तुम्हारी शपथ में तुम्हारा रहूँगा
“तुम्हारी शपथ में तुम्हारा रहूँगा” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि चिर-साहचर्य की पुकार लगाता प्रतीत होता है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
तुम्हारी शपथ में तुम्हारा रहूँगा
तुम्हें बाँध करके भुजाओं में अपनी-
तुम्हारी सुनूँ और अपनी कहूँगा
तुम्हारी शपथ में तुम्हारा रहूँगा।
नहीं चाहता मैं तुम्हें भूल जाऊँ
नहीं चाहता मैं अकेला ही गाऊँ
यही चाहता मैं पिऊँ और पिलाऊँ
हँसू मैं स्वयं और तुमको हँसाऊँ
गगन तुम अगर मैं सितारा रहूँगा
तुम्हारी शपथ में तुम्हारा रहूँगा
नहीं दूर मैं दूर तुम भी नहीं हो
नहीं पास मैं पास तुम भी नहीं हो
वही मैं रहा किन्तु तुम वह नहीं हो
खड़ा मैं मगर तुम चली जा रही हो
नदी तुम अगर किनारा रहूँगा
तुम्हारी शपथ में तुम्हारा रहूँगा।
युगों से तृषित चातकी प्यास लेकर
हृदय में मिलन का महा ज्वार लेकर
भटकता रहा आज तक इस धरा पर
नहीं पा सका जिसको सब कुछ लुटाकर
उसे आज पाकर उसी का रहूँगा
तुम्हारी शपथ में तुम्हारा रहूँगा॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।