कविता

ऋतु बदली तो क्या बदली

“ऋतु बदली तो क्या बदली” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि बाहरी परिस्थितियों को बदलने की बजाय अन्तस् को परिवर्तित करने का आह्वान कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–

ऋतु बदली तो क्या बदली जो मन का मौसम बदल न पाई।
पोर-पोर में सिहरन पैदा नहीं करे तो क्या पुरवाई॥

छिटकी हो चाँदनी गगन में चन्दा से करती हो बातें,
अवगुण्ठन को खोल कुमुदिनी, हँसी बिखेर रही हो जग में।
अकथनीय सौन्दर्य भरा हो प्रकृति सुन्दरी के पग-पग में,
फिर भी मन में आग लगी हो, कैसी है वह शरद जुन्हाई?
ऋतु बदली तो क्या बदली जो मन का मौसम बदल न पाई।

डाल-डाल पर फूल हँस रहे, अलियों ने कलियों को घेरा,
धरा बसन्ती, पवन बसन्ती, बासन्ती हो रहा सवेरा।
कोई राग धमार सुनाये, कोई काफी मुर-मुर फाग सुहानी,
नाचे नई नवेली घर-घर राजा घर-घर रानी।
किन्तु हृदय में हूक बनी हो, क्या कोकिल ने कूक मचाई।
ऋतु बदली तो क्या बदली जो मन का मौसम बदल न पाई।

उठकर बादल शून्य गगन में, आँचल को यदि गीता कर दें,
इन्द्रधनुष के सप्त रंग मिल, वातावरण रंगीला कर दें।
कल-कल-कल करती इठलाती बलखाती नदियाँ यदि झूमें,
झर-झर-झर झरने झरते हों झुक-झुक नदियाँ धरती चूमें।
किन्तु भावना व्यर्थ रही जो कभी न मेघदूत बन पायी।
ऋतु बदली तो क्या बदली जो मन का मौसम बदल न पाई।

नवल सिंह भदौरिया

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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