हल्दी के फायदे – Benefits Of Haldi In Hindi
हल्दी तेरे गुण न्यारे: Haldi Ke Fayde
हल्दी (Turmeric or Haldi in Hindi) अधिकतर सब्जी, दाल, कढ़ी, अचार और भांति-भांति के नमकीन पकवान बनाने के काम आती है। यह मसालों का मुख्य अंग है। विवाह, शादी, पूजा, जनेऊ आदि में हल्दी का प्रयोग किया जाता है। हल्दी से अनेक प्रकार की दवाइयां बनाई जाती हैं, जिनमें भी हल्दी का प्रयोग किया जाता है, उनमें निखार आ जाता है। यह रोगमुक्त करने में अचूक दवा का काम करती है।
हल्दी को खांसी, कफ, रक्त की खराबी, खुजली, खाज, चोट के समय प्रयोग में लाकर लाभ उठाया जा सकता है। मान लो शरीर के अन्दर कोई चोट है, सूजन है, विषैलापन आ गया है, इसके प्रयोग से शीघ्र लाभ होता है। इसे दूध में मिलाकर पीना चाहिए।
भांति-भांति की फुंसियों पर हल्दी का हल्का गर्म हलुवा विशेषकर लाभकारी होता है। इसका सेवन शीघ्र सुख देता है।
हल्दी हर प्रांत में प्रयोग में लाई जाती है। मसालों के साथ इसका प्रयोग लगभग अनिवार्य हो जाता है। खाने और लगाने की अनेक दवाइयों में यह काम आती है। इसे अकेले तौर पर भी औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
कछार वाली अथवा दोमट मिट्टी में हल्दी की खेती अच्छी होती है। तरल-गर्म जलवायु इसके लिए उत्तम मानी जाती है। कहीं-कहीं पेड़ों की छाया के नीचे, जहां मैल, खाद बहुत रहती है, इसकी उपज अच्छी होती है।
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हल्दी की सब्जी: Haldi Ki Sabji
जब कभी जुकाम बिगड़ जाए, इसे पीनस का रोग कहते हैं। इसमें नाक से पतला पानी बहता है। गला खराब रहने लगता है। मन बार-बार थूकने को करता है। इससे भोजन अरुचिकर लगेगा। ऐसे में, कच्ची हल्दी की सब्जी (Haldi ki sabji) जोकि देसी घी, सेंधा नमक और काली मिर्च के साथ तैयार की गई हो, खानी चाहिए। इसे खुश्क फुलके के साथ खाएं। शीघ्र लाभ होगा।
हल्दी को विभिन्न-विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे हरिद्रा (संस्कृत में), हलदर (गुजराती में), पसुपु (तेलुगू में), हलुद (बंगाली मे), हलद (मद्रासी में) तथा मजल (तमिल में) कहते हैं। हल्दी का उपयोग निम्न प्रकार से किया जाता है –
(1) यदि चेहरे पर झाईं हो जाए, रंग-रूप खराब लगने लगे ठीक करने के लिए एक तोला सूखी हल्दी को बारीक पीसकर छान लें। इसे दूध में मिलाकर सानकर सुखा लें। इस चूर्ण को जल में मिलाकर प्रतिदिन चेहरे पर लगाएं। इससे चेहरे की छाइयां, झाइयां, झुर्रियां मिट जाएंगी।
(2) शरीर के किसी भी अंग पर चोट लग जाए, उस पर हल्दी से तैयार गर्म हलुवा बांधने से शीघ्र लाभ होगा। आधा किलो पानी लेकर उबालें। इसमें सेंधा नमक डालें। दो चुटकी हल्दी का चूर्ण डालें। जब पानी थोड़ा कोसा हो जाए, इस पानी की चोट लगे भाग पर टकोर करें। बहुत लाभ होगा।
(3) बच्चों-बड़ों को जब पेट में छोटे-छोटे कीड़े पड़ जाएं, इसके उपचार मे भी हल्दी गुणकारी है, कच्ची हल्दी का थोड़ा रस निकालें, इसे शहद में मिलाकर चाटने से लाभ होगा।
(4) अगर खांसी लम्बे समय से हो रही हो, रात भर बेचैनी से गुजरती हो, तो भी हल्दी आपका साथ देगी। हल्दी चूर्ण को भून लें। इसे पान में डालकर धीरे-धीरे चबाते रहें। रस भी धीरे-धीरे ही चूसते रहें। बहुत फायदा होगा।
