धर्म

साईं चालीसा – Sai Chalisa in Hindi

साईं चालीसा पढ़ना न केवल साईं बाबा को याद करना है, बल्कि उनकी कृपा पाने का भी साधन है। जो कोई सच्चे मन से बाबा को याद करता है, वे उसके सब दुःख-दर्द दूर कर देते हैं। साईं चालीसा (Sai Chalisa) भक्त के दिल से निकली हुई पुकार है, जिसे शिरडी वाले बाबा कभी अनसुना नहीं करते हैं।

बाबा ने हर भक्त को श्रद्धा और सबूरी का जो मंत्र दिया है, उसे दिल में रखते हुए जो इस चालीसा का पाठ करता है, बाबा उसके बिगड़े काम भी बना देते हैं। पढ़ें साईं चालीसा हिंदी में (Sai Chalisa in Hindi)–

यह भी देखें – साईं बाबा की व्रत कथा

पहले साईं के चरणों में,
अपना शीश नवाऊँ मैं।

कैसे शिर्डी साईं आए
सारा हाल सुनाऊँ मैं।

कौन हैं माता, पिता कौन हैं,
यह न किसी ने भी जाना।

कहाँ जनम साईं ने धारा,
प्रश्न पहली सा रहा बना।

कोई कहे अयोध्या के,
ये रामचन्द्र भगवान हैं।

कोई कहता साईं बाबा,
पवन-पुत्र हनुमान हैं।

कोई कहता है मंगल मूर्ति,
श्री गजानन हैं साई।

कोई कहता गोकुल
मोहन देवकी नन्दन हैं साईं।

शंकर समझे भक्त कई तो,
बाबा को भजते रहते।

कोई कहे अवतार दत्त का,
पूजा साईं की करते।

कुछ भी मानो उनको तुम,
पर साईं हैं सच्चे भगवान।

बड़े दयालु, दीनबन्धु,
कितनों को दिया जीवन दान।

कई वर्ष पहले की घटना,
तुम्हें सुनाऊँगा मैं बात।

किसी भाग्यशाली की,
शिर्डी में आई थी बारात।

आया साथ उसी के था,
बालक एक बहुत सुन्दर।

आया, आकर वहीं बस गया,
पावन शिर्डी किया नगर।

कई दिनों तक रहा भटकता,
भिक्षा माँगी उसने दर-दर।

और दिखायी ऐसी लीला,
जग में जो हो गई अमर।

जैसे जैसे उमर बढ़ी,
बढ़ती गई वैसे ही शान।

घर-घर होने लगा नगर में,
साईं बाबा का गुणगान।

दिन दिगन्त में लगा गूंजने,
फिर तो साईंजी का नाम।

दीन-दुखी की रक्षा करना,
यही रहा बाबा का काम।

बाबा के चरणों में जाकर,
जो कहता मैं हूँ निर्धन।

दया उसी पर होती उनकी,
खुल जाते दुःख के बन्धन।

कभी किसी ने माँगी भिक्षा,
दो बाबा मुझको सन्तान।

एवमस्तु तब कहकर साईं,
देते थे उसको वरदान ।

स्वयं दुःखी बाबा हो जाते,
दीन-दुखी जन का लख हाल।

अन्तःकरन श्री साईं का,
सागर जैसा रहा विशाल।

भक्त एक मद्रासी आया,
घर का बहुत बड़ा धनवान।

माल खजाना बेहद उसका,
केवल नहीं रही सन्तान।

लगा मनाने साईं नाथ को,
बाबा मुझ पर दया करो।

झंझा से झंकृत नैया को,
तुमहीं मेरी पार करो।

कुलदीपक के बिना अंधेरा,
छाया हुआ है घर में मेरे।

इसलिए आया हूँ बाबा,
होकर शरणागत तेरे।

कुलदीपक के ही अभाव में,
व्यर्थ है दौलत की माया।

आज भिखारी बनकर बाबा,
शरण तुम्हारी मैं आया।

दे-दो मुझको पुत्र-दान,
मैं ऋणी रहूँगा जीवन भर।

और किसी की आशा न मुझको,
सिर्फ भरोसा है तुम पर।

अनुनय-विनय बहुत की उसने,
चरणों में धरकर के शीश।

तब प्रसन्न होकर बाबा ने,
दिया भक्त को यह आशीष।

अल्ला भला करेगा तेरा,
पुत्र जन्म हो तेरे घर।

कृपा रहेगी तुझ पर उसकी,
और तेरे उस बालक पर।

अब तक नहीं किसी ने पाया,
साईं की कृपा का पार।

पुत्र रत्न दे मद्रासी को,
धन्य किया उसका संसार।

तन-मन से जो भजे उसी का,
जग में होता है उद्धार।

साँच को आँच नहीं है कोई,
सदा, झूठ की होती हार।

मैं हूँ सदा सहारे उसके,
सदा रहूँगा उसका दास।

साईं जैसा प्रभु मिला है,
इतनी ही कम है क्या आस।

मेरा भी दिन था इक ऐसा,
मिलती नहीं मुझे थी रोटी।

तन पर कपड़ा दूर रहा था,
शेष रही नन्ही सी लंगोटी।

सरिता सन्मुख होने पर भी,
मैं प्यासा था।

दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर,
दावाग्न बरसाता था।

