बेटी को गुर्जिएफ की सलाह – Gurdjieff′s Advices to his Daughter in Hindi
“बेटी को गुर्जिएफ की सलाह” बहुत ही रोचक दस्तावेज़ है। दरअस्ल, आज-कल गुर्जिएफ को पढ़ रहा हूँ। पढ़ते-पढ़ते महसूस हुआ कि फिर से लिखना भी शुरू किया जाए। सालों से नियमित तौर पर नहीं लिखा है। कुछ वर्ष पहले अन्तिम लेख लिखा था – एक पुस्तक जिसने मेरा जीवन बदल दिया। यह भी वर्षों बाद लिखा था और उसके बाद फिर न लिख सका। हिन्दी चिट्ठाकारी के शुरुआती दिनों में ही नियमित लेखन किया था। उसके बाद से लिखना ही छूट गया। फिर हिन्दी में लिखना-पढ़ना तो बिल्कुल ही छूट-सा गया है। काश कि ज्ञानदत्त पाण्डे जी की तरह मेरी लेखनी भी हलचलायमान रहे। लेकिन गुर्जिएफ़ (GI Gurdjieff) को पढ़ते-पढ़ते न जाने कहाँ से यह प्रेरणा जागृत हुई कि फिर हिंदी में लिखना चाहिए। तो लीजिए, हाज़िर हूँ आपके सामने।
गुर्जिएफ़ का नाम मैंने पहली बार आचार्य रजनीश उर्फ़ ओशो के मुख से सुना था। मुझे लगता है कि मेरी ही तरह अधिकांश हिंदीभाषियों ने ओशो के माध्यम से ही गुर्जीएफ का परिचय प्राप्त किया होगा। कुछ दिनों पहले न जाने कहाँ से यह अन्तः-प्रेरणा हुई की गुर्जिएफ को स्वतंत्र रूप से पढ़ा जाए, बिना ओशो के चश्मे के। सो पढ़ना शुरू किया। आँखें खोलने वाला साहित्य है। या दूसरे शब्दों में कहा जाए–गुर्जिएफ के नज़रिए से–तो आँखें खोलना, नींद से जागना इतना आसान भी नहीं है।
ख़ैर, गुर्जिएफ साहित्य पर विस्तार से चर्चा और कभी। गुर्जिएफ़ ने अपनी बेटी के लिए कुछ सुझाव लिखे थे। बेटी का नाम था दश्का होवार्थ (Dushka Howarth)। ये सुझाव एक तरह से गुर्जिएफ की सारी शिक्षाओं (The Work) का सार हैं। इन 83 सुझावों में उनके दर्शन का क्रियात्मक रूप अन्तर्निहित है। या यूँ कहा जाए कि दर्शन तो है सिद्धान्त और ये 83 सूत्र बताते हैं कि उन सिद्धान्तों को व्यावहारिक धरातल पर कैसे उतारना है। इन सूत्रों या सुझावों का हिंदी में अनुवाद करने का प्रयास मैंने किया है। पढ़िए अपनी बेटी को गुर्जिएफ की सलाह–
1. अपना ध्यान स्वयं पर केन्द्रित रखो। हर पल सजग रहो कि तुम क्या सोचती हो, अनुभव करती हो, चाहती हो और करती हो।
2. जो आरम्भ किया है, उसे सदैव समाप्त करो।
3. जो भी कर रही हो उसे अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश करो।
4. किसी भी ऐसी चीज़ से बन्धी मत रहो जो लम्बे समय में तुम्हें बर्बाद कर दे।
5. बिना प्रत्यक्षदर्शी के अपनी उदारता को विकसित करो।
6. प्रत्येक व्यक्ति से ऐसे पेश आओ जैसे वह निकट संबंधी हो।
7. जो अव्यवस्थित है उसे व्यवस्थित करो।
8.प्रत्येक भेंट स्वीकारना और उसके लिए आभारी होना सीखो।
9. स्वयं को परिभाषित करना बन्द करो।
10. असत्य मत बोलो, चोरी मत करो। क्योंकि अगर तुमने ऐसा किया तो तुमने स्वयं से झूठ बोला और स्वयं से ही चोरी की है।
