धर्म

साई स्तवन मंजिरी – Sai Stavan Manjari

“साई स्तवन मंजिरी” का पाठ 7 गुरुवार श्रद्धापूर्वक करने से साईं बाबा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करतें है। और उनके जीवन के सभी कष्टों का निवारण स्वयं करते है। पढ़ें यह शक्तिशाली साईं स्तवन मंजिरी :-

॥ॐ श्री गणेशाय नमः॥
॥ॐ श्री सांईनाथाय नमः॥

मयूरेश्वर जय सर्वाधार।
सर्व साक्षी हे गौरिकुमार।
अचिन्त्य सरूप हे लंबोदर।
रक्षा करो मम,सिद्धेश्वर ॥1॥

सकल गुणों का तूं है स्वामी।
गण्पति तूं है अन्तरयामी।
अखिल शास्त्र गाते तव महिमा।
भालचन्द्र मंगल गज वदना ॥2॥

माँ शारदे वाग विलासनी।
शब्द-स्रष्टि की अखिल स्वामिनी।
जगज्जननी तव शक्ति अपार।
तुझसे अखिल जगत व्यवहार ॥3॥

कवियों की तूं शक्ति प्रदात्री।
सारे जग की भूषण दात्री।
तेरे चरणों के हम बंदे।
नमो नमो माता जगदम्बे ॥4॥

पूर्ण ब्रह्म हे सन्त सहारे।
पंढ़रीनाथ रूप तुम धारे।
करूणासिंधु जय दयानिधान।
पांढ़ुरंग नरसिंह भगवान॥5॥

सारे जग का सूत्रधार तूं।
इस संस्रति का सुराधार तूं।
करते शास्त्र तुम्हारा चिंतन।
तत् स्वरूप में रमते निशदिन॥6॥

जो केवल पोथी के ज्ञानी ।
नहीं पाते तुझको वे प्राणी।
बुद्धिहीन प्रगटाये वाणी।
व्यर्थ विवाद करें अज्ञानी॥7॥

तुझको जानते सच्चे संत।
पाये नहीं कोई भी अंत।
पद-पंकज में विनत प्रणाम।
जयति-जयति शिरडी घनश्याम॥8॥

पंचवक्त्र शिवशंकर जय हो।
प्रलयंकर अभ्यंकर जय हो।
जय नीलकण्ठ हे दिगंबर।
पशुपतिनाठ के प्रणव स्वरा॥9॥

ह्रदय से जपता जो तव नाम।
उसके होते पूर्ण सब काम।
सांई नाम महा सुखदाई।
महिमा व्यापक जग में छाई॥10॥

पदारविन्द में करूं प्रणाम।
स्तोत्र लिखूं प्रभु तेरे नाम।
आशीष वर्षा करो नाथ हे ।
जगतपति हे भोलेनाथ हे॥11॥

दत्तात्रेय को करूं प्रणाम।
विष्णु नारायण जो सुखधाम।
तुकाराम से सन्तजनों को।
प्रणाम शत शत भक्तजनों को॥12॥

जयति-जयति जय जय सांई नाथ हे।
रक्षक तूं ही दीनदयाल हे।
मुझको कर दो प्रभु सनाथ।
शरणागत हूं तेरे द्वार हे॥13॥

तूं है पूर्ण ब्रह्म भगवान।
विष्णु पुरूषोत्तम तूं सुखधाम।
उमापति शिव तूं निष्काम।
था दहन किया नाथ ने काम॥14॥

नराकार तूं तूं है परमेश्वर।
ज्ञान-गगन का अहो दिवाकर।
दयासिंधु तूं करूणा-आकर।
दलन-रोग भव-मूल सुधाकर॥15॥

निर्धन जन का चिन्तामणि तूं।
भक्त-काज हित सुरसुरि जम तूं।
भवसागर हित नौका तूं है।
निराश्रितों का आश्रय तूं है॥16॥

जग-कारण तूं आदि विधाता।
विमलभाव चैतन्य प्रदाता।
दीनबंधु करूणानिधि ताता।
क्रीङा तेरी अदभुत दाता॥17॥

तूं है अजन्मा जग निर्माता।
तूं मृत्युंजय काल-विजेता।
एक मात्र तूं ज्ञेय-तत्व है।
सत्य-शोध से रहे प्राप्य है॥18॥

जो अज्ञानी जग के वासी।
जन्म-मरण कारा-ग्रहवासी।
जन्म-मरण के आप पार है।
विभु निरंजन जगदाधार है॥19॥

निर्झर से जल जैसा आये।
पूर्वकाल से रहा समाये।
स्वयं उमंगित होकर आये।
जिसने खुद है स्त्रोत बहायें॥20॥

शिला छिद्र से ज्यों बह निकला।
निर्झर उसको नाम मिल गया।
झर-झर कर निर्झर बन छाया।
मिथ्या स्वत्व छिद्र से पाया॥21॥

कभी भरा और कभी सूखता।
जल निस्संग इसे नकारता।
चिद्र शून्य को सलिल न माने।
छिद्र किन्तु अभिमान बखाने॥22॥

भ्रमवश छिद्र समझता जीवन।
जल न हो तो कहाँ है जीवन।
दया पात्र है छिद्र विचार।
दम्भ व्यर्थ उसने यों धारा॥23॥

यह नरदेह छिद्र सम भाई।
चेतन सलिल शुद्ध स्थायी।
छिद्र असंख्य हुआ करते हैं।
जलकण वही रहा करते हैं॥24॥

अतः नाथ हे परम दयाघन।
अज्ञान नग का करने वेधन।
वग्र अस्त्र करते कर धारण।
लीला सब भक्तों के कारण॥25॥

जङत छिद्र कितने है सारे।
भरे जगत में जैसे तारे।
गत हुये वर्तमान अभी हैं।
युग भविष्य के भीज अभी हैं॥26॥

भिन्न-भिन्न ये छिद्र सभी है।
भिन्न-भिन्न सब नाम गति है।
पृथक-पृथक इनकी पहचान।
जग में कोई नहीं अनजान॥27॥

चेतन छिद्रों से ऊपर है।
“मैं तूं” अन्तर नहीं उचित है।
जहां द्वैत का लेश नहीं है।सत्य चेतना व्याप रही है॥28॥

चेतना का व्यापक विस्तार।
हुआ अससे पूरित संसार।
“तेरा मेरा” भेद अविचार।
परम त्याज्य है बाह्य विकार॥29॥

मेघ गर्भ में निहित सलिल जो।
जङतः निर्मल नहीं भिन्न सो।
धरती तल पर जब वह आता।
भेद-विभेद तभी उपजाता॥30॥

जो गोद में गिर जाता है।
वह गोदावरी बन जाता है।
जो नाले में गिर जाता है।
वह अपवित्र कहला जाता है॥31॥

सन्त रूप गोदावरी निर्मल।
तुम उसके पाव अविरल जल।
हम नाले के सलिल मलिनतम।
भेद यही दोनों में केवल॥32॥

करने जीवन स्वयं कृतार्थ।
शरण तुम्हारी आये नाथ।
कर जोरे हम शीश झुकाते।
पावन प्रभु पर बलि-बलि जाते॥33॥

पात्र-मात्र से है पावनता।
गोदा-जल की अति निर्मलता।
सलिल सर्वत्र तो एक समान।
कहीं न दिखता भिन्न प्रणाम॥34॥

गोदावरी का जो जलपात्र।
कैसे पावन हुआ वह पात्र।
उसके पीछे मर्म एक है।
गुणः दोष आधार नेक है॥35॥

मेघ-गर्भ से जो जल आता।
बदल नहीं वह भू-कण पाता।
वही कहलाता है भू-भाग।
गोदावरी जल पुण्य-सुभाग॥36॥

वन्य भूमि पर गिरा मेघ जो।
यद्यपि गुण में रहे एक जो।
निन्दित बना वही कटुखारा।
गया भाग्य से वह धिक्कारा॥37॥

सदगुरू प्रिय पावन हैं कितने।
षड्रिपुओं के जीता जिनने।
अति पुनीत है गुरू की छाया।
शिरडी सन्त नाम शुभ पाया॥38॥

अतः सन्त गोदावरी ज्यों है।
अति प्रिय हित भक्तों के त्यों हैं।
प्राणी मात्र के प्राणाधार।
मानव धर्म अवयं साकार॥39॥

जग निर्माण हुआ है जब से।
पुण्यधार सुरसरिता तब से।
सतत प्रवाहित अविरल जल से।
रुद्धित किंचित हुआ न तल है॥40॥

सिया लखन संग राम पधारे।
गोदावरी के पुण्य किनारे।
युग अतीत वह बीत गया है।
सलिल वही क्या शेष रहा है॥41॥

