीहनुमान्जी आदिका आवाहन करना चाहिये। तत्पश्चात् समस्त उपकरणोंसे अलंकृत, पञ्चपल्लवादिसे युक्त कलश स्थापितकर स्वस्त्ययनपूर्वक गणपतिपूजन, बटुक, क्षेत्रपाल, योगिनी, मातृका, नवग्रह, तुलसी, लोकपाल, दिक्पाल आदिका पूजन तथा नान्दी श्राद्ध करके सपरिकर-सपरिच्छद भगवान् रामकी पूजा करे।

तदनन्तर काल-तिथि-गोत्र-नाम आदि बोलकर—

ॐ भूर्भुव: स्वरोम्। ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वकं श्रीसीता-रामप्रीत्यर्थं श्रीसीतालक्ष्मणभरतशत्रुघ्नहनुमत्समेतश्रीरामचन्द्र-प्रसादसिद्धार्थं च श्रीरामचन्द्रप्रसादेन सर्वाभीष्टसिद्धार्थं श्रीराम-चन्द्रपूजनमहं करिष्ये। श्रीवाल्मीकीयरामायणस्य पारायणं च करिष्ये, तदङ्गभूतं कलशस्थापनं स्वस्त्ययनपाठं गणपतिपूजनं वटुकक्षेत्रपालयोगिनीमातृकानवग्रहतुलसीलोकपालदिक्पालादि-पूजनं चाहं करिष्ये।

—इस प्रकार संकल्प करनेके बाद पूजन करे।

ॐ अच्युताय नम:, ॐ अनन्ताय नम:, ॐ गोविन्दाय नम:, ॐ नारायणाय नम:, ॐ मधुसूदनाय नम:, ॐ हृषीकेशाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ त्रिविक्रमाय नम:, ॐ दामोदराय नम:, ॐ मुकुन्दाय नम:, ॐ वामनाय नम:, ॐ पद्मनाभाय नम:, ॐ केशवाय नम:, ॐ विष्णवे नम:, ॐ श्रीधराय नम:, ॐ श्रीसीतारामाभ्यां नम:।

इस प्रकार नमस्कार करके निम्न प्रकारसे पूजा करे—

श्रीसीतालक्ष्मणभरतशत्रुघ्नहनुमत्समेतं श्रीरामचन्द्रं ध्यायामि—भगवान् राम का ध्यान करे।

,, आवाहयामि—आवाहन करे।

श्रीसीतालक्ष्मणभरतशत्रुघ्नहनुमत्समेताय श्रीरामचन्द्राय नम:—रन्तसिंहासनं समर्पयामि—सिंहासन अर्पण करे।

,, पाद्यं समर्पयामि—पाद्य दे।

,, अर्घ्यं समर्पयामि—अर्घ्य दे।

,, स्नानीयं समर्पयामि—स्नान करावे।

,, आचमनीयं समर्पयामि—आचमन करावे।

,, वस्त्रं समर्पयामि—वस्त्र अर्पण करे।

,, यज्ञोपवीताभरणं समर्पयामि—यज्ञोपवीत-आभूषण दे।

,, गन्धान् समर्पयामि—चन्दन-कुङ्कुम लगावे।

,, अक्षतान् समर्पयामि—चावल चढ़ावे।

,, पुष्पाणि समर्पयामि—पुष्पमाला दे।

,, धूपमाघ्रापयामि—धूप दे।

,, दीपं दर्शयामि—दीपक दिखावे।

,, नैवेद्यं फलानि च समर्पयामि—नैवेद्य और फल अर्पण करे।

,, ताम्बूलं समर्पयामि—पान दे।

,, कर्पूरनीराजनं समर्पयामि—आरती करे।

,, छत्रचामरादि समर्पयामि—छत्र-चँवरादि अर्पण करे।

,, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि—पुष्पाञ्जलि अर्पण करे।

,, प्रदक्षिणानमस्कारान् समर्पयामि—प्रदक्षिणा और नमस्कार करे।

तत्पश्चात् निम्न प्रकारसे पञ्चोपचारसे श्री रामायण-ग्रन्थकी पूजा करे—

ॐ सदा श्रवणमात्रेण पापिनां सद्गतिप्रदे।
शुभे रामकथे तुभ्यं गन्धमद्य समर्पये॥

—इति गन्धं समर्पयामि।

ॐ बालादिसप्तकाण्डेन सर्वलोकसुखप्रद।
रामायण महोदार पुष्पं तेऽद्य समर्पये॥

—इति पुष्पाणि पुष्पमालां च समर्पयामि।

ॐ यस्यैकश्लोकपाठस्य फलं सर्वफलाधिकम्।
तस्मै रामायणायाद्य दशाङ्गं धूपमर्पये॥

—इति धूपमाघ्रापयामि।

ॐ यस्य लोके प्रणेतारो वाल्मीक्यादिमहर्षय:।
तस्मै रामचरित्राय घृतदीपं समर्पये॥

—इति दीपं दर्शयामि।

ॐ श्रूयते ब्रह्मणो लोके शतकोटिप्रविस्तरम्।
रूपं रामायणस्यास्य तस्मै नैवेद्यमर्पये॥

