धर्म

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 41 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 41

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सगर की आज्ञा से अंशुमान्का रसातल में जाकर घोड़े को ले आना और अपने चाचाओं के निधन का समाचार सुनाना

रघुनन्दन! ‘पुत्रों को गये बहुत दिन हो गये’—ऐसा जानकर राजा सगरने अपने पौत्र अंशुमान्से, जो अपने तेजसे देदीप्यमान हो रहा था, इस प्रकार कहा—॥ १ ॥

‘वत्स! तुम शूरवीर, विद्वान् तथा अपने पूर्वजोंके तुल्य तेजस्वी हो। तुम भी अपने चाचाओंके पथका अनुसरण करो और उस चोर का पता लगाओ, जिसने मेरे यज्ञ-सम्बन्धी अश्वका अपहरण कर लिया है॥ २ ॥

‘देखो, पृथ्वी के भीतर बड़े-बड़े बलवान् जीव रहते हैं; अत: उनसे टक्कर लेनेके लिये तुम तलवार और धनुष भी लेते जाओ॥ ३ ॥

‘जो वन्दनीय पुरुष हों, उन्हें प्रणाम करना और जो तुम्हारे मार्गमें विघ्न डालनेवाले हों, उनको मार डालना। ऐसा करते हुए सफलमनोरथ होकर लौटो और मेरे इस यज्ञ को पूर्ण कराओ’॥ ४ ॥

महात्मा सगरके ऐसा कहनेपर शीघ्रता पूर्वक पराक्रम कर दिखाने वाला वीरवर अंशुमान् धनुष और तलवार लेकर चल दिया॥ ५ ॥

नरश्रेष्ठ! उसके महामनस्वी चाचाओं ने पृथ्वीके भीतर जो मार्ग बना दिया था, उसीपर वह राजा सगर से प्रेरित होकर गया॥ ६ ॥

वहाँ उस महातेजस्वी वीरने एक दिग्गज को देखा, जिसकी देवता, दानव, राक्षस, पिशाच, पक्षी और नाग—सभी पूजा कर रहे थे॥ ७ ॥

उसकी परिक्रमा करके कुशल-मंगल पूछकर अंशुमान्ने उस दिग्गज से अपने चाचाओंका समाचार तथा अश्व चुराने वाले का पता पूछा॥ ८ ॥

उसका प्रश्न सुनकर परम बुद्धिमान् दिग्गजने इस प्रकार उत्तर दिया—‘असमंजकुमार! तुम अपना कार्य सिद्ध करके घोड़े सहित शीघ्र लौट आओगे’॥ ९ ॥

उसकी यह बात सुनकर अंशुमान्ने क्रमश: सभी दिग्गजों से न्यायानुसार उक्त प्रश्न पूछना आरम्भ किया॥ १० ॥

वाक्यके मर्म को समझने तथा बोलनेमें कुशल उन समस्त दिग्गजोंने अंशुमान्का सत्कार किया और यह शुभ कामना प्रकट की कि तुम घोड़ेसहित लौट आओगे॥

उनका यह आशीर्वाद सुनकर अंशुमान् शीघ्रता पूर्वक पैर बढ़ाता हुआ उस स्थानपर जा पहुँचा, जहाँ उसके चाचा सगरपुत्र राखके ढेर हुए पड़े थे॥ १२ ॥

उनके वधसे असमंज पुत्र अंशुमान्को बड़ा दु:ख हुआ। वह शोक के वशीभूत हो अत्यन्त आर्तभावसे फूट-फूटकर रोने लगा॥ १३ ॥

दु:ख-शोक में डूबे हुए पुरुषसिंह अंशुमान्ने अपने यज्ञ-सम्बन्धी अश्वको भी वहाँ पास ही चरते देखा॥ १४ ॥

महातेजस्वी अंशुमान्ने उन राजकुमारोंको जलाञ्जलि देने के लिये जलकी इच्छा की; किंतु वहाँ कहीं भी कोई जलाशय नहीं दिखायी दिया॥ १५ ॥

श्रीराम! तब उसने दूरतककी वस्तुओं को देखनेमें समर्थ अपनी दृष्टिको फैलाकर देखा। उस समय उसे वायुके समान वेगशाली पक्षिराज गरुड़ दिखायी दिये, जो उसके चाचाओं (सगर पुत्रों) के मामा थे॥ १६ ॥

महाबली विनतानन्दन गरुड़ने अंशुमान्से कहा— ‘पुरुषसिंह! शोक न करो। इन राजकुमारोंका वध सम्पूर्ण जगत्के मंगल के लिये हुआ है॥ १७ ॥

‘विद्वन्! अनन्त प्रभावशाली महात्मा कपिल ने इन महाबली राजकुमारों को दग्ध किया है। इनके लिये तुम्हें लौकिक जलकी अञ्जलि देना उचित नहीं है॥ १८ ॥

‘नरश्रेष्ठ! महाबाहो! हिमवान्की जो ज्येष्ठ पुत्री गंगा जी हैं, उन्हींके जलसे अपने इन चाचाओं का तर्पण करो॥ १९ ॥

‘जिस समय लोक पावनी गंगा राखके ढेर होकर गिरे हुए उन साठ हजार राजकुमारोंको अपने जलसे आप्लावित करेंगी, उसी समय उन सबको स्वर्ग लोक में पहुँचा देंगी। लोककमनीया गंगा के जलसे भीगी हुई यह भस्मराशि इन सबको स्वर्ग लोक में भेज देगी॥ २० ॥

‘महाभाग! पुरुषप्रवर! वीर! अब तुम घोड़ा लेकर जाओ और अपने पितामह का यज्ञ पूर्ण करो’॥ २१ ॥

गरुड़ की यह बात सुनकर अत्यन्त पराक्रमी महातपस्वी अंशुमान् घोड़ा लेकर तुरंत लौट आया॥

रघुनन्दन! यज्ञमें दीक्षित हुए राजाके पास आकर उसने सारा समाचार निवेदन किया और गरुड़की बतायी हुई बात भी कह सुनायी॥ २३ ॥

अंशुमान्के मुखसे यह भयंकर समाचार सुनकर राजा सगरने कल्पोक्त नियमके अनुसार अपना यज्ञ विधिवत् पूर्ण किया॥ २४ ॥

यज्ञ समाप्त करके पृथ्वीपति महाराज सगर अपनी राजधानीको लौट आये। वहाँ आनेपर उन्होंने गंगाजीको ले आनेके विषयमें बहुत विचार किया; किंतु वे किसी निश्चयपर न पहुँच सके॥ २५ ॥

दीर्घकालतक विचार करनेपर भी उन्हें कोई निश्चित उपाय नहीं सूझा और तीस हजार वर्षोंतक राज्य करके वे स्वर्गलोकको चले गये॥ २६ ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में इकतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४१॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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