जल का पात्र वहीं का वह है।
जलधि समाया पूर्व सलिल है।
पावनता तब से है वैसी।
पात्र पुरातन युग के जैसी॥42॥

पूरव सलिल जाता है ज्यों ही।
नूतन जल आता है त्यों ही।
इसी भाँति अवतार रीति है।
युग-युग में होती प्रतीत है॥43॥

बहु शताब्दियाँ संवत् सर यों।
उन शतकों में सन्त प्रवर ज्यों।
हो सलिल सरिस सन्त साकार।
ऊर्मिविभूतियां अपरंपार॥44॥

सुरसरिता ज्यों सन्त सु-धारा।
आदि महायुग ले अवतार।
सनक सनन्दन सनत कुमार।
सन्त वृन्द ज्यों बाढ़ अपारा॥45॥

नारद तुम्बर पुनः पधारे।
ध्रुव प्रहलाद बली तन धारे।
शबरी अंगद नल हनुमान।
गोप गोपिका बिदुर महाना॥46॥

सन्त सुसरिता बढ़ती जाती।
शत-शत धारा जलधि समाती।
बाढ़ें बहु यों युग-युग आती
वर्णन नहीं वाणी कर पाती॥47॥

सन्त रूप गोदावरी तट पर।
कलियुग के नव मध्य प्रहर पर।
भक्ति-बाढ़ लेकर तुम आये।
‘सांईनाथ” सुनाम तुम कहाये॥48॥

चरण कमल द्वय दिव्य ललाम।
प्रभु स्वीकारों विनत प्रणाम।
अवगुण प्रभु हैं अनगिन मेरे।
चित न धरों प्रभु दोष घनेरे॥49॥

मैं अज्ञानी पहित पुरातन।
पापी दल का परम शिरोमणी।
सच में कुटिल महाखलकामी।
मत ठुकराओं अन्तरयामी॥50॥

दोषी कैसा भी हो लोहा।
पारस स्वर्ण बनाता चोखा।
नाला मल से भरा अपावन।
सुरसरिता करती है पावन॥51॥

मेरा मन अति कलुष भरा है।
नाथ ह्रदय अति दया भरा है।
कृपाद्रष्टि से निर्मल कर दें।
झोली मेरी प्रभुवर भर दें॥52॥

पासस का संग जब मिल जाता।
लोह सुवर्ण यदि नहीं बन पाता।
तब तो दोषी पारस होता।
विरद वही अपना है खोता॥53॥

पापी रहा यदि प्रभु तव दास।
होता आपका ही उपहास।
प्रभु तुम पारस,मैं हूँ लोहा।
राखो तुम ही अपनी शोभा॥54॥

अपराध करे बालक अज्ञान।
क्रोध न करती जननी महान।
हो प्रभु प्रेम पूर्ण तुम माता।
कृपाप्रसाद दीजियें दाता॥55॥

सदगुरू सांई हे प्रभु मेरे।
कल्पवृक्ष तुम करूणा प्रेरे।
भवसागर में मेरी नैया।
तूं ही भगवान पार करैया॥56॥

कामधेनू सम तूं चिन्ता मणि।ज्ञान-गगन का तूं है दिनमणि।
सर्व गुणों का तूं है आकार।
शिरडी पावन स्वर्ग धरा पर॥57॥

पुण्यधाम है अतिशय पावन।
शान्तिमूर्ति हैं चिदानन्दघन।
पूर्ण ब्रम्ह तुम प्रणव रूप हें।
भेदरहित तुम ज्ञानसूर्य हें॥58॥

विज्ञानमूर्ति अहो पुरूषोत्तम।
क्षमा शान्ति के परम निकेतन।
भक्त वृन्द के उर अभिराम।
हों प्रसन्न प्रभु पूरण काम॥59॥

सदगुरू नाथ मछिन्दर तूं है।
योगी राज जालन्धर तूं है।
निवृत्तिनाथ ज्ञानेश्वर तूं हैं।
कबीर एकनाथ प्रभु तूं है॥60॥

सावता बोधला भी तूं है।
रामदास समर्थ प्रभु तूं है।
माणिक प्रभु शुभ सन्त सुख तूं।
तुकाराम हे सांई प्रभु तूं॥61॥

आपने धारे ये अवतार।
तत्वतः एक भिन्न आकार।
रहस्य आपका अगम अपार।
जाति-पाँति के प्रभो उस पार॥62॥

कोई यवन तुम्हें बतलाता।
कोई ब्राह्मण तुम्हें जतलाता।
कृष्ण चरित की महिमा जैसी।
लीला की है तुमने तैसी॥63॥

गोपीयां कहतीं कृष्ण कन्हैया।
कहे ‘लाडले’ यशुमति मैया।
कोई कहें उन्हें गोपाल।
गिरिधर यदूभूषण नंदलाल॥64॥

कहें बंशीधर कोई ग्वाल।
देखे कंस कृष्ण में काल।
सखा उद्धव के प्रिय भगवान।
गुरूवत अर्जुन केशव जान॥65॥

ह्रदय भाव जिसके हो जैसे।
सदगुरू को देखे वह वैसा।
प्रभु तुम अटल रहे हो ऐसे।
शिरडी थल में ध्रुव सम बैठे॥66॥

रहा मस्जिद प्रभु का आवास।
तव छिद्रहीन कर्ण आभास।
मुस्लिम करते लोग अनुमान।
सम थे तुमको राम रहमान॥67॥

धूनी तव अग्नि साधना।
होती जिससे हिन्दू भावना।
“अल्ला मालिक” तुम थे जपते।
शिवसम तुमको भक्त सुमरते॥68॥

हिन्दू-मुस्लिम ऊपरी भेद।
सुभक्त देखते पूर्ण अभेद।
नहीं जानते ज्ञानी विद्वेष।
ईश्वर एक पर अनगिन वेष॥69॥

पारब्रम्ह आप स्वाधीन।
वर्ण जाति से मुक्त आसीन।
हिन्दू-मुस्लिम सब को प्यारे।
चिदानन्द गुरूजन रखवारे॥70॥

करने हिन्दू-मुस्लिम एक।
करने दूर सभी मतभेद।
मस्जिद अग्नि जोङ कर नाता।
लीला करते जन-सुख-दाता॥71॥

प्रभु धर्म-जाति-बन्ध से हीन।
निर्मल तत्व सत्य स्वाधीन।
अनुभवगम्य तुम तर्कातीत।
गूंजे अनहद आत्म संगीत॥72॥

समक्ष आपके वाणी हारे।
तर्क वितर्क व्यर्थ बेचारे।
परिमति शबद् है भावाभास।
हूं मैं अकिंचन प्रभु का दास॥73॥

यदयपि आप हैं शबदाधार।
शब्द बिना न प्रगटें गीत।
स्तुति करूं ले शबदाधार।
स्वीकारों हें दिव्य अवतार॥74॥

कृपा आपकी पाकर स्वामी।
गाता गुण-गण यह अनुगामी।
शबदों का ही माध्यम मेरा।
भक्ति प्रेम से है उर प्रेरा॥75॥

सन्तों की महिमा है न्यारी।
ईशर की विभूति अनियारी।
सन्त सरसते साम्य सभी से।
नहीं रखते बैर किसी से॥76॥

हिरण्यकशिपु रावंअ बलवान।
विनाश हुआ इनका जग जान।
देव-द्वेष था इसका कारण।
सन्त द्वेष का करें निवारण॥77॥

गोपीचन्द अन्याय कराये।
जालन्धर मन में नहीं लाये।
महासन्त के किया क्षमा था।
परम शान्ति का वरण किया था॥78॥

बङकर नृप-उद्धार किया था।
दीर्घ आयु वरदान दिया था।
सन्तों की महिमा जग-पावन।
कौन कर सके गुण गणगायन॥79॥

सन्त भूमि के ज्ञान दिवाकर।
कृपा ज्योति देते करुणाकर।
शीतल शशि सम सन्त सुखद हैं।
कृपा कौमुदी प्रखर अवनि है॥80॥

है कस्तूरी सम मोहक संत।
कृपा है उनकी सरस सुगंध।
ईखरसवत होते हैं संत।
मधुर सुरूचि ज्यों सुखद बसंत॥81॥

साधु-असाधु सभी पा करूणा।
दृष्टि समान सभी पर रखना।
पापी से कम प्यार न करते।
पाप-ताप-हर-करूणा करते॥82॥

जो मल-युत है बहकर आता।
सुरसरि जल में आन समाता।
निर्मल मंजूषा में रहता।
सुरसरि जल नहीं वह गहता॥83॥

वही वसन इक बार था आया।
मंजूषा में रहा समाया।
अवगाहन सुरसरि में करता।
धूल कर निर्मल खुद को करता॥84॥

