अहोई अष्टमी व्रत कथा
अहोई अष्टमी व्रत कथा में होई माता की कहानी का वर्णन है। इस पर्व को अहोई आठे भी कहा जाता है। उपवास और पूजन के साथ इस कथा का श्रवण बहुत आवश्यक है। पढ़ें अहोई अष्टमी व्रत कथा, पूजा-विधि तथा अन्य आवश्यक जानकारियाँ हिंदी में–
अहोई अष्टमी व्रत विधि
अहोई आठे व्रत कार्तिक लगते ही अष्टमी को किया जाता है। जिस वार को दीपावली होती है, अहोई आठें उसी वार की पड़ती है। इस व्रत को वे स्त्रियाँ ही करती हैं, जिसके सन्तान होती है।
बच्चों की माँ दिन भर व्रत रखे। सायं काल दीवार पर अष्ट कोष्टक की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाएँ। उस पुतली के पास सेई तथा बच्चों का चित्र भी बनाएँ या छपी हुई अहोई अष्टमी का चित्र मंगवाकर दीवार पर लगाएँ तथा उसकी पूजा कर सूर्यास्त के बाद अर्थात तारे निकलने पर अहोई माता का पूजन करने से पहले पृथ्वी को पवित्र करके चौक पूज कर एक लोटा जल भर एक पटले पर कलश की भांति रखकर पूजा करे। अहोई माता का पूजन करके माताएँ कहानी सुनें।
पूजा के लिए माताएँ पहले से एक चांदी की अहोई बनायें, जिसे स्याऊ कहते हैं और उसमें चांदी के दो दाने (मोती) डलवा लें। जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पेंडिल लगा होता है, उसी की भाँति चांदी की अहोई ढलवाँ लें और डोरे में चांदी के दाने डलवा लें। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध, व भात से पूजा करें।
इसके उपरान्त अहोई अष्टमी व्रत विधि (Ahoi Ashtami Vrat Vidhi) के अनुसार जल से भरे लोटे पर सतिया बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा रुपये बायना निकाल कर रख लें और सात दाने गेहूँ के लेकर अहोई अष्टमी व्रत कथा सुनें। अहोई माता की कहानी सुनने के बाद अहोई, स्याऊ की माला गले में पहन लें। जो बायना निकाल कर रखा था, उसे सासूजी के पाँव लग कर आदर पूर्वक उन्हें देवें। इसके बाद चन्द्रमा देवता को अर्घ्य देकर स्वयं भोजन करें।
दीवाली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ भोग लगावें और जल के छीटें देकर मस्तक झुका कर रख दें। जितने बेटे हैं, उतनी बार तथा जितने बेटों का विवाह हो गया हो, उतनी बार चांदी के दो-दो दाने अहोई में डालती जावें। ऐसा करने से अहोई माता प्रसन्न हो बच्चों की दीर्घायु करके घर में नित मंगल करती रहती हैं। इस दिन पंडितों को पेठा दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
अहोई का उजमन
जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो, उसे अहोई माता को उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूड़ियाँ रखकर उस पर थोड़ा-थोड़ा हलवा रखें। इसके साथ ही एक तीयल साड़ी-ब्लाऊज, उस पर सामर्थ्यानुसार रुपये रखकर थाली के चारों ओर हाथ फेरकर श्रद्धापूर्वक सासूजी के पाँव लग कर, वह सभी सामान सासू जी को दे देवें। तीयल तथा रुपये सासूजी अपने पास रख लें तथा हलवा-पूरी का बायना बांट दें। बहिन-बेटी के यहाँ भी बायना भेजना चाहिए।
अहोई अशोकाष्टमी का व्रत
यह व्रत प्रायः कार्तिक बदी अष्टमी को उसी वार को किया जाता है, जिस वार की दीपावली होती है। इस दिन स्त्रियों की आरोग्यता और दीर्घायु प्राप्ति के लिए अहोई माता का चित्र दीवार पर माँडकर पूजन किया जाता है।
विधि – अहोई का व्रत दिन भर किया जाता है। जिस समय तारा मण्डल आकाश में उदय हो जाए, उस समय वहाँ पर एक जल का लोटा रखकर चाँदी का स्याऊ और दो गुड़िया रखकर मौली नाल में पिरो लेवें, तत्पश्चात् रोली-चावल से अहोई माता के सहित स्याऊ माता का अरचे और सीरा आदि का भाग लगाकर अहोई अष्टमी व्रत कथा सुनें।
पहली अहोई अष्टमी की कथा – Ahoi Ashtami Vrat Katha
