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वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 11 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 11

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सुमन्त्र के कहने से राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शान्ता और ऋष्यश्रृंग को अपने घर ले आना

तदनन्तर सुमन्त्र ने फिर कहा—‘‘राजेन्द्र! आप पुन: मुझसे अपने हितकी वह बात सुनिये, जिसे देवताओं में श्रेष्ठ बुद्धिमान् सनत्कुमार जी ने ऋषियों को सुनाया था॥ १ ॥  

‘‘उन्होंने कहा था—इक्ष्वाकुवंश में दशरथ नाम से प्रसिद्ध एक परम धार्मिक सत्यप्रतिज्ञ राजा होंगे॥ २ ॥

‘‘उनकी अंगराज के साथ मित्रता होगी। दशरथ के एक परम सौभाग्यशालिनी कन्या होगी, जिसका नाम होगा ‘शान्ता’। अंगदेशके राजकुमार का नाम होगा ‘रोमपाद’। महायशस्वी राजा दशरथ उनके पास जायँगे और कहेंगे—‘धर्मात्मन्! मैं संतानहीन हूँ। यदि आप आज्ञा दें तो शान्ताके पति ऋष्यश्रृंग मुनि चलकर मेरा यज्ञ करा दें। इससे मुझे पुत्रकी प्राप्ति होगी और मेरे वंशकी रक्षा हो जायगी’॥ ३—५ ॥

‘‘राजाकी यह बात सुनकर मन-ही-मन उसपर विचार करके मनस्वी राजा रोमपाद शान्ताके पुत्रवान् पतिको उनके साथ भेज देंगे॥ ६ ॥

‘‘ब्राह्मण ऋष्यश्रृंग को पाकर राजा दशरथ की सारी चिन्ता दूर हो जायगी और वे प्रसन्नचित्त होकर उस यज्ञका अनुष्ठान करेंगे॥ ७ ॥

‘‘यशकी इच्छा रखने वाले धर्मज्ञ राजा दशरथ हाथ जोड़कर द्विजश्रेष्ठ ऋष्यश्रृंग का यज्ञ, पुत्र और स्वर्गके लिये वरण करेंगे तथा वे प्रजापालक नरेश उन श्रेष्ठ ब्रह्मर्षि से अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर लेंगे॥ ८-९ ॥

‘‘राजाके चार पुत्र होंगे, जो अप्रमेय पराक्रमी, वंश की मर्यादा बढ़ाने वाले और सर्वत्र विख्यात होंगे॥

‘‘महाराज! पहले सत्ययुग में शक्तिशाली देवप्रवर भगवान् सनत्कुमारजीने ऋषियों के समक्ष ऐसी कथा कही थी॥ ११ ॥

‘‘पुरुषसिंह महाराज! इसलिये आप स्वयं ही सेना और सवारियों के साथ अंगदेशमें जाकर मुनिकुमार ऋष्यश्रृंग को सत्कार पूर्वक यहाँ ले आइये’’॥ १२ ॥

सुमन्त्रका वचन सुनकर राजा दशरथको बड़ा हर्ष हुआ। उन्होंने मुनिवर वसिष्ठजीको भी सुमन्त्र की बातें सुनायीं और उनकी आज्ञा लेकर रनिवासकी रानियों तथा मन्त्रियों के साथ अंगदेशके लिये प्रस्थान किया, जहाँ विप्रवर ऋष्यश्रृंग निवास करते थे॥ १३ १/२ ॥

मार्गमें अनेकानेक वनों और नदियों को पार करके वे धीरे-धीरे उस देश में जा पहुँचे, जहाँ मुनिवर ऋष्यश्रृंग विराजमान थे॥ १४ १/२ ॥

वहाँ पहुँचने पर उन्हें द्विजश्रेष्ठ ऋष्यश्रृंग रोमपाद के पास ही बैठे दिखायी दिये। वे ऋषिकुमार प्रज्वलित अगि्नके समान तेजस्वी जान पड़ते थे॥ १५ १/२ ॥

