राजकुमारी अनंगरति की कहानी – विक्रम बेताल की कहानी
“राजकुमारी अनंगरति की कहानी” विक्रम बेताल की जानी-मानी कहानी है। बेताल पच्चीसी की यह कथा राजा विक्रमादित्य की त्वरित निर्णय क्षमता को दिखलाती है। अन्य कहानियाँ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – विक्रम बेताल की कहानियां।
तीन चतुर पुरुष कहानी का उत्तर सुनने के बाद बेताल वहाँ से अदृश्य हो गया। पहले की भांति उस शिंशपा-वृक्ष के पास पहुंचकर राजा विक्रमादित्य ने बेताल को फिर से नीचे उतारा और उसे अपने कंधे पर डालकर गंतव्य की ओर चल पड़ा।
रास्ते में फिर बेताल ने मौन भंग किया–
“राजन! कहां राज्य का सुख-भोग और कहां रात के इस प्रहर में इस महाश्मशान में घूमना। क्या तुम भूत-प्रेतों से भरे इस श्मशान को नहीं देखते, जो रात में भयानक बना हुआ है और जहां चिता के धुएं की तरह अंधकार बढ़ता जा रहा है।
तुमने उस योगी के कहने पर न जाने क्यों इस असाध्य कार्य को करना स्वीकार कर लिया है। मुझे यह सोचकर तुम पर दया आ रही है। तुम्हारा श्रम भुलाने के लिए मैं तुम्हें फिर से एक कथा सुनाता हूं, ताकि तुम्हारा मार्ग सुगम हो।”
तब विक्रमादित्य के सहमति देने पर बेताल ने राजकुमारी अनंगरति की कहानी सुनाई–
अवन्ती में एक नगरी है, जिसे सृष्टि के आरंभ में देवताओं ने बनाया था। साँपों और भभूत से विभूषित शिव के विराट शरीर के समान वह नगरी भी बहुत विशाल थी और ऐश्वर्य के प्रत्येक साधन से सुशोभित थी।
जो नगरी सतयुग में पद्मावती, त्रेता में भोगवती तथा द्वापर में हिरण्यवती कही जाती थी, वही कलियुग में उज्जयिनी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
उस उज्जयिनी में वीरदेव नाम के एक राजा थे, जो भूपतियों में श्रेष्ठ थे। उनकी पटरानी का नाम पद्मरति था। पुत्र की कामना से उस राजा ने अपनी पत्नी सहित मंदाकिनी के तट पर जाकर, तपस्या के द्वारा भगवान महादेव की आराधना की।
बहुत दिनों तक तपस्या करने के बाद जब उन्होंने स्नान और अर्चन की विधियां पूर्ण कर लीं, तो भगवान शंकर प्रसन्न हुए और आकाश से उनकी वाणी सुनाई पड़ी, “राजन, तुम्हारे कुल में पराक्रमी पुत्र उत्पन्न होगा। अतुलनीय रूपवती एक कन्या भी तुम्हारे घर में जन्म लेगी, जो अपनी सुंदरता से अप्सराओं को भी मात करेगी।”
यह आकाशवाणी सुनकर राजा वीरदेव की कामना पूरी हो गई। वह अपनी पत्नी सहित अपनी नगरी में चला आया। वहां, पहले उसे शूरदेव नाम का एक पुत्र पैदा हुआ।
और फिर उसकी पद्मरति ने एक कन्या को जन्म दिया। अपने सौंदर्य से कामदेव के मन में भी आकर्षण उत्पन्न करने वाली उस कन्या का नाम उसके पिता ने अनंगरति रखा।
जब वह कन्या बड़ी हुई, तब उसके योग्य पति प्राप्त करने के लिए उसके पिता ने भूमंडल के सभी राजाओं के चित्र मंगवाए। राजा को जब उनमें से कोई भी अपनी कन्या के योग्य न जान पड़ा, तब उसने स्नेह से अपनी पुत्री से कहा, “बेटी, मुझे तुम्हारे योग्य कोई वर नहीं मिलता। अतः तुम स्वयंवर द्वारा अपना वर स्वयं ही चुनो।”
पिता की यह बात सुनकर उस राजकुमारी ने कहा, “पिताजी, लज्जा के कारण मैं स्वयंवर नहीं करना चाहती। किंतु जो भी सुरूप युवक कोई अनूठी कला जानता हो, आप उसी से मेरे विवाह कर सकते हैं। इससे अधिक मैं और कुछ नहीं चाहती।”
अपनी कन्या अनंगरति की बात सुनकर राजा उसके लिए वैसे ही वर की खोज करने लगा।
इसी बीच, लोगों के मुंह से यह वृत्तांत सुनकर दक्षिण-पथ से चार पुरुष वहां आ पहुंचे जो वीर थे, कलाओं में निपुण थे और भव्य आकृति वाले थे।
