तुम्हें पुकार रहा हूँ
“तुम्हें पुकार रहा हूँ” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना सन् 1960 में की गयी थी। इसमें कवि अपनी गुहार सुने जाने की प्रतीक्षा के समय के भावों को व्यक्त कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
कब का तुम्हें पुकार रहा हूँ-
क्यों तुम टेर नहीं सुनते हो?
माना मेरा साथ न देना
माना मुझको साथ न लेना
पर जो कुछ कहने आया हूँ
उसको तो आकर सुन लेना।
बोलो क्या मैं आश लगाऊँ?
देखू औरों को दिखलाऊँ ?
मेरे लिए न जाने क्यों तुम
चीर आवरण ही बुनते हो
क्यों तुम टेर नहीं सुनते हो?
साथ नहीं कुछ भी लाया हूँ
पर दूरी चलकर आया हूँ
फिर भी मृगजल रचे हुए हो।
जब इतना मैं भरमाया हूँ।
क्या शाश्वत यह प्रीति मिटेगी?
क्या उसकी यह पीर घटेगी?
यही देखता हूँ करुणामय,
नेह नियम में क्या चुनते हो,
क्यों तुम टेर नहीं सुनते हो?
(सन् 1960 ई.)
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।