सुद्रढ़ मंजूषा है बैकुण्ठ।
अलौकिक निष्ठा गंग तरंग।
जीवात्मा ही वसन समझिये।
षड् विकार ही मैल समझिये॥85॥

जग में तव पद-दर्शन पाना।
यही गंगा में डूब नहाना।
पावन इससे होते तन-मन।
मल-विमुक्त होता वह तत्क्षण॥86॥

दुखद विवश हैं हम संसारी।
दोष-कालिमा हम में भारी।
सन्त दरश के हम अधिकारी।
मुक्ति हेतु निज बाट निहारी॥87॥

गोदावरी पूरित निर्मल जल।
मैली गठरी भीगी तत्जल।
बन न सकी यदि फिर भी निर्मल।
क्या न दोषयुत गोदावरि जल॥88॥

आप सघन हैं शीतल तरूवर।
श्रान्त पथिक हम डगमग पथ हम।
तपे ताप त्रय महाप्रखर तम।
जेठ दुपहरी जलते भूकण॥89॥

ताप हमारे दूर निवारों।
महा विपद से आप उबारों।
करों नाथ तुम करूणा छाया।
सर्वज्ञात तेरी प्रभु दया॥90॥

परम व्यर्थ वह छायातरू है।
दूर करे न ताप प्रखर हैं।
जो शरणागत को न बचाये।
शीतल तरू कैसे कहलाये॥91॥

कृपा आपकी यदि नहीं पाये।
कैसे निर्मल हम रह जावें।
पारथ-साथ रहे थे गिरधर।
धर्म हेतु प्रभु पाँचजन्य-धर॥92॥

सुग्रीव कृपा से दनुज बिभीषण।
पाया प्राणतपाल रघुपति पद।
भगवत पाते अमित बङाई।
सन्त मात्र के कारण भाई॥93॥

नेति-नेति हैं वेद उचरते।
रूपरहित हैं ब्रह्म विचरते।
महामंत्र सन्तों ने पाये।
सगुण बनाकर भू पर लायें॥94॥

दामा ए दिया रूप महार।
रुकमणि-वर त्रैलोक्य आधार।
चोखी जी ने किया कमाल।
विष्णु को दिया कर्म पशुपाल॥95॥

महिमा सन्त ईश ही जानें।
दासनुदास स्वयं बन जावें।
सच्चा सन्त बङप्पन पाता।
प्रभु का सुजन अतिथि हो जाता॥96॥

ऐसे सन्त तुम्हीं सुखदाता।
तुम्हीं पिता हो तुम ही माता।
सदगुरु सांईनाथ हमारे।
कलियुग में शिरडी अवतारें॥97॥

लीला तिहारी नाथ महान।
जन-जन नहीं पायें पहचान।
जिव्हा कर ना सके गुणगान।
तना हुआ है रहस्य वितान॥98॥

तुमने जल के दीप जलायें।
चमत्कार जग में थे पायें।
भक्त उद्धार हित जग में आयें।
तीरथ शिरडी धाम बनाए॥99॥

जो जिस रूप आपको ध्यायें।
देव सरूप वही तव पायें।
सूक्षम तक्त निज सेज बनायें।
विचित्र योग सामर्थ दिखायें॥100॥

पुत्र हीन सन्तति पा जावें।
रोग असाध्य नहीं रह जावें।
रक्षा वह विभूति से पाता।
शरण तिहारी जो भी आता॥101॥

भक्त जनों के संकट हरते।
कार्य असम्भव सम्भव करतें।
जग की चींटी भार शून्य ज्यों।
समक्ष तिहारे कठिन कार्य त्यों॥102॥

सांई सदगुरू नाथ हमारें।
रहम करो मुझ पर हे प्यारे।
शरणागत हूँ प्रभु अपनायें।
इस अनाथ को नहीं ठुकरायें॥103॥

प्रभु तुम हो राज्य राजेश्वर।
कुबेर के भी परम अधीश्वर।
देव धन्वन्तरी तव अवतार।
प्राणदायक है सर्वाधार॥104॥

बहु देवों की पूजन करतें।
बाह्य वस्तु हम संग्रह करते।
पूजन प्रभु की शीधी-साधा।
बाह्य वस्तु की नहीं उपाधी॥105॥

जैसे दीपावली त्यौहार।
आये प्रखर सूरज के द्वार।
दीपक ज्योतिं कहां वह लाये।
सूर्य समक्ष जो जगमग होवें॥106॥

जल क्या ऐसा भू के पास।
बुझा सके जो सागर प्यास।
अग्नि जिससे उष्मा पायें।
ऐसा वस्तु कहां हम पावें॥107॥

जो पदार्थ हैं प्रभु पूजन के।
आत्म-वश वे सभी आपके।
हे समर्थ गुरू देव हमारे।
निर्गुण अलख निरंजन प्यारे॥108॥

तत्वद्रष्टि का दर्शन कुछ है।
भक्ति भावना-ह्रदय सत्य हैं।
केवल वाणी परम निरर्थक।
अनुभव करना निज में सार्थक॥109॥

अर्पित कंरू तुम्हें क्या सांई।
वह सम्पत्ति जग में नहीं पाई।
जग वैभव तुमने उपजाया।
कैसे कहूं कमी कुछ दाता॥110॥

“पत्रं-पुष्पं” विनत चढ़ाऊं।
प्रभु चरणों में चित्त लगाऊं।
जो कुछ मिला मुझे हें स्वामी।
करूं समर्पित तन-मन वाणी॥111॥

प्रेम-अश्रु जलधार बहाऊं।
प्रभु चरणों को मैं नहलाऊं।
चन्दन बना ह्रदय निज गारूं।
भक्ति भाव का तिलक लगाऊं॥112॥

शब्दाभूष्ण-कफनी लाऊं।
प्रेम निशानी वह पहनाऊं।
प्रणय-सुमन उपहार बनाऊं।
नाथ-कंठ में पुलक चढ़ाऊं॥113॥

आहुति दोषों की कर डालूं।
वेदी में वह होम उछालूं।
दुर्विचार धूम्र यों भागे।
वह दुर्गंध नहीं फिर लागे॥114॥

अग्नि सरिस हैं सदगुरू समर्थ।
दुर्गुण-धूप करें हम अर्पित।
स्वाहा जलकर जब होता है।
तदरूप तत्क्षण बन जाता है॥115॥

धूप-द्रव्य जब उस पर चढ़ता।
अग्नि ज्वाला में है जलता।
सुरभि-अस्तित्व कहां रहेगा।
दूर गगन में शून्य बनेगा॥116॥

प्रभु की होती अन्यथा रीति।
बनती कुवस्तु जल कर विभुति।
सदगुण कुन्दन सा बन दमके।
शाशवत जग बढ़ निरखे परखे॥117॥

निर्मल मन जब हो जाता है।
दुर्विकार तब जल जाता है।
गंगा ज्यों पावन है होती।
अविकल दूषण मल वह धोती॥118॥

सांई के हित दीप बनाऊं।
सत्वर माया मोह जलाऊं।
विराग प्रकाश जगमग होवें।
राग अन्ध वह उर का खावें॥119॥

पावन निष्ठा का सिंहासन।
निर्मित करता प्रभु के कारण।
कृपा करें प्रभु आप पधारें।
अब नैवेद्य-भक्ति स्वीकारें॥120॥

भक्ति-नैवेद्य प्रभु तुम पाओं।
सरस-रास-रस हमें पिलाओं।
माता, मैं हूँ वत्स तिहारा।
पाऊं तव दुग्धामृत धारा॥121॥

मन-रूपी दक्षिणा चुकाऊं।
मन में नहीं कुछ और बसाऊं।
अहम् भाव सब करूं सम्पर्ण।
अन्तः रहे नाथ का दर्पण॥122॥

बिनती नाथ पुनः दुहराऊं।
श्री चरणों में शीश नमाऊं।
सांई कलियुग ब्रह्म अवतार।
करों प्रणाम मेरे स्वीकार॥123॥

ॐ सांई राम!!!

