धर्म

परशुराम चालीसा – Parshuram Chalisa

परशुराम चालीसा का पाठ बुद्धि से अज्ञान के अंधियारे को मिटा देता है। इसे नियमित पढ़ने से यश की प्राप्ति होती है व व्यक्ति तेजस्वी बनता है। भगवान परशुराम शौर्य की मूर्ति हैं। अन्याय उनकी क्रोधाग्नि में विनष्ट हो जाता है।

अतः उनका स्मरण-मात्र ही हृदय को साहस से भर देता है। पढ़ें परशुराम चालीसा (Parshuram Chalisa) और अन्तःकरण में ज्ञान व तेजस्विता का वर्धन करें–

॥दोहा॥
श्री गुरु चरण सरोज छवि,
निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा,
गहि आशिष त्रिपुरारि॥

बुद्धिहीन जन जानिये,
अवगुणों का भण्डार।
बरणौं परशुराम सुयश,
निज मति के अनुसार॥

॥ चौपाई॥
जय प्रभु परशुराम सुख सागर,
जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर।

भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा,
क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।

जमदग्नी सुत रेणुका जाया,
तेज प्रताप सकल जग छाया।

मास बैसाख सित पच्छ उदारा,
तृतीया पुनर्वसु मनुहारा।

प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा,
तिथि प्रदोष ब्यापि सुखधामा।

तब ऋषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा,
रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा।

निज घर उच्च ग्रह छ: ठाढ़े,
मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े।

तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा,
जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा।

धरा राम शिशु पावन नामा,
नाम जपत जग लह विश्रामा।

भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर,
कांधे मुंज जनेउ मनहर।

मंजु मेखला कटि मृगछाला,
रूद्र माला बर वक्ष बिशाला।

पीत बसन सुन्दर तनु सोहें,
कंध तुणीर धनुष मन मोहें।

वेद-पुराण-श्रुति-समृति ज्ञाता,
क्रोध रूप तुम जग विख्याता।

दायें हाथ श्रीपरशु उठावा,
वेद-संहिता बायें सुहावा।

विद्यावान गुण ज्ञान अपारा,
शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा।

भुवन चारिदस अरू नवखंडा,
चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा।

एक बार गणपतिजी के संगा,
जूझे भृगुकुल कमल पतंगा।

दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा,
एक दन्त गणपति भयो नामा।

कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला,
सहस्त्रबाहु दुर्जन विकराला।

सुरगऊ लखि जमदग्नी पांही,
रखिहहुं निज घर ठानि मन मांहीं।

मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई,
भयो पराजित जगत हंसाई।

तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी,
रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी।

ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना,
तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा।

लगत शक्ति जमदग्नी निपाता,
मनहुँ क्षत्रिकुल बाम विधाता।

पितु- -बध मातु-रुदन सुनि भारा,
भा अति क्रोध मन शोक अपारा।

कर गहि तीक्षण परशु कराला,
दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला।

क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा,
पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा।

इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी,
छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी।

जुग त्रेता कर चरित सुहाई,
शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई।

गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना,
तब समूल नाश ताहि ठाना।

कर जोरि तब राम रघुराई,
विनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई।

भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता,
भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता।

शस्त्र विद्या देह सुयश कमाव,
गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा।

चारों युग तव महिमा गाई,
सुर मुनि मनुज दनुज समुदाई।

देसी कश्यप सों संपदा भाई,
तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई।

अब लौं लीन समाधि नाथा,
सकल लोक नावइ नित माथा।

चारों वर्ण एक सम जाना,
समदर्शी प्रभु तुम भगवाना।

ललहिं चारि फल शरण तुम्हारी,
देव दनुज नर भूप भिखारी।

जो यह पढ़े श्री परशु चालीसा,
तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा।

पूर्णेन्दु निसि बासर स्वामी,
बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी।

॥ दोहा ॥
परशुराम को चारू चरित,
मेटत सकल अज्ञान।
शरण पड़े को देत प्रभु,
सदा सुयश सम्मान।

॥ श्लोक ॥
भृगुदेव कुलं भानुं सहस्रबाहुर्मर्दनम्।
रेणुका नयना नंद परशुंवन्दे विप्रधनम्॥

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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर परशुराम चालीसा (Parshuram Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें परशुराम चालीसा रोमन में–

Read Parshuram Chalisa

॥ dohā ॥
śrī guru caraṇa saroja chavi,
nija mana mandira dhāri।
sumari gajānana śāradā,
gahi āśiṣa tripurāri॥

buddhihīna jana jāniye,
avaguṇoṃ kā bhaṇḍāra।
baraṇauṃ paraśurāma suyaśa,
nija mati ke anusāra ॥

