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वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 3 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 3

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वाल्मीकि मुनिद्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख

नारद जी के मुख से धर्म, अर्थ एवं काम रूपी फल से युक्त, हितकर (मोक्षदायक) तथा प्रकट और गुप्त—सम्पूर्ण रामचरित्र को, जो रामायण महाकाव्य की प्रधान कथावस्तु था, सुनकर महर्षि वाल्मीकि जी बुद्धिमान् श्रीराम के उस जीवनवृत्त का पुन: भलीभाँति साक्षात्कार करने के लिये प्रयत्न करने लगे॥ १ ॥

वे पूर्वाग्र कुशों के आसन पर बैठ गये और विधिवत् आचमन करके हाथ जोड़े हुए स्थिर भावसे स्थित हो योग धर्म (समाधि) के द्वारा श्रीराम आदि के चरित्रों का अनुसंधान करने लगे॥ २ ॥

श्रीराम-लक्ष्मणसीता तथा राज्य और रानियों सहित राजा दशरथ से सम्बन्ध रखने वाली जितनी बातें थीं—हँसना, बोलना, चलना और राज्य पालन आदि जितनी चेष्टाएँ हुर्इं—उन सबका महर्षि ने अपने योग धर्म के बलसे भलीभाँति साक्षात्कार किया॥ ३-४ ॥

सत्यप्रतिज्ञ श्री रामचन्द्र जी ने लक्ष्मण और सीता के साथ वन में विचरते समय जो-जो लीलाएँ की थीं, वे सब उनकी दृष्टि में आ गयीं॥ ५ ॥

योग का आश्रय लेकर उन धर्मात्मा महर्षि ने पूर्वकाल में जो-जो घटनाएँ घटित हुर्इ थीं, उन सबको वहाँ हाथ पर रखे हुए आँवले की तरह प्रत्यक्ष देखा॥ ६ ॥

सबके मनको प्रिय लगने वाले भगवान् श्रीराम के सम्पूर्ण चरित्रों का योग धर्म (समाधि) के द्वारा यथार्थ रूप से निरीक्षण करके महाबुद्धिमान् महर्षि वाल्मीकि ने उन सबको महाकाव्य का रूप देने की चेष्टा की॥ ७ ॥

महात्मा नारदजी ने पहले जैसा वर्णन किया था, उसीके क्रमसे भगवान् वाल्मीकि मुनिने रघुवंशविभूषण श्रीराम के चरित्र विषयक रामायण काव्य का निर्माण किया। जैसे समुद्र सब रत्नों की निधि है, उसी प्रकार यह महाकाव्य गुण, अलङ्कार एवं ध्वनि आदि रत्नों का भण्डार है। इतना ही नहीं, यह सम्पूर्ण श्रुतियों के सारभूत अर्थ का प्रतिपादक होने के कारण सबके कानों को प्रिय लगने वाला तथा सभी के चित्त को आकृष्ट करने वाला है। यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी गुणों (फलों) से युक्त तथा इनका विस्तार पूर्वक प्रतिपादन एवं दान करने वाला है॥ ८-९ ॥

श्री रामके जन्म, उनके महान् पराक्रम, उनकी सर्वानुकूलता, लोकप्रियता, क्षमा, सौम्यभाव तथा सत्यशीलताका इस महाकाव्य में महर्षिने वर्णन किया॥ १० ॥

विश्वामित्र जी के साथ श्रीराम-लक्ष्मण के जाने पर जो उनके द्वारा नाना प्रकार की विचित्र लीलाएँ तथा अद्भुत बातें घटित हुर्इं, उन सबका इसमें महर्षि ने वर्णन किया। श्रीराम द्वारा मिथिला में धनुष के तोड़े जाने तथा जनक नन्दिनी सीता और उर्मिला आदि के विवाह का भी इसमें चित्रण किया॥ ११ ॥

श्रीराम-परशुराम-संवाद, दशरथ नन्दन श्रीरामके गुण, उनके अभिषेक, कैकेयीकी दुष्टता, श्रीराम के राज्याभिषेक में विघ्न, उनके वनवास, राजा दशरथ के शोक-विलाप और परलोक-गमन, प्रजाओं के विषाद, साथ जाने वाली प्रजाओं को मार्ग में छोड़ने, निषादराज गुहके साथ बात करने तथा सूत सुमन्त को अयोध्या लौटाने आदि का भी इसमें उल्लेख किया॥ १२—१४ ॥