प्रार्थनाष्टक

शान्त चित्त प्रज्ञावतार जय।
दया-निधान सांईनाथ जय।
करुणा सागर सत्यरूप जय।
मयातम संहारक प्रभु जय॥124॥

जाति-गोत्र-अतीत सिद्धेश्वर।
अचिन्तनीयं पाप-ताप-हर।
पाहिमाम् शिव पाहिमाम् शिव।
शिरडी ग्राम-निवासिय केशव॥125॥

ज्ञान-विधाता ज्ञानेश्वर जय।
मंगल मूरत मंगलमय जय।
भक्त-वर्गमानस-मराल जय।
सेवक-रक्षक प्रणतापाल जय॥126॥

स्रष्टि रचयिता ब्रह्मा जय-जय।
रमापते हे विष्णु रूप जय।
जगत प्रलयकर्ता शिव जय-जय।
महारुद्र हें अभ्यंकर जय॥127॥

व्यापक ईश समाया जग तूं।
सर्वलोक में छाया प्रभु तूं।
तेरे आलय सर्वह्रदय हैं।
कण-कण जग सब सांई ईश्वर है॥128॥

क्षमा करे अपराध हमारें।
रहे याचना सदा मुरारे।
भ्रम-संशय सब नाथ निवारें।
राग-रंग-रति से उद्धारे॥129॥

मैं हूँ बछङा कामधेनु तूं।
चन्द्रकान्ता मैं पूर्ण इन्दु तूं।
नमामि वत्सल प्रणम्य जय।
नाना स्वर बहु रूप धाम जय॥130॥

मेरे सिर पर अभय हस्त दों।
चिन्त रोग शोक तुम हर लो।
दासगणू को प्रभु अपनाओं।
‘भूपति’ के उर में बस जओं॥131॥

कवि स्तुति कर जोरे गाता।
हों अनुकम्पा सदा विधाता।
पाप-ताप दुःख दैन्य दूर हो।
नयन बसा नित तव सरूप हों॥132॥

ज्यौ गौ अपना वत्स दुलारे।
त्यौ साईं माँ दास दुलारे।
निर्दय नहीं बनो जगदम्बे।
इस शिशु को दुलारो अंबे ॥133॥

चन्दन तरुवर तुम हो स्वामी।
हीन-पौध हूं मैं अनुगामी।
सुरसरि समां तू है अतिपावन।
दुराचार रत मैं कर्दमवत ॥134॥

तुझसे लिपट रहू यदि मलयुत।
कौन कहे तुझको चन्दन तरु।
सदगुरु तेरी तभी बड़ाई।
त्यागो मन जब सतत बुराई ॥135॥

कस्तुरी का जब साथ मिले।
अति माटी का तब मोल बड़े।
सुरभित सुमनों का साथ मिले।
धागे को भी सम सुरभि मिले ॥136॥

महान जनों की होती रीति।
जीना पर हुई हैं उनकी प्रीति।
वही पदार्थ होता अनमोल।
नहीं जग में उसका फिर तौला ॥137॥

रहा नंदी का भस्म कोपीना।
संचय शिव ने किया आधीन।
गौरव उसने जन से पाया।
शिव संगत ने यश फैलाया॥138॥

यमुना तट पर रचायें।
वृन्दावन में धूम मचायें।
गोपीरंजन करें मुरारी।
भक्त-वृनद मोहें गिरधारी॥139॥

होंवें द्रवित प्रभों करूणाघन।
मेरे प्रियतम नाथ ह्रदयघन।
अधमाधम को आन तारियें।
क्षमा सिन्धु अब क्षमा धारियें॥140॥

अभ्युदय निःश्रेयस पाऊ।
अंतरयामी से यह चाहूं।
जिसमें हित हो मेरे दाता।
वही दीजियें मुझे विधाता॥141॥

मैं तो कटु जलहूं प्रभु खारा।
तुम में मधु सागर लहराता।
कृपा-बिंदु इक पाऊ तेरा।
मधुरिम मधु बन जायें मेरा॥142॥

हे प्रभु आपकी शक्ति अपार।
तिहारे सेवक हम सरकार।
खारा जलधि करें प्रभु मीठा।
दासगणु पावे मन-चीता॥143॥

सिद्धवृन्द का तुं सम्राट।
वैभव व्यापक ब्रह्म विराट।
मुझमें अनेक प्रकार अभाव।
अकिंचन नाथ करें निर्वाह॥144॥

कथन अत्यधिक निरा व्यर्थ हैं।
आधार एक गुरु समर्थ हैं ।
माँ की गोदी में जब सुत हो।
भयभीत कहो कैसे तब हो॥145॥

जो यह स्तोत्र पड़े प्रति वासर।
प्रेमार्पित हो गाये सादर ।
मन-वाँछित फल नाथ अवश दें।
शाशवत शान्ति सत्य गुरुवर दें॥146॥

सिद्ध वरदान स्तोत्र दिलावे।
दिव्य कवच सम सतत बचावें।
सुफल वर्ष में पाठक पावें।
जग त्रयताप नहीं रह जावें॥147॥

निज शुभकर में स्तोत्र सम्भालो।
शुचिपवित्र हो स्वर को ढालो।
प्रभु प्रति पावन मानस कर लो।
स्तोत्र पठन श्रद्धा से कर लो॥148॥

गुरूवार दिवस गुरु का मानों।
सतगुरु ध्यान चित्त में ठानों।
स्थोथरा पठन हो अति फलदाई।
महाप्रभावी सदा-सहाई॥149॥

व्रत एकादशी पुण्य सुहाई।
पठन सुदिन इसका कर भाई।
निश्चय चमत्कार थम पाओ।
शुभ कल्याण कल्पतरु पाओ॥150॥

उत्तम गति स्तोत्र प्रदाता।
सदगुरू दर्शन पाठक पाता।
इह परलोक सभी हो शुभकर।
सुख संतोष प्राप्त हो सत्वर॥151॥

स्तोत्र पारायण सद्य: फल दे।
मन्द-बुद्धि को बुद्धि प्रबल दे।
हो संरक्षक अकाल मरण से।
हों शतायु जा स्तोत्र पठन से॥152॥

निर्धन धन पायेगा भाई।
महा कुबेर सत्य शिव साईं।
प्रभु अनुकम्पा स्तोत्र समाई।
कवि-वाणी शुभ-सुगम सहाई॥153॥

संततिहीन पायें सन्तान।
दायक स्तोत्र पठन कल्याण।
मुक्त रोग से होगी काया।
सुखकर हो साईं की छाया॥154॥

स्तोत्र-पाठ नित मंगलमय है।
जीवन बनता सुखद प्रखर है।
ब्रह्मविचार गहनतर पाओ।
चिंतामुक्त जियो हर्षाओ॥155॥

आदर उर का इसे चढ़ाओ।
अंत द्रढ़ विश्वास बासाओ।
तर्क वितर्क विलग कर साधो।
शुद्ध विवेक बुद्धि अवराधो॥156॥

यात्रा करो शिरडी तीर्थ की।
लगन लगी को नाथ चरण की।
दीन दुखी का आश्रय जो हैं।
भक्त-काम-कल्प-द्रुम सोहें॥157॥

सुप्रेरणा बाबा की पाऊं।
प्रभु आज्ञा पा स्तोत्र रचाऊं।
बाबा का आशीष न होता।
क्यों यह गान पतित से होता॥158॥

शक शंवत अठरह चालीसा।
भादों मास शुक्ल गौरीशा।
शाशिवार गणेश चौथ शुभ तिथि।
पूर्ण हुई साईं की स्तुति॥159॥

पुण्य धार रेवा शुभ तट पर।
माहेश्वर अति पुण्य सुथल पर।
साईंनाथ स्तवन मंजरी।
राज्य-अहिल्या भू में उतारी॥160॥

मान्धाता का क्षेत्र पुरातन।
प्रगटा स्तोत्र जहां पर पावन।
हुआ मन पर साईं अधिकार।
समझो मंत्र साईं उदगार॥161॥

दासगणु किंकर साईं का।
रज-कण संत साधु चरणों का।
लेख-बद्ध दामोदर करते।
भाषा गायन ‘ भूपति’ करते॥162॥

साईंनाथ स्तवन मंजरी।
तारक भव-सागर-ह्रद-तन्त्री।
सारे जग में साईं छाये।
पाण्डुरंग गुण किकंर गाये॥163॥

श्रीहरिहरापर्णमस्तु | शुभं भवतु | पुण्डलिक वरदा विठ्ठल |
सीताकांत स्मरण | जय जय राम | पार्वतीपते हर हर महादेव |

श्री सदगुरु साईंनाथ महाराज की जय ॥
श्री सदगुरु साईंनाथपर्णमस्तु ॥

जय सांई राम!!!

ॐ सांई राम!!!

॥श्री सच्चिदानन्द सदगुरु साईनाथ महाराज की जय ॥
॥ॐ राजाधिराज योगिराज परब्रह्य सांईनाथ महाराज॥
॥श्री सच्चिदानन्द सदगुरु साईनाथ महाराज की जय ॥

जय सांई राम!!

