सोम प्रदोष व्रत कथा – Som Pradosh Vrat Katha
सोम प्रदोष व्रत कथा का श्रवण परम कल्याणकारी है। निर्मल हृदय से इसका पाठ करने से भगवान् भोलेनाथ और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है, इसमें कोई संशय नहीं है। यह कथा (Som Pradosh Vrat Katha) मनोवांछित फल प्रदान करने वाली है। प्रदोष व्रत से जुड़ी अन्य कथाओं के लिए कृपया यहाँ जाएँ – प्रदोष व्रत कथा। पढ़ें सम्पूर्ण व्रत कथा और व्रत की विधि हिंदी में–
सोम प्रदोष व्रत की विधि
सोम प्रदोष व्रत कथा की विधि भी प्रति सोमवार व्रत विधि के समान ही है। आम तौर पर यह व्रत दिन के तीसरे पहर तक किया जाता है। परम्परा के अनुसार सोम प्रदोष व्रत विधि में फल का आहार लेने या पारण का कोई विशेष विधान नहीं है। फिर भी यह अनिवार्य है कि दिन-रात में केवल एक समय भोजन किया जाए।
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सौम्य प्रदोष व्रत में शिव–पार्वती की पूजा की जाती है। सोमवार के व्रत तीन प्रकार के हैं–साधारण प्रति सोमवार, सोम प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार–विधि तीनों की एक जैसी है। इनमें शिवजी पूजन के बाद कथा सुननी चाहिए। यद्यपि तीनों व्रतों की कथाएँ भिन्न-भिन्न हैं। आइए, अब सोम प्रदोष व्रत कथा का पाठ करते हैं।
सोम प्रदोष व्रत कथा
सोम प्रदोष व्रत कथा का पाठ हर प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल बनाने में सक्षम है। इसे जो भी पढ़ता है, वह निश्चित ही पुण्यवान बन जाता है।
पूर्वकाल में एक ब्राह्मणी अपने पति की मृत्यु के पश्चात् निराधार होकर भिक्षा मांगने लग गई। वह प्रातः होते ही अपने पुत्र को साथ लेकर बाहर निकल जाती और संध्या होने पर घर वापिस लौटती।
एक समय उसको विदर्भ देश का राजकुमार मिला जिसके पिता को शत्रुओं ने मारकर राज्य से बाहर निकाल दिया था। इस कारण वह मारा-मारा फिरता था। ब्राह्मणी उसे अपने साथ घर ले गई और उसका पालन पोषण करने लगी। एक दिन उन दोनों बालकों ने वन में खेलते-खेलते गन्धर्व कन्याओं को देखा। ब्राह्मण का बालक तो अपने घर आ गया परन्तु राजकुमार साथ नहीं आया क्योंकि वह अंशुमती नाम की गन्धर्व कन्या से बातें करने लगा था।
दूसरे दिन वह फिर अपने घर से आया वहां पर अंशुमति अपने माता-पिता के साथ बैठी थी। उधर ब्राह्मणी ऋषियों की आज्ञा से प्रदोष का व्रत करती थी। कुछ दिन पश्चात् अंशुमति के माता-पिता ने राजकुमार से कहा कि तुम विदर्भ देश के राजकुमार धर्मगुप्त हो, हम श्री शंकर जी की आज्ञा से अपनी पुत्री अंशुमति का विवाह तुम्हारे साथ कर देते हैं। फिर राजकुमार का विवाह अंशुमति के साथ हो गया।
बाद में राजकुमार ने गन्धर्वराज की सेना की सहायता से विदर्भ देश पर अधिकार कर लिया और ब्राह्मण के पुत्र को अपना मंत्री बना लिया। यथार्थ में यह सब उस ब्राह्मणी के सोम प्रदोष व्रत करने का फल था। बस उसी समय से यह सोम प्रदोष व्रत संसार में प्रतिष्ठित है।
इसके उपरान्त शौनकादि ऋषि बोले – हे दयालु, कृपा करके अब आप मंगल त्रयोदशी प्रदोष का व्रत सुनाइये। यह सुनकर सूत जी ने कहा – हे मुनियो, सुनिए मंगल प्रदोष व्रत की कथा।