एक नगर में साहूकार रहा करता था। उसके सात लड़के थे। एक दिन उसकी स्त्री खदान में मिट्टी खोदने के लिए गई और ज्योंही उसने जाकर वहाँ कुदाली मारी, त्यों ही सेह के बच्चे कुदाल की चोट से सदा के लिए सो गये। इसके बाद उसने कुदाल को स्याहू के खून से सना देखा, तो उसे सेह के बच्चे मर जाने का बड़ा दुःख हुआ। परन्तु वह विवश थी, क्योंकि यह काम उससे अनजाने में हो गया था।
इसके बाद वह बिना मिट्टी लिये ही खेद करती हुई अपने घर आ गई और उधर जब सेह अपनी मांद में आई तो अपने बच्चों को मरा हुआ देख कर नाना प्रकार से विलाप करने लगी और ईश्वर से प्रार्थना की कि जिसने मेरे बच्चे को मारा है, उसे भी इसी प्रकार का कष्ट होना चाहिए। तत्पश्चात् सेह के श्राप से सेठानी के सातों लड़के एक ही साल के अन्दर समाप्त हो गये अर्थात् मर गये।
इस प्रकार अपने बच्चों को असमय काल के मुँह में समाये जाने पर सेठ-सेठानी इतने दुःखी हुए कि उन्होंने किसी तीर्थ यात्रा पर जाकर अपने प्राण गवां देना उचित समझा। इसके बाद वे घर छोड़कर पैदल ही किसी तीर्थ की ओर गये और खाने की ओर कोई ध्यान न देकर जब तक उनमें कुछ भी शक्ति और साहस रहा, जब तक वे चलते ही रहे और वे पूर्णतया अशक्त हो गये, अन्त में मूर्छित होकर गिर पड़े।
उनकी दशा देखकर भगवान करुणा सागर ने उनको मृत्यु से बचाने के लिए उनके पापों का अन्त किया और इसी अवसर में आकाशवाणी हुई कि “हे सेठ, तेरी सेठानी ने मिट्टी खोदते समय ध्यान न देकर सेह के बच्चों को मार दिया, इसके कारण तुम्हें अपने बच्चों का दुःख देखना पड़ा। यदि अब पुनः घर जाकर तुम मन लगाकर गऊ माता की सेवा करोगे और अहोई माता अजक्ता देवी का विधि-विधान से व्रत आरम्भ कर प्राणियों पर दया रखते हुए स्वप्न में भी किसी को कष्ट नहीं दोगे, तो तुम्हें भगवान की कृपा से पुनः सन्तान का सुख प्राप्त होगा।”
इस प्रकार आकाशवाणी सुनकर सेठ-सेठानी कुछ आशान्वित हो गए और भगवती देवी का स्मरण करते हुए घर को चले आये। इसके बाद श्रद्धा-भक्ति से न केवल अहोई माता के व्रत अपितु गौ माता की सेवा करना भी आरम्भ कर दिया तथा जीवों पर दया भाव रखते हुए क्रोध और द्वेष का सर्वथा परित्याग कर दिया।
ऐसे करने के पश्चात् भगवान की कृपा से वे सेठ-सेठानी सातों पुत्रों वाले होकर अगणित पौत्र सहित संसार में नाना प्रकार के सुखों को भोग कर स्वर्ग चले गए।
शिक्षा – बहुत सोच विचार के बाद भली प्रकार निरीक्षण करने पर ही कार्य आरम्भ करो और अनजाने में भी किसी प्राणी की हिंसा मत करो। गौ माता की सेवा के साथ साथ अहोई माता देवी भगवती की उपासना करो। ऐसा करने पर अवश्य सन्तान के सुख के साथ-साथ सम्पति सुख प्राप्त होगा।
दूसई होई माता की कहानी – Ahoi Ashtami Ki Kahani
एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे, सात बहुएँ थीं तथा एक बेटी थी। दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों इकलौती नन्द के साथ जंगल में खदान में मिट्टी खोद रही थीं।
वहीं स्याहू (सेई) की माँद थी। मिट्टी खोदते समय नन्द के हाथ से सेई का बच्चा मर गया। स्याहू माता बोली कि मैं तेरी कोख बांधूगी। तब नन्द अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुममें से मेरे बदले कोई अपने कोख बँधा लो। सब भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इन्कार कर दिया, परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैं कोख नहीं बंधवाऊंगी तो सासू जी नाराज होंगी। ऐसा विचार कर नन्द के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवा ली।