—इति नैवेद्यं समर्पयामि।

पूजा करनेके बाद कर्पूरकी आरती करके चार बार प्रदक्षिणा कर पुष्पाञ्जलि अर्पण करे। फिर साष्टाङ्ग प्रणाम कर इस प्रकार नमस्कार करे—

वाल्मीकिगिरिसम्भूता रामसागरगामिनी।
पुनाति भुवनं पुण्या रामायणमहानदी॥
श्लोकसारसमाकीर्णं सर्गकल्लोलसंकुलम्।
काण्डग्राहमहामीनं वन्दे रामायणार्णवम्॥

फिर देवता, ब्राह्मणादिकी पूजा कर पाठका संकल्प करके ऋष्यादिन्यास करे। अनुष्ठानप्रकाशके अनुसार कामनाभेदसे यदि पूरी रामायण का पाठ न हो सके तो अलग-अलग काण्डों के अनुष्ठानकी भी विधि है। जैसे पुत्रकी कामनावाला बालकाण्ड पढ़े, लक्ष्मीकी इच्छावाला अयोध्याकाण्ड पढ़े। इसी प्रकार नष्टराज्यकी प्राप्तिकी इच्छावालोंको किष्किन्धाकाण्डका, सभी कामनाओंकी इच्छावालोंको सुन्दरकाण्डका और शत्रुनाशकी कामनावालोंको लङ्काकाण्डका पाठ करना चाहिये। ‘बृहद्धर्मपुराण’ के अनुसार इनका अन्य भी सकाम उपयोग है। वह तथा उसके न्यासादिका प्रकार आगे लिखा जायगा।

ॐ अस्य श्रीवाल्मीकिरामायणमहामन्त्रस्य भगवान् वाल्मीकिर्ऋरुषि:। अनुष्टुप् छन्द:। श्रीराम: परमात्मा देवता। अभयं सर्वभूतेभ्य इति बीजम्। अङ्गुल्यग्रेण तान् हन्यामिति शक्ति:। एतदस्त्रबलं दिव्यमिति कीलकम्। भगवान्नारायणो देव इति तत्त्वम्। धर्मात्मा सत्यसंधश्चेत्यस्त्रम्। पुरुषार्थचतुष्टयसिद्धार्थं पाठे विनियोग:।

ॐ श्रीं रां आपदामपहर्तारमित्यङ्गुष्ठाभ्यां नम:।
ॐ ह्रीं रीं दातारमिति तर्जनीभ्यां नम:। ॐ रों रूं सर्वसम्पदामिति मध्यमाभ्यां नम:।
ॐ श्रीं रैं लोकाभिराममित्यनामिकाभ्यां नम:। ॐ श्रीं रौं श्रीराममिति कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ॐ रौं र: भूयो भूयो नमाम्यहमिति करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

इन्हीं मन्त्रोंसे इसी प्रकार हृदयादि न्यास करे। फिर—

ब्रह्मा स्वयम्भूर्भगवान् देवाश्चैव तपस्विन:।
सिद्धिं दिशन्तु मे सर्वे देवा: सर्षिगणास्ति्वह॥

—इति दिग्बन्ध:।

यों कहकर चारों ओर हाथ घुमाकर अन्तमें फिर इस प्रकार ध्यान करे—

वामे भूमिसुता पुरस्तु हनुमान् पश्चात् सुमित्रासुत:।
शत्रुघ्नो भरतश्च पार्श्वदलयोर्वाय्वादिकोणेषु च।
सुग्रीवश्च विभीषणश्च युवराट् तारासुतो जाम्बवान्।
मध्ये नीलसरोजकोमलरुचिं रामं भजे श्यामलम्॥
‘आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥’

यह सम्पुटका मन्त्र है। इससे सम्पुटित पाठ करनेसे समस्त मन:कामनाओंकी सिद्धि होती है।

फिर निम्न प्रकारसे मङ्गलाचरण करके पाठ आरम्भ करना चाहिये—

गणपति का ध्यान

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये॥
वागीशाद्या: सुमनस: सर्वार्थानामुपक्रमे।
यं नत्वा कृतकृत्या: स्युस्तं नमामि गजाननम्॥

गुरु की वन्दना

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम:॥

सरस्वती का स्मरण

दोर्भिर्युक्ता चतुर्भि: स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना।
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण।
भासा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभा भासमानासमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना॥

वाल्मीकि जी की वन्दना

कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्॥
य: पिबन् सततं रामचरितामृतसागरम्।
अतृप्तस्तं मुनिं वन्दे प्राचेतसमकल्मषम्॥

हनुमान जी को नमस्कार

गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम्।
रामायणमहामालारन्तं वन्देऽनिलात्मजम्॥
अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम्।
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम्॥
उल्लङ्घ्य सिन्धो: सलिलं सलीलं
य: शोकवह्निं जनकात्मजाया:।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां
नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम्॥
आञ्जनेयमतिपाटलाननं
काञ्चनाद्रिकमनीयविग्रहम्।
पारिजाततरुमूलवासिनं
भावयामि पवमाननन्दनम्॥
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं
तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम्।
बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं
मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्य
श्रीरामदूतं शिरसा नमामि॥