11. अपने पड़ोसी को स्वयं पर निर्भर बनाए बिना उसकी मदद करो।
12. अन्यों द्वारा अपनी नक़ल किए जाने की इच्छा नहीं करो।
13. योजनाएँ बनाओ और उन्हें पूरा होते हुए देखो।
14. बहुत ज़्यादा जगह मत घेरो।
15. ग़ैरज़रूरी आवाज़ें और भाव-भंगिमाएँ मत करो।
16. यदि तुममें आस्था नहीं है, तो आस्ठावान होने का अभिनय करो।
17. सशक्त व्यक्तित्व वाले लोगों से प्रभावित मत होओ।
18. बिना उसकी अनुमति के किसी वस्तु या व्यक्ति का उपयोग मत करो।
19. बराबर-बराबर बाँटो।
20. किसी को अपनी तरफ़ कामुक तौर पर आकर्षित मत करो (Do not seduce.)।
21. जितना आवश्यक हो उतना ही खाओ और सोओ।
22. अपनी निजी समस्याओं पर चर्चा मत करो।
23. जब तक सारे तथ्य न मालूम हों तब तक कोई निर्णय या आलोचना मत करो।
24. बेमतलब की दोस्ती मत रखो।
25. तात्कालिक चलन के पीछे मत दौड़ो।
26. ख़ुद को मत बेचो।
27. जिन अनुबंधों/समझौतों पर हस्ताक्षर किया है उनका सम्मान करो।
28. समय का पालन करो।
29. दूसरे की सम्पत्ति या वस्तुओं से ईर्ष्या मत करो।
30. उतना ही बोलो जितना ज़रूरी हो।
31. अपने कार्य से जो लाभ प्राप्त होगा उसके बारे में मत सोचो।
32. कभी धमकाओ मत।
33. अपने वादों को निभाओ।
34. वाद-विवाद के दौरान स्वयं को दूसरे की जगह रखकर देखो।
35. जब कोई ख़ुद से बेहतर हो तो इसे स्वीकार करो।
36. मिटाओ मत, रूपान्तरित करो।
37. अपने डरों को हराओ; इनमें से हर एक भेष बदले हुए इच्छा ही है।
38. दूसरों को ख़ुद उनकी मदद करने में मदद करो।
39. अपने द्वेष को समाप्त करो और उन लोगों के क़रीब जाओ जिन्हें तुम ख़ारिज करना चाहती हो।
40. जब वो तुम्हारी निन्दा या प्रशंसा करें तो प्रतिक्रिया मत दो।
41. अपने गर्व को आत्म-सम्मान में परिवर्तित करो।
42. अपने क्रोध को रचनात्मकता में परिवर्तित करो।
43. अपने लोभ को सौन्दर्य के प्रति सम्मान में रूपान्तरित करो।
44. अपनी ईर्ष्या को दूसरों की ख़ूबियों की तारीफ़ में बदलो।
45. अपनी घृणा को परोपकार में परिवर्तित करो।
46. ख़ुद की न तो तारीफ़ करो और न ही बेइज़्ज़ती।
47. जो चीज़ें तुम्हारी नहीं हैं उन्हें ऐसे उपयोग करो जैसे तुम्हारी ही हों।
48. शिकायत मत करो।
49. अपनी कल्पना विकसित करो।
50. दूसरे आज्ञा-पालन करेंगे इसका मज़ा लेना के लिए आदेश मत दो।
51. उन सेवाओं के लिए भुगतान करो जो आपको दी गई हों।
52. अपने कार्य या विचारों की शेखी मत बघारो।
53. दूसरों में दया, प्रशंसा, सहानुभूति और ग़लत काम में सहभागिता जैसी भावनाओं को जगाने की कोशिश मत करो।
54. अपने रूप या पहनावे से दूसरों से अलग दिखने की चेष्टा मत करो।
55. बात मत काटो, केवल शान्त हो जाओ।
56. ऋण के चक्कर में मत पड़ो। तत्क्षण भुगतान करो।
57. अगर किसी को ठेस पहुँचाई हो तो माफ़ी मांग लो।
