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सोमप्रभा की कथा – विक्रम बेताल की कहानी

“सोमप्रभा की कथा” विक्रम बेताल की प्रसिद्ध कहानी है। इसमें राजा विक्रमादित्य अपनी कुशाग्र बुद्धि से निर्णय करता है कि सोमप्रभा का विवाह किससे किया जाना चाहिए। बेताल पच्चीसी की अन्य कहानियां पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ विक्रम और बेताल की कहानियाँ

बेताल पुनः “बड़ा वीर कौन?” कहानी का सही उत्तर विक्रमादित्य से जानकर वापस पेड़ पर पहुँच गया। शिंशपा-वृक्ष से विक्रम ने पहले की भांति ही बेताल को नीचे उतारा और उसे कंधे पर लादकर चुपचाप आगे बढ़ चला। कुछ आगे चलने पर बेताल ने फिर मौन भंग किया। वह बोला, “राजन, तुम एक कष्टकर कार्य में लगे हुए हो, जिससे मुझे तुम अत्यंत प्रिय हो गए हो। अतः रास्ते में तुम्हारे श्रम को भुलाने के लिए तुम्हें मैं यह कहानी सुनाता हूं।”

बहुत पहले उज्जयिनी में हरिस्वामी नाम का एक सद्गुणी ब्राह्मण रहता था। वह राजा पुष्यसेन का प्रिय सेवक एवं मंत्री था। उस गृहस्थ ब्राह्मण की पत्नी भी उसी के अनुरूप थी। हरिस्वामी की दो संतानें थीं। बड़ा देवस्वामी नाम का एक पुत्र और छोटी एक कन्या, जिसका नाम सोमप्रभा था। सोमप्रभा बहुत ही सुंदर थी और अपने रूप-लावण्य के लिए प्रसिद्ध थी।

जब सोमप्रभा के विवाह का समय आया तो उसने अपने पिता से कहा, “पिताश्री, यदि आप मेरा विवाह करने के इच्छुक हैं तो किसी वीर, ज्ञानी अथवा अलौकिक विद्याएँ जानने वाले के साथ करें। अन्यथा मैं किसी और से विवाह नहीं करूंगी।”

यह सुनकर हरिस्वामी उसके लिए उसकी रुचि का वर ढूंढने के लिए चिंतित रहने लगे। उसी समय राजा ने हरिस्वामी को अपना दूत बनाकर, दक्षिण देश के एक राजा के साथ संधि करने के लिए भेजा क्योंकि वह राजा युद्ध करने के लिए तैयार हो रहा था। जब उसने वहां जाकर अपना कार्य संपन्न कर लिया, तब उसके पास एक श्रेष्ठ ब्राह्मण आया। उसने हरिस्वामी की कन्या के रूप-लावण्य की बात सुन रखी थी। उसने अपने लिए उसकी कन्या की मांग की।

हरिस्वामी ने कहा, “मेरी कन्या पति के रूप में या तो अलौकिक विद्याएं जानने वाले को या ज्ञानी अथवा वीर व्यक्ति को ही स्वीकार करेगी, अन्य किसी को नहीं। अतः आप बतलाएं कि आप इनमें से कौन हैं?” इस पर उस ब्राह्मण ने कहा, “हे ब्राह्मणश्रेष्ठ, मैं अलौकिक विद्याओं का ज्ञाता हूं।”

हरिस्वामी ने तब उससे अपनी विद्या का कुछ चमत्कार दिखलाने को कहा।

उस ब्राह्मण ने अपनी विद्या के प्रभाव से तत्काल एक आकाशगामी रथ तैयार कर दिया। फिर उस ब्राह्मण ने हरिस्वामी को अपने उस मायावी रथ में बैठाया और उसे स्वर्ग आदि लोक दिखला लाया। इसके बाद संतुष्ट हुए हरिस्वामी को वह दक्षिण देश के राजा की उस सेना के पास लौटा लाया, जहां वह अपने काम से आया था।

