नया लिखूँ
“नया लिखूँ” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि जीवन के हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ की कामना कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
लिखने को मन करता है कुछ ऐसा नया लिखूँ-
जिसको लिख करके लिखने की आगे चाह न हो।
यों तो बरस चला जाता हर अनचाहा बादल,
चातक के प्यासे अधरों को नहीं तृप्ति का जल।
भावुकता का नये विचारों से यदि मेल नहीं,
तो कविता लिखने का समझो स्वयं अधूरा फल।
मैं तो वह करना चाहूँगा करके किन्तु जिसे
और कभी कुछ करने की आगे परवाह न हो।
जिसको लिख करके लिखने की आगे चाहते हो।
यों तो सदा चला करते पग अनजानी राहें,
जिनसे थोड़ा भी परिचय हो कितनी हैं बाँहें ?
झटक-झटक कर दुनियाँ आगे बढ़ती रहती है,
बढ़ना तो पर वह बढ़ना, जब हम बढ़ना चाहें
लक्ष्य मगर मैं खोज रहा जो ऐसा कहीं मिले,
जिससे आगे जाने को मंजिल की राह न हो।
जिसको लिख करके लिखने की आगे चाह न हो।
यों तो जिये चली जाती है यह दुनियाँ सारी –
कोई खुशियाँ पीता है कोई आँसू खारी।
सदा एक-सा खिलने वाला यौवन किसे मिला ?
बनी एक दिन कफ़न वही जो थी चूनरकारी।
मैं ऐसा संसार नया इक लाना चाहूँगा,
जहाँ कभी मानव तन-मन को पीड़ा दाह न हो।
जिसको लिख करके लिखने की आगे चाह न हो।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।