श्रीराम के ध्यानका क्रम

वैदेहीसहितं सुरद्रुमतले हैमे महामण्डपे
मध्ये पुष्पकमासने मणिमये वीरासने संस्थितम्।
अग्रे वाचयति प्रभञ्जनसुते तत्त्वं मुनिभ्य: परं
व्याख्यान्तं भरतादिभि: परिवृतं रामं भजे श्यामलम्॥
वामे भूमिसुता पुरस्तु हनुमान् पश्चात् सुमित्रासुत:
शत्रुघ्नो भरतश्च पार्श्वदलयोर्वाय्वादिकोणेषु च।
सुग्रीवश्च विभीषणश्च युवराट् तारासुतो जाम्बवान्
मध्ये नीलसरोजकोमलरुचिं रामं भजे श्यामलम्॥

श्री राम परिकर को नमस्कार

रामं रामानुजं सीतां भरतं भरतानुजम्।
सुग्रीवं वायुसूनुं च प्रणमामि पुन: पुन:॥
नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय देव्यै च तस्यै जनकात्मजायै।
नमोऽस्तु रुद्रेन्द्रयमानिलेभ्यो नमोऽस्तु चन्द्रार्कमरुद्गणेभ्य:॥

रामायण को नमस्कार

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥
वाल्मीकिगिरिसम्भूता रामाम्भोनिधिसंगता।
श्रीमद्रामायणी गङ्गा पुनाति भुवनत्रयम्॥
वाल्मीकेर्मुनिसिंहस्य कवितावनचारिण:।
श्रृण्वन् रामकथानादं को न याति परां गतिम्॥

रामायण का पाठ आरम्भ करने के बाद अध्यायके बीचमें रुकना नहीं चाहिये। रुक जानेपर फिर उसी अध्यायको आरम्भसे पढ़ना चाहिये। मध्यम स्वरसे, स्पष्ट उच्चारण करते हुए श्रद्धा तथा प्रेम से रामायण का पाठ करना चाहिये। गीत गाकर, सिर हिलाकर, जल्दबाजीसे तथा बिना अर्थ समझे पाठ करना ठीक नहीं है। संध्या-समय निम्नलिखित स्थलोंपर प्रतिदिन विश्राम करते जाना चाहिये।

प्रथम दिन अयोध्याकाण्डके ६ठे सर्गकी समाप्तिपर
प्रथम विश्राम

द्वितीय ,, ,, ८०वें ,, ,, द्वितीय ,,
तृतीय ,, अरण्यकाण्डके २०वें ,, ,, तृतीय ,,
चतुर्थ ,,किष्किन्धाकाण्डके४६ वें सर्गकी समाप्तिपर
चतुर्थ विश्राम

पञ्चम ,,सुन्दरकाण्डके ४७ वें ,, ,, पञ्चम ,,
षष्ठ ,, युद्धकाण्डके ५०वें ,, ,, षष्ठ ,,
सप्तम ,, ,, ९९ वें ,, ,, सप्तम ,,
अष्टम ,, उत्तरकाण्ड ३६ वें ,, ,, अष्टम ,,
नवम ,, ,, अन्तिम सर्गके बाद पुन: युद्ध-काण्डका अन्तिम सर्ग पढ़कर विश्राम करना चाहिये।

इसके अन्य भी विश्रामस्थल हैं। एक पारायण-क्रम ऐसा भी है, जिसमें उत्तर काण्ड का पाठ नहीं किया जाता।

उसके विश्रामस्थल क्रमश: इस प्रकार हैं—

प्रथम दिवस बालकाण्डके ७७ वेंसर्गकी समाप्तिपर
द्वितीय ,, अयोध्याकाण्डके ६० वें ,,
तृतीय ,, ,, ११९ वें ,,
चतुर्थ ,, अरण्यकाण्डके ६८ वें ,,
पञ्चम ,, किष्किन्धाकाण्डके ४९ वें ,,
षष्ठ ,, सुन्दरकाण्डके ५६ वें ,,
सप्तम ,, युद्धकाण्डके ५० वें ,,
अष्टम ,, ,, १११ वें ,,
नवम ,, ,, १३१ वें ,,

प्रतिदिन रामायण का पाठ समाप्त होते समय निम्नाङ्कित श्लोकों के द्वारा मङ्गलाशासन करके पारायण पूरा करें।