तब हरिस्वामी ने उस अलौकिक विद्याएं जानने वाले पुरुष के साथ अपनी कन्या ब्याहने का वचन दिया एवं सातवें दिन विवाह की तिथि निश्चित कर दी। उसी समय उज्जयिनी में एक दूसरे ब्राह्मण ने हरिस्वामी के पुत्र देवस्वामी के पास आकर उसकी बहन से विवाह करने की याचना की। देवस्वामी ने जब उसे अपनी बहन की शर्तें बताईं तो वह ब्राह्मण अपनी विद्या का कौशल दिखाने को तत्पर हो गया और उसने अपने अस्त्र-शस्त्रों के कौशल का प्रदर्शन किया।

यह देख देवस्वामी ने उसी के साथ अपनी बहन का विवाह करने का निश्चय कर लिया। अपनी माता की अनुपस्थिति में उसने भी ज्योतिषियों के कथनानुसार सातवें दिन ही विवाह का निश्चय कर लिया।

उसी समय एक तीसरे व्यक्ति ने भी सोमप्रभा की माता के सम्मुख स्वयं को ज्ञानी बताते हुए उसकी बेटी से विवाह करने की याचना की। उसने ज्ञानी होने का प्रमाण भी दिया जिससे प्रभावित होकर सोमप्रभा की माता ने उससे सातवें दिन अपनी कन्या का विवाह करने का वचन दिया।

अगले दिन हरिस्वामी घर लौट आया। आकर उसने अपनी पत्नी और पुत्र को बताया कि वह कन्या का विवाह निश्चित कर आया है। इस पर उन दोनों ने भी अलग-अलग बतलाया कि उन्होंने क्या निश्चय किया है। उनकी बातें सुनकर हरिस्वामी चिंता में पड़ गया कि एक-साथ तीन व्यक्तियों के साथ उसकी कन्या का विवाह कैसे होगा?

अनन्तर, विवाह की निश्चित तिथि को ज्ञानी, वीर और अलौकिक विद्याएं जानने वाला, ये तीनों ही वर हरिस्वामी के घर पहुंचे। इसी समय एक विचित्र बात हो गई। ब्राह्मण की कन्या सोमप्रभा, जो वधु बनने वाली थी, अचानक कहीं गायब हो गई। ढूंढने पर भी उसका कोई पता न चला।

तब घबराए हुए हरिस्वामी ने ज्ञानी पुरुष से कहा, “हे ज्ञानी, अब झटपट यह बताइए कि मेरी कन्या कहां है?”

यह सुनकर ज्ञानी ने अपने ज्ञान द्वारा पता करके उसे बतलाया, “हे ब्राह्मणश्रेष्ठ, आपकी कन्या को धूमशिख नाम का एक राक्षस उठाकर विंध्याचल के वन में स्थित अपने घर में ले गया है।”

ज्ञानी द्वारा ऐसा बताए जाने पर हरिस्वामी भयभीत हो गया। वह बोला, “हाय-हाय, अब वह कैसे मिलेगी और उसका विवाह भी कैसे होगा?” यह सुनकर अलौकिक विद्याएं जानने वाला युवक बोला, “आप धैर्य रखें। ज्ञानी के कथनानुसार वह कहां ले जाई गई है, मैं अभी आपको वहां ले चलता हूं।”

यह कह क्षण-भर में ही उसने सभी अस्त्रों से सजा एक आकाशगामी यान बनाया और उस पर हरिस्वामी, ज्ञानी तथा वीर को चढ़ाकर उन्हें विंध्याचल के उस वन में ले गया, जहां ज्ञानी ने राक्षस का भवन बताया था। यह वृत्तांत जानकर राक्षस क्रोधित हो गया और वह गर्जना करता हुआ बाहर निकल आया।