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर साई स्तवन मंजिरी रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें साई स्तवन मंजिरी (Shri Sai Stavan Manjari) रोमन में–

Read ai stavan manjari

॥oṃ śrī gaṇeśāya namaḥ॥
॥oṃ śrī sāṃīnāthāya namaḥ॥

mayūreśvara jaya sarvādhāra।
sarva sākṣī he gaurikumāra।
acintya sarūpa he laṃbodara।
rakṣā karo mama,siddheśvara ॥1॥

sakala guṇoṃ kā tūṃ hai svāmī।
gaṇpati tūṃ hai antarayāmī।
akhila śāstra gāte tava mahimā।
bhālacandra maṃgala gaja vadanā ॥2॥

mā~ śārade vāga vilāsanī।
śabda-sraṣṭi kī akhila svāminī।
jagajjananī tava śakti apāra।
tujhase akhila jagata vyavahāra ॥3॥

kaviyoṃ kī tūṃ śakti pradātrī।
sāre jaga kī bhūṣaṇa dātrī।
tere caraṇoṃ ke hama baṃde।
namo namo mātā jagadambe ॥4॥

pūrṇa brahma he santa sahāre।
paṃḍha़rīnātha rūpa tuma dhāre।
karūṇāsiṃdhu jaya dayānidhāna।
pāṃḍha़uraṃga narasiṃha bhagavāna॥5॥

sāre jaga kā sūtradhāra tūṃ।
isa saṃsrati kā surādhāra tūṃ।
karate śāstra tumhārā ciṃtana।
tat svarūpa meṃ ramate niśadina॥6॥

jo kevala pothī ke jñānī ।
nahīṃ pāte tujhako ve prāṇī।
buddhihīna pragaṭāye vāṇī।
vyartha vivāda kareṃ ajñānī॥7॥

tujhako jānate sacce saṃta।
pāye nahīṃ koī bhī aṃta।
pada-paṃkaja meṃ vinata praṇāma।
jayati-jayati śiraḍī ghanaśyāma॥8॥

paṃcavaktra śivaśaṃkara jaya ho।
pralayaṃkara abhyaṃkara jaya ho।
jaya nīlakaṇṭha he digaṃbara।
paśupatināṭha ke praṇava svarā॥9॥

hradaya se japatā jo tava nāma।
usake hote pūrṇa saba kāma।
sāṃī nāma mahā sukhadāī।
mahimā vyāpaka jaga meṃ chāī॥10॥

padāravinda meṃ karūṃ praṇāma।
stotra likhūṃ prabhu tere nāma।
āśīṣa varṣā karo nātha he ।
jagatapati he bholenātha he॥11॥

dattātreya ko karūṃ praṇāma।
viṣṇu nārāyaṇa jo sukhadhāma।
tukārāma se santajanoṃ ko।
praṇāma śata śata bhaktajanoṃ ko॥12॥

jayati-jayati jaya jaya sāṃī nātha he।
rakṣaka tūṃ hī dīnadayāla he।
mujhako kara do prabhu sanātha।
śaraṇāgata hūṃ tere dvāra he॥13॥

tūṃ hai pūrṇa brahma bhagavāna।
viṣṇu purūṣottama tūṃ sukhadhāma।
umāpati śiva tūṃ niṣkāma।
thā dahana kiyā nātha ne kāma॥14॥

narākāra tūṃ tūṃ hai parameśvara।
jñāna-gagana kā aho divākara।
dayāsiṃdhu tūṃ karūṇā-ākara।
dalana-roga bhava-mūla sudhākara॥15॥

nirdhana jana kā cintāmaṇi tūṃ।
bhakta-kāja hita surasuri jama tūṃ।
bhavasāgara hita naukā tūṃ hai।
nirāśritoṃ kā āśraya tūṃ hai॥16॥

jaga-kāraṇa tūṃ ādi vidhātā।
vimalabhāva caitanya pradātā।
dīnabaṃdhu karūṇānidhi tātā।
krīṅā terī adabhuta dātā॥17॥

tūṃ hai ajanmā jaga nirmātā।
tūṃ mṛtyuṃjaya kāla-vijetā।
eka mātra tūṃ jñeya-tatva hai।
satya-śodha se rahe prāpya hai॥18॥

jo ajñānī jaga ke vāsī।
janma-maraṇa kārā-grahavāsī।
janma-maraṇa ke āpa pāra hai।
vibhu niraṃjana jagadādhāra hai॥19॥

nirjhara se jala jaisā āye।
pūrvakāla se rahā samāye।
svayaṃ umaṃgita hokara āye।
jisane khuda hai strota bahāyeṃ॥20॥

śilā chidra se jyoṃ baha nikalā।
nirjhara usako nāma mila gayā।
jhara-jhara kara nirjhara bana chāyā।
mithyā svatva chidra se pāyā॥21॥

kabhī bharā aura kabhī sūkhatā।
jala nissaṃga ise nakāratā।
cidra śūnya ko salila na māne।
chidra kintu abhimāna bakhāne॥22॥

bhramavaśa chidra samajhatā jīvana।
jala na ho to kahā~ hai jīvana।
dayā pātra hai chidra vicāra।
dambha vyartha usane yoṃ dhārā॥23॥

yaha naradeha chidra sama bhāī।
cetana salila śuddha sthāyī।
chidra asaṃkhya huā karate haiṃ।
jalakaṇa vahī rahā karate haiṃ॥24॥

ataḥ nātha he parama dayāghana।
ajñāna naga kā karane vedhana।
vagra astra karate kara dhāraṇa।
līlā saba bhaktoṃ ke kāraṇa॥25॥

jaṅata chidra kitane hai sāre।
bhare jagata meṃ jaise tāre।
gata huye vartamāna abhī haiṃ।
yuga bhaviṣya ke bhīja abhī haiṃ॥26॥

bhinna-bhinna ye chidra sabhī hai।
bhinna-bhinna saba nāma gati hai।
pṛthaka-pṛthaka inakī pahacāna।
jaga meṃ koī nahīṃ anajāna॥27॥

cetana chidroṃ se ūpara hai।
“maiṃ tūṃ” antara nahīṃ ucita hai।
jahāṃ dvaita kā leśa nahīṃ hai।satya cetanā vyāpa rahī hai॥28॥

cetanā kā vyāpaka vistāra।
huā asase pūrita saṃsāra।
“terā merā” bheda avicāra।
parama tyājya hai bāhya vikāra॥29॥

megha garbha meṃ nihita salila jo।
jaṅataḥ nirmala nahīṃ bhinna so।
dharatī tala para jaba vaha ātā।
bheda-vibheda tabhī upajātā॥30॥

jo goda meṃ gira jātā hai।
vaha godāvarī bana jātā hai।
jo nāle meṃ gira jātā hai।
vaha apavitra kahalā jātā hai॥31॥

santa rūpa godāvarī nirmala।
tuma usake pāva avirala jala।
hama nāle ke salila malinatama।
bheda yahī donoṃ meṃ kevala॥32॥

karane jīvana svayaṃ kṛtārtha।
śaraṇa tumhārī āye nātha।
kara jore hama śīśa jhukāte।
pāvana prabhu para bali-bali jāte॥33॥

pātra-mātra se hai pāvanatā।
godā-jala kī ati nirmalatā।
salila sarvatra to eka samāna।
kahīṃ na dikhatā bhinna praṇāma॥34॥

godāvarī kā jo jalapātra।
kaise pāvana huā vaha pātra।
usake pīche marma eka hai।
guṇaḥ doṣa ādhāra neka hai॥35॥

megha-garbha se jo jala ātā।
badala nahīṃ vaha bhū-kaṇa pātā।
vahī kahalātā hai bhū-bhāga।
godāvarī jala puṇya-subhāga॥36॥

vanya bhūmi para girā megha jo।
yadyapi guṇa meṃ rahe eka jo।
nindita banā vahī kaṭukhārā।
gayā bhāgya se vaha dhikkārā॥37॥

sadagurū priya pāvana haiṃ kitane।
ṣaḍripuoṃ ke jītā jinane।
ati punīta hai gurū kī chāyā।
śiraḍī santa nāma śubha pāyā॥38॥

ataḥ santa godāvarī jyoṃ hai।
ati priya hita bhaktoṃ ke tyoṃ haiṃ।
prāṇī mātra ke prāṇādhāra।
mānava dharma avayaṃ sākāra॥39॥

jaga nirmāṇa huā hai jaba se।
puṇyadhāra surasaritā taba se।
satata pravāhita avirala jala se।
ruddhita kiṃcita huā na tala hai॥40॥

siyā lakhana saṃga rāma padhāre।
godāvarī ke puṇya kināre।
yuga atīta vaha bīta gayā hai।
salila vahī kyā śeṣa rahā hai॥41॥

jala kā pātra vahīṃ kā vaha hai।
jaladhi samāyā pūrva salila hai।
pāvanatā taba se hai vaisī।
pātra purātana yuga ke jaisī॥42॥

pūrava salila jātā hai jyoṃ hī।
nūtana jala ātā hai tyoṃ hī।
isī bhā~ti avatāra rīti hai।
yuga-yuga meṃ hotī pratīta hai॥43॥

