धर्म

कर्ण की कहानी – Karn Ki Kahani Lyrics in Hindi

“कर्ण की कहानी” के बोल अर्थात् लिरिक्स पढ़ें हिंदी में। इस कविता में महाभारत के दानवीर योद्धा कर्ण की कथा को बताया गया है, इस कविता के रचयिता अभी मुंडे है। पढ़ें यह अद्धभुत महाभारत कविता हिंदी मे-

पांडवो को तुम रखो, मै कौरवो की भीड से
तिलक शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मै
सूरज का अंश हो के फिर भी हुँ अछूत मै
आर्यव्रत को जीत ले ऐसा हुँ सूत पूत मै

कुंती पुत्र हुँ मगर न हुँ उसी को प्रिय मै
इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हुँ क्षत्रिय मै
आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये
भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे

बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे
काबिल दिखाया बस लोगो को ऊँची गोत्र के
सोने को पिघला कर डाला शोन तेरे कंठ में
नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने

यही था गुनाह तेरा,तु सारथी का अंश था
तो क्यो छिपे मेरे पीछे ,मै भी उसी का वंश था
ऊँच नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था
वीरो की उसकी सूची में,अर्जुन के सिवा कौन था

माना था माधव को वीर,तो क्यो डरा एकलव्य से
माँग के अंगूठा क्यों जताया पार्थ भव्य है
रथ पे सजाया जिसने क्रष्ण हनुमान को
योद्धाओ के युद्ध में लडाया भगवान को

नन्दलाल तेरी ढाल पीछे अंजनेय थे
नीयती कठोर थी जो दोनो वंदनीय थे
ऊँचे ऊँचे लोगो में मै ठहरा छोटी जात का
खुद से ही अंजान मै ना घर का ना घाट का

सोने सा था तन मेरा,अभेद्य मेरा अंग था
कर्ण का कुंडल चमका लाल नीले रंग का
इतिहास साक्ष्य है योद्धा मै निपूण था
बस एक मजबूरी थी,मै वचनो का शौकीन था

अगर ना दिया होता वचन,वो मैने कुंती माता को
पांडवो के खून से,मै धोता अपने हाथ को
साम दाम दंड भेद सूत्र मेरे नाम का
गंगा माँ का लाडला मै खामखां बदनाम था

कौरवो से हो के भी कोई कर्ण को ना भूलेगा
जाना जिसने मेरा दुख वो कर्ण कर्ण बोलेगा
भास्कर पिता मेरे ,हर किरण मेरा स्वर्ण है
वन में अशोक मै,तु तो खाली पर्ण है

कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में,मेरा भी लहू जीर्ण है
देख छानके उस मिट्टी को कण कण में कर्ण है

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर कर्ण की कहानी (Kahani Karn Ki) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें कहानी कर्ण की (Mahabharata Poem) रोमन में–

Karn Ki Kahani Lyrics

pāṃḍavo ko tuma rakho, mai kauravo kī bhīḍa se
tilaka śikasta ke bīca meṃ jo ṭūṭe nā vo rīḍa़ mai
sūraja kā aṃśa ho ke phira bhī hu~ achūta mai
āryavrata ko jīta le aisā hu~ sūta pūta mai

kuṃtī putra hu~ magara na hu~ usī ko priya mai
iṃdra māṃge bhīkha jisase aisā hu~ kṣatriya mai
āo maiṃ batāū~ mahābhārata ke sāre pātra ye
bhole kī sārī līlā thī kiśana ke hātha sūtra the

balaśālī batāyā jise sāre rājaputra the
kābila dikhāyā basa logo ko ū~cī gotra ke
sone ko pighalā kara ḍālā śona tere kaṃṭha meṃ
nīcī jātī ho ke kiyā veda kā paṭhaṃtu ne

yahī thā gunāha terā,tu sārathī kā aṃśa thā
to kyo chipe mere pīche ,mai bhī usī kā vaṃśa thā
ū~ca nīca kī ye jaḍa़ vo ahaṃkārī droṇa thā
vīro kī usakī sūcī meṃ,arjuna ke sivā kauna thā

mānā thā mādhava ko vīra,to kyo ḍarā ekalavya se
mā~ga ke aṃgūṭhā kyoṃ jatāyā pārtha bhavya hai
ratha pe sajāyā jisane kraṣṇa hanumāna ko
yoddhāo ke yuddha meṃ laḍāyā bhagavāna ko

nandalāla terī ḍhāla pīche aṃjaneya the
nīyatī kaṭhora thī jo dono vaṃdanīya the
ū~ce ū~ce logo meṃ mai ṭhaharā choṭī jāta kā
khuda se hī aṃjāna mai nā ghara kā nā ghāṭa kā

sone sā thā tana merā,abhedya merā aṃga thā
karṇa kā kuṃḍala camakā lāla nīle raṃga kā
itihāsa sākṣya hai yoddhā mai nipūṇa thā
basa eka majabūrī thī,mai vacano kā śaukīna thā

agara nā diyā hotā vacana,vo maine kuṃtī mātā ko
pāṃḍavo ke khūna se,mai dhotā apane hātha ko
sāma dāma daṃḍa bheda sūtra mere nāma kā
gaṃgā mā~ kā lāḍalā mai khāmakhāṃ badanāma thā

kauravo se ho ke bhī koī karṇa ko nā bhūlegā
jānā jisane merā dukha vo karṇa karṇa bolegā
bhāskara pitā mere ,hara kiraṇa merā svarṇa hai
vana meṃ aśoka mai,tu to khālī parṇa hai

kurukṣetra kī usa miṭṭī meṃ,merā bhī lahū jīrṇa hai
dekha chānake usa miṭṭī ko kaṇa kaṇa meṃ karṇa hai

https://www.youtube.com/watch?v=PJ7WC3arEHI

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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