स्वस्ति प्रजाभ्य: परिपालयन्तां
न्याय्येन मार्गेण महीं महीशा:।
गोब्राह्मणेभ्य: शुभमस्तु नित्यं
लोका: समस्ता: सुखिनो भवन्तु॥
काले वर्षतु पर्जन्य: पृथिवी सस्यशालिनी।
देशोऽयं क्षोभरहितो ब्राह्मणा: सन्तु निर्भया:॥
अपुत्रा: पुत्रिण: सन्तु पुत्रिण: सन्तु पौत्रिण:।
अधना: सधना: सन्तु जीवन्तु शरदां शतम्॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं प्रोक्तं महापातकनाशनम्॥
श्रृण्वन् रामायणं भक्त्या य: पादं पदमेव वा।
स याति ब्रह्मण: स्थानं ब्रह्मणा पूज्यते सदा॥
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम:॥
यन्मङ्गलं सहस्राक्षे सर्वदेवनमस्कृते।
वृत्रनाशे समभवत् तत् ते भवतु मङ्गलम्॥
यन्मङ्गलं सुपर्णस्य विनताकल्पयत् पुरा।
अमृतं प्रार्थयानस्य तत्ते भवतु मङ्गलम्॥
मङ्गलं कोसलेन्द्राय महनीयगुणात्मने।
चक्रवर्तितनूजाय सार्वभौमाय मङ्गलम्॥
अमृतोत्पादने दैत्यान् घ्नतो वज्रधरस्य यत्।
अदितिर्मङ्गलं प्रादात् तत् ते भवतु मङ्गलम्॥
त्रीन् विक्रमान् प्रक्रमतो विष्णोरमिततेजस:।
यदासीन्मङ्गलं राम तत् ते भवतु मङ्गलम्॥
ऋषय: सागरा द्वीपा वेदा लोका दिशश्च ते।
मङ्गलानि महाबाहो दिशन्तु तव सर्वदा॥
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा
बुद्धद्याऽऽत्मना वा प्रकृतिस्वभावात्।
करोमि यद् यत् सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पये तत्॥

अलग-अलग काण्डों के सकाम पाठका ऋष्यादिन्यास इस प्रकार है—

बालकाण्ड का विनियोग

ॐ अस्य श्रीबालकाण्डमहामन्त्रस्य ऋष्यश्रृङ्ग ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:। दाशरथि: परमात्मा देवता। रां बीजम्। नम: शक्ति:। रामायेति कीलकम्। श्रीरामप्रीत्यर्थे बालकाण्डपारायणे विनियोग:।

ऋष्यादिन्यास

ॐ ऋष्यश्रृङ्गऋषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ दाशरथिपरमात्मदेवतायै नम: हृदि। ॐ रां बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ रामाय कीलकाय नम: सर्वाङ्गे।

करन्यास

ॐ सुप्रसन्नाय अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ शान्तमनसे तर्जनीभ्यां नम:। ॐ सत्यसन्धाय मध्यमाभ्यां नम:। ॐ जितेन्द्रियाय अनामिकाभ्यां नम:। ॐ धर्मज्ञाय नयसारज्ञाय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ राज्ञे दाशरथये जयिने करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

इन्हीं मन्त्रोंसे पूर्वोक्त प्रकारसे हृदयादि न्यास कर निम्न प्रकारसे ध्यान करे—

श्रीराममाश्रितजनामरभूरुहेश-
मानन्दशुद्धमखिलामरवन्दिताङ्घ्रिम्।
सीताङ्गनासुमिलितं सततं सुमित्रा-
पुत्रान्वितं धृतधनु:शरमादिदेवम्॥
ॐ सुप्रसन्न: शान्तमना: सत्यसंधो जितेन्द्रिय:।
धर्मज्ञो नयसारज्ञो राजा दाशरथिर्जयी॥

इस मन्त्रसे श्रीरामकी पूजा करे और इसीसे अथवा श्रीराममन्त्रसे सम्पुटित कर बालकाण्डका पाठ करे। इससे ग्रहशान्ति, र्इति-भीति-शान्ति तथा पुत्रप्राप्ति सम्भव है।

अयोध्या-काण्ड का विनियोग तथा ऋष्यादिन्यास

ॐ अस्य श्रीअयोध्याकाण्डमहामन्त्रस्य भगवान् वसिष्ठ ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:। भरतो दाशरथि: परमात्मा देवता। भं बीजम्। नम: शक्ति:। भरतायेति कीलकम्। मम भरतप्रसादसिद्धार्थमयोध्याकाण्डपारायणे विनियोग:। ॐ वसिष्ठऋषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ दाशरथिभरतपरमात्मदेवतायै नम: हृदि। ॐ भं बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ भरताय कीलकाय नम: सर्वाङ्गे।

करन्यास

ॐ भरताय नमस्तस्मै—अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ सारज्ञाय तर्जनीभ्यां नम:। ॐ महात्मने मध्यमाभ्यां नम:। ॐ तापसाय अनामिकाभ्यां नम:। ॐ अतिशान्ताय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ शत्रुघ्नसहिताय च करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

फिर इसी प्रकार हृदयादिका भी न्यास करके निम्नलिखित श्लोकानुसार ध्यान करना चाहिये—

श्रीरामपादद्वयपादुकान्तसंसक्तचित्तं कमलायताक्षम्।
श्यामं प्रसन्नवदनं कमलावदातशत्रुघ्नयुक्तमनिशं भरतं नमामि॥

भरताय नमस्तस्मै सारज्ञाय महात्मने।
तापसायातिशान्ताय शत्रुघ्नसहिताय च॥

इस मन्त्रसे पञ्चोपचारद्वारा भरतजीकी पूजा करे। चाहे तो इसी मन्त्रसे लक्ष्मी-प्राप्तिकी इच्छासे अयोध्याकाण्डका सम्पुटित पाठ करे।

