क्रान्तिकारी सुभाष (श्री सुभाष जयन्ती (23 जनवरी-1973)
“क्रान्तिकारी सुभाष” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में 23 जनवरी 1973 को रचित कविता है। यह महान क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस के जन्म-दिवस को समर्पित है। पढ़ें यह कविता–
यही दिवस था जब पूरब में चीर अमा की काली स्याही
आसमान में एक दूसरा धरती पर सूरज चमका था
पाकर जिसकी चमक नदी गंगा का भी पानी दमका था।
चली सुवासित पवन गन्ध पुष्पों ने घर-घर बाँटी
मानव ही क्या विहँस रही थी बंग देश की माटी
भारत माता का गर्वीला फूल गया था अंचल
जिसके आते ही धरती पर ब्रिटिश राज्य था चंचल
चढ़ने लगा सूर्य-सा ही वह राजनीति अम्बर में
उसे नहीं विश्वास अहिंसा निर्बल आडम्बर में
वह मध्यान्ह सूर्य-सा बनकर अपनी तीव्र तपन से
चला गलाने पराधीनता अपनी राह लगन से
कुहरे को उसने ललकारा भागों में आता हूँ
नहीं रहेगी, रात सवेरे को अब मैं लाता हूँ
सोते हुए देश की उसने आकर आँखे खोली
आज तलक है गूंज रही उसकी कानों में बोली
मुझे खून दो मैं तुमको आज़ादी लाकर दूंगा
पराधीनता का टीका में मस्तक से धो दूंगा
गरज उठा, वह महासिन्धु-सा सुनकर उसकी वाणी
नर थे बाल-कराल, नारियाँ भी बन गईं भवानी।
फिर क्या था आज़ाद फौज बन गई लगी न देरी
माँ-बहिनों ने सोने-चाँदी की रख ला ढेरी
उस दिन जब कलकत्ते में डाले सुभाष ने गोले
तब गोरी सरकार हिल गई, गोरे मिलकर बोले
अब तो भारत को आज़ादी दे देनी हो होगी
वरना इंग्लैण्ड पहुँचने में कठिनाई होगी
नेता जी की ललकारों से हिम्मत टूट गयी थी
अधिक राज्य करने की उनकी आशा टूट गयी थी
नेताजी के एक-एक इंगित पर ही वीरों ने
मरने की मन में ठानी थी माँ के रणधीरों ने
ढिल्लन, सहगल अरु शाहनबाज भी आकर मिलेफौज में
दिल्ली चलो, चलो के नारे गाते चले मौज में
डगमग डगमग धरती डोली अम्बर डोल उठा था
नेताजी के जयनादों से सागर खौल उठा था
अब तो ब्रिटिश राज्य के मन भारी हैरानी थी
जल्दी ही उसने भारत से जाने की ठानी थी
भारत माता की हथकड़ियों ढीली होकर बोली
खोलो-खोलो अंग्रेजो! अब हमको भय लगता है
इस धरती के सूरज से सब अंग-अंग गलता है
टूट पड़ी हथड़ियाँ माँ की जननी मुक्त हुई थी
लेकिन उससे पहले ही एक घटना नई हुई थी
जो सूरज था चढ़ा और जिसने था हमें हँसाया
गिरते समय उसी ने हमको कितना अधिक रुलाया
जिसकी स्वर्णिम किरणें बनकर आज़ादी आई थी
जिसको पाकर भारत-माता मन में हर्षाई थी
वही सूर्य छिप गया किन्तु अक्षय दे गया सवेरा
युगों-युगों तक बना रहेगा जिसका विमल उजेरा
मरा नहीं है वह सुभाष वह तो अब भी जीता है
झूठ नहीं यह अमर सत्य है, बतलाती गीता है
वह तो फूल-फूल के डर में जाकर के बैठा है
हर बगिया के, हर उपवन के आँगन में लेटा है।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।