विकट – Vikat (गणेश जी का षष्ट: रूप)
विकट अवतार अष्टविनायक (Ashtavinayak Ganpati) रूपों में भगवान गणेश जी का छठवां अवतार है। यह अवतार कामासुर के दमन के लिए हुआ था।
विकट अष्टविनायक (Ashtavinayak) रूपों में गणेश जी का उग्र रूप है। उन्हें एक भयानक रूप के साथ चित्रित किया गया है, जिसमें चार भुजाएं, एक उभरा हुआ पेट और एक बड़ा सिर, हाथी के कान और सूंड है। उन्हें अक्सर एक कुल्हाड़ी पकड़े हुए दिखाया जाता है।
विकटो नाम विख्यातः कामासुरविदाहकः ।
मयूरवाहनश्चायं सौरब्रह्मधरः स्मृतः ॥
भगवान् श्री गणेश का ‘विकट’ नामक प्रसिद्ध अवतार कामासुर का संहारक है, वह मयूर वाहन एवं सौरब्रह्म का धारक माना गया है। भगवान् विष्णु जब जालन्धर के वधहेतु वृन्दा का तप नष्ट करने गये थे। उसी समय उनके शुक्र से अत्यन्त तेजस्वी कामासुर पैदा हुआ। कामासुर दैत्यगुरु शुक्राचार्य से दीक्षा प्राप्त कर तपस्या के लिये वन में गया। वहाँ उसने पञ्चाक्षरी मन्त्र का जप करते हुए कठोर तपस्या प्रारम्भ की। भगवान् शिव की प्रसन्नता के लिये उसने अन्न, जलका त्याग कर दिया। दिन-प्रतिदिन उसका ” शरीर क्षीण होता गया तथा तेज बढ़ता गया। दिव्य सहस्र वर्ष पूरे होने पर शिव भगवान् प्रसन्न हुए । आशुतोष ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने के लिये कहा । कामासुर भगवान् शिव जी के दर्शन कर कृतार्थ हो गया। उसने भगवान् शंकर के चरणों में प्रणाम कर वर – याचना की – ‘प्रभो! आप मुझे ब्रह्माण्ड का राज्य तथा अपनी भक्ति प्रदान करें। मैं बलवान्, निर्भय एवं मृत्युजयी होऊँ।
भगवान् शिवने कहा— ‘यद्यपि तुमने अत्यन्त दुर्लभ तथा देव-दुःखद वर की याचना की है, तथापि मैं तुम्हारी कामना पूरी करता हूँ। कामासुर प्रसन्न होकर अपने गुरु शुक्राचार्य के पास लौट आया तथा उन्हें शिव-दर्शन तथा वर-प्राप्ति का समस्त समाचार सुनाया। शुक्राचार्य ने सन्तुष्ट होकर महिषासुर की रूपवती पुत्री तृष्णा के साथ उसका विवाह कर दिया। उसी समय समस्त दैत्यों के समक्ष शुक्राचार्य ने कामासुर को दैत्यों का अधिपति बना दिया। सभी दैत्यों ने उसके अधीन रहना स्वीकार कर लिया।
कामासुर ने अत्यन्त सुन्दर रतिद नामक नगर में अपनी राजधानी बनायी। उसने रावण, शम्बर, महिष, बलि तथा दुर्मद को अपनी सेना का प्रधान बनाया उस महाअसुर ने पृथ्वी के समस्त राजाओं पर आक्रमण कर उन्हें जीत लिया। फिर वह स्वर्ग पर चढ़ दौड़ा। इन्द्रादि देवता उसके पराक्रम के आगे नहीं ठहर सके। सभी उसके अधीन हो गये। वर के प्रभाव से कामासुर ने कुछ ही समय में तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्त कर लिया। उसके राज्य में समस्त धर्म-कर्म नष्ट हो गये। चारों तरफ झूठ, छल-कपट का ही साम्राज्य स्थापित हो गया। देवता, मुनि और धर्म परायण लोग अतिशय कष्ट पाने लगे।
महर्षि मुद्गल की प्रेरणा से समस्त देवता और मुनि मयूरेश क्षेत्र में पहुँचे। वहाँ उन्होंने श्रद्धा-भक्ति पूर्वक गणेश की पूजा की देवताओं की उपासना से प्रसन्न होकर मयूर वाहन भगवान् गणेश प्रकट हुए। उन्होंने देवताओं से वर माँगने के लिये कहा। देवताओं ने कहा-‘प्रभो! हम सब कामासुर के अत्याचार से अत्यन्त कष्ट पा रहे हैं। आप हमारी रक्षा करें।तथास्तु! कहकर भगवान् विकट अन्तर्धान हो गये।
मयूर-वाहन भगवान् विकट ने देवताओं के साथ कामासुर के नगर को घेर लिया। कामासुर भी दैत्यों के साथ बाहर आया। भयानक युद्ध होने लगा। उस भीषण युद्ध में कामासुर के दो पुत्र शोषण और दुष्पूर मारे गये। भगवान् विकट ने कामासुर से कहा-‘तूने शिव-वर के प्रभाव से बड़ा अधर्म किया है। यदि तू जीवित रहना चाहता है तो देवताओं से द्रोह छोड़कर मेरी शरणमें आ जा। अन्यथा तुम्हारी मौत निश्चित है।’ कामासुर ने क्रोधित होकर अपनी भयानक गदा भगवान् विकट पर फेंकी। वह गदा भगवान् विकट का स्पर्श किये बिना पृथ्वी पर गिर पड़ी। कामासुर मूर्च्छित हो गया। उसके शरीर की सारी शक्ति जाती रही। उसने सोचा—’इस अद्भुत देव ने जब बिना शस्त्र के मेरी ऐसी दुर्दशा कर दी, तब शस्त्र उठायेगा तो क्या होगा? वह अन्त में भगवान् विकट की शरण में आ गया। मयूरेशने उसे क्षमा कर दिया। देवता और मुनि भयमुक्त हो गये। सर्वत्र भगवान् विकट की जयकार होने लगी।