अरण्य-काण्ड का विनियोग एवं ऋष्यादिन्यास

ॐ अस्य श्रीमदरण्यकाण्डमहामन्त्रस्य भगवानृषि:। अनुष्टुप् छन्द:। श्रीरामो दाशरथि: परमात्मा महेन्द्रो देवता। र्इं बीजम्। नम: शक्ति:। इन्द्रायेति कीलकम्। इन्द्रप्रसादसिद्धार्थे अरण्यकाण्डपारायणे जपे विनियोग:। ॐ भगवदृषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ दाशरथिश्रीराम-परमात्ममहेन्द्रदेवतायै नम: हृदि। ॐ र्इं बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ इन्द्राय कीलकाय नम: सर्वाङ्गे।

करन्यास

ॐ सहस्रनयनाय अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ देवाय तर्जनीभ्यां नम:। ॐ सर्वदेवनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नम:। ॐ दिव्यवज्रधराय अनामिकाभ्यां नम:। ॐ महेन्द्राय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ शचीपतये करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस श्लोकसे ध्यान करना चाहिये।

शचीपतिं सर्वसुरेशवन्द्यं सर्वार्तिहर्तारमचिन्त्यशक्तिम्।
श्रीरामसेवानिरतं महान्तं वन्दे महेन्द्रं धृतवज्रमीड्यम्॥

फिर—

सहस्रनयनं देवं सर्वदेवनमस्कृतम्।
दिव्यवज्रधरं वन्दे महेन्द्रं च शचीपतिम्॥

इस मन्त्रसे इन्द्रकी पूजा करे और नष्ट द्रव्य-प्राप्ति आदिकी कामनासे इसीसे सम्पुटित कर पाठ करे।

किष्किन्धा-काण्ड का ऋष्यादिन्यास

ॐ अस्य श्रीकिष्किन्धाकाण्डमहामन्त्रस्य भगवान् ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:। सुग्रीवो देवता। सुं बीजम्। नम: शक्ति:। सुग्रीवेति कीलकम्। मम सुग्रीवप्रसादसिद्धार्थे किष्किन्धाकाण्डपारायणे विनियोग:। ॐ भगवदृषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ सुग्रीवदेवतायै नम: हृदये। ॐ सुं बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ सुग्रीवाय कीलकाय नम: सर्वाङ्गे।

करन्यास

ॐ सुग्रीवाय अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ सूर्यतनयाय तर्जनीभ्यां नम:। ॐ सर्ववानरपुङ्गवाय मध्यमाभ्यां नम:। ॐ बलवते अनामिकाभ्यां नम:। ॐ राघवसखाय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ वशी राज्यं प्रयच्छतु इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस प्रकार ध्यान करे—

सुग्रीवमर्कतनयं कपिवर्यवन्द्य-
मारोपिताच्युतपदाम्बुजमादरेण।
पाणिप्रहारकुशलं बलपौरुषाढ्य-
माशास्यदास्यनिपुणं हृदि भावयामि॥
फिर ‘सुं सुग्रीवाय नम:’ तथा—
सुग्रीव: सूर्यतनय: सर्ववानरपुङ्गव:।
बलवान् राघवसखा वशी राज्यं प्रयच्छतु॥

इस मन्त्रसे सुग्रीवकी पूजाकर—चाहे तो इसी श्लोकसे किष्किन्धाकाण्डका सम्पुटित पाठ करे।

सुन्दर-काण्ड का विनियोग एवं ऋष्यादिन्यास

ॐ अस्य श्रीमत्सुन्दरकाण्डमहामन्त्रस्य भगवान् हनुमान् ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:। श्रीजगन्माता सीता देवता। श्रीं बीजम्। स्वाहा शक्ति:। सीतायै कीलकम्। सीताप्रसादसिद्धार्थं सुन्दरकाण्डपारायणे विनियोग:। ॐ भगवद्धनुमदृषये नम: शिरसि। अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। श्रीजगन्मातृसीतादेवतायै नम: हृदि। श्रीं बीजाय नम: गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पादयो:। सीतायै कीलकाय नम: सर्वाङ्गे।

करन्यास

ॐ सीतायै अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ विदेहराजसुतायै तर्जनीभ्यां नम:। रामसुन्दर्यै मध्यमाभ्यां नम:। हनुमता समाश्रितायै अनामिकाभ्यां नम:। ॐ भूमिसुतायै कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ शरणं भजे करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

फिर इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस प्रकार ध्यान करे—

सीतामुदारचरितां विधिसाम्बविष्णुवन्द्यां त्रिलोकजननीं शतकल्पवल्लीम्।
हेमैरनेकमणिरञ्जितकोटिभागैर्भूषाचयैरनुदिनं सहितां नमामि॥

सुन्दरकाण्डके पाठकी विशेष विधि है कि प्रतिदिन एकोत्तरवृत्तिसे क्रमश: एक-एक सर्ग पाठ बढ़ाते हुए ग्यारहवें दिन पाठ समाप्त कर दे। १२ वें दिन अवशिष्ट दो सर्गके साथ आरम्भके १० सर्ग पढ़े जायँ, १३ वें दिन ११ से २३ तक इस तरह तीन आवृत्तिके पाठसे समस्त कार्यकी सिद्धि होती है। दूसरा क्रम है—प्रतिदिन ५ अध्याय पाठका। इसमें भी पूर्वकी भाँति १४ वें दिन अन्तके ३ तथा प्रारम्भके दो सर्गका पाठ करे। सम्पुट पाठका मन्त्र है—