धरती के अतिरिक्त जगत में,
मेरा कुछ अवलम्ब न था।

बना भिखारी मैं दुनिया में,
दर-दर ठोकर खाता था।

ऐसे में इक मित्र मिला जो,
परम भक्त साईं का था।

जंजालों से मुक्त मगर,
जगती में वह भी मुझ सा था।

बाबा के दर्शनों की खातिर,
मिल दोनों के किया विचार।

साईं जैसे दया मूर्ति के,
दर्शन को हो गए तैयार।

पावन शिडी नगर में जाकर,
देखी मतवाली मूरति।

धन्य जनम हो गया कि हमने,
जब देखी साईं की मूरति।

जब से किए हैं दर्शन हमने,
दुःख सारा काफूर हो गया।

संकट सारे मिटे और,
विपदाओं का हो अन्त गया।

मान और सम्मान मिला,
भिक्षा में हमको सब बाबा से।

प्रतितिम्बित हो उठे जगत में,
हम साईं की आज्ञा से।

बाबा ने सम्मान दिया है,
मान दिया इस जीवन में।

इसका सम्बल ले मैं,
हँसता जाऊँगा जीवन में।

साई की लीला का मेरे,
मन पर ऐसा असर हुआ।

लगता, जगती के कण-कण में,
जैसे हो वह भरा हुआ।

काशीराम बाबा का भक्त,
इस शिर्डी में रहता था।

मैं साईं का, साईं मेरा,
वह दुनिया से कहता था।

सिलकर स्वयं वस्त्र बेचता,
ग्राम-नगर बाजारों में।

झंकृति उसकी हृदय तन्त्री थी,
साईं की झंकारों में।

स्तब्ध निशा थी, थे सोये,
रजनी अंचल में चाँद सितारे।

नहीं सूझता रहा हाथ को हाथ,
तिमिरि के मारे।

वस्त्र बेचकर लौट रहा था,
हाय। हाट से काशी।

विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन,
आता था वह एकाकी।

घेर राह में खड़े हो गए,
उसे कुटिल अन्यायी।

मारो काटो लूट लो इसको,
इसकी ही ध्वनि पड़ी सुनाई।

लूट पीटकर उसे वहाँ से,
कुटिल गये चम्पत हो।

आघातों से मर्माहत हो,
उसने दी थी संज्ञा खो।

बहुत देर तक पड़ा रहा वह,
वहीं उसी हालत में।

जाने कब कुछ हो उठा,
उसको किसी पलक में।

अनजाने ही उसके मुँह से,
निकल पड़ा था साईं।

जिसकी प्रतिध्वनि शिर्डी में,
बाबा को पड़ी सुनाई।

क्षुब्ध हो उठा मानस उनका,
बाबा गए विकल हो।

लगता जैसे घटना सारी,
घटी उन्हीं के सन्मुख हो।

उन्मादी से इधर उधर तब,
बाबा लगे भटकने।

सन्मुख चीजें जो भी
आई उनको लगे पटकने।

और धधकते अंगारों में,
बाबा ने कर डाला।

हुए सशंकित सभी वहाँ,
लख ताण्डव नृत्य निराला।

समझ गये सब लोग कि कोई,
भक्त पड़ा संकट में।

क्षुभित खड़े थे सभी वहाँ पर,
पड़े हुए विस्मय में।

उसे बचाने की ही खातिर,
बाबा आज विकल हैं।

उसकी ही पीड़ा से पीडित,
उनका अन्तस्तल है।

इतने में ही विधि ने,
अपनी विचित्रता दिखलाई।

लख कर जिसको जनता की,
श्रद्धा सरिता लहराई।

लेकर संज्ञाहीन भक्ता को,
गाड़ी एक वहाँ आई।

सन्मुख अपने देखा भक्त को,
साईं की आँखें भर आई।

शान्त, धीर, गंभीर सिन्धु सा,
बाबा का अन्तस्तल।

आज न जाने क्यों रह-रह,
हो जाता था चंचल।

आज दया की मूर्ति स्वयं था,
बना हुआ उपचारी।

और भक्त के लिए आज था,
देव बना प्रतिहारी।

आज भक्ति की विषम परीक्षा में,
सफल हुआ था काशी।

उसके ही दर्शन की खातिर,
थे उमड़े नगर-निवासी।

जब भी और जहाँ भी कोई,
भक्त पड़े संकट में।

उसकी रक्षा करने बाबा,
जाते हैं पलभर में।

युग-युग का है सत्य यह,
नहीं कोई नई कहानी।

आपदग्रस्त से जब होता,
जाते खुद अन्तर्यामी।

भेद-भावपरे पुजारी,
मानवता के थे साईं।

जितने प्यारे हिन्दू – मुस्लिम,
उतने ही थे सिख ईसाई।

भेद-भाव मन्दिर-मस्जिद का,
तोड़ फोड़ बाबा ने डाला।

राम रहीम सभी उनके थे,
कृष्ण करीम अल्लाताला।

घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा,
मस्जिद का कोना-कोना।

मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम,
प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना।

