धर्म

शुक्र भगवान – Shukra Dev

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दैत्यों के गुरु शुक्र भगवान का वर्ण श्वेत है। उनके सिर पर सुन्दर मकट तथा गले में माला है। वे श्वेत कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके चार हाथों में क्रमश:-दण्ड, रुद्राक्ष की माला, पात्र तथा वरदमुद्रा सुशोभित रहती है।

शुक्राचार्य दानवों के पुरोहित हैं ये योग के आचार्य हैं। अपने शिष्य दानवों पर इनकी कृपा सर्वदा बरसती रहती है। इन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या करके उनसे मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की थी। उसके बल से ये युद्ध में मरे हुए दानवों को जिला देते थे (महाभारत आदि० ७६। ८)।

मत्स्य पुराण के अनुसार शुक्र भगवान (Shukra Bhagwan) ने असुरों के कल्याण के लिये ऐसे कठोर व्रत का अनुष्ठान किया जैसा आज तक कोई नहीं कर सका। इस व्रत से इन्होंने देवाधिदेव शंकर को प्रसन्न कर लिया। शिव जी ने इन्हें वरदान दिया कि तुम युद्धमें देवताओंको पराजित कर दोगे और तुम्हें कोई नहीं मार सकेगा।

भगवान शिव ने इन्हें धन का भी अध्यक्ष बना दिया। इसी वरदान के आधार पर शुक्राचार्य इस लोक और परलोक की सारी सम्पत्तियों के स्वामी बन गये। महाभारत आदिपर्व (७८। ३९ ) के अनुसार सम्पत्ति ही नहीं, शुक्र भगवान औषधियों, मन्त्रों तथा रसों के भी स्वामी हैं। इनकी सामर्थ्य अद्भुत है। इन्होंने अपनी समस्त सम्पत्ति अपने शिष्य असुरों को दे दी और स्वयं तपस्वी-जीवन ही स्वीकार किया।

शुक्र भगवान संबंधी जानकारियाँ

ब्रह्मा की प्रेरणा से शुक्राचार्य ग्रह बनकर तीनों लोकों के प्राण का परित्राण करने लगे। कभी वृष्टि, कभी अवृष्टि, कभी भय, कभी अभय उत्पन्न कर ये प्राणियों के योग-क्षेम का कार्य पूरा करते हैं। ये ग्रह के रूप में ब्रह्मा की सभा में भी उपस्थित होते हैं। लोकों के लिये ये अनुकूल ग्रह हैं तथा वर्षा रोकने वाले ग्रहों को शांत कर देते हैं। इनके अधिदेवता इन्द्राणी तथा प्रत्यधि देवता इन्द्र हैं। मत्स्यपुराण (९४। ५) के अनुसार शुक्र देव (Shukra Dev) का वर्ण श्वेत है। इनका वाहन रथ है, उसमें अग्नि के समान आठ घोड़े जुते रहते हैं। रथपर ध्वजाएँ फहराती रहती हैं। इनका आयुध दण्ड है। शुक्र ग्रह वृष और तुला राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा २० वर्ष की होती है।

शुक्र ग्रह (Shukra Grah) की शान्ति के लिये गो पूजा करनी चाहिये तथा हीरा धारण करना चाहिये। चाँदी, सोना, चावल, घी, सफेद वस्त्र, सफेद चन्दन, हीरा, सफेद अश्व, दही, चीनी, गौ तथा भूमि ब्राह्मण को दान देना चाहिये।

नवग्रह मण्डल में शुक्र का प्रतीक पूर्व में श्वेत पंचकोण है। शुक्र की प्रतिकूल दशा में इनकी अनुकूलता और प्रसन्नता हेतु वैदिक मन्त्र – ‘ॐ अन्नात्परिनुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान : शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं परयोऽमृतं मधु॥’, पौराणिक मन्त्र – ‘हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्वशास्त्रप्रवक्तारम् भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥ ” बीज मन्त्र – ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः तथा सामान्य मन्त्र – ‘ॐ शुं शुक्राय नमः ‘ है। इनमेंसे किसी एक का नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। कुल जप-संख्या १६००० तथा जपका समय सूर्योदयकाल है। विशेष अवस्था में विद्वान् ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिये।

भगवान शुक्र के उपाय

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र को उच्च करने के उपाय निम्नलिखित हैं–

राशिवृष और तुला
महादशा20 वर्ष
सामान्य उपायगो पूजा करनी चाहिये।
रत्नहीरा
दानचाँदी, सोना, चावल, घी, सफेद वस्त्र, सफेद चन्दन, हीरा, सफेद अश्व, दही, चीनी, गौ तथा भूमि
वैदिक मंत्रॐ अन्नात्परिनुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान : शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं परयोऽमृतं मधु॥
पौराणिक मंत्रहिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारम् भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥
बीज मंत्रॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः
सामान्य मंत्रॐ शुं शुक्राय नमः
जप-संख्या16000
समयसूर्योदय काल

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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