कविता

आज नहीं तो कल आओगे

“आज नहीं तो कल आओगे” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि झंझावतों को पार कर अन्ततः प्रेमपूर्ण विजय की कामना कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें “आज नहीं तो कल आओगे” कविता का–

इतना है विश्वास मुझे यदि
आज नहीं तो कल आओगे।
ठुकराओगे आज अगर तो,
निश्चय ही कल अपनाओगे।

यह तो नियम अटल जगती का-
जैसा बोया वैसा काटा।
यह भी सत्य अगर जीवन में,
जिसका बाढ़ा उसका घाटा।

किन्तु नहीं जीवन थक पाया,
यद्यपि ग्रीष्म सा सूखा मन।
जलती रहीं भावनायें नित
तपता रहा ताप से यह तन।

मगर रहा विश्वास अगर यह,
तुम सावन बनकर आओगे।
मंजिल दूर बहुत है मेरी,
यह मैंने अब जान लिया है।

पुण्यों की ताकत कितनी है,
इतना भी पहचान लिया है।
बना राह का तिल-तिल दुश्मन,
खड़ा निगलने को मुँह बाये।

नहीं दीखता अपना कोई,
आ करके जो झट अपनाये।

फिर भी मंजिल तक पहुँचाने-
तुम साजन बनकर आओगे।

जनम-जनम की आशा मेरी
खोज रही तेरे घर का पथ।
शक्ति थकी साँसें चुक आई,
मिला नहीं तेरा इति औ अथ।

अर्घ्य चढ़ाने को आकुल हैं,
मेरी अश्रु भरी दो आँखें।
समता कब कर पाई उनकी,
बरस-बरस हारी बरसातें।

किन्तु साधना पूरी होगी,
तुम पाहुन बनकर आओगे

इतना है विश्वास मुझे यदि।

नवल सिंह भदौरिया

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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