58. यदि सार्वजनिक रूप से ठेस पहुँचाई हो तो क्षमा भी सार्वजनिक तौर पर मांगो।
59. अगर तुम्हें महसूस हो कि तुमने कुछ ग़लत कह दिया है, अपनी ग़लती मानो और तुरंत वह काम रोक दो।
60. अपने पुराने विचारों का केवल इसलिए बचाव मत करो क्योंकि वो तुम थीं जिसने उन्हें कहा था।
61. बेकार चीज़ें मत रखो।
62. स्वयं को दूसरों के विचारों से मत सजाओ।
63. मश्हूर हस्तियों के साथ तस्वीरें मत खिंचवाओ।
64. अपना मूल्यांकन करने वाली स्वयं बनो।
65. तुम्हारे पास जो है उससे स्वयं को परिभाषित मत करो।
66. ख़ुद को परिवर्तित होने की संभावना की इजाज़त दिए बग़ैर अपने बारे में कभी बातचीत मत करो।
67. स्वीकार करो कि कुछ भी तुम्हारा नहीं है।
68. जब पूछा जाए कि तुम किसी चीज़ या व्यक्ति के बारे में क्या सोचती हो, केवल विशेषताओं के बारे में ही बताओ।
69. जब कभी बीमार पड़ो, इस शैतान से नफ़रत करने की बजाय इसे अपना शिक्षक मानो।
70. आँखें चुराकर मत देखो, स्थिर भाव से देखो।
71. मृत लोगों को मत भूलो, लेकिन उन्हें सीमित जगह ही दो ताकि वे तुम्हारे जीवन पर अधिकार न कर लें।
72. जहाँ तुम रहती हो, वहाँ सदैव एक पवित्र स्थान निर्मित करो।
73. जब किसी की सहायता करो, तो अपने प्रयासों को दूसरों की दृष्टि में आने से बचाओ।
74. यदि तुम दूसरों के लिए कार्य करना तय करो, तो वह ख़ुशी से करो।
75. जब “करने” और “न करने” के बीच असमंजस हो, तो जोख़िम उठाओ और “करो”।
76. अपने सहभागी को सब कुछ देने की कोशिश मत करो। स्वीकार करो कि जो तुम उसे नहीं दे सकती हो, वह उसे दूसरों में ढूंढेगा।
77. जब किसी के पास दर्शक/श्रोता हों, तो उन्हें चुराने की मंशा से उनके काम में खलल मत डालो।
78. जो धन अर्जित किया है उसीके साथ रहो।
79. अपने प्रेम प्रसंगों की शेखी मत बघारो।
80. अपनी कमज़ोरियों पर फ़क़्र मत करो।
81. केवल समय बिताने के लिए किसी से मत मिलो।
82. बाँटने की मंशा से चीज़ें हासिल करो।
83. यदि तुम ध्यान कर रही हो और शैतान आ जाए, तो शैतान से भी ध्यान कराओ।
अंग्रेज़ी भाषा में आप “अपनी बेटी को गुर्जिएफ की सलाह” यहाँ पढ़ सकते हैं – Gurdjieff′s Advices to his Daughter.
मैंने कोशिश तो की है, फिर भी इस अनुवाद में मुझे सुधार की बहुत गुंजाइश नज़र आती है। इसलिए यदि आपका कुछ सुझाव हो, तो बेझिझक टिप्पणी करके मुझे अवश्य अवगत कराएँ। उम्मीद है कि “अपनी बेटी को गुर्जिएफ की सलाह” का हिन्दी अनुवाद आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
– प्रतीक पाण्डे
number 83 par shaitar ko shaitan kar lena
स्वामी चैतन्यकीर्ति जी, आपके सुझाव के अनुसार वर्तनी में सुधार कर लिया है। आप जैसे विद्वान लोगों का मार्गदर्शन मिल रहा है यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। कृपया इसी तरह हिंदीपथ पढ़ते रहें और हमारा मार्गदर्शन करते रहें।