चमत्कार था कितना सुन्दर,
परिचय इस काया ने दी।

और नीम कड़वाहट में भी,
मिठास बाबा ने भर दी।

सच को स्नेह दिया साईं ने,
सबको अतुल प्यार किया।

जो कुछ जिसने भी चाहा,
बाबा ने उसको वही दिया।

ऐसे स्नेह शील भाजन का,
नाम सदा जो जपा करे।

पर्वत जैसा दुःख क्यों न हो,
पलभर में वह दूर टरे।

साईं जैसा दाता,
अरे कभी नहीं देखा कोई।

जिसके केवल दर्शन से ही,
सारी विपदा दूर गई।

तन में साईं, मन में साईं,
साईं-साईं भजा करो।

अपने तन की सुधि बुधि खोकर
सुधि उसकी तुम किया करो।

जब तू अपनी सुधियाँ तजकर,
बाबा की सुधि किया करेगा।

और रात-दिन बाबा, बाबा,
बाबा ही तू रटा करेगा।

तो बाबा को अरे। विवश हो,
सुधि तेरी लेनी ही होगी।

तेरी हर इच्छा बाबा को
पूरी ही करनी होगी।

जंगल जंगल भटक न पागल,
और ढुँढ़ने बाबा को।

एक जगह केवल शिरडी में,
तू पायेगा बाबा को।

धन्य जगत में प्राणी है वह,
जिसने बाबा को पाया।

दुःख में, सुख में प्रहर आठ हो,
साई का हो गुण गाया।

गिरें संकटों के पर्वत चाहे,
या बिजनी ही टूट पड़े।

साईं का ले नाम सदा तुम,
सन्मुख सब के रहो अड़े।

इस बूढ़े की सुन करामात,
तुम हो जावोगे हैरान।

दंग रह गए सुन कर जिसको,
जाने कितने चतुर सुजान।

एक बार शिर्डी में साधु,
ढोंगी था कोई आया।

भोली-भाली नगर-निवासी,
जनका को था भरमाया।

जड़ी-बूटियाँ उन्हें दिखा कर,
करने लगा वहाँ भाषण।

कहने लगा सुनो श्रोतागण,
घर मेरा है वृन्दावन

औषधि मेरे पास एक है,
और अजब इसमें शक्ति।

इसके सेवन करने से ही,
हो जाती दुख से मुक्ति

अगर मुक्त होना चाहो तुम,
संकट से, बीमारी से।

तो है मेरा नम्र निवेदन,
हर नर से, हर नारी से।

लो खरीद तुम इसको,
इसकी सेवन विधियाँ हैं न्यारी।

यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह,
गुण उसके हैं अतिशय भारी।

जो है संततिहीन यहाँ यदि,
मेरी औषधि को खाये।

पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे और
वह मुँह माँगा फल पाये।

