धर्म

मंगल गीतम – Mangal Geetam

मंगल गीतम का नियमित जाप करने से व्यक्ति संतोषजनक आर्थिक स्थिति प्राप्त कर सकता है और सफल जीवन जी सकता है। इसके साथ ही कुछ का मानना है कि मंगल गीतम (Mangal Gitam) का पाठ करने से कुज दोष या मंगलिक दोष कम हो सकता है।

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श्रितकमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल ए ।
कलितललितवनमाल जय जय देव हरे ॥1॥

दिनमणिमण्डलमण्डन भवखण्डन ए ।
मुनिजनमानsहंस जय जय देव हरे ॥2॥

कालियविषधरगञ्जन जनरञ्जन ए ।
यदुकुलनलिनदिनेश जय जय देव हरे ॥3॥

मधुमुरनरकविनाशन गरुडासन ए ।
सुरकुलकेलिनिदान जय जय देव हरे ॥4॥

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अमलकमलदललोचन भवमोचन ए ।
त्रिभुवनभवननिधान जय जय देव हरे ॥5॥

जनकसुताकृतभूषण जितदूषण ए ।
समरशमितदशकण्ठ जय जय देव हरे ॥6॥

अभिनवजलधरसुंदर धृतमंदर ए ।
श्रीमुखचन्द्रचकोर जय जय देव हरे ॥7॥

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तव चरणे प्रणता वयमिति भावय ए ।
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे ॥8॥

श्रीजयदेवकवेरूदितमिदं कुरुते मुदम् ।
मंगलमञ्जुलगी जय जय देव हरे ॥9॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर मंगल गीतम को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें गीतम रोमन में–

Read Mangal Geetam Lyrics

śritakamalākucamaṇḍala dhṛtakuṇḍala e ।
kalitalalitavanamāla jaya jaya deva hare ॥1॥

dinamaṇimaṇḍalamaṇḍana bhavakhaṇḍana e ।
munijanamānashaṃsa jaya jaya deva hare ॥2॥

kāliyaviṣadharagañjana janarañjana e ।
yadukulanalinadineśa jaya jaya deva hare ॥3॥

madhumuranarakavināśana garuḍāsana e ।
surakulakelinidāna jaya jaya deva hare ॥4॥

amalakamaladalalocana bhavamocana e ।
tribhuvanabhavananidhāna jaya jaya deva hare ॥5॥

janakasutākṛtabhūṣaṇa jitadūṣaṇa e ।
samaraśamitadaśakaṇṭha jaya jaya deva hare ॥6॥

abhinavajaladharasuṃdara dhṛtamaṃdara e ।
śrīmukhacandracakora jaya jaya deva hare ॥7॥

tava caraṇe praṇatā vayamiti bhāvaya e ।
kuru kuśalaṃ praṇateṣu jaya jaya deva hare ॥8॥

śrījayadevakaverūditamidaṃ kurute mudam ।
maṃgalamañjulagītaṃ jaya jaya deva hare ॥9॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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