मैं ही छूट गया
“मैं ही छूट गया” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि जीवन में एकाकीपन को दर्शा रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
भीड़ भाड़ की दुनियाँ में कुछ ऐसा लगता है,
साथी सबको मिले अकेला मैं ही छूट गया।
हँसी खुशी मिल गई उन्हें जो रोते आये थे,
उन्हें किनारा मिला जिन्होंने गोते खाये थे।
जो पीछे थे आगे आये, आगे बहुत हुए,
हम ही जो सबसे आगे थे पीछे दूर हुए।
मुझे नहीं मालूम कहाँ तक मुझको बहना है,
एक बात मन की मुझको सब जग से कहना है।
जो लेकर के आया था वह सारा व्यर्थ हुआ,
अमिय लुटाने आया था, बस यही अनर्थ हुआ।
सबको जीवन मिला मुझी से जीवन रूठ गया,
साथी सबको मिले अकेला मैं ही छूट गया।
दुनियाँ में रिश्ते-नातों की कुछ भी कमी नहीं,
ढूँढ़ा बहुत मगर मेरा तो कोई कहीं नहीं ।
दुनियादारी बिगड़ गयी तो कैसा जीना है ?
पीकर भी गर होश रहा तो कैसा पीना है ?
मेरी अजमायश करती हैं अँधियारी रातें,
फुरसत नहीं कहे जाती हैं उजियारी रातें।
जिसकी पकड़ी बाँह उसी ने धक्का मार दिया,
उसने ही नफ़रत की जिसकों मैंने प्यार किया।
जो भी रिश्ता जोड़ा मैंने वो ही टूट गया।
साथी सबको मिले अकेला मैं ही छूट गया।।
लिखने को लिख देता हूँ जो कुछ भी आता है
मगर किसे फुरसत है जो उसको पढ़ पाता है।
मैं आँखों की बात हृदय से कहने का आदी
बँटवारे में मिली इसी से मुझको बर्बादी।
सावन सूखा गया न कोई भी बहार आयी
मैं प्यासा ही रहा न ढिंग कोई फुहार आयी
सोच रहा हूँ कब तक ऐसी दिन-रातें होंगी ?
क्या मेरे जीवन में भी फिर बरसातें होगी ?
सबके मन की हुई भाग्य मेरा ही फूट गया,
साथी सबको मिले अकेला में ही छूट गया।।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।