“श्रीसीतायै नम:।”*

लंका-काण्ड का विनियोग एवं ऋष्यादिन्यास

ॐ अस्य श्रीयुद्धकाण्डमहामन्त्रस्य विभीषण ऋषि:। अनुष्टुप्छन्द:। विधाता देवता। बं बीजम्। नम: शक्ति:। विधातेति कीलकम्। श्रीधातृप्रसादसिद्धार्थे युद्धकाण्डपारायणे विनियोग:। ॐ विभीषणऋषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ विधातृदेवतायै नम: हृदि। ॐ बं बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ विधातेति कीलकाय नम: सर्वाङ्गे।

करन्यास

ॐ विधात्रे नम: अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ महादेवाय तर्जनीभ्यां नम:। ॐ भक्तानामभयप्रदाय मध्यमाभ्यां नम:। ॐ सर्वदेवप्रीतिकराय अनामिकाभ्यां नम:। ॐ भगवत्प्रियाय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ र्इश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

फिर इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस प्रकार ध्यान करना चाहिये—

देवं विधातारमनन्तवीर्यं भक्ताभयं श्रीपरमादिदेवम्।
सर्वामरप्रीतिकरं प्रशान्तं वन्दे सदा भूतपतिं सुभूतिम्॥

फिर—

विधातारं महादेवं भक्तानामभयप्रदम्।
सर्वदेवप्रीतिकरं भगवत्प्रियमीश्वरम्॥

इस मन्त्रसे पञ्चोपचारद्वारा पूजाकर चाहे तो इसी मन्त्रसे सम्पुटित पाठ करे। इससे शत्रुपर विजय प्राप्त होती है एवं अप्रतिष्ठा नष्ट होती है।

पुनर्वसु से प्रारम्भ कर आर्द्रा तक २७ दिनोंमें भी पूर्ण रामायण के पाठ की विधि है। ४० दिनोंका भी एक पारायण होता है। नवरात्र में भी इसके नवाह्नपाठका नियम है।


१. चैत्रे माघे कार्तिके च सिते पक्षे च वाचयेत्। नवाहं सुमहापुण्यं श्रोतव्यं च प्रयत्नत:॥
पञ्चम्या दिनमारभ्य रामायणकथामृतम्। नवाहश्रवणेनैव सर्वपापै: प्रमुच्यते॥
(रामसेवाग्रन्थ)

२. श्रोतृभ्यश्च तथा वक्तुर्व्यासाद् ग्रन्थस्य चोच्चता।
(रामसेवाग्रन्थ)

३. हृदयादिन्यासकी विधि यह है कि ‘अङ्गुष्ठाभ्यां नम:’ के स्थानपर ‘हृदयाय नम:’ कहकर पाँचों अङ्गुलियोंसे हृदयका स्पर्श किया जाय। ‘तर्जनीभ्यां नम:’ के स्थानपर ‘शिरसे स्वाहा’ कहकर सिरका अग्रभाग छुआ जाय। ‘मध्यमाभ्यां नम:’ के स्थानपर ‘शिखायै वौषट्’ कहकर शिखाका स्पर्श किया जाय। ‘अनामिकाभ्यां नम:’ के बदले ‘कवचाय हुम्’ कहकर दाहिने हाथसे बायें कंधे तथा बायें हाथसे दाहिने कंधेका स्पर्श करे। ‘कनिष्ठिकाभ्यां नम:’ के बदले ‘नेत्रत्रयाय वौषट्’ कहकर नेत्रोंका स्पर्श करे तथा ‘करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:’ के बदले ‘अस्त्राय फट्’ कहकर तीन बार ताली बजाये।

४. ‘बृहद्धर्मपुराणके अनुसार रामायण का पाठ करने से पहले रामायण-कवच का भी पाठ कर लेना चाहिये। वह मङ्गलाचरणके पहले होना चाहिये। कम-से-कम प्रथम दिन इसका पाठ तो कर ही लेना चाहिये। कवच इस प्रकार है—
ॐ नमोऽष्टादशतत्त्वरूपाय रामायणाय महामन्त्रस्वरूपाय। मा निषादेति मूलं शिरोऽवतु। अनुक्रमणिकाबीजं मुखमवतु। ऋष्यश्रृङ्गोपाख्यानमृषिर्जिह्वामवतु। जानकीलाभोऽनुष्टुप्च्छन्दोऽवतु गलम्। केकय्यज्ञा देवता हृदयमवतु। सीतालक्ष्मणानुगमनश्रीरामहर्षा: प्रमाणं जठरमवतु। भगवद्भक्ति: शक्तिरवतु मे मध्यमम्। शक्तिमान् धर्मो मुनीनां पालनं ममोरू रक्षतु। मारीचवचनं प्रतिपालनमवतु पादौ। सुग्रीवमैत्रमर्थोऽवतु स्तनौ। निर्णयो हनुमच्चेष्टावतु बाहू। कर्ता सम्पातिपक्षोद्गमोऽवतु स्कन्धौ। प्रयोजनं विभीषणराज्यं ग्रीवां ममावतु। रावणवध: स्वरूपमवतु कर्णौ। सीतोद्धारो लक्षणमवतु नासिके। अमोघस्तव संस्तवोऽवतु जीवात्मानम्। नय: काललक्ष्मणसंवादोऽवतु नाभिम्। आचरणीयं श्रीरामादिधर्मं सर्वाङ्गं ममावतु। इति रामायणकवचम्। (बृहद्धर्मपुराणम्, पूर्वखण्डम् २५ वाँ अध्याय)

