याद है
कुछ दिनों की बात है, 
मुझे ठीक से सब कुछ याद है। 
रातों में माँ की झप्पी, 
और स्कूल की मार याद है।
शाम का खेलना था ज़रूरी, 
इसलिए होमवर्क छोड़ना याद है। 
और स्कूल न जाने की ख़ातिर, 
पेट में दर्द होना याद है।
पर आज पेट का दर्द हो न हो, 
ऑफिस जाना ही होता है। 
रात में नींद आए न आए, 
माँ की याद आना तो शुरुआत है।
फिर आँसू ढेर बहें न बहें, 
भविष्य का ख़याल है। 
कल ऑफिस तो जाना ही है न, 
इसलिए ज़बरदस्ती सोना भी एक काम है।
अब ज़िन्दगी में बहुत आगे निकल गए, 
बदले बहुत से ख़याल हैं। 
पर याद आते हैं वो पुराने दिन, 
जब हम दुनियादारी से अनजान थे।
सुबह की चाय हाथ में लेते ही, 
पापा का चिल्लाकर उठाना याद है। 
घर से बाहर कदम रखते ही, 
माँ की घबराई शकल याद है।
अब फिरसे वो दिन कहाँ आएँगे, 
अब कौन हमें समझाएगा। 
बहुत बड़े हो गए हम जल्दी से, 
पर नसीहतें अब भी याद हैं।
सबकुछ बहुत अच्छा रहा, 
पर धीरे धीरे कुछ छूटता गया। 
सबकुछ है अब हाथ में, 
पर अच्छे दिन सिर्फ़ एक याद हैं।


Amazing
शुक्रिया, अबुल जी