धर्म

कैला देवी मंदिर – जानें केला माता का कृष्ण से संबंध

कैला देवी मंदिर राजस्थान राज्य का सुप्रसिद्ध मंदिर है। यह हिंदुओं का धार्मिक मंदिर है। भारतवर्ष के मुख्य शक्तिपीठों में इसकी गिनती की जाती है। इस मंदिर के चमत्कारों, इतिहास, और रहस्यों की अलग ही कथाएं प्रचलित है। वर्ष के बारह महीने ही यहाँ भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। परन्तु चैत्र मास के नवरात्रों में यहां एक विशाल जन सैलाब उमड़ पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में कैला देवी के दर्शन करने आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता।

भारत में कैला देवी के 2 बड़े मंदिर हैं। उनमें से राजस्थान स्थित यह मंदिर अधिक ख्याति प्राप्त किये हुए  है। यह मंदिर उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। कैला देवी का इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है। यह मंदिर कैला माता को समर्पित हैं, जिनका सम्बन्ध भगवान कृष्ण से बताया जाता है। तो इस ब्लॉग के माध्यम से जानते हैं, कैला माता का श्री कृष्ण से क्या सम्बन्ध है और उसके पीछे की कहानी। साथ ही हम इस मंदिर से जुड़े अन्य तथ्यों से भी आपको अवगत कराएंगे।

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कैला देवी मंदिर की भौगोलिक स्थिति (Geographical Location of Kaila Devi Temple)

केला देवी का मंदिर राजस्थान राज्य के करौली जिला मुख्यालय के अंतर्गत आता है। करौली से दक्षिण दिशा की ओर 24 किलोमीटर दूर कैला ग्राम में यह मंदिर स्थित है। कैला ग्राम उत्तर पूर्वी राजस्थान में चम्बल नदी के बीहड़ों में बसा हुआ है। यह मंदिर त्रिकूट पर्वत शृंखला पर स्थित है। 

केला देवी कथा (Whole Story of Goddess Kaila)

कैला माता को माँ दुर्गा का ही स्वरूप माना जाता है। पूरे राजस्थान में यही एक ऐसा मंदिर है, जहाँ पशुओं की बलि नहीं दी जाती है। आइए, जानते हैं कैला देवी का इतिहास विस्तार से–

कैला देवी के बारे में यह पौराणिक कथा प्रचलित है कि: एक बार त्रिकूट पर्वत के घने जंगलों में नरकासुर नामक राक्षस का आतंक फैला हुआ था। राक्षस के आतंक से सामान्य जनजीवन को बचाने के लिए केदारगिरी नाम के साधु ने माँ दुर्गा की तपस्या की। देवी ने केदारगिरी की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा। तब उन्होंने माता से दुष्ट नरकासुर राक्षस से सभी को मुक्ति दिलाने की याचना की। तत्पश्चात माँ ने कैला देवी के रूप में अवतार लेकर उस राक्षस का वध कर दिया। आज भी कैला देवी मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर कालीसिल नदी के तट पर माता के पदचिन्ह विराजमान हैं। 

कैला देवी का भगवान कृष्ण से सम्बन्ध (Relationship of Kaila Devi With Lord Shri Krishna)

कैला देवी का इतिहास व पौराणिक कथाएँ बताती हैं कि केला देवी को यदुवंशी भगवान श्री कृष्ण की बहन कहा जाता है। जब नारद मुनि ने भविष्यवाणी की थी कि देवकी की आठवीं संतान ही कंस की मृत्यु का कारण बनेगी, तो भयवश कंस ने अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव जी को बंदी बना लिया था। तत्पश्चात वह देवकी के सभी संतानों को एक के बाद एक मारता ही जा रहा था।  

जब भगवान श्री हरी विष्णु ने श्री कृष्ण के अवतार में देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया, उसी वक़्त गोकुल में नन्द बाबा और यशोदा के घर बेटी ने जन्म लिया था। यह विधि का विधान था कि वसुदेव जी कृष्ण को गोकुल में छोड़कर यशोदा माँ की बेटी को मथुरा ले आये थे। यह बेटी कोई और नहीं, बल्कि देवी योगमाया थीं। 