औषध मेरी जो न खरीदे,
जीवन भर पछतायेगा।

मुझ जैसा प्राणी शायद ही,
अरे यहाँ आ पायेगा।

दुनिया दो दिन का मेला है,
मौज शौक तुम भी कर लो।

गर इससे मिलता है,
सब कुछ, तुम भी इसको ले लो।

हैरानी बढ़ती जनता की,
लख इसकी कारस्तानी।

प्रमुदित वह भी मन ही मन था,
लख लोगों की नादानी।

खबर सुनाने बाबा को यह,
गया दौड़कर सेवक एक।

सुनकर भृकुटी तनी और,
विस्मरण हो गया सभी विवेक।

हुक्म दिया सेवक को,
सत्वर पकड़ दुष्ट का लाओ।

या शिर्डी की सीमा से,
कपटी को दूर भगाओ।

मेरे रहते भोली-भाली,
शिर्डी की जनता को।

कौन नीच ऐसा जो,
साहस करता है छलने को।

पलभर में ही ऐसे ढोंगी,
कपटी नीच लुटेरे को।

महानाश के महागर्त में,
पहुँचा दूँ जीवन भर को।

तनिक मिला आभास मदारी,
क्रूर, कुटिल अन्यायी को।

काल नाचता है अब सिर पर,
गुस्सा आया साई को।

पलभर में सब खेल बन्द कर,
भागा सिर पर रख कर पैर।

सोच रहा था मन ही मन,
भगवान नहीं है क्या अब खैर।

सच है साईं जैसा दानी,
मिल न सकेगा जग में।

अंश ईश का साईं बाबा,
उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में।

स्नेह, शील, सौजन्य आदि का,
आभूषण धारण कर।

बढ़ता इस दुनिया में जो भी,
मानव-सेवा के पथ पर।

वही जीत लेता है जगती के,
जन जन का अन्तस्तल।

उसकी एक उदासी ही जग को,
कर देती है विह्वल।

जब-जब जग में भार पाप का,
बढ़-बढ़ हो जाता है।

उसे मिटाने की ही खातिर,
अवतारी हो जाता है।

पाप और अन्याय सभी कुछ,
इस जगती का हर के।

दूर भगा देता दुनिया
के दानव को क्षण भर में।

स्नेह सुधा की धार बरसने,
लगती है दुनिया में।

गले परस्पर मिलने लगते,
जन-जन हैं आपस में।

ऐसे ही अवतारी साईं,
मृत्युलोक में आकर।

समता का यह पाठ पढ़ाया,
सबको अपना आप मिटाकर।

नाम द्वारका मस्जिद का,
रक्खा शिर्डी में साईं ने।

पाप, ताप, सन्ताप मिटाया,
जो कुछ पाया साईं ने।

सदा याद में मस्त राम की,
बैठे रहते थे साईं।

पहर आठ ही राम नाम का,
भजते रहते थे साईं।

सूखी-रूखी ताजी बासी,
चाहे या होवे पकवान।

सदा प्यार के भूखे साई
की खातिर थे सभी समान।

स्नेह और श्रद्धा से अपनी,
जन जो कुछ दे जाते थे।

बड़े चाव से उस भोजन को,
बाबा पावन करते थे।

कभी-कभी मन बहलाने को,
बाबा बाग में जाते थे।

प्रमुदित मन में निरख प्रकृति,
छटा को वे होते थे।

रंग-बिरंगे पुष्प बाग के,
मन्द-मन्द हिल-डुल करके।

बीहड़ वीराने मन में भी
स्नेह सलिल भर जाते थे।

ऐसी सुमधुर बेला में भी,
दुःख आपद विपदा के मारे।

अपने मन की व्यथा सुनाने,
जन रहते बाबा को घेरे।

सुनकर जिनकी करुण कथा को,
नयन कमल भर आते थे।

दे विभूति हर व्यथा,
शान्ति, उनके उर में भर देते थे।

जाने क्या अद्भुत शक्ति,
उस विभूति में होती थी।

जो धारण करते मस्तक पर,
दुःख सारा हर लेती थी।

धन्य मनुज वे साक्षात दर्शन,
जो बाबा साई के पाये।

धन्य कमल कर उनके जिनसे,
चरण-कमल वे परसाये।

काश निर्भय तुमको भी,
साक्षात साईं मिल जाता।

बरसों से उजड़ा चमन अपना,
फिर से आज खिल जाता।

गर पकड़ता मैं चरण श्रीके
नहीं छोड़ता उम्र भर।

मना लेता मैं जरूर उनको,
गर रूठते साईं मुझ पर।

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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर साईं चालीसा (Sai Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें साईं चालीसा रोमन में–

Read Sai Baba Chalisa

pahale sāīṃ ke caraṇoṃ meṃ,
apanā śīśa navāū~ maiṃ।

kaise śirḍī sāīṃ āe
sārā hāla sunāū~ maiṃ।

kauna haiṃmātā, pitā kauna haiṃ,
yaha na kisī ne bhī jānā।

kahā~ janama sāīṃ ne dhārā,
praśna pahalī sā rahā banā।

koī kahe ayodhyā ke,
ye rāmacandra bhagavāna haiṃ।

koī kahatā sāīṃ bābā,
pavana-putra hanumāna haiṃ।

koī kahatā hai maṃgala mūrti,
śrī gajānana haiṃ sāī।

koī kahatā gokula
mohana devakī nandana haiṃ sāīṃ।

śaṃkara samajhe bhakta kaī to,
bābā ko bhajate rahate।

koī kahe avatāra datta kā,
pūjā sāīṃ kī karate।

kucha bhī māno unako tuma,
para sāīṃ haiṃ sacce bhagavāna।

baḍa़e dayālu, dīnabandhu,
kitanoṃ ko diyā jīvana dāna।

kaī varṣa pahale kī ghaṭanā,
tumheṃ sunāū~gā maiṃ bāta।

kisī bhāgyaśālī kī,
śirḍī meṃ āī thī bārāta।
āyā sātha usī ke thā,
bālaka eka bahuta sundara।

āyā, ākara vahīṃ basa gayā,
pāvana śirḍī kiyā nagara।

kaī dinoṃ taka rahā bhaṭakatā,
bhikṣā mā~gī usane dara-dara।

aura dikhāyī aisī līlā,
jaga meṃ jo ho gaī amara।

jaise jaise umara baḍha़ī,
baḍha़tī gaī vaise hī śāna।

ghara-ghara hone lagā nagara meṃ,
sāīṃ bābā kā guṇagāna।

dina diganta meṃ lagā gūṃjane,
phira to sāīṃjī kā nāma।

dīna-dukhī kī rakṣā karanā,
yahī rahā bābā kā kāma।

bābā ke caraṇoṃ meṃ jākara,
jo kahatā maiṃ hū~ nirdhana।

dayā usī para hotī unakī,
khula jāte duḥkha ke bandhana।

kabhī kisī ne mā~gī bhikṣā,
do bābā mujhako santāna।

evamastu taba kahakara sāīṃ,
dete the usako varadāna ।

svayaṃ duḥkhī bābā ho jāte,
dīna-dukhī jana kā lakha hāla।

antaḥkarana śrī sāīṃ kā,
sāgara jaisā rahā viśāla।

bhakta eka madrāsī āyā,
ghara kā bahuta baḍa़ā dhanavāna।
māla khajānā behada usakā,
kevala nahīṃ rahī santāna।