५. प्रथमे तु अयोध्याया: षट्सर्गान्ते शुभा स्थिति:। तस्यैवाशीतिसर्गान्ते द्वितीये दिवसे स्थिति:॥
तथा विंशतिसर्गान्ते चारण्यस्य तृतीयके। दिने चतुर्थे षट्चत्वारिशंत्सर्गे कथास्थिति:॥
किष्किन्धाख्यस्य काण्डस्य पाठविद्भिरुदाहृता। सुसप्तचत्वारिशंत्के सर्गान्ते सुन्दरेस्थितिम्॥
पञ्चमे दिवसे कुर्यादथ षष्ठे तथोच्यते। युद्धकाण्डस्य पञ्चाशत्सर्गान्ते विमला स्थिति:॥
एकोनशतसंख्याके सर्गान्ते सप्तमे दिने। युद्धस्यैव तु काण्डस्य विश्राम: सम्प्रकीर्तित:॥
तथा चोत्तरकाण्डस्य षट्त्रिंशत्सर्गपूरणे। अष्टमे दिवसे कृत्वा स्थितिं च नवमे दिने॥
शेषं समाप्य युद्धस्य चान्त्यं सर्गं पुन: पठेत्। रामराज्यकथा यस्मिन् सर्ववाञ्छितदायिनी॥
एवं पाठक्रम: पूर्वैराचार्यैश्च विनिर्मित:।
(अनुष्ठानप्रकाश)

६. बृहद्धर्म पुराण में अलग-अलग काण्डों के पाठ के प्रयोजन इस प्रकार बतलाये गये हैं—
अनावृष्टिर्महापीडाग्रहपीडाप्रपीडिता:। आदिकाण्डं पठेयुर्ये ते मुच्यन्ते ततो भयात्॥
पुत्रजन्मविवाहादौ गुरुदर्शन एव च। पठेच्च श्रृणुयाच्चैव द्वितीयं काण्डमुत्तमम्॥
वने राजकुले वह्निजलपीडायुतो नर:। पठेदारण्यकं काण्डं श्रृणुयाद् वा स मङ्गली॥
मित्रलाभे तथा नष्टद्रव्यस्य च गवेषणे। श्रुत्वा पठित्वा कैष्किन्ध्यं काण्डं तत्तत् फलं लभेत्॥
श्राद्धेषु देवकार्येषु पठेत् सुन्दरकाण्डकम्। शत्रोर्जये समुत्साहे जनवादे विगर्हिते॥
लङ्काकाण्डं पठेत् किं वा श्रृणुयात् स सुखी भवेत्।
य: पठेच्छृणुयाद् वापि काण्डमभ्युदयोत्तरम्। आनन्दकार्ये यात्रायां स जयी परतोऽत्र च॥
मोक्षार्थी लभते मोक्षं भक्तार्थी भक्तिमेव च। ज्ञानार्थी लभते ज्ञानं ब्रह्मतत्त्वोपलम्भकम्॥
(बृहद्धर्मपुराण, पूर्वखण्ड, अध्याय २६। ९—१५)

* रामभद्र महेष्वास रघुवीर नृपोत्तम। भो दशास्यान्तकास्माकं रक्षां देहि श्रियं च ते॥
इस मन्त्रके सम्पुटसे सुन्दर काण्ड का पाठ भी किया जा सकता है।