जब कंस योगमाया को मारने लगा तो वे छुटक कर आकाश में चली गईं। भागवत कथा के अनुसार वो विंध्य पर्वत पर विंध्यवासिनी के रूप में निवास करने लगीं। बल्कि यहाँ के लोगों का मानना है कि कंस के हाथ से छूटकर वो देवी राजस्थान के त्रिकूट पर्वत पर कैला देवी के रूप में विराजमान हो गईं। लोग उन्हें यदुवंशी मानकर और कृष्ण की बहन के रूप में पूजते हैं। 

मंदिर का निर्माण एवं वास्तुकला (Construction and Architecture of Temple)

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण मध्यकाल में राजा भोमपाल ने करवाया था। राजा भोमपाल जो की त्रिकूट पर्वत पर रहते थे, ने कैला देवी मंदिर का निर्माण 1600 ईसवी में करवाया था। 

मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है। राजस्थान के करौली ज़िले में ही भारी मात्रा में पाए जाने वाले लाल पत्थर का इस्तेमाल मंदिर बनाने में किया गया है। लाल रंग से निर्मित होने के कारण यह मंदिर हलके लाल रंग का दिखाई देता है। रात में लाइटिंग की वजह से मंदिर का दृश्य और भी लुभावना होता है।

गर्भगृह में बाईं तरफ कैला माता और दाईं तरफ चामुंडा देवी की मूर्ति विराजमान है। दोनों मूर्तियां सोने की छत्र के नीचे स्थापित हैं। 

माँ की मूर्ति का मुख टेढ़ा होने का रहस्य (The Secret of Crooked Face of Devi)

जैसा कि हमने बताया की मंदिर में मुख्य दो मूर्तियां मौजूद हैं। उनमें से कैला देवी का मुँह हल्का सा तिरछा है। उनके टेढ़े मुँह का यह प्रचलित रहस्य है कि–

एक बार माता का एक परम भक्त देवी के दर्शन के लिए आया था। वापस जाते समय उसने माँ से वादा किया था कि वो जल्द ही देवी के दर्शन करने फिर से ज़रूर आएगा। 

किसी ना किसी वजह से वह भक्त माता के दर्शन के लिए दोबारा नहीं आ सका। ऐसा माना जाता है कि उस भक्त के इंतज़ार में ही माँ का मुख आज भी टेढ़ा है। उनका तिरछा मुँह इस बात का सूचक है कि माता अपने उसी भक्त के वापस आने का इंतज़ार कर रहीं हैं। 

चमत्कारिक है कालीसिल नदी (Miraculous Kalisil River)

देवी के मंदिर के पास से ही कालीसिल नदी बह रही है। यह नदी अपने चमत्कारों के लिए विश्व भर में ख्याति प्राप्त किये हुए है। मान्यता अनुसार जो भी भक्त कैला देवी मंदिर के दर्शन करने आता है, वह सबसे पहले कालीसिल नदी में स्नान करके शुद्ध होता है, तभी मंदिर में प्रवेश करता है। ऐसा करने से ही उसका दर्शन पूर्ण माना जाता है। 

बच्चों का मुंडन संस्कार करवाने की परंपरा (Tradition of Mundan Ritual of Children)

कैला देवी यादव वंश की कुलदेवी मानी जाती हैं। यहां के लोग इस मंदिर में अपने बच्चों का पहला मुंडन संस्कार करवाने आते हैं। यह उनके लिए शुभता का प्रतीक होता है। 

त्यौहार और मेले (Festivals and Fairs)

कैला देवी मंदिर समिति की ओर से प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की नवरात्रि की अष्टमी को मेला लगाया जाता है। इस मेले को लक्खी मेला बोला जाता है। मेले का आयोजन 15 दिनों के लिए किया जाता है। 

इस समय लाखों की संख्या में भक्तगण माता के दर्शन करने और मेले का आनंद उठाने आते हैं। राजस्थान समेत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी लोग मेले और माता के दर्शन करने आते हैं। 

