धर्म

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 39 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 39

विश्वामित्रजी की कही हुई कथा सुनकर श्रीरामचन्द्र जी बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कथाके अन्त में अग्नितुल्य तेजस्वी विश्वामित्र मुनि से कहा—॥ १ ॥

‘ब्रह्मन्! आपका कल्याण हो। मैं इस कथा को विस्तारके साथ सुनना चाहता हूँ। मेरे पूर्वज महाराज सगर ने किस प्रकार यज्ञ किया था?’॥ २ ॥

उनकी वह बात सुनकर विश्वामित्रजीको बड़ा कौतूहल हुआ। वे यह सोचकर कि मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ, उसीके लिये ये प्रश्न कर रहे हैं, जोर-जोरसे हँस पड़े। हँसते हुए-से ही उन्होंने श्रीरामसे कहा—॥

राम! तुम महात्मा सगरके यज्ञका विस्तारपूर्वक वर्णन सुनो। पुरुषोत्तम! शङ्करजीके श्वशुर हिमवान् नामसे विख्यात पर्वत विन्ध्याचल तक पहुँचकर तथा विन्ध्यपर्वत हिमवान्तक पहुँचकर दोनों एक-दूसरे को देखते हैं (इन दोनों के बीचमें दूसरा कोई ऐसा ऊँचा पर्वत नहीं है, जो दोनोंके पारस्परिक दर्शन में बाधा उपस्थित कर सके)। इन्हीं दोनों पर्वतों के बीच आर्यावर्त की पुण्यभूमि में उस यज्ञ का अनुष्ठान हुआ था॥ ४-५ ॥

‘पुरुषसिंह! वही देश यज्ञ करनेके लिये उत्तम माना गया है। तात ककुत्स्थनन्दन! राजा सगर की आज्ञा से यज्ञिय अश्वकी रक्षाका भार सुदृढ़ धनुर्धर महारथी अंशुमान्ने स्वीकार किया था॥ ६ /

‘परंतु पर्वके दिन यज्ञमें लगे हुए राजा सगरके यज्ञसम्बन्धी घोड़े को इन्द्र ने राक्षस का रूप धारण करके चुरा लिया॥ ७ /

‘काकुत्स्थ! महामना सगरके उस अश्वका अपहरण होते समय समस्त ऋत्विजों ने यजमान सगर से कहा— ‘ककुत्स्थनन्दन! आज पर्वके दिन कोई इस यज्ञ सम्बन्धी अश्व को चुराकर बड़े वेग से लिये जा रहा है। आप चोर को मारिये और घोड़ा वापस लाइये, नहीं तो यज्ञमें विघ्न पड़ जायगा और वह हम सब लोगों के लिये अमंगलका कारण होगा। राजन्! आप ऐसा प्रयत्न कीजिये, जिससे यह यज्ञ बिना किसी विघ्न-बाधाके परिपूर्ण हो’॥

‘उस यज्ञ-सभामें बैठे हुए राजा सगरने उपाध्यायों की बात सुनकर अपने साठ हजार पुत्रों से कहा—‘पुरुषप्रवर पुत्रो! यह महान् यज्ञ वेदमन्त्रोंसे पवित्र अन्त:करण वाले महाभाग महात्माओं द्वारा सम्पादित हो रहा है; अत: यहाँ राक्षसों की पहुँच हो, ऐसा मुझे नहीं दिखायी देता (अत: यह अश्व चुराने वाला कोई देवकोटि का पुरुष होगा)॥

‘अत: पुत्रो! तुम लोग जाओ, घोड़े की खोज करो। तुम्हारा कल्याण हो। समुद्र से घिरी हुई इस सारी पृथ्वी को छान डालो। एक-एक योजन विस्तृत भूमि को बाँटकर उसका चप्पा-चप्पा देख डालो। जबतक घोड़े का पता न लग जाय, तब तक मेरी आज्ञासे इस पृथ्वी को खोदते रहो। इस खोदनेका एक ही लक्ष्य है— उस अश्वके चोर को ढूँढ़ निकालना॥ १३—१५ ॥

‘मैं यज्ञ की दीक्षा ले चुका हूँ, अत: स्वयं उसे ढूँढ़नेके लिये नहीं जा सकता; इसलिये जबतक उस अश्व का दर्शन न हो, तबतक मैं उपाध्यायों और पौत्र अंशुमान्के साथ यहीं रहूँगा’॥ १६ ॥

‘श्रीराम! पि ताके आदेश रूपी बन्धन से बँधकर वे सभी महाबली राजकुमार मन-ही-मन हर्ष का अनुभव करते हुए भूतल पर विचरने लगे॥ १७ ॥

‘सारी पृथ्वी का चक्कर लगाने के बाद भी उस अश्व को न देखकर उन महाबली पुरुष सिंह राजपुत्रों ने प्रत्येक के हिस्से में एक-एक योजन भूमिका बँटवारा करके अपनी भुजाओं द्वारा उसे खोदना आरम्भ किया। उनकी उन भुजाओं का स्पर्श वज्र के स्पर्श की भाँति दुस्सह था॥ १८ ॥

‘रघुनन्दन! उस समय वज्रतुल्य शूलों और अत्यन्त दारुण हलों द्वारा सब ओरसे विदीर्ण की जाती हुई वसुधा आर्तनाद करने लगी॥ १९ ॥

‘रघुवीर! उन राजकुमारों द्वारा मारे जाते हुए नागों, असुरों, राक्षसों तथा दूसरे-दूसरे प्राणियों का भयंकर आर्तनाद गूँजने लगा॥ २० ॥

‘रघुकुल को आनन्दित करनेवाले श्रीराम! उन्होंने साठ हजार योजनकी भूमि खोद डाली। मानो वे सर्वोत्तम रसातलका अनुसंधान कर रहे हों॥ २१ ॥

‘नृपश्रेष्ठ राम! इस प्रकार पर्वतोंसे युक्त जम्बूद्वीप की भूमि खोदते हुए वे राजकुमार सब ओर चक्कर लगाने लगे॥ २२ ॥

‘इसी समय गन्धर्वों, असुरों और नागों सहित सम्पूर्ण देवता मन-ही-मन घबरा उठे और ब्रह्माजी के पास गये॥ २३ ॥

‘उनके मुखपर विषाद छा रहा था। वे भयसे अत्यन्त संत्रस्त हो गये थे। उन्होंने महात्मा ब्रह्माजी को प्रसन्न करके इस प्रकार कहा—॥ २४ ॥

‘भगवन्! सगर के पुत्र इस सारी पृथ्वी को खोदे डालते हैं और बहुत-से महात्माओं तथा जलचारी जीवों का वध कर रहे हैं॥ २५ ॥

‘यह हमारे यज्ञमें विघ्न डालने वाला है। यह हमारा अश्व चुराकर ले जाता है’ ऐसा कहकर वे सगरके पुत्र समस्त प्राणियों की हिंसा कर रहे हैं’॥ २६ ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में उनतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३९॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version