bahu śatābdiyā~ saṃvat sara yoṃ।
una śatakoṃ meṃ santa pravara jyoṃ।
ho salila sarisa santa sākāra।
ūrmivibhūtiyāṃ aparaṃpāra॥44॥

surasaritā jyoṃ santa su-dhārā।
ādi mahāyuga le avatāra।
sanaka sanandana sanata kumāra।
santa vṛnda jyoṃ bāḍha़ apārā॥45॥

nārada tumbara punaḥ padhāre।
dhruva prahalāda balī tana dhāre।
śabarī aṃgada nala hanumāna।
gopa gopikā bidura mahānā॥46॥

santa susaritā baḍha़tī jātī।
śata-śata dhārā jaladhi samātī।
bāḍha़eṃ bahu yoṃ yuga-yuga ātī
varṇana nahīṃ vāṇī kara pātī॥47॥

santa rūpa godāvarī taṭa para।
kaliyuga ke nava madhya prahara para।
bhakti-bāḍha़ lekara tuma āye।
‘sāṃīnātha” sunāma tuma kahāye॥48॥

caraṇa kamala dvaya divya lalāma।
prabhu svīkāroṃ vinata praṇāma।
avaguṇa prabhu haiṃ anagina mere।
cita na dharoṃ prabhu doṣa ghanere॥49॥

maiṃ ajñānī pahita purātana।
pāpī dala kā parama śiromaṇī।
saca meṃ kuṭila mahākhalakāmī।
mata ṭhukarāoṃ antarayāmī॥50॥

doṣī kaisā bhī ho lohā।
pārasa svarṇa banātā cokhā।
nālā mala se bharā apāvana।
surasaritā karatī hai pāvana॥51॥

merā mana ati kaluṣa bharā hai।
nātha hradaya ati dayā bharā hai।
kṛpādraṣṭi se nirmala kara deṃ।
jholī merī prabhuvara bhara deṃ॥52॥

pāsasa kā saṃga jaba mila jātā।
loha suvarṇa yadi nahīṃ bana pātā।
taba to doṣī pārasa hotā।
virada vahī apanā hai khotā॥53॥

pāpī rahā yadi prabhu tava dāsa।
hotā āpakā hī upahāsa।
prabhu tuma pārasa,maiṃ hū~ lohā।
rākho tuma hī apanī śobhā॥54॥

aparādha kare bālaka ajñāna।
krodha na karatī jananī mahāna।
ho prabhu prema pūrṇa tuma mātā।
kṛpāprasāda dījiyeṃ dātā॥55॥

sadagurū sāṃī he prabhu mere।
kalpavṛkṣa tuma karūṇā prere।
bhavasāgara meṃ merī naiyā।
tūṃ hī bhagavāna pāra karaiyā॥56॥

kāmadhenū sama tūṃ cintā maṇi।jñāna-gagana kā tūṃ hai dinamaṇi।
sarva guṇoṃ kā tūṃ hai ākāra।
śiraḍī pāvana svarga dharā para॥57॥

puṇyadhāma hai atiśaya pāvana।
śāntimūrti haiṃ cidānandaghana।
pūrṇa bramha tuma praṇava rūpa heṃ।
bhedarahita tuma jñānasūrya heṃ॥58॥

vijñānamūrti aho purūṣottama।
kṣamā śānti ke parama niketana।
bhakta vṛnda ke ura abhirāma।
hoṃ prasanna prabhu pūraṇa kāma॥59॥

sadagurū nātha machindara tūṃ hai।
yogī rāja jālandhara tūṃ hai।
nivṛttinātha jñāneśvara tūṃ haiṃ।
kabīra ekanātha prabhu tūṃ hai॥60॥

sāvatā bodhalā bhī tūṃ hai।
rāmadāsa samartha prabhu tūṃ hai।
māṇika prabhu śubha santa sukha tūṃ।
tukārāma he sāṃī prabhu tūṃ॥61॥

āpane dhāre ye avatāra।
tatvataḥ eka bhinna ākāra।
rahasya āpakā agama apāra।
jāti-pā~ti ke prabho usa pāra॥62॥

koī yavana tumheṃ batalātā।
koī brāhmaṇa tumheṃ jatalātā।
kṛṣṇa carita kī mahimā jaisī।
līlā kī hai tumane taisī॥63॥

gopīyāṃ kahatīṃ kṛṣṇa kanhaiyā।
kahe ‘lāḍale’ yaśumati maiyā।
koī kaheṃ unheṃ gopāla।
giridhara yadūbhūṣaṇa naṃdalāla॥64॥

kaheṃ baṃśīdhara koī gvāla।
dekhe kaṃsa kṛṣṇa meṃ kāla।
sakhā uddhava ke priya bhagavāna।
gurūvata arjuna keśava jāna॥65॥

hradaya bhāva jisake ho jaise।
sadagurū ko dekhe vaha vaisā।
prabhu tuma aṭala rahe ho aise।
śiraḍī thala meṃ dhruva sama baiṭhe॥66॥

rahā masjida prabhu kā āvāsa।
tava chidrahīna karṇa ābhāsa।
muslima karate loga anumāna।
sama the tumako rāma rahamāna॥67॥

dhūnī tava agni sādhanā।
hotī jisase hindū bhāvanā।
“allā mālika” tuma the japate।
śivasama tumako bhakta sumarate॥68॥

hindū-muslima ūparī bheda।
subhakta dekhate pūrṇa abheda।
nahīṃ jānate jñānī vidveṣa।
īśvara eka para anagina veṣa॥69॥

pārabramha āpa svādhīna।
varṇa jāti se mukta āsīna।
hindū-muslima saba ko pyāre।
cidānanda gurūjana rakhavāre॥70॥

karane hindū-muslima eka।
karane dūra sabhī matabheda।
masjida agni joṅa kara nātā।
līlā karate jana-sukha-dātā॥71॥

prabhu dharma-jāti-bandha se hīna।
nirmala tatva satya svādhīna।
anubhavagamya tuma tarkātīta।
gūṃje anahada ātma saṃgīta॥72॥

samakṣa āpake vāṇī hāre।
tarka vitarka vyartha becāre।
parimati śabad hai bhāvābhāsa।
hūṃ maiṃ akiṃcana prabhu kā dāsa॥73॥

yadayapi āpa haiṃ śabadādhāra।
śabda binā na pragaṭeṃ gīta।
stuti karūṃ le śabadādhāra।
svīkāroṃ heṃ divya avatāra॥74॥

kṛpā āpakī pākara svāmī।
gātā guṇa-gaṇa yaha anugāmī।
śabadoṃ kā hī mādhyama merā।
bhakti prema se hai ura prerā॥75॥

santoṃ kī mahimā hai nyārī।
īśara kī vibhūti aniyārī।
santa sarasate sāmya sabhī se।
nahīṃ rakhate baira kisī se॥76॥

hiraṇyakaśipu rāvaṃa balavāna।
vināśa huā inakā jaga jāna।
deva-dveṣa thā isakā kāraṇa।
santa dveṣa kā kareṃ nivāraṇa॥77॥

gopīcanda anyāya karāye।
jālandhara mana meṃ nahīṃ lāye।
mahāsanta ke kiyā kṣamā thā।
parama śānti kā varaṇa kiyā thā॥78॥

baṅakara nṛpa-uddhāra kiyā thā।
dīrgha āyu varadāna diyā thā।
santoṃ kī mahimā jaga-pāvana।
kauna kara sake guṇa gaṇagāyana॥79॥

santa bhūmi ke jñāna divākara।
kṛpā jyoti dete karuṇākara।
śītala śaśi sama santa sukhada haiṃ।
kṛpā kaumudī prakhara avani hai॥80॥

hai kastūrī sama mohaka saṃta।
kṛpā hai unakī sarasa sugaṃdha।
īkharasavata hote haiṃ saṃta।
madhura surūci jyoṃ sukhada basaṃta॥81॥

sādhu-asādhu sabhī pā karūṇā।
dṛṣṭi samāna sabhī para rakhanā।
pāpī se kama pyāra na karate।
pāpa-tāpa-hara-karūṇā karate॥82॥

jo mala-yuta hai bahakara ātā।
surasari jala meṃ āna samātā।
nirmala maṃjūṣā meṃ rahatā।
surasari jala nahīṃ vaha gahatā॥83॥

vahī vasana ika bāra thā āyā।
maṃjūṣā meṃ rahā samāyā।
avagāhana surasari meṃ karatā।
dhūla kara nirmala khuda ko karatā॥84॥

sudraḍha़ maṃjūṣā hai baikuṇṭha।
alaukika niṣṭhā gaṃga taraṃga।
jīvātmā hī vasana samajhiye।
ṣaḍ vikāra hī maila samajhiye॥85॥

jaga meṃ tava pada-darśana pānā।
yahī gaṃgā meṃ ḍūba nahānā।
pāvana isase hote tana-mana।
mala-vimukta hotā vaha tatkṣaṇa॥86॥

dukhada vivaśa haiṃ hama saṃsārī।
doṣa-kālimā hama meṃ bhārī।
santa daraśa ke hama adhikārī।
mukti hetu nija bāṭa nihārī॥87॥

godāvarī pūrita nirmala jala।
mailī gaṭharī bhīgī tatjala।
bana na sakī yadi phira bhī nirmala।
kyā na doṣayuta godāvari jala॥88॥