lagā manāne sāīṃ nātha ko,
bābā mujha para dayā karo।

jhaṃjhā se jhaṃkṛta naiyā ko,
tumahīṃ merī pāra karo।

kuladīpaka ke binā aṃdherā,
chāyā huā hai ghara meṃ mere।

isalie āyā hū~ bābā,
hokara śaraṇāgata tere।

kuladīpaka ke hī abhāva meṃ,
vyartha hai daulata kī māyā।

āja bhikhārī banakara bābā,
śaraṇa tumhārī maiṃ āyā।

de-do mujhako putra-dāna,
maiṃ ṛṇī rahū~gā jīvana bhara।

aura kisī kī āśā na mujhako,
sirpha bharosā hai tuma para।

anunaya-vinaya bahuta kī usane,
caraṇoṃ meṃ dharakara ke śīśa।

taba prasanna hokara bābā ne,
diyā bhakta ko yaha āśīṣa।

allā bhalā karegā terā,
putra janma ho tere ghara।

kṛpā rahegī tujha para usakī,
aura tere usa bālaka para।

aba taka nahīṃ kisī ne pāyā,
sāīṃ kī kṛpā kā pāra।

putra ratna de madrāsī ko,
dhanya kiyā usakā saṃsāra।
tana-mana se jo bhaje usī kā,
jaga meṃ hotā hai uddhāra।

sā~ca ko ā~ca nahīṃ hai koī,
sadā, jhūṭha kī hotī hāra।

maiṃ hū~ sadā sahāre usake,
sadā rahū~gā usakā dāsa।

sāīṃ jaisā prabhu milā hai,
itanī hī kama hai kyā āsa।

merā bhī dina thā ika aisā,
milatī nahīṃ mujhe thī roṭī।

tana para kapaḍa़ā dūra rahā thā,
śeṣa rahī nanhī sī laṃgoṭī।

saritā sanmukha hone para bhī,
maiṃ pyāsā thā।

durdina merā mere ūpara,
dāvāgna barasātā thā।

dharatī ke atirikta jagata meṃ,
merā kucha avalamba na thā।

banā bhikhārī maiṃ duniyā meṃ,
dara-dara ṭhokara khātā thā।

aise meṃ ika mitra milā jo,
parama bhakta sāīṃ kā thā।

jaṃjāloṃ se mukta magara,
jagatī meṃ vaha bhī mujha sā thā।

bābā ke darśanoṃ kī khātira,
mila donoṃ ke kiyā vicāra।

sāīṃ jaise dayā mūrti ke,
darśana ko ho gae taiyāra।

pāvana śiḍī nagara meṃ jākara,
dekhī matavālī mūrati।
dhanya janama ho gayā ki hamane,
jaba dekhī sāīṃ kī mūrati।