अहोई अष्टमी कि कथा (Ahoi Ashtami Ki Katha) के अनुसार इसके बाद जब उससे जो लड़का होता तो वह सातवें दिन मर जाता। एक दिन उसने पंडित को बुलवाकर पूछा, “मेरी सन्तान सातवें दिन क्यों मर जाती है?” तब पंडित ने कहा कि तुम सुरही गाय की पूजा करो। सुरही गाय स्याऊ माता की भायली है। वह तेरी कोख छोड़े तब तेरा बच्चा जियेगा।
इसके बाद से वह बहू प्रातः काल उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती। गौ माता बोली कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है। सो आज देखूंगी। गौ माता खूब तड़के उठी, क्या देखती है कि एक साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है। गौ माता उससे बोली, “क्या मांगती है?”
तब साहूकार की बहू बोली कि स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बाँध रखी है, सो मेरी कोख खुलवा दो। गौ माता ने कहा कि अच्छा! अब तो गौ माता समुन्द्र पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रास्ते में कड़ी धूप थी, सो वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गईं।
थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी (पक्षी) का बच्चा था। उसको डंसने लगा, तब साहूकार की बहू ने साँप को मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहाँ खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू के चोंच मारने लगी। तब साहूकारी बोली कि मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा बल्कि साँप तेरे बच्चे को डंसने को आया था, मैंने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरुड़ पंखनी बोली कि मांग, तू क्या मांगती है? वह बोली, “सात समुद्र पार स्याऊ माता रहती है। हमें तू उसके पास पहुंचा दे।”
तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को पीठ पर बिठाकर स्याऊ माता के पास पहुंचा दिया। स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली कि आ बहन, बहुत दिनों में आई! फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूं पड़ गई हैं। जब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने सलाई से उसकी जूयें निकाल दीं। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न हो बोली कि तूने सिर में बहूत सलाई गेरी हैं, इसलिए तेरे सात बेटे और बहू होंगी। वह बोलीं, “वचन दिया, वचन से फिरूं तो धोबी के कुण्ड पर कंकरी होऊं।”
तब साहूकार की बहू बोली, “कोख तो तुम्हारे पास बन्द पड़ी है।” यह सुन स्याऊ माता बोली कि तूने मुझे बहुत ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं, परन्तु अब खोलनी पड़ेगी। जा तेरे घर तुझे सात बेटे और सात बहुएँ मिलेंगी। तू जाकर उजमन करियो। सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई करियो।
वह लौट कर घर आई तो वहाँ देखा सात बेटे और सात बहुएँ बैठे हैं। वह खुशी हो गई। उसने सात अहोई बनाई, सात उजमन किए तथा सात कढ़ाई कीं। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस में कहने लगीं कि जल्दी-जल्दी धोक व पूजा कर लो, कहीं छोटी बच्चों की याद करके रोने लगे। थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा, “अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि आज वह अभी तक रोई क्यों नहीं?”
बच्चों ने जाकर कहा कि चाची तो कुछ माँड रही है, खूब उजमन हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियाँ दौड़ी-दौड़ी घर आईं और जाकर कहने लगीं कि तूने कोख कैसे छुड़ाई? वह बोली, तुमने तो कोख बंधाई नहीं, सो मैंने कोख बंधा ली थी। अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है। स्याऊ माता ने जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली, उसी प्रकार हमारी भी खोलियो। कहने वाले तथा सब परिवार की कोख खोलियो।
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