तदनन्तर राजा रोमपादने मित्रताके नाते अत्यन्त प्रसन्न हृदयसे महाराज दशरथ का शास्त्रोक्त विधि के अनुसार विशेषरूप से पूजन किया और बुद्धिमान् ऋषिकुमार ऋष्यश्रृंग को राजा दशरथ के साथ अपनी मित्रता की बात बतायी। उसपर उन्होंने भी राजा का सम्मान किया॥ १६ -१७॥

इस प्रकार भलीभाँति आदर-सत्कार पाकर नरश्रेष्ठ राजा दशरथ रोमपादके साथ वहाँ सात-आठ दिनोंतक रहे। इसके बाद वे अंगराजसे बोले—‘प्रजापालक नरेश! तुम्हारी पुत्री शान्ता अपने पतिके साथ मेरे नगरमें पदार्पण करे; क्योंकि वहाँ एक महान् आवश्यक कार्य उपस्थित हुआ है’॥ १८-१९ १/२ ॥

राजा रोमपादने ‘बहुत अच्छा’ कहकर उन बुद्धिमान् महर्षिका जाना स्वीकार कर लिया और ऋष्यश्रृंगसे कहा—‘विप्रवर! आप शान्ताके साथ महाराज दशरथके यहाँ जाइये।’ राजाकी आज्ञा पाकर उन ऋषिपुत्रने ‘तथास्तु’ कहकर राजा दशरथको अपने चलनेकी स्वीकृति दे दी॥ २०-२१ ॥

राजा रोमपाद की अनुमति ले ऋष्यश्रृंग ने पत्नी के साथ वहाँ से प्रस्थान किया। उस समय शक्तिशाली राजा रोमपाद और दशरथ ने एक-दूसरेको हाथ जोड़कर स्नेह पूर्वक छाती से लगाया तथा अभिनन्दन किया। फिर मित्र से विदा ले रघुकुलनन्दन दशरथ वहाँसे प्रस्थित हुए॥ २२-२३ ॥

उन्होंने पुरवासियों के पास अपने शीघ्रगामी दूत भेजे और कहलाया कि ‘समस्त नगर को शीघ्र ही सुसज्जित किया जाय। सर्वत्र धूपकी सुगन्ध फैले। नगरकी सड़कों को झाड़-बुहारकर उनपर पानीका छिड़काव कर दिया जाय तथा सारा नगर ध्वजा-पताकाओंसे अलंकृत हो’॥ २४ १/२ ॥

राजा का आगमन सुनकर पुरवासी बड़े प्रसन्न हुए। महाराज ने उनके लिये जो संदेश भेजा था, उसका उन्होंने उस समय पूर्णरूपसे पालन किया॥ २५ १/२ ॥

तदनन्तर राजा दशरथने शङ्ख और दुन्दुभि आदि वाद्योंकी ध्वनिके साथ विप्रवर ऋष्यश्रृंगको आगे करके अपने सजे-सजाये नगरमें प्रवेश किया॥ २६ १/२ ॥

उन द्विजकुमारका दर्शन करके सभी नगरनिवासी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने इन्द्र के समान पराक्रमी नरेन्द्र दशरथके साथ पुरीमें प्रवेश करते हुए ऋष्यश्रृंगका उसी प्रकार सत्कार किया, जैसे देवताओंने स्वर्गमें सहस्राक्ष इन्द्रके साथ प्रवेश करते हुए कश्यपनन्दन वामनजीका समादर किया था॥ २७-२८ ॥

ऋषिको अन्त:पुरमें ले जाकर राजाने शास्त्रविधिके अनुसार उनका पूजन किया और उनके निकट आ जानेसे अपनेको कृतकृत्य माना॥ २९ ॥

विशाललोचना शान्ताको इस प्रकार अपने पतिके साथ उपस्थित देख अन्त:पुरकी सभी रानियोंको बड़ी प्रसन्नता हुई। वे आनन्दमग्न हो गयीं॥ ३०॥

शान्ता भी उन रानियों से तथा विशेषत: महाराज दशरथ के द्वारा आदर-सत्कार पाकर वहाँ कुछ कालतक अपने पति विप्रवर ऋष्यश्रृंग के साथ बड़े सुख से रही॥ ३१॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में ग्यारहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ११॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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