कहते हैं कि जो भी भक्त यहाँ पर आता है, वह समीप में स्थित कालीसिल नदी में स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहन कर, देवी के दर्शन करके ही मेले का लुत्फ़ उठाता है। 

दूर-दूर से लोग अपनी मन्नतें लेकर मेले में आते हैं। लोग अपने बच्चों का मुंडन करवाने भी यहाँ पर आते हैं। इस मेले में मीणा और गुर्जर जाति के लोग लांगुरिया/ घुटकन नृत्य करते हैं। लोकगीत का आयोजन होता है। राजस्थान की ऐतिहासिक चीज़ों की बिक्री इस मेले में होती है और कई तरह के स्टॉल लोगों के द्वारा लगाए जाते हैं। 

कैसे पहुंचे कैला देवी मंदिर (How to Reach Kaila Devi Temple)

कैला देवी मंदिर तक पहुँचने के लिए आप अपनी आवश्यकता अनुसार हवाई, रेल, या सड़क मार्ग का चयन कर सकते हैं।  

हवाई मार्ग से मंदिर पहुँचने के लिए आप नज़दीकी हवाई अड्डा जयपुर तक आ सकते हैं। ये देश के सभी बड़े हवाई अड्डों से कनेक्ट होता है। इस एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी लगभग 165 किलोमीटर है, जिसे तय करने के लिए आप बस, टैक्सी, या कैब का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

अगर आप ट्रैन के सफर का लुत्फ़ उठाते हुए मंदिर पहुँचना चाहते हैं तो वहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन नारायणपुर तटवारा है। कथित रेलवे स्टेशन की मंदिर से दूरी लगभग 37 किलोमीटर की है। स्टेशन से मंदिर पहुँचने के लिए आपको बस, कैब, या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाएगी। 

वहीं अगर आप बस से मंदिर पहुँचने की फ़िराक में हैं तो कैला देवी मंदिर के मोड़ पर ही नज़दीकी बस स्टैंड स्थित है। आप वहाँ से पद यात्रा करके ही मंदिर पहुंच सकते हैं। 

दर्शन एवं आरती का समय (Darshan and Aarti Timings)

माता के भक्तों के लिए यह मंदिर प्रातः 4 बजे से रात के 9 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में केला मैया की आरती का समय इस प्रकार से है:

  • प्रातः आरती- सुबह 7 बजे 
  • दोपहर आरती- 12 बजे 
  • सर्दी सायं आरती- शाम 6 बजे 
  • गर्मी सायं आरती- शाम 7 बजे 
  • सर्दी शयन आरती- रात 8 बजे 
  • गर्मी शयन आरती- रात 9 बजे 

कैला देवी मंदिर के दर्शन का उचित समय (Best Time to Visit Kaila Devi Temple)

वैसे तो माता के दर्शन के लिए उचित और अनुचित नहीं होता है। जब भी माँ अपने भक्तों को पुकारती हैं, भक्त खुद ब खुद उनके दर्शन को चले जाते हैं। परन्तु अगर आप राजस्थान के करौली ज़िले में स्थित कैला देवी मंदिर के दर्शन की बात करें, तो इसके लिए अक्टूबर महीने से मार्च तक का समय उचित माना जाता है। क्यूँकि बाकी के समय में यहाँ भीषण गर्मी होती है, जन जीवन का बुरा हाल हो जाता है। अक्टूबर से मार्च महीने के बीच यहाँ का वातावरण और मौसम अत्यंत सुहावना होता है। 

शक्ति के सभी उपासकों को एक बार इस मंदिर में जाकर चमत्कारों और प्रकृति के अनुपम दृश्यों का आनंद ज़रूर उठाना चाहिए। जय कैला माता!

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निष्ठा राय

निष्ठा राय ने राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भोपाल से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की है। कॉन्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत निष्ठा लेखन में दिलचस्पी रखती हैं। वे हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं में समान रूप से निपुण हैं। टीम हिंदीपथ से जुड़कर वे उसमें सामग्री के चयन से लेकर उसकी गुणवत्ता आदि तमाम प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई हैं। निष्ठा कार्य के सभी पहलुओं में लगातार सहयोग करती हैं और नया सीखने को तत्पर रहती हैं।

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