बुध प्रदोष व्रत कथा
बुध प्रदोष व्रत कथा का पाठ या श्रवण निश्चित तौर पर सभी कामनाओं की सिद्धि का सजह उपाय है। इस व्रत को करने से शिवजी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। अन्य वारों के अनुसार प्रदोष व्रत कथाओं के लिए कृपया यहाँ जाएँ – प्रदोष व्रत कथा।
- इस व्रत में दिन में केवल एक बार भोजन करना चाहिये।
- इसमें हरी वस्तुओं का प्रयोग किया जाना जरूरी है।
- यह व्रत शंकर भगवान का प्रिय व्रत है। शंकर जी की पूजा धूप, बेल पत्रादि से की जाती है तथा बुध प्रदोष व्रत कथा का पाठ किया जाता है।
बुधवार प्रदोष व्रत कथा बहुत प्राचीन काल की बात है। एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ था। वह गौने के बाद दूसरी बार पत्नी को लिवाने के लिए अपनी ससुराल पहुँचा और उसने सास से कहा कि बुधवार के दिन ही पत्नी को लेकर अपने नगर जायेगा। उस पुरुष के सास-ससुर ने और साले सालियों ने उसको समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है, लेकिन वह पुरुष अपनी ज़िद से टस-से-मस नहीं हुआ। विवश होकर सास-ससुर को अपने जमाता और पुत्री को भारी मन से विदा करना पड़ा।
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पति-पत्नी बैलगाड़ी में चले जा रहे थे। एक नगर के बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पत्नी के लिए पानी लेने गया। जब वह पानी लेकर लौटा तो उसके क्रोध और आश्चर्य की सीमा न रही, क्योंकि उसकी पत्नी किसी अन्य पुरुष के लाये लोटे में से पानी पीकर हँस-हँसकर बतिया रही थी। क्रोध में आग-बबूला होकर वह उस आदमी से झगड़ा करने लगा। मगर यह देखकर उसके आश्चर्य की सीमा न रही कि उस पुरुष की शक्ल उस आदमी से हूबहू मिलती थी।
हमशक्ल आदमियों को झगड़ते हुए जब काफी देर हो गई तो वहाँ आने जाने वालों की भीड़ एकत्र हो गई। सिपाही भी आ गया। सिपाही ने स्त्री से पूछा कि इन दोनों में से कौन-सा आदमी तेरा पति है, तो वह बेचारी असमंजस में पड़ गई, क्योंकि दोनों की शक्ल एक-दूसरे से बिल्कुल मिलती थी। बीच राह में अपनी पत्नी को इस तरह लुटा देखकर उस पुरुष की आँख भर आई। बुध प्रदोष व्रत कथा के अनुसार इसके पश्चात वह शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा, कि हे भगवान आप मेरी और मेरी पत्नी की रक्षा करो। मुझसे बड़ी भूल हुई जो मैं बुधवार को पत्नी को विदा करा लाया। भविष्य में ऐसा अपराध कदापि नहीं करूंगा।
उसकी वह प्रार्थना जैसे ही पूरी हुई कि दूसरा पुरुष अर्न्तध्यान हो गया और वह पुरुष सकुशल अपनी पत्नी के साथ अपने घर पहुँच गया। उस दिन के बाद पति-पत्नी नियमपूर्वक यह उपवास रखने लगे और बुध प्रदोष व्रत कथा का पाठ करने लगे।
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इसके पश्चात सूत जी ने बृहस्पति प्रदोष व्रत कथा सुनाना शुरू की।