तब हरिस्वामी के कहने पर वह वीर पुरुष आगे बढ़कर उस राक्षस से लड़ने लगा। तरह-तरह के अस्त्रों से लड़ने वाले उन दोनों, मनुष्य और राक्षस, का युद्ध बड़ा आश्चर्यजनक हुआ। अपनी भार्या के लिए जिस तरह भगवान श्री राम रावण से लड़े थे, वैसे ही ये दोनों भी लड़ने लगे।

कुछ ही देर में उस वीर ने एक अर्द्धचंद्राकार बाण से युद्ध में मतवाले उस राक्षस का मस्तक काट गिराया। राक्षस के मारे जाने पर वे सभी अलौकिक विद्याएं जानने वाले ब्राह्मण के रथ से वापस लौट पड़े।

हरिस्वामी के घर पहुंचकर, विवाह का समय आने पर उस ज्ञानी, वीर एवं अलौकिक विद्याएं जानने वाले के बीच झगड़ा पैदा हो गया। ज्ञानी ने कहा, “यदि मैं न जानता कि सोमप्रभा कहां छिपाकर रखी गई है तो उसका पता कैसे चल पाता? इसलिए उसका विवाह मेरे साथ ही होना चाहिए।”

इस पर अलौकिक विद्याओं के ज्ञाता ने कहा, “यदि मैं आकाशगामी रथ न बनाता तो पल-भर में वहां आना-जाना कैसे हो पाता? रथ पर बैठे राक्षस के साथ, बिना रथ के युद्ध भी कैसे संभव होता? इसलिए यह कन्या मुझे ही मिलनी चाहिए। यह विवाह मैंने जीता है।”

तब उस वीर ने भी अपना पक्ष उनके सामने रखा। वह बोला, “यदि मैंने अपनी शक्ति से उस राक्षस का संहार न किया होता तो आप लोगों के प्रयत्न करने पर भी इस कन्या को कैसे वापस लाया जा सकता था? इसलिए इन कन्या पर तो मेरा ही अधिकार बनता है। यह कन्या मुझे ही मिलनी चाहिए।”

इस प्रकार उन तीनों का झगड़ा सुनकर हरिस्वामी का मन उद्भ्रांत हो गया और वह अपना सिर पकड़कर बैठ गया।

इतनी कथा सुनाकर बेताल ने विक्रम से पूछा, “राजन! अब तुम्हीं बताओ कि वह कन्या किसको मिलनी चाहिए? ज्ञानी को, वीर को अथवा अलौकिक विद्याएं जानने वाले उस व्यक्ति को? सब कुछ जानते हुए भी यदि तुम इसका उत्तर नहीं दोगे तो तुम्हारा सिर फटकर कई टुकड़ों में बंट जाएगा।”

बेताल की यह कथा सुनकर, अपना मौन तोड़ते हुए विक्रम बोला, “बेताल, वह कन्या उस वीर को ही मिलनी चाहिए, क्योंकि उसी ने उद्यम करके, अपने बाहुबल द्वारा उस राक्षस को युद्ध में मारा और उस कन्या को अर्जित किया था। विधाता ने ज्ञानी और अलौकिक विद्याएं जानने वाले को तो उसका काम करने के लिए माध्यम मात्र बनाया था।”

“तुमने ठीक उत्तर दिया राजन”, बेताल तत्काल बोल उठा, “पर तुम अपनी शर्त भूल गए। तुमने मौन भंग किया और शर्त के अनुसार मैं फिर स्वतंत्र हो गया।”

यह कहकर बेताल राजा के कंधे से उतरकर वापस उसी शिंशपा-वृक्ष की ओर उड़ गया।

राजा विक्रमादित्य बेताल को लाने के लिए पुनः शिंशपा वृक्ष के नीचे पहुँच गया। उसने बेताल को उतारकर अपने कंधे पर डाला और चलना शुरू किया। बेताल ने राजा विक्रम को फिर से यह कहानी सुनानी शुरू की – मदनसुन्दरी का पति

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