पीपा जी की आरती – Pipa Ji Maharaj Ki Aarti
पीपा जी की आरती (Pipa Ji Maharaj Ki Aarti) करना परम सुखदायक है तथा दुःख-दारिद्र्य का नाश करने वाला है। वे रामानंद जी के शिष्य थे और उन्हीं के दिखाए मार्ग पर चलकर परमात्म-प्राप्ति की थी। उनके कई पद गुरु ग्रन्थ साहिब में भी संग्रहित हैं। पीपाजी महाराज की आरती गाने से हृदय पर जमी अज्ञान की धूल साफ़ हो जाती है और ज्ञान-प्राप्ति की योग्यता उत्पन्न होने लगती है। पीपा जी की आरती का चमत्कारी असर होता है जिसे कोई नकारने में सक्षम नहीं है। पीपा जी की आरती की आरती का पाठ करें–
पीपाजी महाराज की आरती का पाठ करें
ओम जय पीपा स्वामी,
गुरु जय पीपा स्वामी।
गागरोन नृप धरमी,
भक्त नये नामी॥
ब्रह्मज्ञान दीक्षा दी,
रामानन्द स्वामी।
राजपाट त्यागन कर,
हो गये निष्कामी॥
पहुँचे पुरी द्वारिका,
संग सीता दासी।
सिंधु माँहि समाये,
दर्शन अभिलाषी॥
दर्शन पाये प्रभु के,
जग में यश जारी।
छाप कृष्ण की तब से,
जानत संसारी॥
हिंसक शेर मिला एक,
कंटक वन माँहि।
देखत तेज तपस्या,
गिरा चरण माँहि॥
पा उपदेश अहिंसा,
सब जन हितकारी।
चहुँ दिश जय जयकारा,
गावत नर नारी॥
निश दिन ध्यान धरे जो,
वांछित फल पावे।
दुख दारिद्र मिट जावे,
नव निधि घर आवे॥
तुम हो दीन दयाला,
भक्तन प्रति पाला।
हम सब शरण तिहारी,
मेटो भव जाला॥
पीपा स्वामी की आरती,
जो कोई नर गावे।
प्रेमा भक्ति पावे,
भव जळ तिर जावे॥
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर पीपा जी की आरती (Pipa Ji Maharaj Ki Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें पीपा जी की आरती रोमन में–
oma jaya pīpā svāmī,
guru jaya pīpā svāmī।
gāgarona nṛpa dharamī,
bhakta naye nāmī॥
brahmajñāna dīkṣā dī,
rāmānanda svāmī।
rājapāṭa tyāgana kara,
ho gaye niṣkāmī॥
pahu~ce purī dvārikā,
saṃga sītā dāsī।
siṃdhu mā~hi samāye,
darśana abhilāṣī॥
darśana pāye prabhu ke,
jaga meṃ yaśa jārī।
chāpa kṛṣṇa kī taba se,
jānata saṃsārī॥
hiṃsaka śera milā eka,
kaṃṭaka vana mā~hi।
dekhata teja tapasyā,
girā caraṇa mā~hi॥
pā upadeśa ahiṃsā,
saba jana hitakārī।
cahu~ diśa jaya jayakārā,
gāvata nara nārī॥
niśa dina dhyāna dhare jo,
vāṃchita phala pāve।
dukha dāridra miṭa jāve,
nava nidhi ghara āve॥
tuma ho dīna dayālā,
bhaktana prati pālā।
hama saba śaraṇa tihārī,
meṭo bhava jālā॥
pīpā svāmī kī āratī,
jo koī nara gāve।
premā bhakti pāve,
bhava jaḻa tira jāve॥