jaba se kie haiṃ darśana hamane,
duḥkha sārā kāphūra ho gayā।

saṃkaṭa sāre miṭe aura,
vipadāoṃ kā ho anta gayā।

māna aura sammāna milā,
bhikṣā meṃ hamako saba bābā se।

pratitimbita ho uṭhe jagata meṃ,
hama sāīṃ kī ājñā se।

bābā ne sammāna diyā hai,
māna diyā isa jīvana meṃ।

isakā sambala le maiṃ,
ha~satā jāū~gā jīvana meṃ।

sāī kī līlā kā mere,
mana para aisā asara huā।

lagatā, jagatī ke kaṇa-kaṇa meṃ,
jaise ho vaha bharā huā।

kāśīrāma bābā kā bhakta,
isa śirḍī meṃ rahatā thā।

maiṃ sāīṃ kā, sāīṃ merā,
vaha duniyā se kahatā thā।

silakara svayaṃ vastra becatā,
grāma-nagara bājāroṃ meṃ।

jhaṃkṛti usakī hṛdaya tantrī thī,
sāīṃ kī jhaṃkāroṃ meṃ।

stabdha niśā thī, the soye,
rajanī aṃcala meṃ cā~da sitāre।

nahīṃ sūjhatā rahā hātha ko hātha,
timiri ke māre।

vastra becakara lauṭa rahā thā,
hāya। hāṭa se kāśī।

vicitra baḍa़ā saṃyoga ki usa dina,
ātā thā vaha ekākī।

ghera rāha meṃ khaḍa़e ho gae,
use kuṭila anyāyī।

māro kāṭo lūṭa lo isako,
isakī hī dhvani paḍa़ī sunāī।

lūṭa pīṭakara use vahā~ se,
kuṭila gaye campata ho।

āghātoṃ se marmāhata ho,
usane dī thī saṃjñā kho।

bahuta dera taka paḍa़ā rahā vaha,
vahīṃ usī hālata meṃ।

jāne kaba kucha ho uṭhā,
usako kisī palaka meṃ।

anajāne hī usake mu~ha se,
nikala paḍa़ā thā sāīṃ।

jisakī pratidhvani śirḍī meṃ,
bābā ko paḍa़ī sunāī।

kṣubdha ho uṭhā mānasa unakā,
bābā gae vikala ho।

lagatā jaise ghaṭanā sārī,
ghaṭī unhīṃ ke sanmukha ho।

unmādī se idhara udhara taba,
bābā lage bhaṭakane।

sanmukha cījeṃ jo bhī
āī unako lage paṭakane।

aura dhadhakate aṃgāroṃ meṃ,
bābā ne kara ḍālā।

hue saśaṃkita sabhī vahā~,
lakha tāṇḍava nṛtya nirālā।

samajha gaye saba loga ki koī,
bhakta paḍa़ā saṃkaṭa meṃ।

kṣubhita khaḍa़e the sabhī vahā~ para,
paḍa़e hue vismaya meṃ।

use bacāne kī hī khātira,
bābā āja vikala haiṃ।

usakī hī pīḍa़ā se pīḍita,
unakā antastala hai।

itane meṃ hī vidhi ne,
apanī vicitratā dikhalāī।

lakha kara jisako janatā kī,
śraddhā saritā laharāī।

lekara saṃjñāhīna bhaktā ko,
gāḍa़ī eka vahā~ āī।

sanmukha apane dekhā bhakta ko,
sāīṃ kī ā~kheṃ bhara āī।

śānta, dhīra, gaṃbhīra sindhu sā,
bābā kā antastala।

āja na jāne kyoṃ raha-raha,
ho jātā thā caṃcala।

āja dayā kī mūrti svayaṃ thā,
banā huā upacārī।

aura bhakta ke lie āja thā,
deva banā pratihārī।

āja bhakti kī viṣama parīkṣā meṃ,
saphala huā thā kāśī।
usake hī darśana kī khātira,
the umaḍa़e nagara-nivāsī।