॥ caupāī ॥
jaya prabhu paraśurāma sukha sāgara,
jaya munīśa guṇa jñāna divākara।

bhṛgukula mukuṭa bikaṭa raṇadhīrā,
kṣatriya teja mukha saṃta śarīrā।

jamadagnī suta reṇukā jāyā,
teja pratāpa sakala jaga chāyā।

māsa baisākha sita paccha udārā,
tṛtīyā punarvasu manuhārā।

prahara prathama niśā śīta na ghāmā,
tithi pradoṣa byāpi sukhadhāmā।

taba ṛṣi kuṭīra rudana śiśu kīnhā,
reṇukā kokhi janama hari līnhā।

nija ghara ucca graha cha: ṭhāḍha़e,
mithuna rāśi rāhu sukha gāḍha़e।

teja-jñāna mila nara tanu dhārā,
jamadagnī ghara brahma avatārā।

dharā rāma śiśu pāvana nāmā,
nāma japata jaga laha viśrāmā।

bhāla tripuṇḍa jaṭā sira sundara,
kāṃdhe muṃja janeu manahara।

maṃju mekhalā kaṭi mṛgachālā,
rūdra mālā bara vakṣa biśālā।

pīta basana sundara tanu soheṃ,
kaṃdha tuṇīra dhanuṣa mana moheṃ।

veda-purāṇa-śruti-samṛti jñātā,
krodha rūpa tuma jaga vikhyātā।

dāyeṃ hātha śrīparaśu uṭhāvā,
veda-saṃhitā bāyeṃ suhāvā।

vidyāvāna guṇa jñāna apārā,
śāstra-śastra dou para adhikārā।

bhuvana cāridasa arū navakhaṃḍā,
cahuṃ diśi suyaśa pratāpa pracaṃḍā।

eka bāra gaṇapati ke saṃgā,
jūjhe bhṛgukula kamala pataṃgā।

dāṃta toḍa़ raṇa kīnha virāmā,
eka danta gaṇapati bhayo nāmā।

kārtavīrya arjuna bhūpālā,
sahastrabāhu durjana vikarālā।

suragaū lakhi jamadagnī pāṃhī,
rakhihahuṃ nija ghara ṭhāni mana māṃhīṃ।

milī na māṃgi taba kīnha laḍa़āī,
bhayo parājita jagata haṃsāī।

tana khala hṛdaya bhaī risa gāḍha़ī,
riputā muni sauṃ atisaya bāḍha़ī।

ṛṣivara rahe dhyāna lavalīnā,
tinha para śaktighāta nṛpa kīnhā।

lagata śakti jamadagnī nipātā,
manahu~ kṣatrikula bāma vidhātā।

pitu- -badha mātu-rudana suni bhārā,
bhā ati krodha mana śoka apārā।

kara gahi tīkṣaṇa paraśu karālā,
duṣṭa hanana kīnheu tatkālā।

kṣatriya rudhira pitu tarpaṇa kīnhā,
pitu-badha pratiśodha suta līnhā।

ikkīsa bāra bhū kṣatriya bihīnī,
chīna dharā bipranha kaha~ dīnī।

juga tretā kara carita suhāī,
śiva-dhanu bhaṃga kīnha raghurāī।

guru dhanu bhaṃjaka ripu kari jānā,
taba samūla nāśa tāhi ṭhānā।

kara jori taba rāma raghurāī,
vinaya kīnhī puni śakti dikhāī।

bhīṣma droṇa karṇa balavantā,
bhaye śiṣyā dvāpara maha~ anantā।

śastra vidyā deha suyaśa kamāva,
guru pratāpa diganta phirāvā।

cāroṃ yuga tava mahimā gāī,
sura muni manuja danuja samudāī।

desī kaśyapa soṃ saṃpadā bhāī,
tapa kīnhā mahendra giri jāī।

aba lauṃ līna samādhi nāthā,
sakala loka nāvai nita māthā।

cāroṃ varṇa eka sama jānā,
samadarśī prabhu tuma bhagavānā।

lalahiṃ cāri phala śaraṇa tumhārī,
deva danuja nara bhūpa bhikhārī।

jo yaha paḍha़e śrī paraśu cālīsā,
tinha anukūla sadā gaurīsā।
pūrṇendu nisi bāsara svāmī,
basahu hṛdaya prabhu antarayāmī।

॥ dohā॥
paraśurāma ko cārū carita,
meṭata sakala ajñāna।
śaraṇa paḍa़e ko deta prabhu,
sadā suyaśa sammāna।

॥ śloka॥
bhṛgudeva kulaṃ bhānuṃ,
sahasrabāhurmardanam।
reṇukā nayanā naṃda,
paraśuṃvande vipradhanama॥

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम, भगवान श्री हरि विष्णु के छठे अवतार कहलाते हैं। इनका अवतरण द्वापर युग में हुआ था। परशुराम जी की माता रेणुका जी एवं पिता सप्तर्षि जमदग्नि जी थे। वे बचपन से ही ज्ञानी एवं बुद्धि निपुण थे। आठ साल की उम्र से ही इन्हें चार पवित्र वेदों का ज्ञान था। ब्राह्मण सोसाइटी की स्थापना का श्रेय भी भगवान श्री परशुराम को ही जाता है। अगर बात करें परशुराम चालीसा की तो यह भगवान परशुराम को समर्पित एक स्रोत है। 

परशुराम चालीसा में भगवान परशुराम की महिमा का व्याख्यान भली भांति किया गया है। कहते हैं कि इस चालीसा का नियमित पाठ करने वाले जातक पर भगवान परशुराम प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं। 

मान्यता अनुसार अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जी का जन्म हुआ था। तदैव हर साल इसी दिन इनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन भगवान परशुराम की विधि विधान से पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही हर मनुष्य को पूजा अर्चना के साथ-साथ परशुराम चालीसा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस चालीसा का पाठ करने से मनुष्य में बाहरी और आंतरिक शक्ति का संचार होता है। 

हिंदीपथ पर श्री परशुराम चालीसा की प्रस्तुति आप सभी के लिए की गई है। हमारे माध्यम से आप इसे पढ़ और गा  सकते हैं। साथ ही यहां पर आप इस चालीसा का pdf फॉर्म भी डाउनलोड कर सकते हैं। परशुराम चालीसा का पीडीएफ डाउनलोड करके प्रिंट करवा कर आप अपने पूजा स्थान पर रख सकते हैं। फिर आवश्यकतानुसार इसका उपयोग किया जा सकता है। अंत में आप सभी से यही अनुरोध है कि हिंदी में अन्य सभी आवश्यक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए हिंदीपथ पर लगातार बने रहें। 

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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