श्रीराम आदिका गंगा के पार जाना, भरद्वाज मुनिका दर्शन करना, भरद्वाज मुनिकी आज्ञा लेकर चित्रकूट जाना और वहाँकी नैसर्गिक शोभा का अवलोकन करना, चित्रकूट में कुटिया बनाना, उसमें निवास करना, वहाँ भरतका श्रीराम से मिलने के लिये आना, उन्हें अयोध्या लौट चलने के लिये प्रसन्न करना (मनाना), श्रीराम द्वारा पिता को जलाञ्जलि दान, भरत द्वारा अयोध्या के राज सिंहासन पर श्री रामचन्द्र जी की श्रेष्ठ पादुका ओंका अभिषेक एवं स्थापन, नन्दि ग्राम में भरत का निवास, श्रीराम का दण्डकारण्य में गमन, उनके द्वारा विराध का वध, शरभंगमुनिका दर्शन, सुतीक्ष्ण के साथ समागम, अनसूया के साथ सीता देवी की कुछ कालतक स्थिति, उनके द्वारा सीताको अंगराग-समर्पण, श्रीराम आदिके द्वारा अगस्त्यका दर्शन, उनके दिये हुए वैष्णव धनुषका ग्रहण, शूर्पणखा का संवाद, श्री राम की आज्ञा से लक्ष्मण द्वारा उसका विरूपकरण (उसकी नाक और कानका छेदन), श्रीराम द्वारा खर-दूषण और त्रिशिराका वध, शूर्पणखा के उत्तेजित करनेसे रावण का श्रीराम से बदला लेने के लिये उठना, श्रीराम द्वारा मारीच का वध, रावण द्वारा विदेहनन्दिनी सीता का हरण, सीता के लिये श्रीरघुनाथजी का विलाप, रावण द्वारा गृध्रराज जटायु का वध, श्रीराम और लक्ष्मण की कबन्ध से भेंट, उनके द्वारा पम्पासरोवर का अवलोकन, श्रीराम का शबरी से मिलना और उसके दिये हुए फल-मूलको ग्रहण करना, श्रीराम का सीता के लिये प्रलाप, पम्पासरोवर के निकट हनुमान जी से भेंट, श्रीराम और लक्ष्मण का हनुमान जी के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर जाना, वहाँ सुग्रीव के साथ भेंट करना, उन्हें अपने बलका विश्वास दिलाना और उनसे मित्रता स्थापित करना, वाली और सुग्रीव का युद्ध, श्रीरामद्वारा वाली का विनाश, सुग्रीव को राज्य-समर्पण, अपने पति वाली के लिये ताराका विलाप, शरत्कालमें सीता की खोज करानेके लिये सुग्रीव की प्रतिज्ञा, श्रीराम का बरसात के दिनों में माल्यवान् पर्वत के प्रस्रवण नामक शिखरपर निवास, रघुकुल सिंह श्रीराम का सुग्रीव के प्रति क्रोध-प्रदर्शन, सुग्रीव द्वारा सीता की खोजके लिये वानर सेना का संग्रह, सुग्रीवका सम्पूर्ण दिशाओंमें वानरोंको भेजना और उन्हें पृथ्वीके द्वीप-समुद्र आदि विभागोंका परिचय देना, श्रीराम का सीता के विश्वास के लिये हनुमान जी को अपनी अँगूठी देना, वानरों को ऋक्षबिल (स्वयंप्रभा-गुफा) का दर्शन, उनका प्रायोपवेशन (प्राणत्यागके लिये अनशन), सम्पातीसे उनकी भेंट और बातचीत, समुद्रलङ्घनके लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वतपर चढ़ना, समुद्र को लाँघना, समुद्रके कहनेसे ऊपर उठे हुए मैनाकका दर्शन करना, इनको राक्षसीका डाँटना, हनुमान्द्वारा छायाग्राहिणी सिंहिकाका दर्शन एवं निधन, लङ्काके आधार भूत पर्वत (त्रिकूट) का दर्शन, रात्रिके समय लङ्कामें प्रवेश, अकेला होनेके कारण अपने कर्तव्यका विचार करना, रावणके मद्यपान-स्थानमें जाना, उसके अन्त:पुरकी स्त्रियोंको देखना, हनुमान जी का रावणको देखना, पुष्पक विमान का निरीक्षण करना, अशोकवाटिकामें जाना और सीताजी के दर्शन करना, पहचानके लिये सीताजी को अँगूठी देना और उनसे बातचीत करना, राक्षसियों द्वारा सीता को डाँट-फटकार, त्रिजटाको श्रीरामके लिये शुभ सूचक स्वप्न का दर्शन, सीता का हनुमान जी को चूड़ामणि प्रदान करना, हनुमान जी का अशोक वाटिका के वृक्षों को तोड़ना, राक्षसियों का भागना, रावण के सेवकों का हनुमानजी के द्वारा संहार, वायुनन्दन हनुमान जी का बन्दी होकर रावणकी सभा में जाना, उनके द्वारा गर्जन और लङ्काका दाह, फिर लौटती बार समुद्र को लाँघना, वानरों का मधुवन में आकर मधुपान करना, हनुमान जी का श्रीरामचन्द्रजी को आश्वासन देना और सीताजीकी दी हुई चूड़ामणि समर्पित करना, सेनासहित सुग्रीवके साथ श्रीराम की लङ्का यात्रा के समय समुद्रसे भेंट, नलका समुद्रपर सेतु बाँधना, उसी सेतुके द्वारा वानरसेनाका समुद्रके पार जाना, रातको वानरोंका लङ्कापर चारों ओरसे घेरा डालना, विभीषणके साथ श्रीरामका मैत्री-सम्बन्ध होना, विभीषणका श्री राम को रावण के वधका उपाय बताना, कुम्भकर्ण का निधन, मेघनादका वध, रावणका विनाश, सीताकी प्राप्ति, शत्रुनगरी लङ्का में विभीषण का अभिषेक, श्रीराम द्वारा पुष्पक विमान का अवलोकन, उसके द्वारा दल-बलसहित उनका अयोध्याके लिये प्रस्थान, श्रीराम का भरद्वाज मुनि से मिलना, वायु पुत्र हनुमान को दूत बनाकर भरतके पास भेजना तथा अयोध्या में आकर भरत से मिलना, श्रीरामके राज्याभिषेक का उत्सव, फिर श्रीराम का सारी वानर सेना को विदा करना, अपने राष्ट्र की प्रजा को प्रसन्न रखना तथा उनकी प्रसन्नता के लिये ही विदेह नन्दिनी सीताको वनमें त्याग देना इत्यादि वृत्तान्तों को एवं इस पृथ्वी पर श्री राम का जो कुछ भविष्य चरित्र था, उसको भी भगवान् वाल्मीकि मुनिने अपने उत्कृष्ट महाकाव्यमें अंकित किया॥ १५—३९ ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें तीसरा सर्ग पूरा हुआ॥ ३॥

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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