āpa saghana haiṃ śītala tarūvara।
śrānta pathika hama ḍagamaga patha hama।
tape tāpa traya mahāprakhara tama।
jeṭha dupaharī jalate bhūkaṇa॥89॥

tāpa hamāre dūra nivāroṃ।
mahā vipada se āpa ubāroṃ।
karoṃ nātha tuma karūṇā chāyā।
sarvajñāta terī prabhu dayā॥90॥

parama vyartha vaha chāyātarū hai।
dūra kare na tāpa prakhara haiṃ।
jo śaraṇāgata ko na bacāye।
śītala tarū kaise kahalāye॥91॥

kṛpā āpakī yadi nahīṃ pāye।
kaise nirmala hama raha jāveṃ।
pāratha-sātha rahe the giradhara।
dharma hetu prabhu pā~cajanya-dhara॥92॥

sugrīva kṛpā se danuja bibhīṣaṇa।
pāyā prāṇatapāla raghupati pada।
bhagavata pāte amita baṅāī।
santa mātra ke kāraṇa bhāī॥93॥

neti-neti haiṃ veda ucarate।
rūparahita haiṃ brahma vicarate।
mahāmaṃtra santoṃ ne pāye।
saguṇa banākara bhū para lāyeṃ॥94॥

dāmā e diyā rūpa mahāra।
rukamaṇi-vara trailokya ādhāra।
cokhī jī ne kiyā kamāla।
viṣṇu ko diyā karma paśupāla॥95॥

mahimā santa īśa hī jāneṃ।
dāsanudāsa svayaṃ bana jāveṃ।
saccā santa baṅappana pātā।
prabhu kā sujana atithi ho jātā॥96॥

aise santa tumhīṃ sukhadātā।
tumhīṃ pitā ho tuma hī mātā।
sadaguru sāṃīnātha hamāre।
kaliyuga meṃ śiraḍī avatāreṃ॥97॥

līlā tihārī nātha mahāna।
jana-jana nahīṃ pāyeṃ pahacāna।
jivhā kara nā sake guṇagāna।
tanā huā hai rahasya vitāna॥98॥

tumane jala ke dīpa jalāyeṃ।
camatkāra jaga meṃ the pāyeṃ।
bhakta uddhāra hita jaga meṃ āyeṃ।
tīratha śiraḍī dhāma banāe॥99॥

jo jisa rūpa āpako dhyāyeṃ।
deva sarūpa vahī tava pāyeṃ।
sūkṣama takta nija seja banāyeṃ।
vicitra yoga sāmartha dikhāyeṃ॥100॥

putra hīna santati pā jāveṃ।
roga asādhya nahīṃ raha jāveṃ।
rakṣā vaha vibhūti se pātā।
śaraṇa tihārī jo bhī ātā॥101॥

bhakta janoṃ ke saṃkaṭa harate।
kārya asambhava sambhava karateṃ।
jaga kī cīṃṭī bhāra śūnya jyoṃ।
samakṣa tihāre kaṭhina kārya tyoṃ॥102॥

sāṃī sadagurū nātha hamāreṃ।
rahama karo mujha para he pyāre।
śaraṇāgata hū~ prabhu apanāyeṃ।
isa anātha ko nahīṃ ṭhukarāyeṃ॥103॥

prabhu tuma ho rājya rājeśvara।
kubera ke bhī parama adhīśvara।
deva dhanvantarī tava avatāra।
prāṇadāyaka hai sarvādhāra॥104॥

bahu devoṃ kī pūjana karateṃ।
bāhya vastu hama saṃgraha karate।
pūjana prabhu kī śīdhī-sādhā।
bāhya vastu kī nahīṃ upādhī॥105॥

jaise dīpāvalī tyauhāra।
āye prakhara sūraja ke dvāra।
dīpaka jyotiṃ kahāṃ vaha lāye।
sūrya samakṣa jo jagamaga hoveṃ॥106॥

jala kyā aisā bhū ke pāsa।
bujhā sake jo sāgara pyāsa।
agni jisase uṣmā pāyeṃ।
aisā vastu kahāṃ hama pāveṃ॥107॥

jo padārtha haiṃ prabhu pūjana ke।
ātma-vaśa ve sabhī āpake।
he samartha gurū deva hamāre।
nirguṇa alakha niraṃjana pyāre॥108॥

tatvadraṣṭi kā darśana kucha hai।
bhakti bhāvanā-hradaya satya haiṃ।
kevala vāṇī parama nirarthaka।
anubhava karanā nija meṃ sārthaka॥109॥

arpita kaṃrū tumheṃ kyā sāṃī।
vaha sampatti jaga meṃ nahīṃ pāī।
jaga vaibhava tumane upajāyā।
kaise kahūṃ kamī kucha dātā॥110॥

“patraṃ-puṣpaṃ” vinata caḍha़āūṃ।
prabhu caraṇoṃ meṃ citta lagāūṃ।
jo kucha milā mujhe heṃ svāmī।
karūṃ samarpita tana-mana vāṇī॥111॥

prema-aśru jaladhāra bahāūṃ।
prabhu caraṇoṃ ko maiṃ nahalāūṃ।
candana banā hradaya nija gārūṃ।
bhakti bhāva kā tilaka lagāūṃ॥112॥

śabdābhūṣṇa-kaphanī lāūṃ।
prema niśānī vaha pahanāūṃ।
praṇaya-sumana upahāra banāūṃ।
nātha-kaṃṭha meṃ pulaka caḍha़āūṃ॥113॥

āhuti doṣoṃ kī kara ḍālūṃ।
vedī meṃ vaha homa uchālūṃ।
durvicāra dhūmra yoṃ bhāge।
vaha durgaṃdha nahīṃ phira lāge॥114॥

agni sarisa haiṃ sadagurū samartha।
durguṇa-dhūpa kareṃ hama arpita।
svāhā jalakara jaba hotā hai।
tadarūpa tatkṣaṇa bana jātā hai॥115॥

dhūpa-dravya jaba usa para caḍha़tā।
agni jvālā meṃ hai jalatā।
surabhi-astitva kahāṃ rahegā।
dūra gagana meṃ śūnya banegā॥116॥

prabhu kī hotī anyathā rīti।
banatī kuvastu jala kara vibhuti।
sadaguṇa kundana sā bana damake।
śāśavata jaga baḍha़ nirakhe parakhe॥117॥

nirmala mana jaba ho jātā hai।
durvikāra taba jala jātā hai।
gaṃgā jyoṃ pāvana hai hotī।
avikala dūṣaṇa mala vaha dhotī॥118॥

sāṃī ke hita dīpa banāūṃ।
satvara māyā moha jalāūṃ।
virāga prakāśa jagamaga hoveṃ।
rāga andha vaha ura kā khāveṃ॥119॥

pāvana niṣṭhā kā siṃhāsana।
nirmita karatā prabhu ke kāraṇa।
kṛpā kareṃ prabhu āpa padhāreṃ।
aba naivedya-bhakti svīkāreṃ॥120॥

bhakti-naivedya prabhu tuma pāoṃ।
sarasa-rāsa-rasa hameṃ pilāoṃ।
mātā, maiṃ hū~ vatsa tihārā।
pāūṃ tava dugdhāmṛta dhārā॥121॥

mana-rūpī dakṣiṇā cukāūṃ।
mana meṃ nahīṃ kucha aura basāūṃ।
aham bhāva saba karūṃ samparṇa।
antaḥ rahe nātha kā darpaṇa॥122॥

binatī nātha punaḥ duharāūṃ।
śrī caraṇoṃ meṃ śīśa namāūṃ।
sāṃī kaliyuga brahma avatāra।
karoṃ praṇāma mere svīkāra॥123॥

oṃ sāṃī rāma!!!