(5) कहते हैं कि दमा दम के साथ जाने वाला रोग है। यह कभी ठीक हो ही नहीं सकता। मगर हल्दी यहां भी बड़ी कारगर सिद्ध होती है। तीन ग्राम हल्दी का चूर्ण, 6 ग्राम शुद्ध सरसों का तेल, इसमें काली मिर्च के 7-8 दाने पीसकर डालें। इसे खूब मिला लें। यह रोगी की चाटने के लिए दें। जरूर लाभ होगा।
(6) मदार के पत्तों का रस, हल्दी पिसी और कड़वा तेल, मिला लें। इस लेप को छाती, पीठ, पेट और कन्धों पर सेंक करें। अभूतपूर्व लाभ होगा। इसमें ठंडे पानी से नहाना, ठंडे पेयजल का सेवन, बलगम सुखाने वाले पदार्थ, अधिक आंच के साथ सेंकना, ज्यादा देर तक तेज धूप में बैठना, धुंआ, अधिक सर्दी आदि से बचाव जरूरी है। कफ, वायु पैदा करने वाले भोजन, जिनमें उड़द, अरबी, खटाई, गुड़, ज्यादा पका केला, ठंडी व कच्ची दही, बासी भोजन से दूर रहना चाहिए। रात्रि का भोजन सोने से 3 घंटे पहले कर लेवें। हल्का व ताजा भोजन लाभदायक होगा।
(7) हल्दी, भोजन पकाने, पूजा-कार्य पूर्ण करने, रोग-निवारण, सभी चीजों के लिए हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।
(8) हाथों में, पैरों में या फिर समूचे शरीर में यदि पीली फुंसियां निकल आएं, इनमें मवाद की शिकायत हो जाए खारिश होने लगे, शरीर का सूखना शुरू हो जाए, कब्ज से भी परेशानी रहने लगे, तब हल्दी का हलुवा खाने को दें लाभ होगा। (हल्दी का हलुवा बनाने की विधि आगे बताई जा रही है।)
(9) यदि कोई प्रमेह से परेशान है। धातु रोग से दुःखी है। इससे कमर का दर्द करना, शरीर व मन में बेचैनी रहना, लगातार दुबलापन होना, भोजन का न पचना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाना तो कच्ची हल्दी बहुत सहयोग करती है। प्रातः के समय कच्ची हल्दी का रस एक तोला, शहद एक तोला, दोनों मिलाकर चाटना आरम्भ कर दें। बकरी का दूध (एक पाव) उबाल कर ठंडा किया हुआ, हल्दी पिसी तथा एक बड़ा चम्मच शहद, तीनों को मिलाकर रात के समय पी लें। इसका सेवन डेढ़ महीना तक लगातार करें। दोनों का प्रयोग, सदा कष्ट से छुटकारा दिला देगा।
(10) जच्चा का अन्दर से शरीर शुद्ध होना जरूरी है। ऐसी प्रसूता को एक मास तक हल्दी का हरीरा खिलाना जरूरी है। इसके सेवन से शरीर में रुका हुआ गन्दा खून बह जाएगा। भोजन में तथा आम वात में जी लगेगा। पेशाब करते समय या आमतौर पर होने वाला दर्द भी गायब हो जाएगा। मन्दाग्नि ठीक होगी। घाव भी ठीक होगा। (हल्दी का हरीरा बनाने की विधि आगे बताई गई है)।
(11) शरीर में शीतपित्त का रोग हो जाने से दिदोरे निकल आते हैं। खुजली करने की मन करता है। हल्का-हल्का बुखार भी रहने लगता है। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए हल्दी का हलुवा या फिर ‘हरिद्रा खंड’ का सेवन करना चाहिए। इसे एक सप्ताह तक खाते रहने से खूब लाभ होगा। इस पर गाय का गर्म-सील दूध पीना चाहिए। पानी कम-से-कम एक घंटा मत पियें । (‘हरिद्रा-खंड’ का वर्णन आगे किया जा रहा है।)
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हल्दी का हलुवा बनाने का तरीका: Haldi Ka Halwa
बिलकुल बारीक हल्दी का पाउडर–2 किलो। दूध गाय का–2 लीटर। शक्कर–1 किलो। गाय का शुद्ध घी–150 ग्राम। लोहे की कड़ाही में दूध डालकर, हल्दी का पाउडर डाल दें। दोनों को मिलावें। इसे लगातार हिलावें ताकि दूध नीचे न लगे। खोया तैयार हो जाएगा। अब इसमें घी डाल दें। इसे धीमी आच पर हिलाते रहें। इसे (ब्राऊन) भूरा होने तक हिलाते जाएं।
