धर्म

गुरुवार प्रदोष व्रत कथा

गुरुवार प्रदोष व्रत कथा पढ़ने से सभी बाधाओं और शत्रुओं की समाप्ति होती है और जीवन में कार्यों की सिद्धि सरलता से होने लगती है। अन्य वारों के अनुसार प्रदोष व्रत कथाओं के लिए कृपया यहाँ जाएँ – प्रदोष व्रत कथा

शत्रु विनाशक भक्ति प्रिय, व्रत है यह अति श्रेष्ठ।
बार मास तिथि सब से भी, है यह व्रत अति जेष्ठ॥

गुरुवार प्रदोष व्रत कथा इस प्रकार है कि एक बार इन्द्र और वृत्रासुर में घनघोर युद्ध हुआ। उस समय देवताओं ने दैत्य सेना पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर दी। अपना विनाश देख वृत्रासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध के लिये उद्यत हुआ। मायावी असुर ने आसुरी माया से भयंकर विकराल रूप धारण किया।

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उसके स्वरूप को देख इन्द्रादिक सब देवताओं ने इन्द्र के परामर्श से परम गुरु बृहस्पति जी का आवाह्न किया, गुरु तत्काल आकर कहने लगे– हे देवेन्द्र! अब तुम वृत्रासर की कथा ध्यान मग्न होकर सुनो। वृत्रासुर प्रथम बड़ा तपस्वी कर्मनिष्ठ था, इसने गन्धमादन पर्वत पर उग्र तप करके शिवजी को प्रसन्न किया था। पूर्व समय में यह चित्ररथ नाम का राजा था, तुम्हारे समीपस्थ जो सुरम्य वन है वह इसी का राज्य था, अब साधु प्रवृत्ति विचारवान् महात्मा उस वन में आनन्द लेते हैं। भगवान के दर्शन की अनुपम भूमि है।

गुरु प्रदोष व्रत कथा के अनुसार एक समय चित्ररथ स्वेच्छा से कैलाश पर्वत पर चला गया। भगवान का स्वरूप और वाम अंग में जगदम्बा को विराजमान देख चित्ररथ हँसा और हाथ जोड़कर शिव-शंकर से बोला– हे प्रभो! हम माया मोहित हो विषयों में फँसे रहने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किन्तु देव लोक में ऐसा कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि कोई स्त्री सहित सभा में बैठे। चित्ररथ के ये वचन सुनकर सर्वव्यापी भगवान शिव हँसकर बोले कि हे राजन्! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है। फिर भी तुम साधारण जनों की भाँति मेरी हँसी उड़ाते हो।

तभी पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ की ओर देखती हुई कहने लगी–

ओ दुष्ट, तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरी हँसी उड़ाई है। तुझे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ेगा। उपस्थित सभासद महान विशुद्ध प्रकृति के शास्त्र तत्वान्वेषी हैं और सनक सनन्दन आदि हैं, ये सर्व अज्ञान के नष्ट हो जाने पर शिव भक्ति में तत्पर हैं। अरे मूर्खराज! तू अति चतुर है, अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के मजाक का दुःसाहस ही न करेगा।

अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, तुझे मैं शाप देती हूँ कि अभी पृथ्वी पर चला जा। जब जगदम्बा भवानी ने चित्ररथ को ये शाप दिया तो वह तत्क्षण विमान से गिरकर राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और प्रख्यात महासुर नाम से प्रसिद्ध हुआ। तवष्टा नामक ऋषि ने उसे श्रेष्ठ तप से उत्पन्न किया और अब वही वृत्रासुर शिव भक्ति में ब्रह्मचर्य से रहा।

देवगुरु बोले– हे इन्द्र, इस कारण तुम उसे जीत नहीं सकते, अतएव मेरे परामर्श से यह प्रदोष व्रत करो जिससे महाबलशाली दैत्य पर विजय प्राप्त कर सको। गुरुदेव के वचनों को सुनकर सब देवता प्रसन्न हुए और गुरुवार त्रयोदशी (प्रदोष) व्रत को विधि विधान से किया तथा गुरुवार प्रदोष व्रत कथा का पाठ किया।

दोस्तो, यह तो हमने जाना गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guruwar Pradosh Vrat Katha)। आइये अब जानते हैं इस व्रत को करने की विधि, महत्व, और उद्यापन विधि। त्रयोदशी तिथि में शाम के वक़्त को प्रदोष काल कहते हैं। इस दिन जो व्रत किया जाता है, उसे प्रदोष व्रत अथवा त्रयोदशी व्रत कहा जाता है। प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने में दो बार आता है, एक शुक्ल पक्ष में तथा एक कृष्ण पक्ष में। गुरुवार के दिन पर पड़ने वाले प्रदोष को गुरु प्रदोष कहते हैं। 

