मिश्री के डेली का हीरा – अकबर-बीरबल की कहानी हिंदी में
“मिश्री के डेली का हीरा” कहानी बीरबल की चतुराई के साथ ही उदार-हृदयता को दिखाती है। इस कहानी में बड़े रोचक तरीक़े से बताया गया है कि कैसे बीरबल का दिल पसीजता है और वह अकबर से ग़रीब वृद्ध के लिए धन निकलवाता है।
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एक दिन रात्रि समय बीरबल किसी कार्यवश नगर से बाहर दूसरे ग्राम को जा रहा था। थोड़ी दूर जाने के बाद उसे एक झोपड़ा दिखाई पड़ा। उस झोपड़े से किसी के रोने की आवाज आ रही थी। अर्धरात्रि के समय फूट-फूट कर रोने का शब्द सुन बीरबल से न रहा गया। वह झोपड़े के पास जा पहुँचा। दरवाजा बन्द था।
बीरबल ने आवाज देकर कई बार पुकारा, “भाई! अभी इस झोपड़े में कौन आदमी रो रहा था?” उस झोपड़े से एक बुड्ढा मनुष्य बाहर निकला और लड़खड़ाते हुए बोला, “आपको रोने वाले से क्या गरज पड़ी है? मैं ही रो रहा था?” बीरबल उसे अँधेरे में देखकर भली भाँति पहचान न सका। वह एक बूढ़ा पुरुष जान पड़ता था। उसके शरीर के चमड़े झूल गये थे। कमर झुककर धनुषाकार हो रही थी।
बीरबल ने आग्रहपूर्वक उससे ऐसी रात्रि में रोने का कारण पूछा। तब बुड्ढा बोला, “भला आपसे रोने का कारण बतलाने से मुझे क्या लाभ होगा? नाहक एक अपरिचित आदमी के सामने दुखड़ा रोकर अपनी अमर्यादा क्यों कराऊँ?”
बीरबल ने उसकी सहायता करने का वचन दिया। तब वह बुड्ढा बोला, “अच्छा, यदि आप सुनना ही चाहते हैं तो सुनें। इस समय मेरी अवस्था सत्तर के लगभग पहुँच चुकी है। ईश्वर ने एक लाल दिया था, सो भी चल बसा। घर में मेरी रखवाली वा भरण पोषण करने वाला कोई भी नहीं है। बेचारा लड़का कमा कर लाता था। उससे हम पिता पुत्र का भरण-पोषण भलीभाँति हो जाया करता था। मेरे से काम नहीं हो सकता। बड़ी जोर लगाकर भी तीन चार पैसे से अधिक की मजदूरी नहीं कर पाता। महीने में ऐसा एक भी सौभाग्य का दिन नहीं होता, जिस दिन मैं भर पेट भोजन कर चैन की नींद सोऊँ। लड़के की सोच अलग मारे डालती है। आज तीन दिनों से बराबर फाँका कर रहा हूँ। उदर की ज्वाला अबर्दास्त होने से रो रहा था।”
बीरबल ने सोचा कि यह अँधेरी रात है। चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा नजर आ रहा है। ऐसी हालत में तत्काल इस आदमी की भला मैं क्या सहायता कर सकता हूँ। बेहतर होगा कि कल प्रातःकाल इसे अपने मकान पर बुलाऊँ। उसने प्रकट रूप में कहा, “चाचा जी! यह रात्रि का समय है। थोड़ी देर और अपनी झोपड़ी में जाकर आराम कीजिए। तड़के उठकर दीवान खाने में आना। मेरा नाम बीरबल है।” इतना कहकर बीरबल चला गया और बुड्ढा भी झोपड़ी में पड़ा हुआ सबेरा होने की प्रतीक्षा करने लगा। सारी रात उसको निद्रा न आई।
सूर्योदय होते ही ठेगता हुआ दीवान के घर पहुँचा। बीरबल ने ने बुड्ढे की बड़ी आवभगत की और अच्छा अच्छा पदार्थ भोजन कराया। जब वह खा पीकर सन्तुष्ट हुआ तो बीरबल ने कहा, “चाचा जी! इस समय मैं आपको केवल पन्द्रह दिन का खर्च देकर विदा करता हूँ। इसके बीच मिश्री की एक डेली लेकर उसे हीरे की शक्ल का बनाकर मेरे पास लाना, तब मैं आपको आगे की तरकीब बतलाऊँगा।”
बुड्ढा बीरबल को आशीर्वाद देता हुआ घर लौट गया। आठ-दस दिनों के अन्तर्गत वह एक मिश्री के टुकड़े को खूब घिस छीलकर हीरे के आकार का बनाकर बीरबल के पास ले आया। बीरबल ने उस नकली हीरे को हाथ में लेकर देखा। निःसन्देह वह बनावटी हीरा असली हीरे को मात कर रहा था।
बीरबल ने बूढ़े से कहा, “चाचाजी, इसको लेकर कल फिर आइयेगा। आपको बादशाह अकबर के पास चलना होगा। मैं इसे बादशाह के हाथ बेचकर आपको एक अच्छी रकम दिलाऊँगा।”
दूसरे दिन बीरबल बुड्ढे चाचा को साथ लेकर रोज से पहले ही राज महल में जा पहुँचा। उसे देखकर अकबर को कुछ कारण विशेष जान पड़ा, इसलिये उससे पूछा, “क्यों बीरबल, आज इतनी जल्दी क्योंकर आना हुआ?” बीरबल ने विनम्रता से उत्तर दिया, “गरीबपरवर! यह कारीगर एक उत्तम हीरा लेकर मेरे साथ आया है। यह उस हीरे को बेचना चाहता है। मुझे विश्वास है कि यह चीज आपके पसन्द की होगी।”