अलग से शक्कर की चाशनी एकतार बना लें। अब इस चाशनी की ऊपर बताए हलुवे में डालकर, तब तक भूनते रहें, जब तक यह घी नहीं छोड़ देता।
गाय का उबला, ठंडा किया हुआ दूध एक कप लेकर, 15 ग्राम हलवा खा लें। ऊपर से यह दूध पी लें। प्रात: खाएं। कोई दो सप्ताह तक इसे खाते रहें। शरीर पर होने वाली सूखी या गीली खुजली ठीक हो जाएगी सम्भव हो तो हल्दी का तेल बनाकर रख लें इसे भी सोने से पहले लगावें आराम आ जाएगा।
हल्दी का तेल बनाने की विधि: Haldi Ka Tel
सरसों का तेल 250 ग्राम। हरी दूब को पीसकर 50 ग्राम रस निकल ले। पानी में पीसकर तैयार रखी हल्दी 150 ग्राम। इन सब चीजों को एक लोहे की कड़ाही में मिलाकर, पकावें । आंच तेज न हो। लगभग बिना पानी यह रस रह जाये, तो उतारकर ठंडा कर ले। इसे ठीक तरह से छानकर तेल अलग कर ले।
यह तेल हर प्रकार की खुजली पर लगाने से लाभ होता है।
हल्दी का हरीरा बनाने का ढंग: Haldi Ka Harira
हल्दी का चूर्ण बारीक छना हुआ–20 ग्राम। पुराना गुड़–40 ग्राम। घी देसी–50 ग्राम। चोकर–15 ग्राम। इस चोकर को पानी में भिगोकर निचोड़ लें व एक कप तैयार करके रख लें। इन सबको पका लें। जब कुछ गाढ़ा हो जाए, तब उतारकर सील-गर्म प्रसूता को पिलाना चाहिए। इसे एक महीना तक, प्रातः के समय पिलाते रहें। इस पर पानी न दें। शरीर अन्दर से साफ हो जाएगा। गंदा खून निकल जाएगा। प्रसूता के मूत्राशय में होने वाली जलन और भीतरी घाव सब ठीक हो जाएंगे।
हल्दी के उपयोग से दमा से बचाव: Use Of Haldi In Asthma
हल्दी के सही इलाज से दमा को जड़ से मिटाने का तरीका–
(1) प्रातः के समय तीन माशे हल्दी का चूर्ण लें। इससे दो गुना असली सरसों का तेल हो। इसमें काली मिर्च के 7 दानों का पिसा चूर्ण मिलावें। तीनों को पूरी तरह मिलाकर दमे के रोगी को चाटने को कहें।
(2) सरसों का तेल–10 तोले। मदार के पत्तों का रस–10 तोले। हल्दी को जल में पीसकर चटनी-सी बना लें–5 तोले, इन तीनों को मिलाकर आंच पर पकाएं। जब केवल तेल शेष रह जाए, इसे उतारकर ठंडा कर लें। इसे छानकर तेल अलग करें।
इस तेल की पीठ, कधों, छाती, गला आदि पर लगाकर हल्का-हल्का सेंक दें। इसे दो सप्ताह तक करते रहें।
ऊपर दिए गए (1) और (2) नियम को 15 दिनों तक नियमित करें।
दमा के रोगी ध्यान दें–(क) शराब, लाल मिर्च, गन्ने का रस आदि का सेवन न करें।
(ख) दही, कटहल तथा बड़हल भी बलगम पैदा करती है। इन्हें मत खाए।
(ग) ठंडी चीजें, ठंडे पेयजल, ज्यादा ठंडा खाना, ऐसे कमरे में रहना जहाँ सीलन रहती हो धूप धुंआ धूल आदि में रहना इन सबसे बचाव जरूरी है।
(घ) भारी बोझ उठाना या शारीरिक भारी काम करना भी तकलीफ को बढ़ाता है।
(ङ) यदि टट्टी, पेशाब करने या हवा निकालने की जरूरत समझें, तो इसे रोकें मत।
(च) अधिक खा लेने या भूखा रहने से भी दमा का दौरा पड़ सकता है।
(छ) जिसे बलगम की तकलीफ होगी, उसे सांस की भी तकलीफ होगी। अतः बलगम को मत बनने दें।
दमा-बीमारी के शुरूआती निम्न लक्षणों को समझकर, इन पर नियन्त्रण करना चाहिए–
(i) कलेजे और पेट में दर्द, (ii) पेट का फूलना, (iii) पेट में तनाव, (iv) वायु की रुकावट से टट्टी आने में कठिनाई, (v) मुंह में अरुचि व फीका-फीका लगना, (vi) कनपटी के आसपास दर्द होना| इन लक्षणों के होते ही अपना बचाव कर लें।
कुछ जरूरी कदम
(1) छाती, पेट व पीठ पर सरसों का या नारायण तेल लेकर मालिश करवाएं। इस पर सेंक भी दें। या हल्का गर्म करके ही तेल का प्रयोग करें।
