धर्म

द्वारकाधीश की आरती – Dwarkadhish Ki Aarti

द्वारकाधीश की आरती (Dwarkadhish Ki Aarti) द्वारका के स्वामी भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। जो भी भक्तिभाव से भगवान द्वारकाधीश का स्मरण करता है और द्वारकाधीश की आरती गाता है भगवान उसकी उसी तरह रक्षा करते हैं जैसे उन्होंने गजेन्द्र, अजामिल और द्रौपदी की रक्षा की थी। महाभारत महाकाव्य के अन्तर्गत गीता में भगवान वासुदेव कहते हैं कि अपने भक्तों के योग और क्षेम की देखभाल मैं स्वयं करता हूँ। अतः कृष्ण-चरणानुरागी को न इहलोक में कोई कष्ट होता है और न ही परलोक में। आवश्यकता है तो बस हृदय को श्री कृष्ण माधुर्य रस से ओतप्रोत करने की। पढ़ें द्वारकाधीश की आरती जो हृदय में भक्तिभाव का विकास करती है–

जय द्वारकाधीश
जय द्वारकाधीश
जय द्वारकाधीश
जय द्वारकाधीश
जय जय द्वारकाधीश
जय द्वारकाधीश,
जय जय द्वारकाधीश
इनकी भक्ति करो भाव
से इन्हे झुकाओ शीश
जय द्वारकाधीश
जय जय द्वारकाधीश

एक समय जब पापी कंस ने
परजा पे अत्याचार किया
तभी कृष्ण ने कारागृह में
आधी रात अवतार लिया
बंदी गृह के ताले टूटे
माया अप्रम पर
लिए शीश पे वासुदेव
लो चलो रे जमुना पर
हुई ध्वंस वो चल कंस की
हुई ध्वंस वो चल कंस की
साक्षील है जगदीश
जय द्वारकाधीश
जय जय द्वारकाधीश

विफल हो गयी चल
गोकुल के सब ग्वाल बाल संग
खेल रहे गोपाल
माँ की ओखली से बांध गए
जब नन्हे कृष्ण मुरार
उसी ओखली से किया लो
यमलार्जुन उधर
नाग कालिया बड़ा दुष्ट था
जहरीली उसकी फुंकार
उसके फैन को नाथ के
पर्भु में किया जनता उधार
मुरली बजाये हे मन मोहन
मुरली बजाये हे मन मोहन
खड़े नाग के शीश
जय द्वारकाधीश
जय जय द्वारकाधीश

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एक दिन कार्ल अस्नान करने गोपियाँ
गयीं जमुना तीर
होक नगण उतर गयी जल में
तट पे रख दिए वस्त्र
नटखट छलिए ने क्या सूझा
करके चीर हरण छुप गए लाल
हाथ जोड़ कर खड़ी गोपियाँ
समझाए उनको गोपाल
गोवर्धन पर्वत को उठाया
दे उंगली की तेज
सबकी डूबने से रक्षा की
सबकी राखी तक
ग्वाल गोपिया गावुये देती
ग्वाल गोपिया गावुये देती
कहने को आशीष
जय द्वारकाधीश
जय जय द्वारकाधीश

दुष्ट कंस की बरी आयी
जिसने अत्याचार किया
जिसने अत्याचार किया
चल चाली गोपाल ने ऐसी
कंस का झट संघार किया
कंस का झट संघार किया
उसकी छाती पर चढ़ बैठे
उसकी छाती पर चढ़ बैठे
जगत पति जगदीश
जय द्वारकाधीश
जय जय द्वारकाधीश
जय द्वारकाधीश
जय जय द्वारकाधीश

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर द्वारकाधीश की आरती (Dwarkadhish Ki Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें द्वारकाधीश की आरती रोमन में–

Dwarkadhish Ki Aarti

jaya dvārakādhīśa
jaya dvārakādhīśa
jaya dvārakādhīśa
jaya dvārakādhīśa
jaya jaya dvārakādhīśa
jaya dvārakādhīśa,
jaya jaya dvārakādhīśa
inakī bhakti karo bhāva
se inhe jhukāo śīśa
jaya dvārakādhīśa
jaya jaya dvārakādhīśa

eka samaya jaba pāpī kaṃsa ne
parajā pe atyācāra kiyā
tabhī kṛṣṇa ne kārāgṛha meṃ
ādhī rāta avatāra liyā
baṃdī gṛha ke tāle ṭūṭe
māyā aprama para
lie śīśa pe vāsudeva
lo calo re jamunā para
huī dhvaṃsa vo cala kaṃsa kī
huī dhvaṃsa vo cala kaṃsa kī
sākṣīla hai jagadīśa
jaya dvārakādhīśa
jaya jaya dvārakādhīśa

apane cāla se marī putanā
viphala ho gayī cala
gokula ke saba gvāla bāla saṃga
khela rahe gopāla
mā~ kī okhalī se bāṃdha gae
jaba nanhe kṛṣṇa murāra
usī okhalī se kiyā lo
yamalārjuna udhara
nāga kāliyā baड़ā duṣṭa thā
jaharīlī usakī phuṃkāra
usake phaina ko nātha ke
parbhu meṃ kiyā janatā udhāra
muralī bajāye he mana mohana
muralī bajāye he mana mohana
khaड़e nāga ke śīśa
jaya dvārakādhīśa
jaya jaya dvārakādhīśa

eka dina kārla asnāna karane gopiyā~
gayīṃ jamunā tīra
hoka nagaṇa utara gayī jala meṃ
taṭa pe rakha die vastra
naṭakhaṭa chalie ne kyā sūjhā
karake cīra haraṇa chupa gae lāla
hātha joड़ kara khaड़ī gopiyā~
samajhāe unako gopāla
govardhana parvata ko uṭhāyā
de uṃgalī kī teja
sabakī ḍūbane se rakṣā kī
sabakī rākhī taka
gvāla gopiyā gāvuye detī
gvāla gopiyā gāvuye detī
kahane ko āśīṣa
jaya dvārakādhīśa
jaya jaya dvārakādhīśa

duṣṭa kaṃsa kī barī āyī
jisane atyācāra kiyā
jisane atyācāra kiyā
cala cālī gopāla ne aisī
kaṃsa kā jhaṭa saṃghāra kiyā
kaṃsa kā jhaṭa saṃghāra kiyā
usakī chātī para caढ़ baiṭhe
usakī chātī para caढ़ baiṭhe
jagata pati jagadīśa
jaya dvārakādhīśa
jaya jaya dvārakādhīśa
jaya dvārakādhīśa
jaya jaya dvārakādhīśa

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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