प्रदोष व्रत का महत्व – Importance of Guruwar Pradosh Vrat Katha

प्रदोष या त्रयोदशी व्रत भगवान शंकर को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने वाले जातक के सभी कष्ट और संकट दूर हो जाते हैं। इस दिन शाम के समय पूजा करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस समय शंकर जी कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं। देश के समस्त शिव मंदिरों में इस समय प्रदोष मंत्र का जाप होता है। प्रदोष व्रत करने वाले किसी भी व्यक्ति को भोलेनाथ की पूजा सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व से लेकर सूर्यास्त से 45 मिनट बाद तक करनी चाहिए। 

गुरु प्रदोष व्रत कथा के फायदे

  • जो भी जातक गुरु त्रयोदशी अर्थात गुरु प्रदोष व्रत को करता है। 
  • उसके जीवन में खुशहाली बनी रहती है एवं पापों का नाश होता है। 
  • सारे दुःख और दरिद्रता दूर होती हैं। 
  • व्रत करने वाले को सौ गौ दान का फल प्राप्त होता है। 
  • सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। 
  • सुहागिन नारियों का सुहाग अटल रहता है। 
  • बंदी कारागार से छूट जाता है। 
  • समस्त प्रकार के पापों का नाश होता है। 
  • इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में धन धान्य की कमी नहीं होती है। 
  • शिवजी की कृपा प्राप्त होती है। 
  • शत्रुओं का नाश होता है। 

गुरु प्रदोष व्रत की विधि 

गुरु प्रदोष के व्रत की विधि कुछ इस प्रकार है- व्रत करने वाले जातक को इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर शिव जी का पूजन करना चाहिए। दिन भर मानसिक रूप से “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते रहें। इस व्रत की पूजा का उचित समय शाम 4:30 बजे से शाम 7:00 बजे तक रहता है। 

पूजा से पहले आपको पुनः स्नान करना चाहिए और स्वच्छ एवं सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। पूजा के स्थान को भी स्वच्छ एवं शुद्ध कर लें। रंगोली से स्थान को सजाकर उसके ऊपर मंडप तैयार कर लें एवं पूजन की अन्य सामग्री एकत्र कर लें। 

अब एक कलश लेकर, उसमें शुद्ध जल भरकर रख दें। बैठने के लिए कुश के आसन का इस्तेमाल करें। अब मानसिक रूप से “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए शिवजी का विधि विधान से पूजन करें। तत्पश्चात कथा पढ़ें एवं आरती करके प्रसाद वितरण करें। 

व्रत की उद्यापन विधि 

स्कन्द पुराण के अनुसार व्रत की इच्छा रखने वाले को कम से कम 11 या 26 त्रयोदशी पर यह व्रत करके ही उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन की नियत तिथि के एक दिन पहले गणेश जी का विधि विधान से षोडशोपचार से पूजन करें। रात भर गणेश जी और शिवपार्वती का भजन एवं जागरण करें। 

उद्यापन वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के स्थान को साफ़ एवं स्वच्छ कर लें। रंगोली एवं रंगीन वस्त्रों के उपयोग से पूजा स्थल को सजाएँ एवं मंडप बनाएँ। मंडप में एक चौकी पर शिव-पार्वती की मूर्ति अथवा प्रतिमा स्थापित करें। तत्पश्चात् विधि विधान के साथ शिव जी एवं पार्वती माता की पूजा करें और भोग लगाएँ। गुरुवार प्रदोष व्रत कथा सुनें और सुनाएँ। 

अब हवन कुंड तैयार करें। उसके लिए सवा किलो आम की लकड़ी लेकर हवन कुंड पर लगाएँ। गाय के दूध की खीर बनाकर रखें। हवन कुंड का पूजन कर उन्हें प्रणाम कर अग्नि प्रज्वलित करें। तत्पश्चात ‘ॐ उमा सहित शिवाय नमः’, इस मंत्र का उच्चारण करते हुए 108 आहुति दें। हवन के बाद शिव जी की आरती करें। यथाशक्ति ब्राह्मणों को दान दें एवं भोजन कराएँ। इसके पश्चात प्रसाद वितरण करें। 

इस प्रकार विधि विधान से गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guruwar Pradosh Vrat Katha) करने से व्रत करने वाले को पुत्र-पौत्रादि एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है तथा समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और शिवलोक की प्राप्ति होती है। 

इस व्रत को करने एवं कथा को पढ़ने एवं सुनने वाले पर शिव जी सदा अपनी कृपा एवं आशीर्वाद बनायें रखें। 

वी होप गुरु प्रदोष व्रत कथा इन हिंदी वुड बी हेल्पफ़ुल फ़ॉर यू।

इसके पश्चात् सूत जी बोले, “मुनियो, अब मैं आपको शुक्र प्रदोष व्रत कथा सुनाता हूँ।”

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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