(2) जब लगे कि पेट में वायु है, चिकनी व नमक मिली चीज से दबाएं। इसका सेवन भी वायु को निकालेगा।
(3) यदि उल्टी कर बलगम वाला रस निकाल सकें या पोटी कर पेट साफ कर सकें तो जल्दी लाभ होगा। इससे वायु भी निकल जाएगी और पेट हल्का हो जाएगा। सांस लेना आसान होगा ।
(4) इस बीमारी में बलगम को ढीला कर उखाड़ने, निकालने की कोई भी विधि लाभकारी होती है।
(5) पेट में बढ़ रही, बन रही वायु जैसे भी निकले, निकालते रहना चाहिए।
(6) सोते समय तेल की मालिश व सेंक (पेट और छाती पर) बहुत लाभ करते हैं।
(7) सेंधा नमक 1 माशा। पीपल का चूर्ण 1 माशा । इसे चाटना ठीक रहता है।
(8) गाय का घी। आमलासार गंधक का चूर्ण। दोनों की मिलाकर, 1 माशा की मात्रा ही चाट लेना फायदा देता है। इसे प्रातः के समय चाटना चाहिए।
(9) यदि रोग बढ़ी हुई हालत में हो तो, 3 माशे पेठे का चूर्ण, सील-गर्म पानी से लें। बहुत ज़्यादा तकलीफ में भी फायदा करता है।
(10) वैद्य कहते हैं–मूंग, परवल, खेखसी, कच्चा केला, पुराना जौ, पुराना गेहूं, बथुआ आदि से तैयार किया जूस और दलिया दमे के रोगी को बहुत फायदा पहुंचाकर आराम देता है।
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दमा पर काबू पाने के लिए कुछ जरूरी कदम
नीचे लिखे अनाज, खाद्य पदार्थ, फल, सब्जियां, मसाले खाना दमा के रोगी के रोग को कम करने में सहायता करते हैं–
मीठा अनार, पुराना पेठा, कच्चा केला, बकरी का दूध, काला मुनक्का, खेखसी, नेनुआ, आंवला, बथुआ, हल्दी, अदरख, धनिया, सेंधा नमक, पुराना अनाज, मूंग, कुलथी, अजवायन, पुराना जौ, पुराना गेहूं पुराना चावल तथा पुराना घी।
और भी हल्का भोजन करना, ठंडा जल न पीना, गर्म जल पीना, दिन रहते ही भोजन कर लेना, सोने से काफी पहले हल्का खाना खा लेना।
हल्दी का चूर्ण दाल, सब्जी तथा नमकीन इत्यादि में सबमें ज्यादा डालना। वैद्य तो इतना भी कहते हैं कि दमे के रोगी को हल्दी में रंगे वस्त्र पहनने चाहिए। ऐसा करने से खाज, खुजली, चमड़ी की बीमारी करने वाले महीन कीड़े नहीं फैलते। शरीर साफ रहता है और दमे का प्रकोप भी कम होता है।
पुरानी खांसी–यदि रात भर खांसते रहने से नींद न आती हो तो पान के बीड़े में भुनी हल्दी का चूर्ण एक माशा और जवाखार दो रत्ती रखकर रस चूसे दिन में दो बार।
नाश्ता के समय बकरी के दूध में एक माशा हल्दी का चूर्ण डाल, पकाकर इसे ठंडा कर लें। अब इसमें एक चम्मच शहद मिला लें। इसे पीने से खांसी मे लाभ होगा। बलगम उखड़ जाएगी तथा नींद ठीक से आएगी।
ज्यादा खांसी वालों को निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए–नया गुड़, शीतल जल पीना या शीतल जल से स्नान, लाल मिर्च, उड़द की दाल, ज्यादा पतली चीजें, पेट भर कर खाना, अधिक परिश्रम वाला काम, सम्भोग, धूल, धुंआ, मूली, अमरूद तथा अम्ल पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए। बासी भोजन भी नहीं करना चाहिए।
क्या खाएं खांसी के रोगी–खांसी के रोगी को निम्न सब ठीक रहेंगे–शहद, छुआरा, काला मुनक्का, कच्चा केला, मीठा अनार, खजूर, अंजीर, बथुआ, कच्चा पपीता, मूंग, चना, मसूर, जौ, इनका जूस, धान का लावा, अदरख, लौंग, अजवायन, गर्म पानी, सेंधा नमक, बकरी का दूध, पुराने गेहूं की रोटी इत्यादि सब फायदा देंगे उन्हें ऐसे स्थानों पर कभी भी रहना या सोना नहीं चाहिए जहां गीलापन हो, हवा में सीलन हो, हवा में आर्द्रता भी ठीक नहीं।