jaba bhī aura jahā~ bhī koī,
bhakta paḍa़e saṃkaṭa meṃ।

usakī rakṣā karane bābā,
jāte haiṃ palabhara meṃ।

yuga-yuga kā hai satya yaha,
nahīṃ koī naī kahānī।

āpadagrasta se jaba hotā,
jāte khuda antaryāmī।

bheda-bhāvapare pujārī,
mānavatā ke the sāīṃ।

jitane pyāre hindū – muslima,
utane hī the sikha īsāī।

bheda-bhāva mandira-masjida kā,
toḍa़ phoḍa़ bābā ne ḍālā।

rāma rahīma sabhī unake the,
kṛṣṇa karīma allātālā।

ghaṇṭe kī pratidhvani se gūṃjā,
masjida kā konā-konā।

mile paraspara hindū-muslima,
pyāra baḍha़ā dina-dina dūnā।

camatkāra thā kitanā sundara,
paricaya isa kāyā ne dī।

aura nīma kaḍa़vāhaṭa meṃ bhī,
miṭhāsa bābā ne bhara dī।

saca ko sneha diyā sāīṃ ne,
sabako atula pyāra kiyā।

jo kucha jisane bhī cāhā,
bābā ne usako vahī diyā।

aise sneha śīla bhājana kā,
nāma sadā jo japā kare।

parvata jaisā duḥkha kyoṃ na ho,
palabhara meṃ vaha dūra ṭare।

sāīṃ jaisā dātā,
are kabhī nahīṃ dekhā koī।

jisake kevala darśana se hī,
sārī vipadā dūra gaī।

tana meṃ sāīṃ, mana meṃ sāīṃ,
sāīṃ-sāīṃ bhajā karo।

apane tana kī sudhi budhi khokara
sudhi usakī tuma kiyā karo।

jaba tū apanī sudhiyā~ tajakara,
bābā kī sudhi kiyā karegā।

aura rāta-dina bābā, bābā,
bābā hī tū raṭā karegā।

to bābā ko are। vivaśa ho,
sudhi terī lenī hī hogī।

terī hara icchā bābā ko
pūrī hī karanī hogī।

jaṃgala jaṃgala bhaṭaka na pāgala,
aura ḍhu~ḍha़ne bābā ko।

eka jagaha kevala śiraḍī meṃ,
tū pāyegā bābā ko।

dhanya jagata meṃ prāṇī hai vaha,
jisane bābā ko pāyā।

duḥkha meṃ, sukha meṃ prahara āṭha ho,
sāī kā ho guṇa gāyā।

gireṃ saṃkaṭoṃ ke parvata cāhe,
yā bijanī hī ṭūṭa paḍa़e।

sāīṃ kā le nāma sadā tuma,
sanmukha saba ke raho aḍa़e।

isa būḍha़e kī suna karāmāta,
tuma ho jāvoge hairāna।

daṃga raha gae suna kara jisako,
jāne kitane catura sujāna।

eka bāra śirḍī meṃ sādhu,
ḍhoṃgī thā koī āyā।

bholī-bhālī nagara-nivāsī,
janakā ko thā bharamāyā।

jaḍa़ī-būṭiyā~ unheṃ dikhā kara,
karane lagā vahā~ bhāṣaṇa।

kahane lagā suno śrotāgaṇa,
ghara merā hai vṛndāvana।

auṣadhi mere pāsa eka hai,
aura ajaba isameṃ śakti।

isake sevana karane se hī,
ho jātī dukha se mukti।

agara mukta honā cāho tuma,
saṃkaṭa se, bīmārī se।

to hai merā namra nivedana,
hara nara se, hara nārī se।

lo kharīda tuma isako,
isakī sevana vidhiyā~ haiṃ nyārī।

yadyapi tuccha vastu hai yaha,
guṇa usake haiṃ atiśaya bhārī।

jo hai saṃtatihīna yahā~ yadi,
merī auṣadhi ko khāye।

putra-ratna ho prāpta, are aura
vaha mu~ha mā~gā phala pāye।

auṣadha merī jo na kharīde,
jīvana bhara pachatāyegā।

mujha jaisā prāṇī śāyada hī,
are yahā~ ā pāyegā।

duniyā do dina kā melā hai,
mauja śauka tuma bhī kara lo।

gara isase milatā hai,
saba kucha, tuma bhī isako le lo।

hairānī baḍha़tī janatā kī,
lakha isakī kārastānī।

pramudita vaha bhī mana hī mana thā,
lakha logoṃ kī nādānī।

khabara sunāne bābā ko yaha,
gayā dauḍa़kara sevaka eka।

sunakara bhṛkuṭī tanī aura,
vismaraṇa ho gayā sabhī viveka।

hukma diyā sevaka ko,
satvara pakaḍa़ duṣṭa kā lāo।

yā śirḍī kī sīmā se,
kapaṭī ko dūra bhagāo।

mere rahate bholī-bhālī,
śirḍī kī janatā ko।

kauna nīca aisā jo,
sāhasa karatā hai chalane ko।

palabhara meṃ hī aise ḍhoṃgī,
kapaṭī nīca luṭere ko।

mahānāśa ke mahāgarta meṃ,
pahu~cā dū~ jīvana bhara ko।

tanika milā ābhāsa madārī,
krūra, kuṭila anyāyī ko।

kāla nācatā hai aba sira para,
gussā āyā sāī ko।

palabhara meṃ saba khela banda kara,
bhāgā sira para rakha kara paira।

soca rahā thā mana hī mana,
bhagavāna nahīṃ hai kyā aba khaira।

saca hai sāīṃ jaisā dānī,
mila na sakegā jaga meṃ।

aṃśa īśa kā sāīṃ bābā,
unheṃ na kucha bhī muśkila jaga meṃ।

sneha, śīla, saujanya ādi kā,
ābhūṣaṇa dhāraṇa kara।

baḍha़tā isa duniyā meṃ jo bhī,
mānava-sevā ke patha para।

vahī jīta letā hai jagatī ke,
jana jana kā antastala।

usakī eka udāsī hī jaga ko,
kara detī hai vihvala।

jaba-jaba jaga meṃ bhāra pāpa kā,
baḍha़-baḍha़ ho jātā hai।

use miṭāne kī hī khātira,
avatārī ho jātā hai।

pāpa aura anyāya sabhī kucha,
isa jagatī kā hara ke।

dūra bhagā detā duniyā
ke dānava ko kṣaṇa bhara meṃ।

sneha sudhā kī dhāra barasane,
lagatī hai duniyā meṃ।

gale paraspara milane lagate,
jana-jana haiṃ āpasa meṃ।

aise hī avatārī sāīṃ,
mṛtyuloka meṃ ākara।

samatā kā yaha pāṭha paḍha़āyā,
sabako apanā āpa miṭākara।

nāma dvārakā masjida kā,
rakkhā śirḍī meṃ sāīṃ ne।

pāpa, tāpa, santāpa miṭāyā,
jo kucha pāyā sāīṃ ne।

sadā yāda meṃ masta rāma kī,
