धर्म

रुसो ना साई – Ruso Na Sai

पढ़ें “रुसो ना साई”

रूसो मम प्रियांबिका, मजवरी पिताही रूसो।
रूसो मम प्रियांगना, प्रियसुतात्मजाही रूसो॥
रूसो भगिनी बंधुही, श्वशुर सासुबाई रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीहीं रूसो ॥१॥

पुसो न सुनबाई त्या, मज न भ्रातृजाया पुसो।
पुसो न प्रिय सोयरे, प्रिय सगे न ज्ञाती पुसो॥
पुसो सुहृद ना सखा, स्वजन नाप्तबंधू पुसो।
परीन गुरू साई मा मजवरी,कधीहीं रूसो॥२॥

पुसो न अबला मुले, तरूण वृद्धही ना पुसो।
पुसो न गुरूं धाकुटें, मजन थोर साने पुसो॥
पुसो नच भलेबुरे, सुजन साधुही ना पुसो।
परी न गुरू साई मा, मजवरी कधीहीं रूसो॥३॥

रूसो चतुर तत्ववित्, विबुध प्राज्ञे ज्ञानी रूसो।
रूसोहि विदुषी स्त्रिया, कुशल पंडिताही रूसो॥
रूसो महिपती यती, भजक तापसीही रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो॥४॥

रूसो कवि ऋषी मुनी, अनघ सिद्ध योगी रूसो।
रूसो हि गृहदेवता, नि कुलग्रामदेवी रूसो॥
रूसो खल पिशाच्चही, मलिन डाकिनींही रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो॥५॥

रूसो मृगखग कृमी, अखिल जीवजंतु रूसो।
रूसो विटप प्रस्तरा, अचल आपगाब्धी रूसो॥
रूसो ख पवनाग्नि वार, अवनि पंचतत्वें रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो॥६॥

रूसो विमल किन्नरा, अमल यक्षिणीही रूसो।
रूसो शशि खगादिही, गगनिं तारकाही रूसो॥
रूसो अमरराजही, अदये धर्मराजा रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो॥७॥

रूसो मन सरस्वती, चपलचित्त तेंही रूसो।
रूसो वपु दिशाखिला, कठिण काल तोही रूसो॥
रूसो सकल विश्वही, मयि तु ब्रह्मगोलं रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो॥८॥

विमूढ म्हणूनी हसो, मज न मत्सराही डसो।
पदाभिरूचि उल्हासो, जननकर्दमीं ना फसो॥
न दुर्ग धृतिचा धसो, अशिवभाव मागें खसो।
प्रपंचि मन हें रूसो, दृढ विरक्ति चित्तीं ठसो॥९॥

कुणाचिही घृणा नसो, न च स्पृहा कशाची असो।
सदैव हृदयीं वसो, मनसि ध्यानिं साई वसो॥
पदी प्रणय वोरसो, निखिल दृश्य बाबा दिसो।
न दत्तगुरू साई मा, उपरि याचनेला रूसो॥१०॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर रुसो ना साई आरती (Sai Baba Dhoop Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह आरती रोमन में–

Read Ruso Na Sai (Sai Baba Dhoop Aarti)

rūso mama priyāṃbikā, majavarī pitāhī rūso।
rūso mama priyāṃganā, priyasutātmajāhī rūso॥
rūso bhaginī baṃdhuhī, śvaśura sāsubāī rūso।
na dattagurū sāī mā, majavarī kadhīhīṃ rūso ॥1॥

puso na sunabāī tyā, maja na bhrātṛjāyā puso।
puso na priya soyare, priya sage na jñātī puso॥
puso suhṛda nā sakhā, svajana nāptabaṃdhū puso।
parīna gurū sāī mā majavarī,kadhīhīṃ rūso॥2॥

puso na abalā mule, tarūṇa vṛddhahī nā puso।
puso na gurūṃ dhākuṭeṃ, majana thora sāne puso॥
puso naca bhalebure, sujana sādhuhī nā puso।
parī na gurū sāī mā, majavarī kadhīhīṃ rūso॥3॥

rūso catura tatvavit, vibudha prājñe jñānī rūso।
rūsohi viduṣī striyā, kuśala paṃḍitāhī rūso॥
rūso mahipatī yatī, bhajaka tāpasīhī rūso।
na dattagurū sāī mā, majavarī kadhīhī rūso॥4॥

rūso kavi ṛṣī munī, anagha siddha yogī rūso।
rūso hi gṛhadevatā, ni kulagrāmadevī rūso॥
rūso khala piśāccahī, malina ḍākinīṃhī rūso।
na dattagurū sāī mā, majavarī kadhīhī rūso॥5॥

rūso mṛgakhaga kṛmī, akhila jīvajaṃtu rūso।
rūso viṭapa prastarā, acala āpagābdhī rūso॥
rūso kha pavanāgni vāra, avani paṃcatatveṃ rūso।
na dattagurū sāī mā, majavarī kadhīhī rūso॥6॥

rūso vimala kinnarā, amala yakṣiṇīhī rūso।
rūso śaśi khagādihī, gaganiṃ tārakāhī rūso॥
rūso amararājahī, adaye dharmarājā rūso।
na dattagurū sāī mā, majavarī kadhīhī rūso॥7॥

rūso mana sarasvatī, capalacitta teṃhī rūso।
rūso vapu diśākhilā, kaṭhiṇa kāla tohī rūso॥
rūso sakala viśvahī, mayi tu brahmagolaṃ rūso।
na dattagurū sāī mā, majavarī kadhīhī rūso॥8॥

vimūḍha mhaṇūnī haso, maja na matsarāhī ḍaso।
padābhirūci ulhāso, jananakardamīṃ nā phaso॥
na durga dhṛticā dhaso, aśivabhāva māgeṃ khaso।
prapaṃci mana heṃ rūso, dṛḍha virakti cittīṃ ṭhaso॥9॥

kuṇācihī ghṛṇā naso, na ca spṛhā kaśācī aso।
sadaiva hṛdayīṃ vaso, manasi dhyāniṃ sāī vaso॥
padī praṇaya voraso, nikhila dṛśya bābā diso।
na dattagurū sāī mā, upari yācanelā rūso॥10॥

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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