धर्म

केतु ग्रह – Ketu Dev

केतु ग्रह की दो भुजाएँ हैं। वे अपने सिर पर मुकुट तथा शरीर पर काला वस्त्र धारण करते हैं। उनका शरीर धूम्र वर्ण का है तथा मुख विकृत है। वे अपने एक हाथ में गदा और दूसरे में वरमुद्रा धारण किये रहते हैं तथा नित्य गीध पर समा सीन हैं।

भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु ग्रह राहु का ही कबन्ध है। राह के साथ केतु भी ग्रह बन गया। मत्स्य पुराण के अनुसार केतु बहुत से हैं, उनमें धूम केतु प्रधान है।

भारतीय ज्योतिष के अनुसार यह छाया ग्रह है। व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सुष्टि को यह प्रभावित करता है। आकाश-मण्डल में इसका प्रभाव वायव्य कोण में माना गया है। विद्वानों के मतानुसार राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हितकारी है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है। केतु देव (Ketu Dev) का मण्डल ध्वजा कार माना गया है। कदाचित् यही कारण है कि यह आकाश में लहराती ध्वजाके समान दिखायी देता है। इसका माप केवल छः अंगुल है।

केतु संबंधी जानकारियाँ

यद्यपि राहु-केतु का मूल शरीर एक था और वह दानव-जाति का था। परन्तु ग्रहों में परिगणित होने के पश्चात् उनका पुनर्जन्म मानकर उनके नये गोत्र घोषित किये गये इस आधार पर राहु पैठीनस-गोत्र तथा केतु जैमिनि-गोत्र का सदस्य माना गया। केतु ग्रह (Ketu Grah) का वर्ण धूम्र है। कहीं-कहीं इसका कपोत वाहन भी मिलता है। केतु की महादशा सात वर्ष की होती है। इसके अधिदेवता चित्र केतु तथा प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु अशुभ स्थान में रहता है तो वह अनिष्टकारी हो जाता है। अनिष्टकारी केतु का प्रभाव व्यक्ति को रोगी बना देता है। इसकी प्रतिकूलता से दाद, खाज तथा कुष्ठ जैसे रोग होते हैं।

केतु की प्रसन्नता हेतु दान की जाने वाली वस्तुएँ इस प्रकार बतायी गयी हैं–

वैदूर्य रत्नं तैलं च तिलं कम्बल समर्पयेत्।
शस्त्रं मृगमदं नीलपुष्पं केतुग्रहाय वै॥

वैदूर्य नामक रत्न, तेल, काला तिल, कम्बल, शस्त्र, कस्तूरी तथा नीले रंग का पुष्प दान करने से केतु ग्रह साधक का कल्याण करता है। इसके लिये लहसुनिया पत्थर धारण करने तथा मृत्युञ्जय जप का भी विधान है। नवग्रह मण्डल में इसका प्रतीक वायव्यकोण में काला ध्वज है।

केतु ग्रह के उपाय

केतु ग्रह की शंन्ति के लिये वैदिक मन्त्र – ‘ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेश से। सुमुषद्भिरजायथाः॥’, पौराणिक मन्त्र – ‘पलाशपुष्पसङ्काशं तारकाग्रहमस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥’, बीज मन्त्र –‘ॐ स्रां स्त्री स्रौ सः केतवे नमः।’ तथा सामान्य मन्त्र ‘ॐ कें केतवे नमः’ है। इसमें किसी एकका नित्य श्रद्धा पूर्वक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। जप का समय रात्रि तथा कुल जप-संख्या १७००० है। हवन के लिये कुश का उपयोग करना चाहिये। विशेष परिस्थिति में विद्वान् ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिये।

केतु का वैदिक मंत्र वस्तुतः 9 ग्रहों में से एक केतु ग्रह को समर्पित है। वास्तव में केतु एक छाया ग्रह है, जिसका स्वयं का कोई स्वरूप नहीं है। परन्तु अगर कुंडली में इसकी स्थिति अशुभ रहती है तो ये मानव जीवन को बहुत बुरी तरह प्रभावित करता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में केतु अनिष्टकारी रहता है, वह व्यक्ति रोगों  से ग्रसित हो जाता है। कुष्ठ रोग और दाद खाज खुजली जैसे रोग व्यक्ति को सताने लगते हैं। केतु की बुरी दशा से ग्रसित व्यक्ति को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि आप इसकी शांति के उपाय करें। केतु का वैदिक मंत्र पाठ करना इस ग्रह को प्रसन्न करके अपने अनुकूल करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इसके अलावा भी कई उपाय हैं जिससे केतु ग्रह को प्रसन्न किया जा सकता है। 

यह भी पढ़ें – केतु कवच

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु ग्रह की शांति के उपाय निम्नलिखित हैं–

राशिकोई नहीं
महादशासात वर्ष
सामान्य उपायमृत्युञ्जय जप
रत्नलहसुनिया पत्थर
दान वैदूर्य नामक रत्न, तेल, काला तिल, कम्बल, शस्त्र, कस्तूरी तथा नीले रंग का पुष्प
वैदिक मंत्रॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेश से।
सुमुषद्भिरजायथाः॥
पौराणिक मंत्रपलाशपुष्पसङ्काशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥
बीज मंत्रॐ स्रां स्त्री स्रौ सः केतवे नमः
सामान्य मंत्रॐ कें केतवे नमः
जप-संख्या17000
समयरात्रि

एक अमेज़न एसोसिएट के रूप में उपयुक्त ख़रीद से हमारी आय होती है। यदि आप यहाँ दिए लिंक के माध्यम से ख़रीदारी करते हैं, तो आपको बिना किसी अतिरिक्त लागत के हमें उसका एक छोटा-सा कमीशन मिल सकता है। धन्यवाद!

केतु यंत्र

अन्य नवग्रह के बारे में पढ़ें

नवग्रहसूर्य देव चंद्र देव
मंगल देवबुध भगवानबृहस्पति देव
शुक्र भगवानशनि देव राहु ग्रह

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version