यह भी पढ़ें – रामायण मनका 108

रामायण पाठ कैसे करें – Ramayan Path Kaise Karein 

  •  रामायण का पाठ अत्यंत शुभ फलदायक होता है।  जहां भी यह पाठ होता है, वहां का वातावरण पवित्र होने के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। कहते हैं, प्राचीन समय से ही इसका पाठ करने का विधान है, जो आज भी किसी न किसी रूप में प्रचलित है। परन्तु समय के साथ इसके पाठ विधि और नियमों में बहुत परिवर्तन आ गए हैं। बिना नियमों और विधि के पालन किये, यथोचित फल प्राप्त नहीं होता है। रामायण पाठ करने की सही विधि हमने हिंदीपथ के माध्यम से आप सभी के साथ साझा की है। आइये अब जानते हैं रामचरित मानस या तुलसी रामायण पढ़ने के नियम (ramayan padhne ke niyam) के बारे में:
  • अखंड रामायण का पाठ किसी भी वजह से बीच में खंडित नहीं होना चाहिए। 
  • यदि आप अखंड रामायण पाठ नहीं कर सकते हैं, तो नित्य श्रद्धापूर्वक कुछ दोहे ही पढ़ सकते हैं। 
  • मासपारायण या नवाह परायण भी इसका आठ किया जा सकता है। 
  • अखंड रामायण पाठ के लिए  किसी योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण से सहायता लेना उचित होता है। 
  • अपनी आवश्यकता और मनोकामना के अनुसार सही सम्पुट का चयन करके पाठ करना उचित होता है। 
  • अखंड रामायण का पाठ 24 घंटे निरंतर बिना रुकावट के चलना चाहिए। 
  • पाठ की समाप्ति के पश्चात् हवन, आरती, भजन, और भोजन करने का नियम है। 
  • जहां पाठ चल रहा हो, उस क्षेत्र में, पाठ के अलावा किसी भी तरह की अपरिचित या अनुचित बात नहीं होना चाहिए। 
  • किसी भी तरह के रंगरूटों को पाठ स्थल में प्रवेश की अनुमति नहीं होनी चाहिए। 
  • अगर आपको गोस्वामी तुलसीदास जी, श्रीरामचरितमानस, भगवान श्री राम और हनुमान की पर आस्था और विश्वास है, तभी आप इस पाठ को कहने, करवाने, और सुनने के अधिकारी हैं। 
  • पाठ को पूर्ण शुद्धता से और सम्पुट को ध्यान में रखते हुए, जैसा लिखा हुआ हो वैसा ही पढ़ना चाहिए। अपने मन से कुछ जोड़ना या घटाना अनुचित होता है।
  • इस पाठ का आयोजन करने से पहले पढ़ने वाले उचित दावेदारों की उपस्थिति सुनिश्चित करना आवश्यक होता है। 
  • पढ़ने के लिए उचित समूह में लोगों की उपस्थिति अनिवार्य है, ताकि हर एक पाठक को बीच-बीच में विराम और आराम मिल सके। 

रामायण पारायण विधि (Ramayan parayan vidhi)

रामायण पारायण विधि कुछ इस प्रकार है:

श्रीरामचरितमानस का यथोचित्त पाठ प्रारम्भ करने से पूर्व शिव जी, हनुमान जी, गोस्वामी तुलसीदास जी और वाल्मीकि जी का पूजन एवं आवाहन करना चाहिए। तदुपरांत रामजी, सीताजी सहित तीनों भाइयों, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न का आवाहन करके षोडशोपचार पूजन एवं ध्यान करना चाहिए। इसके बाद पाठ प्रारंभ करें। पारायण की सम्पूर्ण विधि और रामायण शुरू करने से पहले क्या बोलते हैं, ये हमने आपके साथ पहले ही साझा किया है। 

रामायण पाठ के लाभ – Benefits of Ramayan

  • इस कलयुग में जहां वातावरण इतना दूषित हो गया है और लोग आसानी से बुराई के मार्ग पर अग्रसर हो जाते हैं, तो राम का नाम और रामायण पाठ ही सब मोह-माया और पापों से मुक्ति के लिए पुण्य दायक सिद्ध हो सकता है। 
  • जिस घर में रामायण रखी जाती है, वहाँ श्री राम के साथ-साथ हनुमानजी की कृपा भी हमेशा बनी रहती है। 
  • पुराणों के अनुसार जिस घर में रामायण का नियमित रूप से पाठ होता है, वहां से दरिद्रता दूर होती है और माँ लक्ष्मी का वास होता है। 
  • रामायण की हर एक चौपाई कई मंत्रों का फल देती है और लाभ पहुँचाती है। यह पाठ मनुष्य को जीवन जीने का सही मार्ग प्रशस्त कराता है। 
  • मानसिक शांति के लिए भी रामायण का पाठ लाभदायक होता है। 
  • जहां भी रामायण का पाठ होता है, वहाँ के अन्न भण्डारण में कभी कमी नहीं आती है। 
  • परिवार में सुख शांति और खुशियों का माहौल बना रहता और आपसी क्लेश, विपत्ति, और तनाव दूर होते हैं। 
  • पूर्णिमा के दिन इसका पाठ करवाने से अकाल मृत्यु का संकट दूर होता है। 

उम्मीद करते हैं कि हिंदीपाठ के माध्यम से रामायण पाठ और नियमों से जुड़ी सभी सस्याओं का निवारण हुआ होगा। भगवान राम और हनुमान जी की कृपा हमेशा आप सभी पर बनी रहे।

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6 thoughts on “रामायण का पाठ कैसे करें – जानें पारायण की विधि

  • Kahani Rishte ki

    आपके द्वारा लिखा हुआ आर्टिकल बहुत अच्छा है प्रेरणादायक अनमोल आर्टिकल

    Reply
    • HindiPath

      हिंदी पथ पर वाल्मीकि रामायण पढ़ने और हमारा उत्साहवर्धन करने के लिए धन्यवाद। इसी तरह पढ़ते रहें और हमारा मार्गदर्शन करते रहें।

      Reply
  • Nidhi

    Bahut bahut sadhuwaad ..aapne bahut accha article likha ..aapke charan sparsh karti hu

    Reply
  • Valmiki Ramayan ji ke sunder kand ka path ki tihi se karna chahiye
    Kripya margdarsn kare
    Shri Sitay Namha

    Reply
    • HindiPath

      मनोज जी, शीघ्र ही हम वाल्मीकि रामायण का सुंदर कांड और उसके पाठ की विधि प्रकाशित करेंगे। सुझाव के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। कृपया इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहें।

      Reply
  • deepika singh

    bahut bahut dhanyawad swami ji, aapke charan sparsh, bahut sundar samjhaya aapne.

    Reply

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