राजा ने उनका स्वागत-सत्कार किया। तब उस राजपुत्री की इच्छा रखने वाले वे चारों पुरुष एक के बाद एक राजा से अपने-अपने कौशल का वर्णन करने लगे।
उनमें से एक ने कहा, “मैं शूद्र हूं। मेरा नाम पंचपट्टिक है। मैं प्रतिदिन पांच जोड़े उत्तम वस्त्र तैयार करता हूं। उनमें से एक जोड़ा वस्त्र मैं देवता को चढ़ाता हूं और एक जोड़ा ब्राह्मण को देता हूं। एक जोड़ा मैं पहनने के लिए रखता हूं। इस राजकन्या का विवाह यदि मुझसे होगा तो एक जोड़ा मैं इसे दूंगा और एक जोड़ा वस्त्र बेचकर मैं अपने खाने-पीने का निर्वाह करूंगा। अतः इस अनंगरति का विवाह आप मुझसे करें।”
पहले पुरुष के बाद दूसरा बोला, “राजन! मैं भाषाज्ञ नामक वैश्य हूं। मैं सब पशु-पक्षियों की बोलियां जानता और समझता हूं। अतः इस राजपुत्री को आप मुझे दें।”
अनंतर, जब दूसरा ऐसा कह चुका तो तीसरा बोला, “राजन, मैं एक पराक्रमी क्षत्रिय हूं। मेरा नाम खड्गधर है। खड्ग विद्या में मेरी बराबरी करने वाला इस धरती पर कोई नहीं है। अतः राजन, आप अपनी कन्या का विवाह मुझसे ही करें।”
यह सुनकर चौथा बोला, “मैं एक ब्राह्मण हूं, राजन। मेरा नाम जीवदत्त है। मेरे पास ऐसी विद्या है, जिससे मैं मरे हुए प्राणियों में जान डाल देता हूं। अतः ऐसे कार्य में दक्ष मुझको आप अपनी कन्या के लिए पति रूप में स्वीकार करें।”
दिव्य वेश वाले उन चारों पुरुषों के ऐसा कहने पर राजा सोच में पड़ गया और विचार करने लगा कि वह किसके साथ अपनी कन्या का विवाह करे।
राजकुमारी अनंगरति की कहानी सुनाकर बेताल ने विक्रमादित्य से पूछा, “राजन, अब तुम्ही बताओ कि राजकुमारी अनंगरति का विवाह उन चारों में से किसके साथ होना चाहिए? जानकर भी यदि तुम इसका सही उत्तर नहीं दोगे तो मेरे श्राप द्वारा तुम्हारे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।”
यह सुनकर बेताल को राजा विक्रमादित्य ने बताया–
“योगेश्वर, आप समय बिताने के लिए ही मुझे मौन भंग करने को विवश करते हैं, अन्यथा आपका यह प्रश्न कौन बड़ा जटिल है? आप स्वयं ही सोचिए, उस शूद्र जुलाहे से शादी करके क्या लाभ? एक जोड़ी वस्त्र से क्या होगा?
वैश्य को भी वह कन्या नहीं दी जा सकती, क्योंकि फिर अनंगरति को पशु-पक्षियों की भाषा जानने वाले से क्या लाभ होगा?
तीसरा, जो ब्राह्मण अपना स्वयं का काम छोड़कर बाज़ीगर बन गया है, वह भी उसके पति होने के योग्य नहीं है।
अतः राजपुत्री के योग्य तो वह खड्ग विद्या का जानकार क्षत्रिय पुरुष ही है। उसी से राजपुत्री का विवाह करना उचित है। वह अपनी विद्या जानने वाला तथा पराक्रमी है।”
राजा की बात सुनकर बेताल ने कहा, “राजन, तुमने बिल्कुल सही उत्तर दिया। राजकुमारी का विवाह उसी से होना चाहिए क्योंकि किसी उपयोगी कार्य में निपुण और पराक्रमी व्यक्ति के साथ ही कन्या का विवाह अनुकूल होता है। पर मेरे प्रश्न का उत्तर देते समय तुम हम दोनों के बीच हुई शर्त को भूल गए, अतः अब मैं चलता हूं।”
यह कहकर बेताल राजा के कंधे से उतर गया और पुनः उसी शिंशपा-वृक्ष की ओर उड़ गया, जहां से विक्रमादित्य उसे लाए थे।
राजा विक्रमादित्य ने भी अपना हौसला न खोया। बेताल के जाते ही वह भी पुनः उसे लाने के लिए उस महाश्मशान में उसी वृक्ष की ओर चल पड़ा।
राजा विक्रमादित्य बेताल को लाने के लिए पुनः शिंशपा वृक्ष के नीचे पहुँच गया। उसने बेताल को उतारकर अपने कंधे पर डाला और चलना शुरू किया। बेताल ने राजा विक्रम को फिर से यह कहानी सुनानी शुरू की – मदनसेना की कथा