इतना कहकर उसने हीरे को बादशाह के हाथ में दे दिया। बादशाह ने हीरे को भली-भाँति देखकर कहा, “बीरबल! हीरा तो लाजवाब है। परन्तु बूढ़े जौहरी से कहो कि इसे लेकर दो घण्टे पश्चात हाजिर होवे।” बुड्ढा वहाँ से हट गया। तब बादशाह ने बीरबल को उसकी भलीभाँति जाँच कराने की आज्ञा दी।
बीरबल इधर उधर घूम फिर कर आ गया और बोला, “पृथ्वीनाथ! इसके अच्छा होने में कोई सन्देह नहीं है। हीरे को आप अपने पास रक्खें।” बीरबल के इस उत्तर से बादशाह को सन्तोष हुआ और फिर बोला, “हीरे को खरीदने से पहले और जाँच करा लो।”
बीरबल बोला, “पृथ्वीनाथ! इस समय हीरे को अपने मुख में रख लीजिये, फिर जाँच होती रहेगी।” बादशाह ने हीरे को मुख में छिपा लिया। बादशाह की आज्ञानुसार बूढ़े चाचा के आने का समय हुआ और वे ठेगते-ठेगते दरबार में पुनः हाजिर हुए। उसे देख बीरबल ने बादशाह से कहा, “ग़रीबपरवर! देखिये, वह हीरे वाला वृद्ध भी आन पहुंचा। उसे अब क्या कहकर उत्तर देना होगा।”
अकबर ने बीरबल की तरफ देखकर पूछा, “क्यों बीरबल! वह हीरा तो मैंने तुम्हीं को दिया था न।” बीरबल ने साफ इन्कार कर दिया और बोला-“पृथ्वीनाथ! उसे तो आपने अपने पास ही रख लिया था।” बादशाह को भी बीरबल की बात सच्ची जान पड़ी, खबर नहीं कि आखिरस उसे रक्खा किस जगह।
उसने हीरे का बहुतेरा खोज किया, परन्तु जब कहीं हो तब तो मिले। वह तो मुख में गलकर पानी हो गया था। लाचार होकर बादशाह बोला, “अच्छा बीरबल! बुड्ढे व्योपारी से उसका मूल्य निश्चित कर लो। परन्तु उससे कोई झकझक न करना।” हुक्म मिलते ही बीरबल ने बूढ़े चाचा से हीरे का मूल्य पूछा। वह बोला, “दीवान जी! हीरे का असली मूल्य दो हजार मुहरें हैं और दो सौ मुहरें मैं नफ़े में लूंगा।”
बीरबल ने कहा, “नहीं, तुम्हें नफे में पचास मुहरें ही दी जायेंगी। बूढ़ा दुखित मन से बोला, “सरकार! यदि आपको मुनाफे की दो सौ मोहरें देनी स्वीकार हो तब तो लेवें। नहीं तो कृपाकर मेरा माल मेरे हवाले करें।”
बीरबल मूल्य में कमी कराने के लिये उससे बार-बार बनावटी माथापच्ची करता रहा। अन्त में झुँझलाकर बोला, “बुड्ढे! इतनी टिर-टिर क्यों करता है? अच्छा, पचास मोहरें और ले लेना।” परन्तु बूढ़े चाचा तो पक्के गुरु के चेला थे। भला वे कब मानने लगे। मुँह बनाकर बोले, “दीवान जी! इस प्रकार मुझ ग़रीब को क्यों दबाते हैं। मैं दो सौ मुहरों से एक कौड़ी भी कम न लूँगा।”
अकबर ने इन दोनों की बड़ी देर की झक-झक सुन क्रोधित होकर पूछा, “क्यों बीरबल! व्यापारी क्या कहता है?” बीरबल ने उत्तर दिया, “पृथ्वीनाथ! वह हीरे की लागत दो हजार मुहरें बतलाता है और मुनाफ़े की दो सौ मुँहरें अलग से माँगता है। मैं इसके नफे में कमी करवाता हूँ और केवल एक सौ मुहरें ही देना चाहता हूँ।”
बादशाह ने बीरबल को इशारे से मना किया और उदारतापूर्वक बूढ़े जौहरी को हीरे का मूल्य और दो सौ मुनाफे की मुहर खजांची से दिलवाकर विदा किया। वृद्ध की प्रसन्नता बाँसों उछल पड़ी और मनोमन बीरबल को कोटिशः धन्यवाद देता हुआ अपने घर चला गया।
शाम को दरबार से अवकाश पाकर जब बीरबल घर पहुंचा, तो जौहरी बूढ़े चाचा को प्रस्तुत पाया। बूढ़ा बीरबल को देखकर प्रसन्नता से रोमांचित हो गया और बोला, “आप और आपकी बुद्धि धन्य हैं। दीवान साहब! आप जो मुझ सरीखे दीनों पर उपकार कर रहे हैं, उसका फल ईश्वर आपको हाथों हाथ देगा। मुझे विश्वास हो गया है कि इस पृथ्वी मंडल पर आप ऐसा प्रजापालक दूसरा दीवान नहीं है।”
उसकी ऐसी अनेकों प्रशंसा की बातें सुनकर उसके सन्तोषार्थ बीरबल ने कहा, “चाचा जी! इसमें मेरा क्या उपकार है। यह सब आपको आपकी बुद्धिमानी का प्रतिफल मिला है।” बुड्ढा इस पर आवाक हो गया और कोटि कोटि आशीर्वाद देता हुआ अपने घर चला गया।
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