प्रातः स्मरण श्लोक – Pratah Smaran Shlok
प्रातः स्मरण श्लोक जो व्यक्ति नित्य प्रातःकाल पढ़ता या कहता है उसका दिन सुखपूर्वक व्यतीत होता है। कहते हैं कि श्रद्धापूर्वक प्रातः स्मरण श्लोक पाठ करता है उसे पूरे दिन किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता है। साथ ही रात्रि में वह दुःस्वप्नों से भी रक्षित होता है। यहाँ इन श्लोकों का हिंदी अर्थ भी दिया जा रहा है ताकि आपको इस स्तोत्र का संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके। अपनी संस्कृति और धर्म से जीवन को संस्कारित करने के लिए प्रातः स्मरण श्लोक अवश्य प्रभात-काल में स्मरण में लाने चाहिए या इनका उच्चारण करना चाहिए। पढ़ें प्रातः स्मरण श्लोक हिंदी अर्थ सहित–
श्री गणपति
प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड
माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्॥
स्वामिहीन के बंधु, सिंदूर से शोभित दोनों गण्डस्थल वाले, शक्तिशाली बाधाओं का विनाश करने में सक्षम व इंद्र आदि देवों से नमस्कृत श्री गणेश जी का मैं प्रातःकाल ध्यान करता हूँ।
श्री नारायण
प्रातः स्मरामि भवभीति महार्तिनाशम्
नारायणं गरूडवाहनमब्जनाभम्।
ग्राहाभिभूत वरवारणमुक्तिहेतुं
चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम्॥
विश्व के भय रूपधारी विशाल दुःख को विनष्ट करने में सक्षम, ग्राह से गज-राज को छुड़ाने वाले, चक्र को धारण किए हुए और नव कमल दल की तरह नयनों वाले, पद्म रूपी नाभि वाले, गरुड़ वाहन से सज्जित भगवान श्री नारायण का मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।
श्री शिव
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥
भव-भय को दूर करने वाले, देवताओं के स्वामी, गंगा को धारण करने वाले, वृषभ वाहन पर सवार, पार्वती-पति, हस्त में खटवांग व त्रिशूल धारण किए हुए एवं संसार-रोग का विनाश करने के लिये अद्वितीय औषधि स्वरूप, भय से परे और वरद मुद्रा वाले भगवान शिव का मैं प्रातः स्मरण करता हूँ।
देवी दुर्गा
प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां
सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम्।
दिव्या युधोर्जित सुनील सहस्त्रहस्तां
रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम्॥
शरद के चन्द्र की तरह उज्जवल आभा युक्त, श्रेष्ठ रत्नों से मंडित मकर कुण्डलों व हारों से शोभित, दैवीय आयुधों से दीप्त सुंदर नीले सहस्रों हाथों से युक्त, लाल कमल की आभा से परिपूर्ण चरणों वाली भगवती दुर्गा देवी का मैं प्रातः के समय स्मरण करता हूँ।
भगवान सूर्य
प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं
रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि।
सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं,
ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिमत्यरूपम्॥
भगवान भास्कर का वह श्रेष्ठ स्वरूप जिसका मंडल ऋग्वेद, कलेवर यजुर्वेद और किरणें सामवेद हैं, जो ब्रह्माण्ड आदि के मूल हैं, चतुर्मुखी ब्रह्मा जी और शंकर जी के स्वरूप हैं व जिनका रूप चिंतन से परे व अलक्ष्य है, प्रातः मैं उनका स्मरण करता हूँ।
त्रिदेव व नवग्रह
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शिव जी, सूर्य देव, चन्द्र, पृथ्वीपुत्र मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनिश्चर, राहु और केतु–ये सभी देवता मेरे प्रातः के समय को मंगल बनाएँ।
ऋषि-गण
भृगुर्वसिष्ठः क्रतुरंगिराश्च
मनु: पुलस्त्य: पुलहश्च गौतमः।
रैभ्यो मरीचिश्च्यवनश्च दक्षः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
महर्षि भृगु, वसिष्ठ, क्रतु, अंगिरा, मनु, पुलस्त्य, पुलह, गौतम, रैभ्य, मरीचि, च्यवन व दक्ष–ये सभी ऋषि मेरे प्रातः के समय को मंगल बनाएँ।
सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः
सनातनोऽप्यासुरिपिंगलौ च।
सप्त स्वराः सप्त रसातलानि
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मानस-पुत्र सनत्कुमार, सनक, सनन्दन, सनातन; कपिल के शिष्य आसुरि एवं छंद-शास्त्र के ज्ञाता पिंगल–ये सभी ऋषि व साथ ही नाद-ब्रह्म के विवर्तरूप सात स्वर और भूमि के नीचे स्थित सप्त रसातल मेरे प्रातः के समय को मंगल बनाएँ।
सप्तार्णवाः सप्त कुलाचलाश्च
सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त।
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
सातों सागर, सातों पर्वत, सातों ऋषि, सातों द्वीप, सभी सातों वन, पृथ्वी आदि सातों लोक–ये सभी मेरे प्रातः के समय को मंगल बनाएँ।
प्रकृति
पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः
स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेजः।
नभ: सशब्दं महता सहैव
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
गन्धपूर्ण पृथ्वी, रसपूर्ण जल, स्पर्श गुण वाली वायु, प्रज्वलित अग्नि, शब्द के साथ आकाश और महत् तत्त्व–ये सभी मेरे प्रभात को मंगलमय बनाएँ।
इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेत्
स्मरेद्वा शृणुयाच्च भक्त्या।
दुःस्वप्ननाशस्त्विह सुप्रभातं
भवेच्च नित्यं भगवत्प्रसादात्॥
इस तरह इन प्रातः स्मरण करने योग्य परम पवित्र श्लोकों का जो व्यक्ति श्रद्धा से प्रभाव वेला में पाठ करता है, याद करता है या श्रवण करता है, भगवान की कृपा से उसके दुःस्वप्न नष्ट हो जाते हैं व उसका प्रातः का समय मंगल से परिपूर्ण होता है।
॥ प्रातः स्मरण श्लोक पूर्ण हुए ॥
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर प्रातः स्मरण श्लोक (Pratah Smaran Shlok) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह प्रातः स्मरण श्लोक रोमन में–
Read Pratah Smaran Shlok
śrī gaṇapati
prātaḥ smarāmi gaṇanāthamanāthabandhuṃ
sindūrapūrapariśobhitagaṇḍayugmam।
uddaṇḍavighnaparikhaṇḍanacaṇḍadaṇḍa
mākhaṇḍalādisuranāyakavṛndavandyam॥
śrī nārāyaṇa
prātaḥ smarāmi bhavabhīti mahārtināśam
nārāyaṇaṃ garūḍavāhanamabjanābham।
grāhābhibhūta varavāraṇamuktihetuṃ
cakrāyudhaṃ taruṇavārijapatranetram॥
śrī śiva
prātaḥ smarāmi bhavabhītiharaṃ sureśaṃ
gaṅgādharaṃ vṛṣabhavāhanamambikeśam।
khaṭvāṅgaśūlavaradābhayahastamīśaṃ
saṃsārarogaharamauṣadhamadvitīyam॥
devī durgā
prātaḥ smarāmi śaradindukarojjvalābhāṃ
sadratnavanmakarakuṇḍalahārabhūṣām।
divyā yudhorjita sunīla sahastrahastāṃ
raktotpalābhacaraṇāṃ bhavatīṃ pareśām॥
bhagavāna sūrya
prātaḥ smarāmi khalu tatsaviturvareṇyaṃ
rūpaṃ hi maṇḍalamṛco’tha tanuryajūṃṣi।
sāmāni yasya kiraṇāḥ prabhavādihetuṃ,
brahmāharātmakamalakṣyamacimatyarūpam॥
trideva va navagraha
brahmā murāristripurāntakārī
bhānu: śaśī bhūmisuto budhaśca।
guruśca śukra: śanirāhuketavaḥ
kurvantu sarve mama suprabhātam॥
ṛṣi-gaṇa
bhṛgurvasiṣṭhaḥ kraturaṃgirāśca
manu: pulastya: pulahaśca gautamaḥ।
raibhyo marīciścyavanaśca dakṣaḥ
kurvantu sarve mama suprabhātam॥
sanatkumāraḥ sanakaḥ sanandanaḥ
sanātano’pyāsuripiṃgalau ca।
sapta svarāḥ sapta rasātalāni
kurvantu sarve mama suprabhātam॥
saptārṇavāḥ sapta kulācalāśca
saptarṣayo dvīpavanāni sapta।
bhūrādikṛtvā bhuvanāni sapta
kurvantu sarve mama suprabhātam॥
prakṛti
pṛthvī sagandhā sarasāstathāpaḥ
sparśī ca vāyurjvalitaṃ ca tejaḥ।
nabha: saśabdaṃ mahatā sahaiva
kurvantu sarve mama suprabhātam॥
itthaṃ prabhāte paramaṃ pavitraṃ paṭhet
smaredvā śṛṇuyācca bhaktyā।
duḥsvapnanāśastviha suprabhātaṃ
bhavecca nityaṃ bhagavatprasādāt॥
॥ prātaḥ smaraṇa śloka pūrṇa hue ॥