prārthanāṣṭaka

śānta citta prajñāvatāra jaya।
dayā-nidhāna sāṃīnātha jaya।
karuṇā sāgara satyarūpa jaya।
mayātama saṃhāraka prabhu jaya॥124॥

jāti-gotra-atīta siddheśvara।
acintanīyaṃ pāpa-tāpa-hara।
pāhimām śiva pāhimām śiva।
śiraḍī grāma-nivāsiya keśava॥125॥

jñāna-vidhātā jñāneśvara jaya।
maṃgala mūrata maṃgalamaya jaya।
bhakta-vargamānasa-marāla jaya।
sevaka-rakṣaka praṇatāpāla jaya॥126॥

sraṣṭi racayitā brahmā jaya-jaya।
ramāpate he viṣṇu rūpa jaya।
jagata pralayakartā śiva jaya-jaya।
mahārudra heṃ abhyaṃkara jaya॥127॥

vyāpaka īśa samāyā jaga tūṃ।
sarvaloka meṃ chāyā prabhu tūṃ।
tere ālaya sarvahradaya haiṃ।
kaṇa-kaṇa jaga saba sāṃī īśvara hai॥128॥

kṣamā kare aparādha hamāreṃ।
rahe yācanā sadā murāre।
bhrama-saṃśaya saba nātha nivāreṃ।
rāga-raṃga-rati se uddhāre॥129॥

maiṃ hū~ bachaṅā kāmadhenu tūṃ।
candrakāntā maiṃ pūrṇa indu tūṃ।
namāmi vatsala praṇamya jaya।
nānā svara bahu rūpa dhāma jaya॥130॥

mere sira para abhaya hasta doṃ।
cinta roga śoka tuma hara lo।
dāsagaṇū ko prabhu apanāoṃ।
‘bhūpati’ ke ura meṃ basa jaoṃ॥131॥

kavi stuti kara jore gātā।
hoṃ anukampā sadā vidhātā।
pāpa-tāpa duḥkha dainya dūra ho।
nayana basā nita tava sarūpa hoṃ॥132॥

jyau gau apanā vatsa dulāre।
tyau sāīṃ mā~ dāsa dulāre।
nirdaya nahīṃ bano jagadambe।
isa śiśu ko dulāro aṃbe ॥133॥

candana taruvara tuma ho svāmī।
hīna-paudha hūṃ maiṃ anugāmī।
surasari samāṃ tū hai atipāvana।
durācāra rata maiṃ kardamavata ॥134॥

tujhase lipaṭa rahū yadi malayuta।
kauna kahe tujhako candana taru।
sadaguru terī tabhī baḍa़āī।
tyāgo mana jaba satata burāī ॥135॥

kasturī kā jaba sātha mile।
ati māṭī kā taba mola baḍa़e।
surabhita sumanoṃ kā sātha mile।
dhāge ko bhī sama surabhi mile ॥136॥

mahāna janoṃ kī hotī rīti।
jīnā para huī haiṃ unakī prīti।
vahī padārtha hotā anamola।
nahīṃ jaga meṃ usakā phira taulā ॥137॥

rahā naṃdī kā bhasma kopīnā।
saṃcaya śiva ne kiyā ādhīna।
gaurava usane jana se pāyā।
śiva saṃgata ne yaśa phailāyā॥138॥

yamunā taṭa para racāyeṃ।
vṛndāvana meṃ dhūma macāyeṃ।
gopīraṃjana kareṃ murārī।
bhakta-vṛnada moheṃ giradhārī॥139॥

hoṃveṃ dravita prabhoṃ karūṇāghana।
mere priyatama nātha hradayaghana।
adhamādhama ko āna tāriyeṃ।
kṣamā sindhu aba kṣamā dhāriyeṃ॥140॥

abhyudaya niḥśreyasa pāū।
aṃtarayāmī se yaha cāhūṃ।
jisameṃ hita ho mere dātā।
vahī dījiyeṃ mujhe vidhātā॥141॥

maiṃ to kaṭu jalahūṃ prabhu khārā।
tuma meṃ madhu sāgara laharātā।
kṛpā-biṃdu ika pāū terā।
madhurima madhu bana jāyeṃ merā॥142॥

he prabhu āpakī śakti apāra।
tihāre sevaka hama sarakāra।
khārā jaladhi kareṃ prabhu mīṭhā।
dāsagaṇu pāve mana-cītā॥143॥

siddhavṛnda kā tuṃ samrāṭa।
vaibhava vyāpaka brahma virāṭa।
mujhameṃ aneka prakāra abhāva।
akiṃcana nātha kareṃ nirvāha॥144॥

kathana atyadhika nirā vyartha haiṃ।
ādhāra eka guru samartha haiṃ ।
mā~ kī godī meṃ jaba suta ho।
bhayabhīta kaho kaise taba ho॥145॥

jo yaha stotra paḍa़e prati vāsara।
premārpita ho gāye sādara ।
mana-vā~chita phala nātha avaśa deṃ।
śāśavata śānti satya guruvara deṃ॥146॥

siddha varadāna stotra dilāve।
divya kavaca sama satata bacāveṃ।
suphala varṣa meṃ pāṭhaka pāveṃ।
jaga trayatāpa nahīṃ raha jāveṃ॥147॥

nija śubhakara meṃ stotra sambhālo।
śucipavitra ho svara ko ḍhālo।
prabhu prati pāvana mānasa kara lo।
stotra paṭhana śraddhā se kara lo॥148॥

gurūvāra divasa guru kā mānoṃ।
sataguru dhyāna citta meṃ ṭhānoṃ।
sthotharā paṭhana ho ati phaladāī।
mahāprabhāvī sadā-sahāī॥149॥

vrata ekādaśī puṇya suhāī।
paṭhana sudina isakā kara bhāī।
niścaya camatkāra thama pāo।
śubha kalyāṇa kalpataru pāo॥150॥

uttama gati stotra pradātā।
sadagurū darśana pāṭhaka pātā।
iha paraloka sabhī ho śubhakara।
sukha saṃtoṣa prāpta ho satvara॥151॥

stotra pārāyaṇa sadya: phala de।
manda-buddhi ko buddhi prabala de।
ho saṃrakṣaka akāla maraṇa se।
hoṃ śatāyu jā stotra paṭhana se॥152॥

nirdhana dhana pāyegā bhāī।
mahā kubera satya śiva sāīṃ।
prabhu anukampā stotra samāī।
kavi-vāṇī śubha-sugama sahāī॥153॥

saṃtatihīna pāyeṃ santāna।
dāyaka stotra paṭhana kalyāṇa।
mukta roga se hogī kāyā।
sukhakara ho sāīṃ kī chāyā॥154॥

stotra-pāṭha nita maṃgalamaya hai।
jīvana banatā sukhada prakhara hai।
brahmavicāra gahanatara pāo।
ciṃtāmukta jiyo harṣāo॥155॥

ādara ura kā ise caḍha़āo।
aṃta draḍha़ viśvāsa bāsāo।
tarka vitarka vilaga kara sādho।
śuddha viveka buddhi avarādho॥156॥

yātrā karo śiraḍī tīrtha kī।
lagana lagī ko nātha caraṇa kī।
dīna dukhī kā āśraya jo haiṃ।
bhakta-kāma-kalpa-druma soheṃ॥157॥

supreraṇā bābā kī pāūṃ।
prabhu ājñā pā stotra racāūṃ।
bābā kā āśīṣa na hotā।
kyoṃ yaha gāna patita se hotā॥158॥

śaka śaṃvata aṭharaha cālīsā।
bhādoṃ māsa śukla gaurīśā।
śāśivāra gaṇeśa cautha śubha tithi।
pūrṇa huī sāīṃ kī stuti॥159॥

puṇya dhāra revā śubha taṭa para।
māheśvara ati puṇya suthala para।
sāīṃnātha stavana maṃjarī।
rājya-ahilyā bhū meṃ utārī॥160॥

māndhātā kā kṣetra purātana।
pragaṭā stotra jahāṃ para pāvana।
huā mana para sāīṃ adhikāra।
samajho maṃtra sāīṃ udagāra॥161॥

dāsagaṇu kiṃkara sāīṃ kā।
raja-kaṇa saṃta sādhu caraṇoṃ kā।
lekha-baddha dāmodara karate।
bhāṣā gāyana ‘ bhūpati’ karate॥162॥

sāīṃnātha stavana maṃjarī।
tāraka bhava-sāgara-hrada-tantrī।
sāre jaga meṃ sāīṃ chāye।
pāṇḍuraṃga guṇa kikaṃra gāye॥163॥

śrīhariharāparṇamastu | śubhaṃ bhavatu | puṇḍalika varadā viṭhṭhala |
sītākāṃta smaraṇa | jaya jaya rāma | pārvatīpate hara hara mahādeva |

śrī sadaguru sāīṃnātha mahārāja kī jaya ॥
śrī sadaguru sāīṃnāthaparṇamastu ॥

jaya sāṃī rāma!!!

oṃ sāṃī rāma!!!

॥śrī saccidānanda sadaguru sāīnātha mahārāja kī jaya ॥
॥oṃ rājādhirāja yogirāja parabrahya sāṃīnātha mahārāja॥
॥śrī saccidānanda sadaguru sāīnātha mahārāja kī jaya ॥

jaya sāṃī rāma!!

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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