पनघट
“पनघट” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि पनघट की तरह सर्वसमावेशिता आदि गुण स्वयं में विकसित करने का आह्वान कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
यह तो पनघट है घट भर कर ले जाते हैं पीने वाले,
अपनी प्यास बुझा लेते हैं, मरूथल में भी जीने वाले।
यहाँ सदा बहता रहता है रिक्त घण्टों को भरने को जल
यहाँ सदा ही मिलता रहता, अखिल तृप्तियों को भी सम्बल
यहाँ सदा आते रहते है जीवन को सुलझाने वाले,
यहाँ सदा आते जाते हैं जीवन से थक जाने वाले।
यह तो पनघट है घट भर कर ले जाते हैं पीने वाले।
जाने कितने ही घट आये, इसने भेद नहीं कुछ माना,
प्रत्युत सबकी प्यास बुझाने में ही इसने अति सुख माना।
कुछ तड़के ही भर जाते ऐसे भी कुछ पीने वाले
कुछ दुपहर कुछ सन्ध्या तक आते जाते ले जाने वाले।
यह तो पनघट है घट भर कर ले जाते हैं पीने वाले।
कितनी बार दिया है इसने अब तक है प्यासे को पानी।
यह तो ऐसा महा सिन्धु है, हुई न इसको कुछ हैरानी।
दाता बनकर देता आया, आये जितने पीने वाले,
एक बूँद भी जिसने माँगी उसे मिल गये अगणित प्याले।
यह तो पनघट है घट भर कर ले जाते हैं पीने वाले।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।