धर्म

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 40 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 40

महर्षि वाल्मीकि कृत रामकथा पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – संपूर्ण रामायण हिंदी में

सगर पुत्रों के भावी विनाश की सूचना देकर ब्रह्माजी का देवताओं को शान्त करना, सगरके पुत्रों का पृथ्वी को खोदते हुए कपिल जी के पास पहुँचना और उनके रोष से जलकर भस्म होना

देवताओंकी बात सुनकर भगवान् ब्रह्माजी ने कितने ही प्राणियों का अन्त करने वाले सगर पुत्रों के बल से मोहित एवं भयभीत हुए उन देवताओं से इस प्रकार कहा—॥ १ ॥

‘देवगण! यह सारी पृथ्वी जिन भगवान् वासुदेव की वस्तु है तथा जिन भगवान् लक्ष्मी पति की यह रानी है, वे ही सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीहरि कपिल मुनि का रूप धारण करके निरन्तर इस पृथ्वी को धारण करते हैं। उनकी कोपाग्नि से ये सारे राजकुमार जलकर भस्म हो जायँगे॥ २-३ ॥

‘पृथ्वी का यह भेदन सनातन है—प्रत्येक कल्प में अवश्यम्भावी है। (श्रुतियों और स्मृतियों में आये हुए सागर आदि शब्दों से यह बात सुस्पष्ट ज्ञात होती है।) इसी प्रकार दूरदर्शी पुरुषों ने सगर के पुत्रों का भावी विनाश भी देखा ही है; अत: इस विषय में शोक करना अनुचित है’॥

ब्रह्माजी का यह कथन सुनकर शत्रुओंका दमन करनेवाले तैंतीस देवता बड़े हर्ष में भरकर जैसे आये थे, उसी तरह पुन: लौट गये॥ ५ ॥

सगरपुत्रोंके हाथसे जब पृथ्वी खोदी जा रही थी, उस समय उससे वज्रपात के समान बड़ा भयंकर शब्द होता था॥ ६ ॥

इस तरह सारी पृथ्वी खोदकर तथा उसकी परिक्रमा करके वे सभी सगर पुत्र पिता के पास खाली हाथ लौट आये और बोले—॥ ७ ॥

‘पिताजी! हमने सारी पृथ्वी छान डाली। देवता, दानव, राक्षस, पिशाच और नाग आदि बड़े-बड़े बलवान् प्राणियोंको मार डाला। फिर भी हमें न तो कहीं घोड़ा दिखायी दिया और न घोड़ेका चुरानेवाला ही। आपका भला हो। अब हम क्या करें? इस विषयमें आप ही कोई उपाय सोचिये’॥ ८-९ ॥

‘रघुनन्दन! पुत्रों का यह वचन सुनकर राजाओं में श्रेष्ठ सगरने उनसे कुपित होकर कहा—॥ १० ॥

‘जाओ, फिर से सारी पृथ्वी खोदो और इसे विदीर्ण करके घोड़े के चोर का पता लगाओ। चोर तक पहुँचकर काम पूरा होनेपर ही लौटना’॥ ११ ॥

अपने महात्मा पिता सगर की यह आज्ञा शिरोधार्य करके वे साठ हजार राजकुमार रसातलकी ओर बढ़े (और रोषमें भरकर पृथ्वी खोदने लगे)॥ १२ ॥

उस खुदाई के समय ही उन्हें एक पर्वताकार दिग्गज दिखायी दिया, जिसका नाम विरूपाक्ष है। वह इस भूतल को धारण किये हुए था॥ १३ ॥

रघुनन्दन! महान् गजराज विरूपाक्ष ने पर्वत और वनों सहित इस सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने मस्तक पर धारण कर रखा था॥ १४ ॥

काकुत्स्थ! वह महान् दिग्गज जिस समय थककर विश्राम के लिये अपने मस्तक को इधर-उधर हटाता था, उस समय भूकम्प होने लगता था॥ १५ ॥

श्रीराम! पूर्व दिशाकी रक्षा करने वाले विशाल गजराज विरूपाक्ष की परिक्रमा करके उसका सम्मान करते हुए वे सगर पुत्र रसातल का भेदन करके आगे बढ़ गये॥ १६ ॥

पूर्व दिशाका भेदन करनेके पश्चात् वे पुन: दक्षिण दिशा की भूमिको खोदने लगे। दक्षिण दिशामें भी उन्हें एक महान् दिग्गज दिखायी दिया॥ १७ ॥

उसका नाम था महापद्म। महान् पर्वत के समान ऊँचा वह विशाल काय गजराज अपने मस्तक पर पृथ्वीको धारण करता था। उसे देखकर उन राजकुमारों को बड़ा विस्मय हुआ॥ १८ ॥

महात्मा सगर के वे साठ हजार पुत्र उस दिग्गजकी परिक्रमा करके पश्चिम दिशा की भूमिका भेदन करने लगे॥ १९ ॥

पश्चिम दिशामें भी उन महाबली सगरपुत्रों ने महान् पर्वताकार दिग्गज सौमनस का दर्शन किया॥ २० ॥

उसकी भी परिक्रमा करके उसका कुशल-समाचार पूछकर वे सभी राजकुमार भूमि खोदते हुए उत्तर दिशा में जा पहुँचे॥ २१ ॥

रघुश्रेष्ठ! उत्तर दिशामें उन्हें हिमके समान श्वेतभद्र नामक दिग्गज दिखायी दिया, जो अपने कल्याणमय शरीरसे इस पृथ्वी को धारण किये हुए था॥ २२ ॥

उसका कुशल-समाचार पूछकर राजा सगरके वे सभी साठ हजार पुत्र उसकी परिक्रमा करनेके पश्चात् भूमि खोदनेके काममें जुट गये॥ २३ ॥

तदनन्तर सुविख्यात पूर्वोत्तर दिशा में जाकर उन सगरकुमारोंने एक साथ होकर रोष पूर्वक पृथ्वी को खोदना आरम्भ किया॥ २४ ॥

इस बार उन सभी महामना, महाबली एवं भयानक वेगशाली राजकुमारों ने वहाँ सनातन वासुदे वस्व रूप भगवान् कपिल को देखा॥ २५ ॥

राजा सगरके यज्ञ का वह घोड़ा भी भगवान् कपिल के पास ही चर रहा था। रघुनन्दन! उसे देखकर उन सबको अनुपम हर्ष प्राप्त हुआ॥ २६ ॥

भगवान् कपिल को अपने यज्ञमें विघ्न डालने वाला जानकर उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गयीं। उन्होंने अपने हाथों में खंती, हल और नाना प्रकार के वृक्ष एवं पत्थरों के टुकड़े ले रखे थे॥ २७ ॥

वे अत्यन्त रोष में भरकर उनकी ओर दौड़े और बोले— ‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह। तू ही हमारे यज्ञ के घोड़े को यहाँ चुरा लाया है। दुर्बुद्धे! अब हम आ गये। तू समझ ले, हम महाराज सगर के पुत्र हैं’॥ २८ /

रघुनन्दन! उनकी बात सुनकर भगवान् कपिल को बड़ा रोष हुआ और उस रोषके आवेश में ही उनके मुँह से एक हुंकार निकल पड़ा॥ २९ /

श्रीराम! उस हुंकारके साथ ही उन अनन्त प्रभावशाली महात्मा कपिलने उन सभी सगरपुत्रों को जलाकर राखका ढेर कर दिया॥ ३० ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें चालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४०॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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