baiṭhe rahate the sāīṃ।

pahara āṭha hī rāma nāma kā,
bhajate rahate the sāīṃ।

sūkhī-rūkhī tājī bāsī,
cāhe yā hove pakavāna।

sadā pyāra ke bhūkhe sāī
kī khātira the sabhī samāna।

sneha aura śraddhā se apanī,
jana jo kucha de jāte the।

baḍa़e cāva se usa bhojana ko,
bābā pāvana karate the।

kabhī-kabhī mana bahalāne ko,
bābā bāga meṃ jāte the।

pramudita mana meṃ nirakha prakṛti,
chaṭā ko ve hote the।

raṃga-biraṃge puṣpa bāga ke,
manda-manda hila-ḍula karake।

bīhaḍa़ vīrāne mana meṃ bhī
sneha salila bhara jāte the।

aisī sumadhura belā meṃ bhī,
duḥkha āpada vipadā ke māre।

apane mana kī vyathā sunāne,
jana rahate bābā ko ghere।

sunakara jinakī karuṇa kathā ko,
nayana kamala bhara āte the।

de vibhūti hara vyathā,
śānti, unake ura meṃ bhara dete the।

jāne kyā adbhuta śakti,
usa vibhūti meṃ hotī thī।

jo dhāraṇa karate mastaka para,
duḥkha sārā hara letī thī।

dhanya manuja ve sākṣāta darśana,
jo bābā sāī ke pāye।

dhanya kamala kara unake jinase,
caraṇa-kamala ve parasāye।

kāśa nirbhaya tumako bhī,
sākṣāta sāīṃ mila jātā।

barasoṃ se ujaḍa़ā camana apanā,
phira se āja khila jātā।

gara pakaḍa़tā maiṃ caraṇa śrīke
nahīṃ choḍa़tā umra bhara।

manā letā maiṃ jarūra unako,
gara rūṭhate sāīṃ mujha para।

हर कष्ट मिटाती है यह साईं चालीसा (Sai Baba Chalisa), भटकों को राह दिखाती है साईं चालीसा, मन में ज्ञान का दिया जलाती है साईं चालीसा और दिल के सभी अरमानों को हकीकत का जामा पहनाती है यह अद्भुत साईं चालीसा। साईं बाबा उस भक्त की सुनते हैं, जो उन्हें दिल की गहराइयों से पुकारता है। आइए, साईं चालीसा गाते हुए साई बाबा का स्मरण करें। इस चमत्कारी साईं चालीसा का पाठ (Sai Chalisa lyrics) करें और अपने जीवन में सभी दुःखों से निजात पाएँ।

साई चालीसा पाठ का महत्व (Importance of Sai Chalisa Hindi)

साईं चालीसा (Sai Baba Chalisa) शिरडी के साईं बाबा को समर्पित है। हिन्दू धर्म में साईं बाबा को भगवान के रूप में पूजा जाता है और गुरुवार को उनका दिन मान के व्रत एवं पूजा की जाती है। साई बाबा हर धर्म में सामान्यतः पूजे जाते हैं। जिस भी भक्त पर साई बाबा अपनी कृपा बरसते हैं, उसके सभी बिगड़े काम बन जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती है। Shree sai chalisa का पाठ साईं बाबा को प्रसन्न करने का बेहद सरल तरीका है। 

साईं बाबा बहुत सरल स्वभाव के थे और सादगी के साथ अपना जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने अपना जीवन दूसरों की मदद करने और दुखों को हरने में व्यतीत किया। आज भी जो भी व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और सादगी से साई बाबा की पूजा अर्चना करता है, उसको उनकी कृपा दृष्टि ज़रूर प्राप्त होती है। हिंदीपथ पर Sai Baba Chalisa Hindi lyrics को पढ़कर आप बाबा को प्रसन्न करने के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।

बाबा को प्रसन्न करने के लिए shri sai chalisa पाठ का महत्व अत्यधिक है। वैसे तो किसी भी दिन या रोज़ इस चालीसा का पाठ करना शुभ होता है, परंतु यदि गुरुवार को नियम पूर्वक sai baba path  किया जाए तो मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। बृहस्पतिवार के दिन साईं बाबा की पूजा करने के लिए पीले फल-फूल, धूप-दीप इत्यादि का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त साई चालीसा का पाठ (sai baba chalisa in hindi paath) करके आरती एवं प्रसाद वितरण किया जाता है। इस प्रकार नियम एवं श्रद्धा पूर्वक साईं बाबा की पूजा करना अत्यंत शुभ फलदायक होता है। 

साई बाबा चालीसा पढ़ने के लाभ (Benefits of sai baba chalisa lyrics reading)

  • जो भी व्यक्ति श्री साई चालीसा (saichalisa) का पाठ नियमित रूप से करता है, उसका जीवन हमेशा सुख समृद्धि और धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है। 
  • जिस घर में भी साई चालीसा (sai chalisa lyrics in hindi) नियमित पढ़ी जाती है,  वहां सदैव सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। 
  • साई चालीसा (Sai chalisa lyrics) पढ़ने वाले व्यक्ति का मन हमेशा शांत रहता है। 
  • इसके (shri sai chalisa in hindi) पाठ से व्यक्ति का आलस्य से दूर होता है और उसके जीवन में उच्च विचारों का प्रवाह होता है। 
  • साईं बाबा चालीसा (sai baba chalisa hindi) पढ़ने से व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भय नहीं सताता है और वह निर्भीक अपना जीवन व्यतीत करता है। 
  • किसी भी प्रकार के ग्रह दोषों को शांत करने के लिए भी sai chalisa in hindi पाठ कारगर साबित होता है। 

ये थे साई चालीसा (sai chalisa in hindi lyrics) पठन के महत्व और लाभ। Shree sai chalisa हर प्रकार से लाभकारी है। हम आशा करते हैं कि साईं बाबा सदैव सभी पर अपनी कृपा बरसाते रहें और सबके जीवन के हर कष्ट दूर हो जाएँ।

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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